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'जानलेवा' साबित हो रहे हैं काम के लंबे घंटे: WHO

विश्व स्वास्थ्य संगठन के मुताबिक काम के लंबे घंटे या लंबी शिफ्ट जानलेवा साबित हो सकती है. हफ्ते में 35 से 40 घंटों के मुकाबले 55 या उससे अधिक घंटों तक काम करने वालों में स्ट्रोक और दिल की बीमारी का खतरा ज्यादा होता है. रिपोर्ट में क्या कुछ खास है जानने के लिए पढ़िये पूरी ख़बर

WHO की रिपोर्ट
WHO की रिपोर्ट
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Published : May 18, 2021, 4:52 PM IST

हैदराबाद: क्या आप ऑफिस में काम करने का कोई तय वक्त नहीं है, क्या आप कई घंटों तक काम करते रहते हैं. अगर हां तो ये आपके लिए खतरे की घंटी है. विश्व स्वास्थय संगठन के मुताबिक लंबे समय तक काम करने की आदत जानलेवा साबित हो सकती है. डब्ल्यूएचओ के मुताबिक हर साल हजारों लोग लंबे कामकाजी घंटों के कारण अपनी जान गंवाते हैं और कोवि़ड-19 महामारी के दौर में ये और भी ज्यादा हो सकता है.

लंबी शिफ्ट ले रही जान !

लंबे वक्त तक काम करने के कारण जिंदगी के नुकसान को लेकर पहले वैश्विक अध्ययन में पाया गया कि साल 2016 में लंबे समय तक काम करने से जुड़े स्ट्रोक और दिल की बीमारी से 7,45,000 लोगों की मौत हुई. ये संख्या साल 2000 के आंकड़ों से 30 फीसदी अधिक है. इनमें से 3,98,00 की मौत स्ट्रोक और 3,47,000 की मौत दिल की बीमारियों से हुई, और ये सब हफ्ते में 55 घंटे या उससे ज्यादा काम करने का नतीजा था. काम के बढ़ते घंटों के कारण साल 2000 के मुकाबले 2016 में दिल की बीमारियों से मौत 42 फीसदी और स्ट्रोक से मौत 19 फीसदी बढ़ गई.

जानलेवा बनती 'लंबी शिफ्ट'
जानलेवा बनती 'लंबी शिफ्ट'

किसके लिए खतरे की घंटी ?

वैसे तो अध्ययन के मुताबिक पाया गया है कि हफ्ते में 55 घंटे या उससे ज्यादा काम करने वालों को स्वास्थ्य की दृष्टि से गंभीर परिणाम भुगतने पड़ सकते हैं. 55 घंटे या उससे अधिक काम करने वालों में स्ट्रोक का 35 फीसदी और 17 फीसदी दिल की बीमारी से मौत का खतरा बढ़ जाता है. दुनिया की कुल आबादी में लंबी शिफ्ट में काम करने वाले लोगों की तादाद 9 फीसदी तक पहुंच चुकी है और लगातार बढ़ रही है. और कोरोना काल में इसमें इजाफा हो रहा है.

लेकिन विश्व स्वास्थ्य संगठन और अंतरराष्ट्रीय श्रम संगठन के एक संयुक्त अध्ययन से पता चलता है कि इसके अधिकांश पीड़ित (72%) पुरुष थे, जो मध्यम आयु वर्ग या उससे अधिक उम्र के थे. अध्ययन के मुताबिक लंबे कामकाजी घंटों का असर काफी बाद में नजर आता है. लंबी शिफ्ट में काम करने वालों के शरीर पर धीरे-धीर विपरीत प्रभाव पड़ता है जो सालों बाद खतरे के रूप में सामने आता है.

काम के लंबे घंटों का असर
काम के लंबे घंटों का असर

किन देशों में सबसे ज्यादा असर

अध्ययन के मुताबिक दक्षिण पूर्व एशिया, पश्चिमी प्रशांत क्षेत्र में रहने वाले मध्यम आयु वर्ग और उससे अधिक उम्र के लोगों में देखी गई है. चीन, जापान और ऑस्ट्रेलिया सबसे अधिक प्रभावित हैं. कुल मिलाकर 194 देशों के आंकड़ों पर आधारित इस अध्ययन में कहा गया है कि हफ्ते में 55 घंटे या उससे अधिक काम करने से स्ट्रोक का खतरा 35% अधिक होता है और हफ्ते में 35 से 40 घंटे काम करने वालों की तुलना में 17% दिल की बीमारी का खतरा बढ़ जाता है.

