हैदराबाद : 'आप एक राष्ट्र की स्थिति उसकी महिलाओं की स्थिति को देखकर बता सकते हैं'-पूर्व प्रधानमंत्री जवाहरलाल नेहरू. महिलाएं किसी भी देश में हों, वह किसी भी धर्म को मानती हों या वह किसी भी काल चक्र में रह रही हों, हमेशा से उनके साथ भेदभाव और उनका शोषण होता रहा है. हर जगह महिलाओं को कई चुनौतियों का सामना करना पड़ता है.
यह दुर्भाग्य है कि भारत उन कुछ देशों में से एक है, जहां महिलाओं के खिलाफ अपराध तेजी से बढ़ रहा है. लगभग हर समाज में महिलाओं और लड़कियों को शारीरिक, यौन और मनोवैज्ञानिक शोषण का सामना करना पड़ता है.
युगों से भारत में महिलाओं की स्थिति एक विवादास्पद विषय रही है, यह भारतीय समाज के विरोधाभासी स्वरूप को दर्शाती है. एक तरफ जहां हमारे देश में नारी रूपी देवियों की पूजा की जाती है, वहीं दूसरी ओर महिलाओं के साथ दूसरे दर्जे का व्यवहार किया जाता है.
इस बीच, न्यायपालिका कानून के माध्यम से अत्याचारों से महिलाओं के उद्धारकर्ता के रूप में काम कर रहा है. हमारे देश में महिलाओं की स्थिति में सुधार तो हुआ है, हालांकि, यह सिर्फ संतोषजनक है. इस सुधार में न्यायपालिका के साथ-साथ समाज का भी मुख्य योगदान है.
निष्पक्ष और स्वतंत्र न्यायपालिका ने हमेशा न्याय के सच्चे संरक्षक की भूमिका निभाई है. आजादी के बाद से कई बार न्यायपालिका ने समाज के आधे हिस्से, यानी हमारे देश की महिलाओं के पक्ष में कई फैसले लिए हैं.
आइए इन्हीं कुछ फैसलों पर एक नजर डालते हैं.
फरवरी 17, 2020- उच्चतम न्यायालय ने केंद्र को तीन महीने के भीतर सेना में सभी महिला अधिकारियों को स्थायी कमीशन देने का निर्देश दिया. न्यायालय ने अपने आदेश में कहा कि महिला अधिकारियों को स्थायी कमीशन न देना गैरकानूनी है.
11 अगस्त 2020- उच्चतम न्यायालय ने हिंदू उत्तराधिकार (संशोधन) अधिनियम, 2005 को लेकर आदेश दिया कि पिता की मृत्यु के बाद भी बेटियों का संपत्ति पर अधिकार बना रहेगा.
15 अक्टूबर 2020- उच्चतम न्यायालय ने ऐतिहासिक फैसला सुनाते हुए कहा कि घरेलू हिंसा अधिनियम के तहत बहू को अपने ससुराल या पति के माता-पिता के घर में रहने का अधिकार प्राप्त है. उच्चतम न्यायालय ने दो न्यायाधीशों की पीठ के फैसले को पलटकर यह निर्णय दिया था. यह फैसला एसआर बत्रा मामले में सुनाया गया था.
11 जून 2020- राजस्थान उच्च न्यायालय ने अपने एक आदेश में कहा था कि एक बलात्कार पीड़ित के जीवन का अधिकार उसकी कोख में पल रहे बच्चे के जीवन के अधिकार से बड़ा है. इसके तहत न्यायालय ने पीड़िता की गर्भावस्था की समाप्ति के लिए निर्देश जारी किए थे.
10 मार्च 2020- उच्चतम न्यायालय ने कहा कार्यस्थल पर यौन उत्पीड़न महिलाओं के मौलिक अधिकारों का अपमान है.
02 नवंबर 2020- हिमाचल प्रदेश उच्च न्यायालय ने ममता देवी बनाम हिमाचल प्रदेश राज्य मामले में सुनवाई करते हुए कहा था कि राज्य महिलओं के प्रति पक्षपातपूर्ण व्यवहार नहीं कर सकता. न्यायालय ने यह टिप्पणी विवाहित बेटी को पिता के पद पर अनुकम्पा नियुक्ति को अनुमति देते हुए की थी.
