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संयुक्त राष्ट्र की बैठक में नेताओं ने कहा- 'गर्म दुनिया अधिक हिंसक भी होती है' - भारत के उप विदेश सचिव रीनत संधू

दुनिया के तीन राष्ट्रपतियों और सात विदेश मंत्रियों ने विनाशकारी स्थितियों का हवाला देते हुए सावधान किया है कि वैश्विक तापमान में इजाफे के साथ दुनिया ज्यादा हिंसक भी होती है.

संयुक्त राष्ट्र
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Published : Sep 24, 2021, 4:17 PM IST

जिनेवा : दुनिया के तीन राष्ट्रपतियों और सात विदेश मंत्रियों ने विनाशकारी स्थितियों का हवाला देते हुए सावधान किया है कि वैश्विक तापमान में इजाफे के साथ दुनिया ज्यादा हिंसक भी होती है.

सुरक्षा परिषद की एक मंत्रिस्तरीय बैठक में, नेताओं ने बृहस्पतिवार को संयुक्त राष्ट्र के सबसे शक्तिशाली निकाय से जलवायु परिवर्तन के सुरक्षा संकटों को दूर करने के लिए अधिक प्रयास करने और ग्लोबल वार्मिंग को संयुक्त राष्ट्र के सभी शांति अभियानों का एक महत्वपूर्ण हिस्सा बनाने का आग्रह किया.

संयुक्त राष्ट्र की अधिक कार्रवाई पर जोर देने वाले नेताओं और मंत्रियों ने कहा कि ग्लोबल वार्मिंग दुनिया को असुरक्षित बना रही है. उन्होंने उदाहरण के तौर पर अफ्रीका के संघर्ष-ग्रस्त साहेल क्षेत्र और सीरिया और इराक की ओर इशारा किया.

बैठक की अध्यक्षता करने वाले आयरलैंड के राष्ट्रपति माइकल मार्टिन ने कहा कि जलवायु परिवर्तन पहले से ही दुनिया के कई हिस्सों में संघर्ष का कारण बन रहा है.

वियतनाम के राष्ट्रपति गुयेन जुआन फुक ने कहा कि जलवायु परिवर्तन गोलीबारी के बिना एक युद्ध है, इसलिए जीवन में आर्थिक क्षति और नुकसान का कारण वास्तविक युद्धों से कम भयानक नहीं है.

संयुक्त राष्ट्र महासचिव एंतोनियो गुतारेस ने कहा, 'जलवायु परिवर्तन के प्रभाव विशेष रूप से गंभीर होते हैं जब वे नाजुक स्थिति और अतीत या वर्तमान संघर्षों के साथ ओवरलैप करते हैं.'

उन्होंने कहा कि जब जलवायु परिवर्तन के कारण पानी जैसे प्राकृतिक संसाधन दुर्लभ हो जाएंगे, तो विवाद और तनाव फैल सकते हैं. संघर्ष को रोकने और शांति बनाए रखने के प्रयास जटिल हो जाएंगे.

रूस और चीन दोनों, जो जलवायु को नुकसान पहुंचाने वाले प्रदूषण के उत्सर्जन के मामले में दुनिया के शीर्ष उत्सर्जक हैं, ने उत्सर्जन में कटौती के लिए अपने देशों की प्रतिबद्धता पर बल दिया. अमेरिका दूसरा सबसे बड़ा कार्बन प्रदूषक और भारत तीसरा सबसे बड़ा उत्सर्जक है.

भारत के उप विदेश सचिव रीनत संधू ने कहा कि संघर्ष का एक कारण 'प्रतिकूलता' है.

यह भी पढ़ें- सोमालिया के राजनीतिक संकट पर संयुक्त राष्ट्र ने बुलाया आपात सत्र

उन्होंने कहा, 'जलवायु परिवर्तन संघर्ष को बढ़ा सकता है, लेकिन इसके लिए इसे एक कारण के रूप में निर्धारित नहीं किया जा सकता है.'

उन्होंने कहा, 'संघर्ष के कारणों के अत्यधिक सरलीकरण से उन्हें हल करने में मदद नहीं मिलेगी और न ही यह कठोर नीतिगत उपायों को सही ठहरा सकता है. हमें अपना ध्यान वापस जलवायु परिवर्तन से निपटने पर लाने की आवश्यकता है.'

सुरक्षा परिषद ने पहली बार 2007 में शांति और सुरक्षा पर जलवायु परिवर्तन के प्रभाव पर चर्चा की थी और तब से इसको लेकर कई बैठकें कीं. हाल ही में फरवरी में भी बैठक हुई थलेकिन सदस्य देशों के बीच मतभेद के कारण यह परिषद के एजेंडे से दूर है. इसका मतलब है कि कार्रवाई के लिए कोई कानूनी रूप से बाध्यकारी प्रस्ताव या आधिकारिक अनुरोध नहीं हो सकता है.

