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कुंभ 2021 : हादसों से सबक लेगी सरकार ? 1912 के बाद की घटनाओं पर एक नजर

हरिद्वार में पहले भी महाकुंभ के दौरान कई बड़े हादसे हो चुके हैं, जिनमें कई लोगों की मौत हो चुकी है. 2010 के हरिद्वार कुंभ में भगदड़ मच गई थी, जिसमें सात लोगों की मौत हुई थी. हालांकि, इस बार प्रशासन पुरानी गलतियों को दोहराना नहीं चाहता है. इसीलिए पुरानों हादसों से सबक लिया जा रहा है.

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Published : Dec 3, 2020, 7:14 PM IST

1912 से बाद की घटनाओं पर एक नजर
1912 से बाद की घटनाओं पर एक नजर

हरिद्वार : धर्मनगरी में अगले साल (2021) आयोजित होने वाले कुंभ में प्रशासन उन सभी पहलुओं पर ध्यान दे रहा है, जो मेले में सिरदर्द बन सकते हैं. शासन-प्रशासन पुराने हादसों से सबक लेते हुए नई योजनाएं तैयार करने में लगा है. हरिद्वार कुंभ में पुराने हादसों की पुर्नावृति न हो इसके लिए कुंभ मेलाधिकारी दीपक रावत पुराने हादसों से जुड़ी सरकारी फाइलों का रोज अध्ययन कर रहे हैं, जिसमें उत्तर प्रदेश शासन काल से जुड़ी हुई कई फाइलें भी हैं.

इतना ही नहीं, पुरानी फाइलों के अध्ययन के साथ मेलाधिकारी दीपक रावत उन लोगों से मिल रहे हैं, जिन्होंने कई कुंभ देखे हैं, ताकि नई योजना बनाने में मदद मिल सके. इसे नियती कहें या कुछ और, कुंभ में हादसों का होना एक इतिहास सा बन गया है. अक्सर देखने में आता है कि मेला प्रशासन और राज्य सरकारों के तमाम बंदोबस्त और दावों के उलट श्रद्धालुओं की भीड़ भगदड़ का शिकार हो जाती है.

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1912 से बाद की घटनाओं पर एक नजर.

पढ़ें- हरिद्वार कुंभ को यादगार बनाएंगी लोक कथाएं, दीवारों पर उकेरी गई 'संस्कृति'

कुंभ मेलों के इतिहास पर अगर नजर डालें, तो हर कुंभ में कोई न कोई बड़ा हादसा हुआ है. जानकारों की मानें, तो केवल अखाड़ों और महंतों की सुरक्षा करने वाले कुंभ मेला प्रशासन ने बीते कई सालों से इस पर ध्यान दिया है कि भीड़ पर नियंत्रण कैसा किया जाए? कैसे संतों के साथ-साथ आम जनता की उमड़ती भीड़ को अलग-अलग मार्गों से डाइवर्ट किया जाए.

इतिहास के पन्ने कुंभ की कुछ दर्दनाक घटनाओं से पटे पड़े हैं. ऐसा नहीं है कि हरिद्वार कुंभ में ही हादसे हुए हैं. प्रयागराज कुंभ भी हादसों का गवाह रह चुका है. एक हादसे में सैकड़ों लोगों ने अपनी जान गंवाई थी.

जानकार मानते हैं कि सैकड़ों साल पहले कुंभ की शुरुआत संतों के झगड़ों से होती थी. हर अखाड़ा पहले स्नान करना चाहता था. कुंभ शाही स्नान को लेकर कई बार खून की होली खेली गई. हालांकि, समय बीतने के साथ अखाड़ा परिषद का गठन हुआ और ये संघर्ष की कहानी भी धीरे-धीरे खत्म होने लगी.

पढ़ें- हरिद्वार कुंभ में कोरोना की तैयारियों को लेकर हाई कोर्ट ने सरकार से मांगा जवाब

इतिहासकार डॉ. उपेंद्र के मुताबिक, आस्था के नाम पर उमड़ने वाली भीड़ कब सैलाब का रूप धारण कर लेती है, इसका अंदाजा मेला प्रशासन नहीं लगा पाता. इसका परिणाम कई बार भगदड़ के तौर पर सामने आता है और कई लोगों को अपनी जान से हाथ धोना पड़ता है.