साल 2000 से 2016 के बीच का अध्ययन किया गया है, इसमें कोविड-19 महामारी का दौर शामिल नहीं है. लेकिन विश्व स्वास्थ्य संगठन के मुताबिक कोरोना के कारण काम करने के तरीके में बदलाव (घर से काम करना) और वैश्विक मंदी ने इस जोखिम को और बढ़ा दिया है.

WHO के नुमाइंदों ने कहा...

विश्व स्वास्थ्य संगठन के अध्यक्ष टैड्रॉस एडहेनॉम घेबरेयेसस समेत कर्मचारियों का कहना है कि वे महामाीर के दौरान लंबे समय से काम कर रहे हैं और नायरा ने कहा संयुक्त राष्ट्र संस्था इस अध्ययन के बाद अपनी नीति में सुधार करना चाहती है.

डब्ल्यूएचओ में पर्यावरण, जलवायु परिवर्तन और स्वास्थ्य विभाग की निदेश डॉ. मारिया नीरा ने कहा कि 'हर हफ्ते 55 घंटे या उससे अधिक काम करने से स्वास्थ्य के लिए गंभीर खतरा पैदा होता है. अब वक्त आ गया है कि हम सभी, सरकारों, नौकरी देने वालों और कर्मचारी इसके प्रति जागरुक हों कि लंबे समय तक काम करने से अकाल मृत्यु हो सकती है'

क्या करना होगा ?

श्रमिकों के स्वास्थ्य की रक्षा के लिए सरका से लेकर नौकरी देने वालों और कर्मचारियों तक को कुछ कदम उठाने होंगे.

- सरकारों को ऐसे नियम लाने होंगे. जिसके तहत काम के घंटों की सीमा निश्चित हो और उस निश्चित समय सीमा से अधिक काम करने (ओवर टाइम) पर पाबंदी हो.

-नौकरी देने वालों और श्रमिक संघों के बीच एक समझौता होना चाहिए. जिसके तहत काम के समय को अधिक लचीला बनाने की व्यवस्था कर सकते हों, इसके साथ ही काम करने के घंटों की अधिकतम सीमा पर भी सहमति होनी चाहिए.

- कर्मचारियों को इस तरह से काम करना होगा कि काम के घंटों की संख्या हर हफ्ते 55 घंटे या उससे अधिक ना हो.

ये भी पढ़ें: युवाओं की 'गांधीगीरी': मोमबत्ती जलाकर 'सड़क की मौत' पर बुलाई शोक सभा

हैदराबाद: क्या आप ऑफिस में काम करने का कोई तय वक्त नहीं है, क्या आप कई घंटों तक काम करते रहते हैं. अगर हां तो ये आपके लिए खतरे की घंटी है. विश्व स्वास्थय संगठन के मुताबिक लंबे समय तक काम करने की आदत जानलेवा साबित हो सकती है. डब्ल्यूएचओ के मुताबिक हर साल हजारों लोग लंबे कामकाजी घंटों के कारण अपनी जान गंवाते हैं और कोवि़ड-19 महामारी के दौर में ये और भी ज्यादा हो सकता है.

लंबी शिफ्ट ले रही जान !

लंबे वक्त तक काम करने के कारण जिंदगी के नुकसान को लेकर पहले वैश्विक अध्ययन में पाया गया कि साल 2016 में लंबे समय तक काम करने से जुड़े स्ट्रोक और दिल की बीमारी से 7,45,000 लोगों की मौत हुई. ये संख्या साल 2000 के आंकड़ों से 30 फीसदी अधिक है. इनमें से 3,98,00 की मौत स्ट्रोक और 3,47,000 की मौत दिल की बीमारियों से हुई, और ये सब हफ्ते में 55 घंटे या उससे ज्यादा काम करने का नतीजा था. काम के बढ़ते घंटों के कारण साल 2000 के मुकाबले 2016 में दिल की बीमारियों से मौत 42 फीसदी और स्ट्रोक से मौत 19 फीसदी बढ़ गई.

जानलेवा बनती 'लंबी शिफ्ट'
जानलेवा बनती 'लंबी शिफ्ट'

किसके लिए खतरे की घंटी ?

