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Cauvery Dispute : तमिलनाडु और कर्नाटक के बीच कावेरी जल बंटवारे पर विरोध जारी, समझें क्या है पूरा विवाद

कावेरी जल प्रबंधन प्राधिकरण ने कर्नाटक को प्रत्येक दिन 5000 क्यूसेक पानी तमिलनाडु के लिए छोड़ने का आदेश दिया है. कर्नाटक ने इस फैसले के खिलाफ सुप्रीम कोर्ट में अपील की थी. लेकिन कोर्ट ने इस मामले में हस्तक्षेप नहीं किया. इसके बाद कर्नाटक के किसान संगठनों ने इसका विरोध शुरू कर दिया. कर्नाटक के कई इलाकों में मंगलवार को विरोध प्रदर्शन हुए. भाजपा और जेडीएस ने इस विरोध प्रदर्शन का साथ दिया है. तमिलनाडु में भी विरोध जारी है. आइए समझते हैं क्या है पूरा मामला.

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कावेरी जल विवाद
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By ETV Bharat Hindi Team

Published : Sep 26, 2023, 3:06 PM IST

Updated : Sep 26, 2023, 10:52 PM IST

नई दिल्ली : सालों से कावेरी जल को लेकर कर्नाटक और तमिलनाडु के बीच विवाद चला आ रहा है. आज भी इस मामले को लेकर विरोध-प्रदर्शन हो रहे हैं. बेंगलुरु और कर्नाटक के कुछ अन्य जिलों में विरोध प्रदर्शन जारी है. यहां के किसान संगठनों ने कावेरी प्राधिकरण के उस फैसले का विरोध किया है, जिसके तहत कर्नाटक को प्रत्येक दिन 5000 क्यूसेक पानी तमिलनाडु के लिए छोड़ना है. सुप्रीम कोर्ट ने इस फैसले पर रोक नहीं लगाई है. राज्य के अलग-अलग हिस्सों में हो रहे प्रदर्शन का भाजपा और जेडीएस ने समर्थन किया है. पुलिस ने कई जगहों पर भाजपा और जेडीएस कार्यकर्ताओं को गिरफ्तार किया है. आइए समझते हैं आखिर क्या है पूरा विवाद.

  • VIDEO | Farmers organisations take out bike rally in Malavalli town of Karnataka's Mandya as part of the 'bandh' called by them over the Cauvery water dispute. pic.twitter.com/DCO2Bl30po

    — Press Trust of India (@PTI_News) September 26, 2023 " class="align-text-top noRightClick twitterSection" data=" ">

कहां है कावेरी नदी का उद्गम - आपको बता दें कि कावेरी नदी का उद्गम कर्नाटक के कोडागू जिले में है. यह नदी तमिलनाडु की ओर जाती है. इसका कुछ हिस्सा केरल और पुदुचेरी में भी पड़ता है. कर्नाटक में जब-जब इस नदी पर बांध बनाने की बात छेड़ी जाती है, तमिलनाडु इसका विरोध करता है.

  • #WATCH | A group of Tamil Nadu farmers in Tiruchirappalli holding dead rats in their mouths protest against the Karnataka government and demand the release of Cauvery water to the state from Karnataka pic.twitter.com/CwQyVelyjF

    — ANI (@ANI) September 26, 2023 " class="align-text-top noRightClick twitterSection" data=" ">

ब्रिटिश काल में हुए समझौते - दोनों राज्यों के बीच 1892 और 1924 में अलग-अलग दो समझौते हुए. दोनों समझौते मद्रास प्रेसिडेंसी और मैसुरू के बीच हुए. तब कर्नाटक को मैसुरू के नाम से जाना जाता था. इसके तहत तीन चौथाई पानी मद्रास को और एक चौथाई पानी मैसुरू को मिलना तय हुआ था. ब्रिटिशकालीन इस समझौते के अनुसार कर्नाटक को 177 टीएमसी और तमिलनाडु को 556 टीएमसी पानी मिलना था. 1974 तक इसी समझौते के तहत पानी का बंटवारा होता रहा. बाद में केरल और पुदुचेरी ने भी पानी के हिस्से पर दावा ठोंका.