हरिद्वार के तीर्थ-पुरोहित उज्ज्वल पंडित की मानें, तो उनके परिवार के बड़े-बुजुर्गों ने यहां कई कुंभ देखे हैं. हर कुंभ में हादसे हुए हैं, लेकिन इन हादसों से अभी तक तो किसी ने कोई सबक नहीं लिया है. हालांकि, आगामी कुंभ से उनको ऐसी उम्मीद है कि पिछले हादसों से सबक लेकर सुरक्षित कुंभ करवाया जाएगा.

हरिद्वार : धर्मनगरी में अगले साल (2021) आयोजित होने वाले कुंभ में प्रशासन उन सभी पहलुओं पर ध्यान दे रहा है, जो मेले में सिरदर्द बन सकते हैं. शासन-प्रशासन पुराने हादसों से सबक लेते हुए नई योजनाएं तैयार करने में लगा है. हरिद्वार कुंभ में पुराने हादसों की पुर्नावृति न हो इसके लिए कुंभ मेलाधिकारी दीपक रावत पुराने हादसों से जुड़ी सरकारी फाइलों का रोज अध्ययन कर रहे हैं, जिसमें उत्तर प्रदेश शासन काल से जुड़ी हुई कई फाइलें भी हैं.

इतना ही नहीं, पुरानी फाइलों के अध्ययन के साथ मेलाधिकारी दीपक रावत उन लोगों से मिल रहे हैं, जिन्होंने कई कुंभ देखे हैं, ताकि नई योजना बनाने में मदद मिल सके. इसे नियती कहें या कुछ और, कुंभ में हादसों का होना एक इतिहास सा बन गया है. अक्सर देखने में आता है कि मेला प्रशासन और राज्य सरकारों के तमाम बंदोबस्त और दावों के उलट श्रद्धालुओं की भीड़ भगदड़ का शिकार हो जाती है.

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कुंभ मेलों के इतिहास पर अगर नजर डालें, तो हर कुंभ में कोई न कोई बड़ा हादसा हुआ है. जानकारों की मानें, तो केवल अखाड़ों और महंतों की सुरक्षा करने वाले कुंभ मेला प्रशासन ने बीते कई सालों से इस पर ध्यान दिया है कि भीड़ पर नियंत्रण कैसा किया जाए? कैसे संतों के साथ-साथ आम जनता की उमड़ती भीड़ को अलग-अलग मार्गों से डाइवर्ट किया जाए.

इतिहास के पन्ने कुंभ की कुछ दर्दनाक घटनाओं से पटे पड़े हैं. ऐसा नहीं है कि हरिद्वार कुंभ में ही हादसे हुए हैं. प्रयागराज कुंभ भी हादसों का गवाह रह चुका है. एक हादसे में सैकड़ों लोगों ने अपनी जान गंवाई थी.

जानकार मानते हैं कि सैकड़ों साल पहले कुंभ की शुरुआत संतों के झगड़ों से होती थी. हर अखाड़ा पहले स्नान करना चाहता था. कुंभ शाही स्नान को लेकर कई बार खून की होली खेली गई. हालांकि, समय बीतने के साथ अखाड़ा परिषद का गठन हुआ और ये संघर्ष की कहानी भी धीरे-धीरे खत्म होने लगी.

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इतिहासकार डॉ. उपेंद्र के मुताबिक, आस्था के नाम पर उमड़ने वाली भीड़ कब सैलाब का रूप धारण कर लेती है, इसका अंदाजा मेला प्रशासन नहीं लगा पाता. इसका परिणाम कई बार भगदड़ के तौर पर सामने आता है और कई लोगों को अपनी जान से हाथ धोना पड़ता है.

हरिद्वार के तीर्थ-पुरोहित उज्ज्वल पंडित की मानें, तो उनके परिवार के बड़े-बुजुर्गों ने यहां कई कुंभ देखे हैं. हर कुंभ में हादसे हुए हैं, लेकिन इन हादसों से अभी तक तो किसी ने कोई सबक नहीं लिया है. हालांकि, आगामी कुंभ से उनको ऐसी उम्मीद है कि पिछले हादसों से सबक लेकर सुरक्षित कुंभ करवाया जाएगा.

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