25 सितंबर 2020- बॉम्बे उच्च न्यायालय ने यह कहते हुए तीन यौनकर्मियों को मुक्त करने का आदेश दिया था कि वैश्यावृत्ति को इम्मोरल ट्रैफिक (प्रिवेंशन) एक्ट, 1956 के तहत अपराध नहीं माना गया है. न्यायालय ने कहा कि एक वयस्क महिला को अपना व्यवसाय चुनने का अधिकार है.
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09 जुलाई 2020-त्रिपुरा उच्च न्यायालय ने भरण पोषण के मामले पर सुनवाई करते हुए कहा कि एक महिला जो पत्नी की तरह रही है उसे भरण पोषण के अधिकार से वंचित नहीं किया जा सकता है.
08 मई 2020- दिल्ली उच्च न्यायालय ने एक कॉलेज द्वारा एड हॉक प्रोफेसर की सेवा समाप्ति को रद्द करने का आदेश दिया था. इस प्रोफेसर का अनुबंध कॉलेज द्वारा स्वीकार नहीं किया गया था, क्योंकि उन्होंने मातृत्व अवकाश लिया था.
16 दिसंबर 2020- जम्मू-कश्मीर उच्च न्यायालय ने इस मामले पर स्वत: संज्ञान लिया कि स्वच्छता की अपर्याप्त सुविधाओं के कारण अधिकांश लड़कियां स्कूल छोड़ रही हैं. न्यायालय ने कहा कि यह शिक्षा के अधिकार को बाधित कर रहा है. इसको लेकर न्यायालय ने केंद्र सरकार और केंद्र शासित प्रदेशों जम्मू-कश्मीर और लद्दाख की सरकारों स्वक्षता के पुख्ता इंतजाम करने का आदेश दिया था.
03 सितंबर 2020- एक बड़ा फैसला सुनाते हुए कर्नाटक उच्च न्यायालय ने कहा कि मुसलमानों के कानूनों के तहत दूसरी शादी जायज तो है, लेकिन इससे पहली पत्नी के प्रति क्रूरता होने की संभावना है. न्यायालय ने कहा कि यह कानूनी रूप से वैध है इसका यह मतलब नहीं है कि यह मान्य या उचित होगा.
03 नवंबर 2020- पंजाब हरियाणा उच्च न्यायालय ने कन्या भ्रूण हत्या के आरोपी की बेल की याचिका खारिज करते हुए कहा कि कन्या भ्रूण हत्या भविष्य की महिलाओं को खत्म कर देता है. समाज में महिला की बहुआयामी भूमिका है.
15 अक्टूबर 2020- झारखंड उच्च न्यायालय ने पुलिस को फटकार लगाते हुए कहा कि महिलाओं और बच्चों के खिलाफ जघन्य अपराध की जांच करते हुए किसी भी तरह की ढिलाई के लिए कोई जगह नहीं है. न्यायालय महिला और उसके तीन बच्चों की जलने के कारण मृत्यु के मामले पर सुनवाई कर रही थी.
01 सितंबर 2020- गुवाहाटी उच्च न्यायालय ने दुष्कर्म के एक मामले पर सुनवाई करते हुए कहा कि दुष्कर्म, संविधान के अनुच्छेद 21 के तहत पीड़ित के मौलिक अधिकार का उल्लंघन है. न्यायालय ने आगे कहा कि बलात्कार एक महिला के सर्वोच्च सम्मान के लिए एक गंभीर झटका है और पूरे समाज के खिलाफ भी एक अपराध है.
23 नवंबर 2020- इलाहाबाद उच्च न्यायालय ने अपने एक फैसले में कहा कि अपने पसंद का साथी चुनने का अधिकार एक मौलिक अधिकार है.
29 जून 2020-कलकत्ता उच्च न्यायालय ने अपने एक फैसले में कहा कि शादी के बाद महिला के प्रति उसके रंग को लेकर क्रूरता करने वालों के खिलाफ आईपीसी की धारा 498ए के तहत कार्रवाई की जाएगी.