आयरलैंड के राष्ट्रपति मार्टिन ने कहा कि अगर परिषद को अंतरराष्ट्रीय शांति और सुरक्षा बनाए रखने के लिए अपनी जिम्मेदारी पूरी करनी है, तो उन्हें अलग-अलग विचारों को भी थोड़ा मानना होगा. उसके पास जलवायु से संबंधित सुरक्षा जोखिमों का विश्लेषण और समाधान करने के लिए जानकारी और उपकरण होना चाहिए.'

वर्षों से, संघर्ष और जलवायु परिवर्तन का अध्ययन करने वाले शिक्षाविद इस बात पर प्रकाश डालते रहे हैं कि कैसे सीरियाई सूखे जैसी घटनाओं ने संघर्षों को बढ़ा दिया है.

अमेरिकी विदेश मंत्री एंटनी ब्लिंकन ने कहा, 'लगभग हर उस जगह को देखें जहां आप आज अंतरराष्ट्रीय शांति और सुरक्षा के लिए खतरे देखते हैं, तो आप पाएंगे कि जलवायु परिवर्तन चीजों को कम शांतिपूर्ण, कम सुरक्षित बना रहा है और हमारी प्रतिक्रिया को और भी चुनौतीपूर्ण बना रहा है.'

उन्होंने सीरिया, माली, यमन, दक्षिण सूडान और इथियोपिया सहित कई देशों की एक सूची का हवाला दिया. ब्लिंकन ने कहा, 'हमें इस बात पर बहस करना बंद करना होगा कि क्या जलवायु संकट का मुद्दा सुरक्षा परिषद के एंजेंडे में है या नहीं, बल्कि इसके बजाय यह पूछें कि शांति और सुरक्षा पर जलवायु परिवर्तन के नकारात्मक प्रभावों से निपटने के लिए परिषद अपनी अनूठी शक्तियों का लाभ कैसे उठा सकती है.

हालांकि, रूसी और चीनी राजनयिकों ने परिषद के एजेंडे में जलवायु परिवर्तन को शामिल करने के लिए अपने देशों की आपत्तियों को दोहराया, जिस पर अंतर्राष्ट्रीय शांति और सुरक्षा बनाए रखने की जिम्मेदारी है, जबकि संयुक्त राष्ट्र के अन्य संगठन और अंतरराष्ट्रीय मंच जलवायु परिवर्तन से संबंधित सारे मुद्दे पर काम कर रहे हैं.

बृहस्पतिवार की सुबह संबोधन करने वाले अधिकांश नेताओं ने पूरे ग्रह के लिए एक निराशाजनक तस्वीर पेश की. उन्होंने कहा कि जिस तरह से दुनिया कोरोना वायरस से मुकाबला कर रही है, उसी तरह से जलवायु परिवर्तन से भी लड़ने की जरूरत है, क्योंकि यह ग्रह के लिए यह जीवन और मृत्यु का मामला है.

(पीटीआई भाषा)

जिनेवा : दुनिया के तीन राष्ट्रपतियों और सात विदेश मंत्रियों ने विनाशकारी स्थितियों का हवाला देते हुए सावधान किया है कि वैश्विक तापमान में इजाफे के साथ दुनिया ज्यादा हिंसक भी होती है.

सुरक्षा परिषद की एक मंत्रिस्तरीय बैठक में, नेताओं ने बृहस्पतिवार को संयुक्त राष्ट्र के सबसे शक्तिशाली निकाय से जलवायु परिवर्तन के सुरक्षा संकटों को दूर करने के लिए अधिक प्रयास करने और ग्लोबल वार्मिंग को संयुक्त राष्ट्र के सभी शांति अभियानों का एक महत्वपूर्ण हिस्सा बनाने का आग्रह किया.

संयुक्त राष्ट्र की अधिक कार्रवाई पर जोर देने वाले नेताओं और मंत्रियों ने कहा कि ग्लोबल वार्मिंग दुनिया को असुरक्षित बना रही है. उन्होंने उदाहरण के तौर पर अफ्रीका के संघर्ष-ग्रस्त साहेल क्षेत्र और सीरिया और इराक की ओर इशारा किया.

बैठक की अध्यक्षता करने वाले आयरलैंड के राष्ट्रपति माइकल मार्टिन ने कहा कि जलवायु परिवर्तन पहले से ही दुनिया के कई हिस्सों में संघर्ष का कारण बन रहा है.

वियतनाम के राष्ट्रपति गुयेन जुआन फुक ने कहा कि जलवायु परिवर्तन गोलीबारी के बिना एक युद्ध है, इसलिए जीवन में आर्थिक क्षति और नुकसान का कारण वास्तविक युद्धों से कम भयानक नहीं है.

संयुक्त राष्ट्र महासचिव एंतोनियो गुतारेस ने कहा, 'जलवायु परिवर्तन के प्रभाव विशेष रूप से गंभीर होते हैं जब वे नाजुक स्थिति और अतीत या वर्तमान संघर्षों के साथ ओवरलैप करते हैं.'

