उत्तरकाशी (उत्तरकाशी): उत्तराखंड में देवालय और शिवालय हमेशा से ही लोगों के आकर्षण का केन्द रहे हैं. जहां हर साल देश-विदेश से श्रद्धालु दर्शन के लिए पहुंचते हैं. हर मंदिर की अपनी पौराणिक गाथा है, जिसकी अनुभूति यहां की शांत फिजा में साफ महसूस की जा सकती है. आज हम आपको उत्तरकाशी जिले के विमलेश्वर महादेव मंदिर के बारे में बताने जा रहे हैं, जिसकी महिमा पुराणों में मिलती है. खास बात यह है कि यहां सुबह-सुबह ही कोई अनजान शक्ति भगवान शिव का जलाभिषेक और पूजा करने आती है. यही नहीं शिवलिंग पर कई बार जंगली पुष्प अर्पित किए हुए भी मिलते हैं. वहीं इस रहस्य से आज तक पर्दा नहीं उठ पाया है.
आखिर कौन करता है भगवान शिव का जलाभिषेक: भगवान शिव की नगरी उत्तरकाशी में विमलेश्वर महादेव मंदिर है. जहां सुबह मंदिर के कपाट खुलने से पहले श्रद्धालुओं को शिवलिंग पर जल चढ़ा हुआ मिलता है.धार्मिक मान्यता है कि यहां सबसे पहले भगवान परशुराम भगवान शिव का जलाभिषेक करते हैं. हालांकि, आज तक किसी को उनके दर्शन नहीं हुए हैं, लेकिन, शिवलिंग पर जलाभिषेक के साथ ही कई बार जंगली पुष्प अर्पित होना, श्रद्धालुओं के बीच आश्चर्य का विषय बना हुआ है.
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मंदिर के रहस्यों पर बना है पर्दा: जिला मुख्यालय से करीब 12 किमी दूरी पर वरुणावत पर्वत पर स्थित विमलेश्वर महादेव मंदिर चीड़ और देवदार के वृक्षों के बीच स्थित है. मंदिर के गर्भगृह के अंदर स्थित स्वयंभू शिवलिंग है, जो सदियों पुराना माना जाता है. श्री विश्वनाथ संस्कृत महाविद्यालय के प्रबंधक डॉ.राधेश्याम खंडूड़ी बताते हैं कि मंदिर कब बना, इसका कोई इतिहास तो नहीं है, लेकिन, शिवलिंग के बारे में जनश्रुति है. वे बताते है कि जहां शिवलिंग है, वहां कभी झाड़ियां हुआ करती थी. जिसके समीप स्थित छानियों में एक व्यक्ति जब भी अपनी गाय दुहाता था तो उसका दूध नहीं निकला था.
झाड़ियों में मिला शिवलिंग: एक दिन उस व्यक्ति ने गाय को देखा तो वह झाड़ियों के बीच पहुंचकर अपना दूध शिवलिंग पर अर्पित कर रही थी. तब व्यक्ति ने कुल्हाड़ी से शिवलिंग पर चोट मारी तो शिवलिंग के दो टुकड़े हो गए. बाद में जब उसे स्वप्न आया तो वहां झाड़ियां काटकर मंदिर बनाया गया. डॉ. राधेश्याम बताते हैं कि वह स्वयं सुबह तीन बजे जब भी मंदिर गए तो वहां जलाभिषेक के साथ जंगली पुष्प चढ़े हुए मिले. बताया कि ऐसी मान्यता है कि यहां भगवान परशुराम सबसे पहले शिवलिंग पर जलाभिषेक व पुष्प अर्पित करते हैं.
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भगवान परशुराम सप्त चिरंजीवियों में एक: भगवान परशुराम को विष्णु का अवतार माना जाता है. जिनकी गिनती सप्त चिरंजीवियों में होती है. परशुराम के साथ हनुमान, विभीषण, व्यास महर्षी, कृपाचार्य, अश्वत्थामा व राजा बली सप्त चिरंजीवियों में शामिल हैं. धरती को 21 बार क्षत्रिय विहीन करने वाले परशुराम के बारे में कहते हैं कि उनका स्वभाव उग्र था. जिनके उत्तरकाशी में तपस्या करने के बाद उनका स्वभाव सौम्य हुआ और उत्तरकाशी का एक अन्य नाम सौम्यकाशी पड़ा.
नोट- ईटीवी भारत किसी भी मिथक और अंधविश्वास को बढ़ावा नहीं देता है, ये खबर जनश्रुति पर आधारित है.