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नेपाल : प्रचंड और माधव के मुकाबले ओली दिख रहे आश्वस्त

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Published : Mar 10, 2021, 8:37 PM IST

राजनीतिक अनिश्चितता के बीच नेपाल के पीएम केपी ओली फिर से आश्वस्त दिख रहे हैं. सुप्रीम कोर्ट ने नेपाल कम्युनिस्ट पार्टी की यूनिटी को मान्यता नहीं दी. अब माओवादी सेंटर और सीपीएन, दोनों अलग-अलग पार्टियां हैं. इस फैसले के बाद ओली को लगता है कि उनके पक्ष में स्थितियां हो सकती हैं. उन्होंने दूसरे दलों से संपर्क साधना शुरू कर दिया है. एक विश्लेषण.

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नेपाल के पीएम केपी ओली

ऐसा लग रहा है कि नेपाल के प्रधानमंत्री केपी ओली फिर से राहत महसूस कर रहे हैं. सुप्रीम कोर्ट ने रविवार को एनसीपी (नेपाल कम्युनिस्ट पार्टी) की एकता को मान्यता नहीं दी है. 2018 के आम चुनाव से ठीक पहले प्रचंड (माओवादी सेंटर) और ओली (सीपीएन) गुट एक हो गया था. दोनों ने मिलकर सीपीएन का गठन किया था. इस फैसले के बाद ओली फिर से यह मानने लगे हैं कि उनका गुट वैध है. वैसे, प्रचंड गुट उनसे पहले ही अलग हो चुका है. यूएमएल का नेतृत्व माधव कुमार नेपाल कर रहे हैं.

नेपाल का सत्ताधारी गठबंधन पूरी तरह से अस्त-व्यस्त हो गया है. ओली का साथ छोड़कर प्रचंड एक बार फिर से अपनी पार्टी माओवादी सेंटर को मजबूत करने में लग गए हैं. माधव कुमार नेपाल ने प्रचंड का साथ छोड़ दिया है. उनकी पार्टी का नाम यूएमएल है. एनसीपी को एक करने की पहल केपी ओली ने ही की थी.

उनकी कोशिश रंग भी लाई थी. उनका दल सत्ता पर काबिज हो गया. इस जीत से भारत बहुत अधिक प्रसन्न नहीं था, जबकि चीन काफी संतुष्ट था. कहा जाता है कि चीन की पहल पर ही ओली और प्रचंड साथ-साथ आए थे.

ओली ने अचानक से ही जब संसद भंग करने की घोषणा कर दी, तो उनकी पार्टी सीपीएन के खिलाफ माहौल बनने लगा. उनके अपने सहयोगी तक नाराज हो गए. प्रचंड इस फैसले से सहमत नहीं थे. 23 फरवरी को सुप्रीम कोर्ट ने संसद भंग किए जाने के फैसले को खारिज कर दिया. कोर्ट ने भविष्य में प्रधानमंत्री बनने वालों के लिए भी फैसले के जरिए एक तरह की चेतावनी दे दी है.

इसके बाद इस सप्ताह फिर से कुछ बदलाव आए. सुप्रीम कोर्ट ने एनसीपी के एक दल होने की याचिका ही खारिज कर दी. कोर्ट ने कहा कि ओली, माधव, प्रचंड और अन्य सभी मिलकर स्थितियों को ठीक करें. अब ओली पर अविश्वास प्रस्ताव का भय फिर से मंडरा रहा है. ऐसे में इन फैसलों का असर हो सकता है.

सुप्रीम कोर्ट के फैसले ने एनसीपी को फिर से पुराने दिनों में पहुंचा दिया है. अभी संसद में सबसे बड़ी पार्टी यूएमएल है. इसके पास 121 सांसद हैं. दूसरे स्थान पर नेपाली कांग्रेस है. इसके पास 63 सांसद हैं. माओवादी सेंटर के पास 53 सांसद हैं. बाबूराम भट्टाराय जनता समाजवादी पार्टी के 34 सांसद हैं. सदन की कुल क्षमता 275 हैं.

अविश्वास प्रस्ताव के मद्देनजर ओली, नेपाल और प्रचंड अपनी-अपनी पार्टियों को मजबूत करने में जुटे हुए हैं. उनकी कोशिश है कि उनके सदस्य कहीं छिटक न जाएं. वे इस कोशिश में भी जुटी हैं कि उन्हें दूसरे दलों का समर्थन मिल जाए. अभी पूरी निश्चिंतता के साथ कुछ नहीं कहा जा सकता है कि कौन विजेता होगा.

