नई दिल्ली/पटना: समाज कल्याण मंत्री मदन सहनी (Madan Sahni) ने आरजेडी अध्यक्ष लालू प्रसाद यादव (Lalu Prasad Yadav) से मुलाकात संभावनाओं को खारिज कर दिया है. उन्होंने कहा कि ऐसा कोई कार्यक्रम नहीं है. वो निजी काम से दिल्ली आए हैं. बिहार लौटते ही मैं पटना में सीएम नीतीश कुमार (CM Nitish Kumar) से मिलूंगा.
लालू से मिलने की बात गलत
अपने इस्तीफे का ऐलान करने वाले मदन सहनी शनिवार को अचानक दिल्ली पहुंच गए. जहां रविवार को आरजेडी अध्यक्ष लालू प्रसाद यादव से उनकी मुलाकात की अटकलें लगाई जा रही थीं. हालांकि अब उन्होंने ऐसी किसी संभावनाओं से इंकार कर दिया है. सहनी ने कहा कि लालू से मिलने का न तो कार्यक्रम है और न ही इसकी जरूरत है.
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'नीतीश ही मेरे नेता'
मदन सहनी ने मुख्यमंत्री नीतीश कुमार से नाराजगी की खबरों को भी आधारहीन बताया है. उन्होंने कहा कि वे आज भी जेडीयू में हैं और आगे भी रहेंगे. जहां तक नेता की बात है तो उन्होंने स्पष्ट किया कि नीतीश कुमार ही उनके नेता है. उन्होंने कहा कि मेरे नेता नीतीश कुमार हैं, बतौर विधायक उनके ही नेतृत्व में काम करता रहूंगा. मैं जदयू नहीं छोड़ने वाला हूं., लेकिन मैं अपने इस्तीफे के निर्णय पर कायम हूं.
'निजी काम से दिल्ली आया हूं'
मंत्री की अधिकारी नहीं सुनते
उन्होंने कहा कि अधिकारियों को अपने रवैये में बदलाव लाना होगा. 99 फीसदी अधिकारी जनता की बात नहीं सुनते हैं. मंत्री, विधायक की बात भी नहीं सुनते हैं. जनता अपना कोई काम या शिकायत लेकर जाती है तो उसको अधिकारी भगा देते हैं.
कई मंत्री भी आए सामने
सहनी ने कहा कि अब तो बिहार सरकार के कई मंत्री भी मेरा समर्थन कर रहे हैं और बोल भी रहे हैं कि अधिकारी बात नहीं सुनते हैं. उन्होंने कहा कि जब अधिकारी विभाग के मंत्री की बात ही नहीं सुनेंगे तो जनता का काम कैसे होगा.
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शनिवार को सीएम से नहीं मिले सहनी
आपको बताएं कि गुरुवार को अधिकारियों पर मनमानी करने और उनकी बात नहीं सुनने का आरोप लगाकर मदन सहनी ने समाज कल्याण मंत्री के पद से इस्तीफे का ऐलान कर बिहार की सियासत में भूचाल ला दिया था. शनिवार को सीएम से मिलकर उन्होंने औपचारिक तौर पर त्यागपत्र देने की बात कही थी, लेकिन शनिवार को पटना आने के बाद मुख्यमंत्री से बिना मिले वे दिल्ली निकल गए.
मदन सहनी की नाराजगी की वजह
मंत्री मदन सहनी ने गुरुवार को अफसरशाही के खिलाफ बिगुल फूंक दिया था. उन्होंने कहा था, 'यहां अधिकारियों की कौन कहे, चपरासी तक मंत्री की बात नहीं सुनते. अगर मंत्री की भी बात सरकार में नहीं सुनी जाएगी, तो ऐसी हालत में मंत्री पद पर रहकर क्या फायदा?' उन्होंने कहा था, 'अफसरों की तानाशाही से हम परेशान हो गए हैं. कोई काम नहीं हो रहा है. जब हम गरीबों का भला ही नहीं कर पा रहे हैं, तो केवल सुविधा भोगने के लिए मंत्री नहीं रह सकते. मुख्यमंत्री को इस्तीफा सौंप देंगे.'
क्या है तबादले का पूरा खेल?
सूत्रों की माने तो मंत्री और वरिष्ठ अधिकारियों के बीच अधिकारियों के तबादले को लेकर पेंच फंस गया था, जिस कारण यह बखेड़ा खड़ा हो गया, जिससे अब सरकार की किरकिरी हो रही है. दरअसल, जून के महीने में राज्य के करीब सभी विभागों में बड़े पैमाने पर अधिकारियों के तबादले होते हैं. समाज कल्याण विभाग में भी तबादले होने थे. मंत्री ने आरोप लगाया कि तीन दिनों से अधिकारी तबादले की फाइल दबाए हुए हैं.