नई दिल्ली: उच्चतम न्यायालय को मंगलवार को बताया गया कि धन शोधन रोकथाम अधिनियम(PMLA) की तुलना में कहीं अधिक कठोर या समान प्रावधान मौजूद हैं, जैसा कि धन शोधन रोधी कानून में किया गया है. लेकिन सबूत पेश करने का भार कभी भी पूरी तरह से आरोपी पर नहीं डाला गया. न्यायमूर्ति ए एम खानविलकर, न्यायमूर्ति दिनेश माहेश्वरी और न्यायमूर्ति सी टी रविकुमार की तीन सदस्यीय पीठ ने कहा कि पीएमएलए की धारा 24 पर सुनवाई के दौरान विचार किया जाएगा.
सिंघवी ने यह भी कहा कि, पीएमएलए से भी कहीं अधिक कठोर और समान प्रावधान या कानून हैं और फिर भी आरोपी पर पूरा भार नहीं डाला गया. न्यायालय ने दिन भर चली सुनवाई के दौरान पीएमएलए की धारा-3 का जिक्र किया, जो धन शोधन के अपराध से संबद्ध है. न्यायालय ने कहा कि अपराधी को बेदाग कहना भी एक अपराध है. पीठ ने धन शोधन रोकथाम अधिनियम कानून की धारा 45 के बारे में भी दलीलें सुनीं. यह धारा अपराध के संज्ञेय और गैर जमानती होने से संबंधित है. पीठ पीएमएलए के तहत संपत्ति कुर्क करने के मुद्दे पर भी विचार करेगी. इस मामले में सुनवाई बुधवार को भी जारी रहेगी.
बता दें की धन शोधन रोधी कानून की धारा 24 सबूत की जिम्मेदारी से संबंद्धित है. इसमें कहा गया है कि पीएमएलए के तहत अपराध से जुड़ी कोई भी कार्यवाही, किसी व्यक्ति पर धन शोधन का आरोप लगाये जाने के मामले में एवं इसके साबित होने तक अधिकारी या अदालत यह मान कर चलेगी कि इस तरह का अपराध धन शोधन का है. कुछ याचिकाकर्ताओं की ओर से वरिष्ठ अधिवक्ता ए एम सिंघवी ने पीठ से कहा कि कानून का सिद्धांत सामान्य तौर पर यह है कि सबूत पेश करने का भार शुरूआत में और आगे भी अभियोजन पर रहेगा.
(पीटीआई-भाषा)
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