केंद्र की फैक्ट फाइंडिंग कमेटी - केंद्र सरकार ने 1976 में एक फैक्ट फाइंडिग कमेटी बनाई. कमेटी ने 1978 में समझौता कराने की कोशिश की. इसके तहत तमिलनाडु को 177.25 टीएमसी, कर्नाटक को 94.75 टीएमसी, केरल को पांच टीएमसी और पुदुचेरी को सात टीएमसी पानी देने की सहमति बनाई गई.

सुप्रीम कोर्ट पहुंचा तमिलनाडु - कर्नाटक इस फैसले से खुश नहीं था. उसने बांध और जलाशय बनाने की प्रक्रिया शुरू कर दी. इसके खिलाफ तमिलनाडु सुप्रीम कोर्ट पहुंचा. तमिलनाडु ने 1986 में इसके लिए एक प्राधिकरण बनाने की मांग की. 1990 में प्राधिकरण, ट्राइब्यूनल, का गठन किया गया. इसका नाम कावेरी जल प्रबंधन प्राधिकरण रखा गया. तब से ट्रिब्यूनल ही इस मामले को सुलझाता रहा है. जब भी ट्रिब्यूनल के समझौते से असहमति होती है, संबंधित पक्ष सुप्रीम कोर्ट का रूख करता रहा है.

कोर्ट ने प्राधिकरण के फैसले को सही ठहराया - ट्रिब्यूनल ने 205 टीएमसी पानी तमिलनाडु को देने का आदेश दिया. कर्नाटक इस फैसले के खिलाफ सुप्रीम कोर्ट चला गया. कोर्ट ने ट्रिब्यूनल के फैसले को सही ठहराया था. कर्नाटक का कहना था कि क्योंकि नदी उसके यहां से निकलती है और उसके जलाशय सूखे हुए हैं. किसानों को पानी की जरूरत है, बेंगलुरु में पीने के पानी का मुख्य स्रोत कावेरी है. लिहाजा, उसे अधिक मात्रा में पानी चाहिए. तमिलनाडु का पक्ष है कि पानी का बंटवारा अब तक जिस तरह से होता रहा है, वही चलता रहे. यह एक अंतरिम आदेश था.

विवाद में कई लोगों की गईं जानें - इस आदेश के बाद दोनों राज्यों के बीच मामला तूल पकड़ गया. प्राधिकरण ने इसे सुलझाने की कोशिश की. सुप्रीम कोर्ट भी प्राधिकरण के फैसले पर मुहर लगाता रहा. इसके बावजूद दोनों राज्यों के बीच कई बार ऐसे मौके आए, जब तनाव चरम पर पहुंच गया. 1991 में दोनों राज्यों के बीच हिंसा तक की नौबत आ गई थी. कर्नाटक में 23 लोगों की मौत हो गई थी. इसके बाद 2016 में भी काफी उग्र प्रदर्शन हुआ था.

2002 में प्राधिकरण ने तमिलनाडु के लिए 192 टीएमसी, कर्नाटक के लिए 270 टीएमसी, केरल के लिए 30 टीएमसी और पुदुचेरी के लिए सात टीएमसी पानी फिक्स किया. इसके बावजूद चारों राज्य इससे अंसतुष्ट दिखे. 2016 में कर्नाटक ने इस फैसले के अनुरूप पानी छोड़ने से इनकार कर दिया.

