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Lakhimpur Kheri Violence: SC ने आशीष मिश्रा की जमानत याचिका पर फैसला सुरक्षित रखा

उच्चतम न्यायालय में गुरुवार को लखीमपुर खीरी हिंसा के आरोपी आशीष मिश्रा की जमानत याचिका पर सुनवाई हुई. शीर्ष अदालत ने मामले में केंद्रीय मंत्री अजय मिश्रा के बेटे आशीष मिश्रा की जमानत याचिका पर अपना फैसला सुरक्षित रखा है.

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Published : Jan 19, 2023, 5:57 PM IST

नई दिल्ली : उच्चतम न्यायालय ने लखीमपुर खीरी हिंसा मामले में आरोपी आशीष मिश्रा की जमानत याचिका पर सुनवाई करते हुए कहा कि किसी आरोपी को अनिश्चित काल के लिए जेल में नहीं रखा जाना चाहिए जब तक कि वह दोषी साबित न हो जाए. आशीष मिश्रा केंद्रीय मंत्री अजय कुमार मिश्रा का बेटा है. शीर्ष अदालत ने कहा कि इस मामले में सबसे ज्यादा पीड़ित वे किसान हैं जो जेल में बंद हैं और अगर आशीष मिश्रा को राहत नहीं मिली तो उनके भी जेल में ही रहने की संभावना है. जस्टिस सूर्यकांत और जस्टिस जे. के. माहेश्वरी की पीठ ने जमानत याचिका पर फैसला सुरक्षित रखते हुए कहा कि यह मामला सभी पक्षों के अधिकारों में संतुलन बनाने का है.

गौरतलब है कि तीन अक्टूबर 2021 को लखीमपुर खीरी के तिकुनिया में उस समय हुई हिंसा में आठ लोग मारे गए थे, जब किसान क्षेत्र में उत्तर प्रदेश के तत्कालीन उप मुख्यमंत्री केशव प्रसाद मौर्य के दौरे का विरोध कर रहे थे. उत्तर प्रदेश पुलिस की प्राथमिकी के अनुसार, एक एसयूवी ने चार किसानों को कुचल दिया था, जिसमें आशीष मिश्रा भी सवार था. घटना से आक्रोशित किसानों ने एसयूवी के चालक और भारतीय जनता पार्टी (भाजपा) के दो कार्यकर्ताओं की कथित तौर पर पीट पीटकर जान ले ली थी. हिंसा में एक पत्रकार भी मारा गया था. जस्टिस सूर्यकांत ने कहा, "राज्य को यह सुनिश्चित करने का अधिकार है कि बाहरी परिस्थितियों से प्रभावित हुए बिना एक निष्पक्ष सुनवाई हो. राज्य के पास अधिकार है क्योंकि समाज का बहुत कुछ दांव पर लगा है. आरोपी के पास भी अधिकार है क्योंकि जब तक वह दोषी साबित नहीं हो जाता उसे अनिश्चित काल के लिए जेल में नहीं रखा जा सकता."

जस्टिस सूर्यकांत ने कहा, "यह केवल एक याचिकाकर्ता हमारे समक्ष नहीं है. पिछले 19 साल में मेरा सिद्धांत रहा है कि मैं केवल उस पीड़ित को नहीं देखता जो मेरे समक्ष मौजूद है, मैं उन पीड़ितों को भी देखता हूं जो अदालत नहीं आ सकते और सबसे अधिक पीड़ित वहीं हैं. आप चाहते हैं कि हम खुलकर बोलें. सबसे अधिक पीड़ित वे किसान हैं जो जेल में बंद हैं. उनका पक्ष कौन रखेगा. अगर इस व्यक्ति को कुछ नहीं (जमानत) दिया गया तो उन्हें भी कोई कुछ नहीं देगा. वे भी आने वाले समय में जेल में रहेंगे. निचली अदालत ने पहले ही उनकी जमानत याचिका खारिज कर दी है." जमानत याचिका का विरोध कर रहे लोगों की ओर से पेश हुए वरिष्ठ अधिवक्ता दुष्यंत दवे ने कहा कि वह अदालत की इस तुलना से हैरान व निराश हैं. शीर्ष अदालत ने कहा कि यह एक ऐसा मामला है जिस पर इस अदालत द्वारा और गौर करने की जरूरत है और वह ऐसा करने को इच्छुक भी है. पीठ ने कहा, "हम गवाहों के बयान दर्ज किए जाने तक मामले को लंबित रखेंगे. हम निचली अदालत पर दबाव नहीं बना सकते और हर दिन सुनवाई करने का निर्देश देना भी अनुचित होगा."

