रांची: कई बड़े सफेदपोश कारोबारियों ने जनता की गाढ़ी कमाई को बैंक अधिकारियों की मिलीभगत से कैसे लूटा, इसकी चर्चा आज भी होती है क्योंकि ये तीनों अभी तक कानून के शिकंजे से बाहर हैं. कुछ इसी तरह का मामला रांची के धुर्वा स्थित यूको बैंक के ब्रांच में हुआ है. अप्रैल 2021 यानी कोरोना काल में जिस बैंक का सालाना बिजनेस 50 करोड़ का था, वह महज 2 साल और चार माह में बढ़कर 500 करोड़ से ज्यादा का कैसे हो गया. बैंक की प्रगति के लिहाज से यह डाटा सुनने में तो अच्छा लगता है लेकिन यही बात हैदराबाद में बैठी यूको बैंक के सेंट्रल विजिलेंस टीम को खटक गई. ईटीवी भारत को विश्वस्त सूत्रों से मिली जानकारी के मुताबिक दो सप्ताह पहले विजिलेंस की टीम रांची पहुंची और शुरुआती जांच के आधार पर ही ब्रांच मैनेजर राजीव चौधरी को सस्पेंड करने के लिए रिकमेंड कर दिया. हेड ऑफिस ने भी सस्पेंशन ऑर्डर निकालने में देरी नहीं की. अब यूको बैंक के धुर्वा ब्रांच को वी. कुंडलना संभाल रहे हैं.
चार वैल्यूअर पर भी गिरी गाज: पूरा खेल कर्जदारों को लोन के बदले संपत्ति के वैल्यूएशन से जुड़ा है. बोलचाल की भाषा में अगर आपको समझाएं तो इसको इस रूप में समझा जा सकता है. दरअसल, संपत्ति के बदले जब बैंक लोन देती है तो उस संपत्ति का आकलन पैनलिस्ट वैल्यूअर से कराया जाता है. उसी आधार पर एक अनुपात में लोन जारी होता है. ताकि कर्जदार के लोन नहीं चुकाने की स्थिति में बैंक उस संपत्ति को बेचकर अपनी भरपाई कर सके. लेकिन यहां कुछ और चल रहा था. इस काम में चार वैल्यूअर संदेह के दायरे में हैं. इनके नाम हैं- इंद्रजीत रॉय, प्रियंका रॉय, मुकेश कुमार अग्रवाल और बिनोद कुमार पांडेय. इन सभी चार वैल्यूअर से अगले आदेश तक संपत्ति का वैल्यूएशन नहीं कराने के लिए रांची जोन के सभी यूको बैंक ब्रांच को निर्देश दे दिया गया है.
आरोपी राजीव चौधरी और जोनल हेड की सफाई: जाहिर सी बात है कि जब कोई गंभीर आरोप लगते हैं तो आरोपी का पक्ष जानना जरूरी होता है. इस लिहाज से सस्पेंडेड बैंक मैनेजर राजीव चौधरी से फोन पर संपर्क किया गया. उन्होंने कहा कि तमाम आरोप बेबुनियाद हैं. इंटनरल जांच के बाद सबकुछ साफ हो जाएगा. उनसे पूछा गया कि आपके धुर्वा ब्रांच में ज्वाइन करने के समय बैंक का सलाना बिजनेस 50 करोड़ से बढ़कर सस्पेंशन की तारीख तक कितना हो गया था. लेकिन उन्होंने इस सवाल का जवाब नहीं दिया. उन्होंने कहा कि कोई लोन घोटाला नहीं हुआ है. उनसे पूछा गया कि तब चार वैल्यूअर के काम पर क्यों रोक लगी है. इसपर उन्होंने कहा कि यह एक सामान्य प्रक्रिया है. हालांकि उन्होंने यह भी कहा कि एक ब्रांच मैनेजर की कितनी सीमा होती है, यह जानना जरूरी है. बड़े लोन के लिए हेड ऑफिस की भी भागीदारी होती है.
सस्पेंडेड ब्रांच मैनेजर का पक्ष लेने के बाद यूको बैंक के जोनल हेड विक्रांत टंडन से ईटीवी भारत ने संपर्क किया. उनसे पहला सवाल पूछा गया कि आखिर ब्रांच मैनेजर को क्यों सस्पेंड किया गया है. उन्होंने जवाब में कहा कि " I will not divulge these things. Thank you for calling" और फोन को काट दिया.
क्या है वैल्यूअर का खेल: दरअसल, एक करोड़ से ज्यादा की संपत्ति के वैल्यूएशन में दूसरे वैल्यूअर को भी शामिल किया जाता है. गौर करने वाली बात है कि वैल्यूअर इंद्रजीत रॉय और प्रियंका रॉय पति-पत्नी हैं. एक के काम को दूसरे का अप्रूवल मिलने से कर्जदार को आसानी से लोन मिल जाता था. खास बात है कि ब्रांच मैनेजर को 3 करोड़ तक का लोन ही अप्रूव करने का अधिकार है. उससे ऊपर जाने पर जोनल ऑफिस की सहमति जरूरी हो जाती है. लिहाजा, सूत्रों के मुताबिक जोनल ऑफिस भी संदेह के दायरे में है. आम बैंकर्स का कहना है कि इतना बड़ा खेल जोनल ऑफिस के मिलीभगत के बगैर संभव ही नहीं है.
सूत्रों के मुताबिक उषा नरसरिया, शोभा देवी, सुनिता इंजीनियरिंग समेत कई लोगों और कंपनियों की संपत्ति का ज्यादा मूल्यांकन दिखाकर लोन जारी किया गया है. अब विजिलेंस की टीम राजीव चौधरी के कार्यकाल में जारी सभी लोन की बारीकी से जांच कर रही है. यह भी पता चला है कि सभी संपत्तियों का दोबारा वैल्यूएशन कराने की तैयारी है. पूरे प्रकरण का सकारात्मक पहलू यह है कि अभी तक अकाउंट स्टैंडर्ड अवस्था में है. लेकिन अगर कर्जदार पीछे हटते तो सीधे तौर पर बैंक के पैसे डूब जाते.