ऐसे में यह सवाल उठना लाजिमी है कि क्या ओली के दिन लद गए हैं. क्या उनकी सरकार अपने ही पुराने साथियों के हमले झेल पाएगी. हां, पूरे प्रकरण में ओली अपने आप को आश्वस्त जरूर दिखा रहे हैं. माधव नेपाल और प्रचंड, जिन्होंने ओली से इस्तीफे की मांग की थी, उनके मुकाबले वह अच्छी स्थिति में दिख रहे हैं.

(लेखक- सुरेंद्र फुयाल, नेपाल के वरिष्ठ पत्रकार)

ऐसा लग रहा है कि नेपाल के प्रधानमंत्री केपी ओली फिर से राहत महसूस कर रहे हैं. सुप्रीम कोर्ट ने रविवार को एनसीपी (नेपाल कम्युनिस्ट पार्टी) की एकता को मान्यता नहीं दी है. 2018 के आम चुनाव से ठीक पहले प्रचंड (माओवादी सेंटर) और ओली (सीपीएन) गुट एक हो गया था. दोनों ने मिलकर सीपीएन का गठन किया था. इस फैसले के बाद ओली फिर से यह मानने लगे हैं कि उनका गुट वैध है. वैसे, प्रचंड गुट उनसे पहले ही अलग हो चुका है. यूएमएल का नेतृत्व माधव कुमार नेपाल कर रहे हैं.

नेपाल का सत्ताधारी गठबंधन पूरी तरह से अस्त-व्यस्त हो गया है. ओली का साथ छोड़कर प्रचंड एक बार फिर से अपनी पार्टी माओवादी सेंटर को मजबूत करने में लग गए हैं. माधव कुमार नेपाल ने प्रचंड का साथ छोड़ दिया है. उनकी पार्टी का नाम यूएमएल है. एनसीपी को एक करने की पहल केपी ओली ने ही की थी.

उनकी कोशिश रंग भी लाई थी. उनका दल सत्ता पर काबिज हो गया. इस जीत से भारत बहुत अधिक प्रसन्न नहीं था, जबकि चीन काफी संतुष्ट था. कहा जाता है कि चीन की पहल पर ही ओली और प्रचंड साथ-साथ आए थे.

ओली ने अचानक से ही जब संसद भंग करने की घोषणा कर दी, तो उनकी पार्टी सीपीएन के खिलाफ माहौल बनने लगा. उनके अपने सहयोगी तक नाराज हो गए. प्रचंड इस फैसले से सहमत नहीं थे. 23 फरवरी को सुप्रीम कोर्ट ने संसद भंग किए जाने के फैसले को खारिज कर दिया. कोर्ट ने भविष्य में प्रधानमंत्री बनने वालों के लिए भी फैसले के जरिए एक तरह की चेतावनी दे दी है.

इसके बाद इस सप्ताह फिर से कुछ बदलाव आए. सुप्रीम कोर्ट ने एनसीपी के एक दल होने की याचिका ही खारिज कर दी. कोर्ट ने कहा कि ओली, माधव, प्रचंड और अन्य सभी मिलकर स्थितियों को ठीक करें. अब ओली पर अविश्वास प्रस्ताव का भय फिर से मंडरा रहा है. ऐसे में इन फैसलों का असर हो सकता है.

सुप्रीम कोर्ट के फैसले ने एनसीपी को फिर से पुराने दिनों में पहुंचा दिया है. अभी संसद में सबसे बड़ी पार्टी यूएमएल है. इसके पास 121 सांसद हैं. दूसरे स्थान पर नेपाली कांग्रेस है. इसके पास 63 सांसद हैं. माओवादी सेंटर के पास 53 सांसद हैं. बाबूराम भट्टाराय जनता समाजवादी पार्टी के 34 सांसद हैं. सदन की कुल क्षमता 275 हैं.

अविश्वास प्रस्ताव के मद्देनजर ओली, नेपाल और प्रचंड अपनी-अपनी पार्टियों को मजबूत करने में जुटे हुए हैं. उनकी कोशिश है कि उनके सदस्य कहीं छिटक न जाएं. वे इस कोशिश में भी जुटी हैं कि उन्हें दूसरे दलों का समर्थन मिल जाए. अभी पूरी निश्चिंतता के साथ कुछ नहीं कहा जा सकता है कि कौन विजेता होगा.

ऐसे में यह सवाल उठना लाजिमी है कि क्या ओली के दिन लद गए हैं. क्या उनकी सरकार अपने ही पुराने साथियों के हमले झेल पाएगी. हां, पूरे प्रकरण में ओली अपने आप को आश्वस्त जरूर दिखा रहे हैं. माधव नेपाल और प्रचंड, जिन्होंने ओली से इस्तीफे की मांग की थी, उनके मुकाबले वह अच्छी स्थिति में दिख रहे हैं.

(लेखक- सुरेंद्र फुयाल, नेपाल के वरिष्ठ पत्रकार)

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