शीर्ष अदालतों ने उत्तर प्रदेश की अतिरिक्त महाधिवक्ता गरिमा प्रसाद और वरिष्ठ अधिवक्ता मुकुल रोहतगी तथा दुष्यंत दवे की दलीले सुनने के बाद कहा, "हम फैसला सुनाएंगे." प्रसाद ने आशीष मिश्रा की जमानत याचिका का विरोध करते हुए कहा, "यह एक गंभीर व जघन्य अपराध है और इससे (जमानत देने से) समाज में गलत संदेश जाएगा." दवे ने कहा कि जमानत देने से समाज में बेहद गलत संदेश जाएगा. मुकुल रोहतगी ने दवे के प्रतिवेदन का विरोध करते हुए कहा कि उनका मुवक्किल एक साल से अधिक समय से हिरासत में है और जिस तरह से सुनवाई चल रही है, उसके पूरा होने में सात से आठ साल लग जाएंगे. उन्होंने कहा कि जगजीत सिंह मामले में शिकायतकर्ता हैं कोई चश्मदीद गवाह नहीं हैं और उनकी शिकायत सिर्फ सुनी सुनाई बातों पर आधारित है. उन्होंने कहा, "जगजीत सिंह शिकायतकर्ता हैं कोई चश्मदीद नहीं. मैं हैरान हूं कि लोगों का एक बड़ा तबका कह रहा है कि हमने लोगों पर बेरहमी से गाड़ी चला दी... प्राथमिकी जिस व्यक्ति के बयान के आधार पर दर्ज की गई है वह चश्मदीद नहीं है."

रोहतगी ने कहा, "मेरे मुवक्किल को पहले मामले में जमानत मिल गई. यह कोई बेसिर-पैर की बात नहीं है और बात में सच्चाई है." उन्होंने कहा कि उनका मुवक्किल कोई अपराधी नहीं है और उनके खिलाफ पहले भी कोई मामला नहीं है. निचली अदालत ने पिछले साल छह दिसंबर को मामले में मिश्रा और 12 अन्य के खिलाफ हत्या, आपराधिक साजिश और अन्य अपराधों में आरोप तय किए थे, जिससे सुनवाई की शुरुआत का रास्ता साफ हो गया था. मामले के अन्य आरोपियों में अंकित दास, नंदन सिंह बिष्ट, लतीफ काले, सत्यम उर्फ ​​सत्य प्रकाश त्रिपाठी, शेखर भारती, सुमित जायसवाल, आशीष पांडेय, लवकुश राणा, शिशु पाल, उल्लास कुमार उर्फ ​​मोहित त्रिवेदी, रिंकू राणा और धर्मेंद्र बंजारा शामिल हैं. सभी आरोपी फिलहाल जेल में हैं.

नई दिल्ली : उच्चतम न्यायालय ने लखीमपुर खीरी हिंसा मामले में आरोपी आशीष मिश्रा की जमानत याचिका पर सुनवाई करते हुए कहा कि किसी आरोपी को अनिश्चित काल के लिए जेल में नहीं रखा जाना चाहिए जब तक कि वह दोषी साबित न हो जाए. आशीष मिश्रा केंद्रीय मंत्री अजय कुमार मिश्रा का बेटा है. शीर्ष अदालत ने कहा कि इस मामले में सबसे ज्यादा पीड़ित वे किसान हैं जो जेल में बंद हैं और अगर आशीष मिश्रा को राहत नहीं मिली तो उनके भी जेल में ही रहने की संभावना है. जस्टिस सूर्यकांत और जस्टिस जे. के. माहेश्वरी की पीठ ने जमानत याचिका पर फैसला सुरक्षित रखते हुए कहा कि यह मामला सभी पक्षों के अधिकारों में संतुलन बनाने का है.

गौरतलब है कि तीन अक्टूबर 2021 को लखीमपुर खीरी के तिकुनिया में उस समय हुई हिंसा में आठ लोग मारे गए थे, जब किसान क्षेत्र में उत्तर प्रदेश के तत्कालीन उप मुख्यमंत्री केशव प्रसाद मौर्य के दौरे का विरोध कर रहे थे. उत्तर प्रदेश पुलिस की प्राथमिकी के अनुसार, एक एसयूवी ने चार किसानों को कुचल दिया था, जिसमें आशीष मिश्रा भी सवार था. घटना से आक्रोशित किसानों ने एसयूवी के चालक और भारतीय जनता पार्टी (भाजपा) के दो कार्यकर्ताओं की कथित तौर पर पीट पीटकर जान ले ली थी. हिंसा में एक पत्रकार भी मारा गया था. जस्टिस सूर्यकांत ने कहा, "राज्य को यह सुनिश्चित करने का अधिकार है कि बाहरी परिस्थितियों से प्रभावित हुए बिना एक निष्पक्ष सुनवाई हो. राज्य के पास अधिकार है क्योंकि समाज का बहुत कुछ दांव पर लगा है. आरोपी के पास भी अधिकार है क्योंकि जब तक वह दोषी साबित नहीं हो जाता उसे अनिश्चित काल के लिए जेल में नहीं रखा जा सकता."