लिहाजा, 2016 में भी दोनों राज्यों के बीच तनाव था. तब तमिलनाडु ने सुप्रीम कोर्ट का रूख किया. इसका फैसला 2018 में आया. कोर्ट ने तमिलनाडु के शेयर को 14.74 टीएमसी घटा दिया. और इतना पानी कर्नाटक को ज्यादा लेने का आदेश दिया. कोर्ट ने केंद्र सरकार को कावेरी वाटर रेगुलेशन कमेटी बनाने का भी आदेश दिया था. इस कमेटी को रेगुलेशन की पूरी जवाबदेही दी गई. कर्नाटक का कहना था कि उनके जलाशय सूखे हुए हैं, लिहाजा वह अधिकतम 10 हजार क्यूसेक पानी छोड़ सकता है. कर्नाटक को 284.75 टीएमसी, तमिलनाडु को 404.25 टीएमस, केरल को 30 टीएमसी और पुदुचेरी को 7 टीएमसी पानी फिक्स किया गया.

ये भी पढ़ें : Cauvery Water Dispute: पूर्व पीएम देवगौड़ा ने बताया राज्य सरकार की नाकामी, पीएम मोदी को लिखा पत्र

नई दिल्ली : सालों से कावेरी जल को लेकर कर्नाटक और तमिलनाडु के बीच विवाद चला आ रहा है. आज भी इस मामले को लेकर विरोध-प्रदर्शन हो रहे हैं. बेंगलुरु और कर्नाटक के कुछ अन्य जिलों में विरोध प्रदर्शन जारी है. यहां के किसान संगठनों ने कावेरी प्राधिकरण के उस फैसले का विरोध किया है, जिसके तहत कर्नाटक को प्रत्येक दिन 5000 क्यूसेक पानी तमिलनाडु के लिए छोड़ना है. सुप्रीम कोर्ट ने इस फैसले पर रोक नहीं लगाई है. राज्य के अलग-अलग हिस्सों में हो रहे प्रदर्शन का भाजपा और जेडीएस ने समर्थन किया है. पुलिस ने कई जगहों पर भाजपा और जेडीएस कार्यकर्ताओं को गिरफ्तार किया है. आइए समझते हैं आखिर क्या है पूरा विवाद.

  • VIDEO | Farmers organisations take out bike rally in Malavalli town of Karnataka's Mandya as part of the 'bandh' called by them over the Cauvery water dispute. pic.twitter.com/DCO2Bl30po

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कहां है कावेरी नदी का उद्गम - आपको बता दें कि कावेरी नदी का उद्गम कर्नाटक के कोडागू जिले में है. यह नदी तमिलनाडु की ओर जाती है. इसका कुछ हिस्सा केरल और पुदुचेरी में भी पड़ता है. कर्नाटक में जब-जब इस नदी पर बांध बनाने की बात छेड़ी जाती है, तमिलनाडु इसका विरोध करता है.

  • #WATCH | A group of Tamil Nadu farmers in Tiruchirappalli holding dead rats in their mouths protest against the Karnataka government and demand the release of Cauvery water to the state from Karnataka pic.twitter.com/CwQyVelyjF

    — ANI (@ANI) September 26, 2023 " class="align-text-top noRightClick twitterSection" data=" ">

ब्रिटिश काल में हुए समझौते - दोनों राज्यों के बीच 1892 और 1924 में अलग-अलग दो समझौते हुए. दोनों समझौते मद्रास प्रेसिडेंसी और मैसुरू के बीच हुए. तब कर्नाटक को मैसुरू के नाम से जाना जाता था. इसके तहत तीन चौथाई पानी मद्रास को और एक चौथाई पानी मैसुरू को मिलना तय हुआ था. ब्रिटिशकालीन इस समझौते के अनुसार कर्नाटक को 177 टीएमसी और तमिलनाडु को 556 टीएमसी पानी मिलना था. 1974 तक इसी समझौते के तहत पानी का बंटवारा होता रहा. बाद में केरल और पुदुचेरी ने भी पानी के हिस्से पर दावा ठोंका.

