नई दिल्ली: जिन चार राज्यों में रविवार को मतगणना हुई, उनके आंकड़ों से यह प्रदर्शित होता है कि इनमें से तीन प्रदेश में एक प्रतिशत से भी कम मतदाताओं ने हाल में संपन्न हुए विधानसभा चुनावों में 'उपरोक्त में से कोई नहीं' (नोटा) का विकल्प चुना. निर्वाचन आयोग की वेबसाइट से इन आंकड़ों की जानकारी मिली. विधानसभा चुनाव पांच राज्यों में कराये गए हैं और मध्य प्रदेश, राजस्थान, छत्तीसगढ़ तथा तेलंगाना में मतगणना रविवार को हुई, जबकि मिजोरम में मतगणना सोमवार को होगी.
आंकड़ों के अनुसार मध्य प्रदेश में हुए 77.15 प्रतिशत मतदान में से 0.99 प्रतिशत मतदाताओं ने 'नोटा' का विकल्प चुना. पड़ोसी राज्य छत्तीसगढ़ में 1.29 प्रतिशत मतदाताओं ने इलेक्ट्रॉनिक वोटिंग मशीन (ईवीएम) पर नोटा का बटन दबाया. तेलंगाना में 0.74 प्रतिशत मतदाताओं ने नोटा का विकल्प चुना. राज्य में 71.14 प्रतिशत मतदान हुआ था. इसी तरह, राजस्थान में 0.96 प्रतिशत मतदाताओं ने नोटा का विकल्प चुना. राज्य में 74.62 प्रतिशत मतदान हुआ.
नोटा विकल्प पर बात करते हुए कंज्यूमर डेटा इंटेलीजेंस कंपनी एक्सिस माय इंडिया के प्रदीप गुप्ता ने कहा कि नोटा का इस्तेमाल .01 प्रतिशत से लेकर अधिकतम दो प्रतिशत तक किया गया. उन्होंने कहा कि यदि कोई नयी चीज शुरू की जाती है, तो इसकी प्रभावकारिता इसके नतीजे पर निर्भर करती है. उन्होंने कहा कि 'मैंने सरकार को इस बारे में पत्र लिखा था कि अगर नोटा को सही मायने में प्रभावी बनाना है, तो अधिकतम संख्या में लोगों द्वारा इसका (नोटा का) बटन दबाये जाने पर नोटा को विजेता घोषित किया जाना चाहिए.'
गुप्ता भारत में अपनाये गए फर्स्ट-पास्ट-द-पोस्ट सिद्धांत का जिक्र कर रहे थे, जिसमें सर्वाधिक वोट पाने वाले उम्मीदवार को विजेता घोषित किया जाता है. उन्होंने यह भी कहा कि जिन उम्मीदवारों को जनता ने खारिज कर दिया है, उन्हें ऐसी स्थिति में चुनाव लड़ने की अनुमति नहीं दी जानी चाहिए, जहां नोटा को अन्य उम्मीदवारों से अधिक वोट पड़े हों. उन्होंने कहा कि 'यदि ऐसा होता है तो लोग नोटा विकल्प का सही उपयोग कर पाएंगे... अन्यथा यह एक औपचारिकता मात्र है.' नोटा का विकल्प 2013 में शुरू किया गया था.