जस्टिस सूर्यकांत ने कहा, "यह केवल एक याचिकाकर्ता हमारे समक्ष नहीं है. पिछले 19 साल में मेरा सिद्धांत रहा है कि मैं केवल उस पीड़ित को नहीं देखता जो मेरे समक्ष मौजूद है, मैं उन पीड़ितों को भी देखता हूं जो अदालत नहीं आ सकते और सबसे अधिक पीड़ित वहीं हैं. आप चाहते हैं कि हम खुलकर बोलें. सबसे अधिक पीड़ित वे किसान हैं जो जेल में बंद हैं. उनका पक्ष कौन रखेगा. अगर इस व्यक्ति को कुछ नहीं (जमानत) दिया गया तो उन्हें भी कोई कुछ नहीं देगा. वे भी आने वाले समय में जेल में रहेंगे. निचली अदालत ने पहले ही उनकी जमानत याचिका खारिज कर दी है." जमानत याचिका का विरोध कर रहे लोगों की ओर से पेश हुए वरिष्ठ अधिवक्ता दुष्यंत दवे ने कहा कि वह अदालत की इस तुलना से हैरान व निराश हैं. शीर्ष अदालत ने कहा कि यह एक ऐसा मामला है जिस पर इस अदालत द्वारा और गौर करने की जरूरत है और वह ऐसा करने को इच्छुक भी है. पीठ ने कहा, "हम गवाहों के बयान दर्ज किए जाने तक मामले को लंबित रखेंगे. हम निचली अदालत पर दबाव नहीं बना सकते और हर दिन सुनवाई करने का निर्देश देना भी अनुचित होगा."

शीर्ष अदालतों ने उत्तर प्रदेश की अतिरिक्त महाधिवक्ता गरिमा प्रसाद और वरिष्ठ अधिवक्ता मुकुल रोहतगी तथा दुष्यंत दवे की दलीले सुनने के बाद कहा, "हम फैसला सुनाएंगे." प्रसाद ने आशीष मिश्रा की जमानत याचिका का विरोध करते हुए कहा, "यह एक गंभीर व जघन्य अपराध है और इससे (जमानत देने से) समाज में गलत संदेश जाएगा." दवे ने कहा कि जमानत देने से समाज में बेहद गलत संदेश जाएगा. मुकुल रोहतगी ने दवे के प्रतिवेदन का विरोध करते हुए कहा कि उनका मुवक्किल एक साल से अधिक समय से हिरासत में है और जिस तरह से सुनवाई चल रही है, उसके पूरा होने में सात से आठ साल लग जाएंगे. उन्होंने कहा कि जगजीत सिंह मामले में शिकायतकर्ता हैं कोई चश्मदीद गवाह नहीं हैं और उनकी शिकायत सिर्फ सुनी सुनाई बातों पर आधारित है. उन्होंने कहा, "जगजीत सिंह शिकायतकर्ता हैं कोई चश्मदीद नहीं. मैं हैरान हूं कि लोगों का एक बड़ा तबका कह रहा है कि हमने लोगों पर बेरहमी से गाड़ी चला दी... प्राथमिकी जिस व्यक्ति के बयान के आधार पर दर्ज की गई है वह चश्मदीद नहीं है."

रोहतगी ने कहा, "मेरे मुवक्किल को पहले मामले में जमानत मिल गई. यह कोई बेसिर-पैर की बात नहीं है और बात में सच्चाई है." उन्होंने कहा कि उनका मुवक्किल कोई अपराधी नहीं है और उनके खिलाफ पहले भी कोई मामला नहीं है. निचली अदालत ने पिछले साल छह दिसंबर को मामले में मिश्रा और 12 अन्य के खिलाफ हत्या, आपराधिक साजिश और अन्य अपराधों में आरोप तय किए थे, जिससे सुनवाई की शुरुआत का रास्ता साफ हो गया था. मामले के अन्य आरोपियों में अंकित दास, नंदन सिंह बिष्ट, लतीफ काले, सत्यम उर्फ ​​सत्य प्रकाश त्रिपाठी, शेखर भारती, सुमित जायसवाल, आशीष पांडेय, लवकुश राणा, शिशु पाल, उल्लास कुमार उर्फ ​​मोहित त्रिवेदी, रिंकू राणा और धर्मेंद्र बंजारा शामिल हैं. सभी आरोपी फिलहाल जेल में हैं.

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