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हाईकोर्ट को 'डाकघर' मानने पर वादी की खिंचाई

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Published : Mar 19, 2022, 10:56 PM IST

मद्रास उच्च न्यायालय (The Madras High Court) ने आरटीआई (Right To Information Act) आवेदनों पर डाक टिकटों (Postal Stamp) के संबंध में सीआईसी द्वारा की गई कुछ सिफारिशों को लागू कराने के लिए जनहित याचिका (Public Interest Litigant) दायर करने पर कोर्ट ने याचिका कर्ता को फटकार लगाई है.

MADRAS HIGHCOURT
मद्रास हाईकोर्ट

चेन्नई: मद्रास उच्च न्यायालय (The Madras High Court) ने आरटीआई (Right To Information Act) आवेदनों पर डाक टिकटों (Postal Stamp) के संबंध में सीआईसी द्वारा की गई कुछ सिफारिशों को लागू कराने के लिए जनहित याचिका (Public Interest Litigant) दायर करने पर कोर्ट ने याचिका कर्ता को फटकार लगाई है. और हाईकोर्ट को 'डाकघर' ना मानने की हिदायत दी है. याचिकाकर्ता एसपी मुथुरमन ने मद्रास उच्च न्यायालय की मदुरै पीठ के समक्ष जनहित याचिका दायर की थी. जिसमें आरटीआई पर भारतीय पोस्टल ऑर्डर या डिमांड ड्राफ्ट के अलावा डाक टिकट लगाने के संबंध में अगस्त 2013 में केंद्रीय सूचना आयोग (सीआईसी) की सिफारिशों में से एक को प्रभावी करने के लिए केंद्र सरकार को निर्देश देने की प्रार्थना की गई थी.

पढ़ें: राजभर समुदाय को ST में शामिल करने पर निर्णय ले यूपी सरकार : हाई कोर्ट

मुख्य न्यायाधीश एम एन भंडारी और न्यायमूर्ति डी भरत चक्रवर्ती की उच्च न्यायालय की पहली पीठ ने कहा कि यह केवल एक सिफारिश थी न कि निर्देश. याचिकाकर्ता ने यह जाने बिना कि सीआईसी की सिफारिश पर उपयुक्त प्राधिकारी द्वारा क्या कार्रवाई की गई, इस जनहित याचिका के माध्यम से उच्च न्यायालय का रुख किया. यह नोट किया गया कि याचिकाकर्ता चाहता है कि अदालत सीआईसी की सिफारिश के आधार पर प्रतिवादियों द्वारा उठाए गए कदमों के बारे में लगातार जांच करे. उच्च न्यायालय सूचना एकत्र करने और आदान-प्रदान करने के लिए डाकघर के रूप में कार्य नहीं कर सकता है.
यह तब और भी अधिक है, जब याचिकाकर्ता के अनुसार, सीआईसी ने केवल ऐसी सिफारिशें की हैं जिन्हें किसी भी कल्पना से एक क़ानून के रूप में नहीं लिया जा सकता है ताकि इसे प्रभावी बनाया जा सके. पीठ ने कहा कि संबंधित अधिकारियों को यह तय करना होगा कि सीआईसी की सिफारिश के आधार पर क्या कार्रवाई की जानी चाहिए. पीठ ने कहा कि उपरोक्त के मद्देनजर रिट याचिका खारिज की जाती है.

चेन्नई: मद्रास उच्च न्यायालय (The Madras High Court) ने आरटीआई (Right To Information Act) आवेदनों पर डाक टिकटों (Postal Stamp) के संबंध में सीआईसी द्वारा की गई कुछ सिफारिशों को लागू कराने के लिए जनहित याचिका (Public Interest Litigant) दायर करने पर कोर्ट ने याचिका कर्ता को फटकार लगाई है. और हाईकोर्ट को 'डाकघर' ना मानने की हिदायत दी है. याचिकाकर्ता एसपी मुथुरमन ने मद्रास उच्च न्यायालय की मदुरै पीठ के समक्ष जनहित याचिका दायर की थी. जिसमें आरटीआई पर भारतीय पोस्टल ऑर्डर या डिमांड ड्राफ्ट के अलावा डाक टिकट लगाने के संबंध में अगस्त 2013 में केंद्रीय सूचना आयोग (सीआईसी) की सिफारिशों में से एक को प्रभावी करने के लिए केंद्र सरकार को निर्देश देने की प्रार्थना की गई थी.

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मुख्य न्यायाधीश एम एन भंडारी और न्यायमूर्ति डी भरत चक्रवर्ती की उच्च न्यायालय की पहली पीठ ने कहा कि यह केवल एक सिफारिश थी न कि निर्देश. याचिकाकर्ता ने यह जाने बिना कि सीआईसी की सिफारिश पर उपयुक्त प्राधिकारी द्वारा क्या कार्रवाई की गई, इस जनहित याचिका के माध्यम से उच्च न्यायालय का रुख किया. यह नोट किया गया कि याचिकाकर्ता चाहता है कि अदालत सीआईसी की सिफारिश के आधार पर प्रतिवादियों द्वारा उठाए गए कदमों के बारे में लगातार जांच करे. उच्च न्यायालय सूचना एकत्र करने और आदान-प्रदान करने के लिए डाकघर के रूप में कार्य नहीं कर सकता है.
यह तब और भी अधिक है, जब याचिकाकर्ता के अनुसार, सीआईसी ने केवल ऐसी सिफारिशें की हैं जिन्हें किसी भी कल्पना से एक क़ानून के रूप में नहीं लिया जा सकता है ताकि इसे प्रभावी बनाया जा सके. पीठ ने कहा कि संबंधित अधिकारियों को यह तय करना होगा कि सीआईसी की सिफारिश के आधार पर क्या कार्रवाई की जानी चाहिए. पीठ ने कहा कि उपरोक्त के मद्देनजर रिट याचिका खारिज की जाती है.

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