वैसे तो अध्ययन के मुताबिक पाया गया है कि हफ्ते में 55 घंटे या उससे ज्यादा काम करने वालों को स्वास्थ्य की दृष्टि से गंभीर परिणाम भुगतने पड़ सकते हैं. 55 घंटे या उससे अधिक काम करने वालों में स्ट्रोक का 35 फीसदी और 17 फीसदी दिल की बीमारी से मौत का खतरा बढ़ जाता है. दुनिया की कुल आबादी में लंबी शिफ्ट में काम करने वाले लोगों की तादाद 9 फीसदी तक पहुंच चुकी है और लगातार बढ़ रही है. और कोरोना काल में इसमें इजाफा हो रहा है.

लेकिन विश्व स्वास्थ्य संगठन और अंतरराष्ट्रीय श्रम संगठन के एक संयुक्त अध्ययन से पता चलता है कि इसके अधिकांश पीड़ित (72%) पुरुष थे, जो मध्यम आयु वर्ग या उससे अधिक उम्र के थे. अध्ययन के मुताबिक लंबे कामकाजी घंटों का असर काफी बाद में नजर आता है. लंबी शिफ्ट में काम करने वालों के शरीर पर धीरे-धीर विपरीत प्रभाव पड़ता है जो सालों बाद खतरे के रूप में सामने आता है.

काम के लंबे घंटों का असर
काम के लंबे घंटों का असर

किन देशों में सबसे ज्यादा असर

अध्ययन के मुताबिक दक्षिण पूर्व एशिया, पश्चिमी प्रशांत क्षेत्र में रहने वाले मध्यम आयु वर्ग और उससे अधिक उम्र के लोगों में देखी गई है. चीन, जापान और ऑस्ट्रेलिया सबसे अधिक प्रभावित हैं. कुल मिलाकर 194 देशों के आंकड़ों पर आधारित इस अध्ययन में कहा गया है कि हफ्ते में 55 घंटे या उससे अधिक काम करने से स्ट्रोक का खतरा 35% अधिक होता है और हफ्ते में 35 से 40 घंटे काम करने वालों की तुलना में 17% दिल की बीमारी का खतरा बढ़ जाता है.

साल 2000 से 2016 के बीच का अध्ययन किया गया है, इसमें कोविड-19 महामारी का दौर शामिल नहीं है. लेकिन विश्व स्वास्थ्य संगठन के मुताबिक कोरोना के कारण काम करने के तरीके में बदलाव (घर से काम करना) और वैश्विक मंदी ने इस जोखिम को और बढ़ा दिया है.

WHO के नुमाइंदों ने कहा...

विश्व स्वास्थ्य संगठन के अध्यक्ष टैड्रॉस एडहेनॉम घेबरेयेसस समेत कर्मचारियों का कहना है कि वे महामाीर के दौरान लंबे समय से काम कर रहे हैं और नायरा ने कहा संयुक्त राष्ट्र संस्था इस अध्ययन के बाद अपनी नीति में सुधार करना चाहती है.

डब्ल्यूएचओ में पर्यावरण, जलवायु परिवर्तन और स्वास्थ्य विभाग की निदेश डॉ. मारिया नीरा ने कहा कि 'हर हफ्ते 55 घंटे या उससे अधिक काम करने से स्वास्थ्य के लिए गंभीर खतरा पैदा होता है. अब वक्त आ गया है कि हम सभी, सरकारों, नौकरी देने वालों और कर्मचारी इसके प्रति जागरुक हों कि लंबे समय तक काम करने से अकाल मृत्यु हो सकती है'

क्या करना होगा ?

श्रमिकों के स्वास्थ्य की रक्षा के लिए सरका से लेकर नौकरी देने वालों और कर्मचारियों तक को कुछ कदम उठाने होंगे.

- सरकारों को ऐसे नियम लाने होंगे. जिसके तहत काम के घंटों की सीमा निश्चित हो और उस निश्चित समय सीमा से अधिक काम करने (ओवर टाइम) पर पाबंदी हो.

-नौकरी देने वालों और श्रमिक संघों के बीच एक समझौता होना चाहिए. जिसके तहत काम के समय को अधिक लचीला बनाने की व्यवस्था कर सकते हों, इसके साथ ही काम करने के घंटों की अधिकतम सीमा पर भी सहमति होनी चाहिए.

- कर्मचारियों को इस तरह से काम करना होगा कि काम के घंटों की संख्या हर हफ्ते 55 घंटे या उससे अधिक ना हो.

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