प. बंगाल विधानसभा चुनाव के परिणाम बताते हैं कि कांग्रेस और वाम दलों ने ऑल इंडिया सेक्युलर फ्रंट से गठबंधन करके भारी गलती कर दी. उनके गठबंधन की वजह से मुस्लिम वोटों का ध्रुवीकरण तृणमूल के पक्ष में हो गया. ममता ने चुनाव प्रचार के दौरान मुस्लिम मतदाताओं से अपने वोटों का बंटवारा न करने की अपील की थी.
उनकी अपील के बाद कांग्रेस और लेफ्ट के प्रतिबद्ध मुस्लिम मतदाताओं ने भी इनका साथ छोड़ दिया. आप इसे ऐसे समझ सकते हैं कि कांग्रेस का जो कभी गढ़ हुआ करता था, वहां से भी पार्टी का सूपड़ा साफ हो गया. मुर्शीदाबाद और मालदा जिले से कांग्रेस का खाता भी नहीं खुला. ये दोनों अल्पसंख्यक बहुल इलाके हैं.
इसी तरह से अब्बास सिद्दीकी के पिछले वक्तव्यों ने हिंदुओं को नाराज कर दिया. उनके सांप्रदायिक बयानों से हिंदू आहत थे. लेकिन 2019 के लोकसभा चुनाव में ऐसा नहीं था. इसका मतलब है कि इस बार विधानसभा चुनाव में अल्पसंख्यकों के मत उनसे छिटक गए.
हम कह सकते हैं कि एआईएसएफ से गठबंधन करना तृणमूल कांग्रेस के लिए वरदान साबित हुआ. एआईएसएफ की वजह से भाजपा ने जो सोचा था कि हिंदुओं में ध्रुवीकरण होगा, ऐसा नहीं हुआ.
इस बार तृणमूल के खिलाफ कई फैक्टर काम कर रहे थे. एंटी इनकंबेंसी फैक्टर था. अंफान के बाद राहत के दौरान भ्रष्टाचार के आरोप लगे थे. लेकिन इस राजनीतिक गणित के सामने सारे आरोप बेमानी हो गए.
आज की जीत के बाद ममता बनर्जी आक्रामक चेहरा के तौर पर राष्ट्रीय स्तर पर उभरेंगी. हो सकता है 2024 में वह पीएम मोदी के खिलाफ चेहरा बन जाएं. तृणमूल के वरिष्ठ नेताओं ने अभी से ही ममता बनर्जी को प्रोजेक्ट करने के लिए कवायद शुरू कर दी है.
मुझे लगता है कि आने वाले दिनों में उनका नाम आक्रामक तरीके से प्रोजेक्ट किया जाएगा. उनका प्रोजेक्शन जितना आक्रामक होगा, केंद्र और राज्य के बीच उतनी अधिक तल्खी बढ़ेगी. इसका असर राज्य के विकास कार्य पर पड़ेगा.
अब भाजपा को भी प. बंगाल को लेकर सोचना होगा आखिर उनकी रणनीति क्यों फेल हो गई. उन्हें बंगाल को लेकर अपनी रणनीति बदलनी होगी.
(अमल कुमार मुखोपाध्याय, प्रेसिडेंसी कॉलेज के पूर्व प्रिंसिपल)