उन्होंने कहा कि जब जलवायु परिवर्तन के कारण पानी जैसे प्राकृतिक संसाधन दुर्लभ हो जाएंगे, तो विवाद और तनाव फैल सकते हैं. संघर्ष को रोकने और शांति बनाए रखने के प्रयास जटिल हो जाएंगे.

रूस और चीन दोनों, जो जलवायु को नुकसान पहुंचाने वाले प्रदूषण के उत्सर्जन के मामले में दुनिया के शीर्ष उत्सर्जक हैं, ने उत्सर्जन में कटौती के लिए अपने देशों की प्रतिबद्धता पर बल दिया. अमेरिका दूसरा सबसे बड़ा कार्बन प्रदूषक और भारत तीसरा सबसे बड़ा उत्सर्जक है.

भारत के उप विदेश सचिव रीनत संधू ने कहा कि संघर्ष का एक कारण 'प्रतिकूलता' है.

यह भी पढ़ें- सोमालिया के राजनीतिक संकट पर संयुक्त राष्ट्र ने बुलाया आपात सत्र

उन्होंने कहा, 'जलवायु परिवर्तन संघर्ष को बढ़ा सकता है, लेकिन इसके लिए इसे एक कारण के रूप में निर्धारित नहीं किया जा सकता है.'

उन्होंने कहा, 'संघर्ष के कारणों के अत्यधिक सरलीकरण से उन्हें हल करने में मदद नहीं मिलेगी और न ही यह कठोर नीतिगत उपायों को सही ठहरा सकता है. हमें अपना ध्यान वापस जलवायु परिवर्तन से निपटने पर लाने की आवश्यकता है.'

सुरक्षा परिषद ने पहली बार 2007 में शांति और सुरक्षा पर जलवायु परिवर्तन के प्रभाव पर चर्चा की थी और तब से इसको लेकर कई बैठकें कीं. हाल ही में फरवरी में भी बैठक हुई थलेकिन सदस्य देशों के बीच मतभेद के कारण यह परिषद के एजेंडे से दूर है. इसका मतलब है कि कार्रवाई के लिए कोई कानूनी रूप से बाध्यकारी प्रस्ताव या आधिकारिक अनुरोध नहीं हो सकता है.

आयरलैंड के राष्ट्रपति मार्टिन ने कहा कि अगर परिषद को अंतरराष्ट्रीय शांति और सुरक्षा बनाए रखने के लिए अपनी जिम्मेदारी पूरी करनी है, तो उन्हें अलग-अलग विचारों को भी थोड़ा मानना होगा. उसके पास जलवायु से संबंधित सुरक्षा जोखिमों का विश्लेषण और समाधान करने के लिए जानकारी और उपकरण होना चाहिए.'

वर्षों से, संघर्ष और जलवायु परिवर्तन का अध्ययन करने वाले शिक्षाविद इस बात पर प्रकाश डालते रहे हैं कि कैसे सीरियाई सूखे जैसी घटनाओं ने संघर्षों को बढ़ा दिया है.

अमेरिकी विदेश मंत्री एंटनी ब्लिंकन ने कहा, 'लगभग हर उस जगह को देखें जहां आप आज अंतरराष्ट्रीय शांति और सुरक्षा के लिए खतरे देखते हैं, तो आप पाएंगे कि जलवायु परिवर्तन चीजों को कम शांतिपूर्ण, कम सुरक्षित बना रहा है और हमारी प्रतिक्रिया को और भी चुनौतीपूर्ण बना रहा है.'

उन्होंने सीरिया, माली, यमन, दक्षिण सूडान और इथियोपिया सहित कई देशों की एक सूची का हवाला दिया. ब्लिंकन ने कहा, 'हमें इस बात पर बहस करना बंद करना होगा कि क्या जलवायु संकट का मुद्दा सुरक्षा परिषद के एंजेंडे में है या नहीं, बल्कि इसके बजाय यह पूछें कि शांति और सुरक्षा पर जलवायु परिवर्तन के नकारात्मक प्रभावों से निपटने के लिए परिषद अपनी अनूठी शक्तियों का लाभ कैसे उठा सकती है.

हालांकि, रूसी और चीनी राजनयिकों ने परिषद के एजेंडे में जलवायु परिवर्तन को शामिल करने के लिए अपने देशों की आपत्तियों को दोहराया, जिस पर अंतर्राष्ट्रीय शांति और सुरक्षा बनाए रखने की जिम्मेदारी है, जबकि संयुक्त राष्ट्र के अन्य संगठन और अंतरराष्ट्रीय मंच जलवायु परिवर्तन से संबंधित सारे मुद्दे पर काम कर रहे हैं.

बृहस्पतिवार की सुबह संबोधन करने वाले अधिकांश नेताओं ने पूरे ग्रह के लिए एक निराशाजनक तस्वीर पेश की. उन्होंने कहा कि जिस तरह से दुनिया कोरोना वायरस से मुकाबला कर रही है, उसी तरह से जलवायु परिवर्तन से भी लड़ने की जरूरत है, क्योंकि यह ग्रह के लिए यह जीवन और मृत्यु का मामला है.

(पीटीआई भाषा)

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