केंद्र की फैक्ट फाइंडिंग कमेटी - केंद्र सरकार ने 1976 में एक फैक्ट फाइंडिग कमेटी बनाई. कमेटी ने 1978 में समझौता कराने की कोशिश की. इसके तहत तमिलनाडु को 177.25 टीएमसी, कर्नाटक को 94.75 टीएमसी, केरल को पांच टीएमसी और पुदुचेरी को सात टीएमसी पानी देने की सहमति बनाई गई.

सुप्रीम कोर्ट पहुंचा तमिलनाडु - कर्नाटक इस फैसले से खुश नहीं था. उसने बांध और जलाशय बनाने की प्रक्रिया शुरू कर दी. इसके खिलाफ तमिलनाडु सुप्रीम कोर्ट पहुंचा. तमिलनाडु ने 1986 में इसके लिए एक प्राधिकरण बनाने की मांग की. 1990 में प्राधिकरण, ट्राइब्यूनल, का गठन किया गया. इसका नाम कावेरी जल प्रबंधन प्राधिकरण रखा गया. तब से ट्रिब्यूनल ही इस मामले को सुलझाता रहा है. जब भी ट्रिब्यूनल के समझौते से असहमति होती है, संबंधित पक्ष सुप्रीम कोर्ट का रूख करता रहा है.

कोर्ट ने प्राधिकरण के फैसले को सही ठहराया - ट्रिब्यूनल ने 205 टीएमसी पानी तमिलनाडु को देने का आदेश दिया. कर्नाटक इस फैसले के खिलाफ सुप्रीम कोर्ट चला गया. कोर्ट ने ट्रिब्यूनल के फैसले को सही ठहराया था. कर्नाटक का कहना था कि क्योंकि नदी उसके यहां से निकलती है और उसके जलाशय सूखे हुए हैं. किसानों को पानी की जरूरत है, बेंगलुरु में पीने के पानी का मुख्य स्रोत कावेरी है. लिहाजा, उसे अधिक मात्रा में पानी चाहिए. तमिलनाडु का पक्ष है कि पानी का बंटवारा अब तक जिस तरह से होता रहा है, वही चलता रहे. यह एक अंतरिम आदेश था.

विवाद में कई लोगों की गईं जानें - इस आदेश के बाद दोनों राज्यों के बीच मामला तूल पकड़ गया. प्राधिकरण ने इसे सुलझाने की कोशिश की. सुप्रीम कोर्ट भी प्राधिकरण के फैसले पर मुहर लगाता रहा. इसके बावजूद दोनों राज्यों के बीच कई बार ऐसे मौके आए, जब तनाव चरम पर पहुंच गया. 1991 में दोनों राज्यों के बीच हिंसा तक की नौबत आ गई थी. कर्नाटक में 23 लोगों की मौत हो गई थी. इसके बाद 2016 में भी काफी उग्र प्रदर्शन हुआ था.

2002 में प्राधिकरण ने तमिलनाडु के लिए 192 टीएमसी, कर्नाटक के लिए 270 टीएमसी, केरल के लिए 30 टीएमसी और पुदुचेरी के लिए सात टीएमसी पानी फिक्स किया. इसके बावजूद चारों राज्य इससे अंसतुष्ट दिखे. 2016 में कर्नाटक ने इस फैसले के अनुरूप पानी छोड़ने से इनकार कर दिया.

लिहाजा, 2016 में भी दोनों राज्यों के बीच तनाव था. तब तमिलनाडु ने सुप्रीम कोर्ट का रूख किया. इसका फैसला 2018 में आया. कोर्ट ने तमिलनाडु के शेयर को 14.74 टीएमसी घटा दिया. और इतना पानी कर्नाटक को ज्यादा लेने का आदेश दिया. कोर्ट ने केंद्र सरकार को कावेरी वाटर रेगुलेशन कमेटी बनाने का भी आदेश दिया था. इस कमेटी को रेगुलेशन की पूरी जवाबदेही दी गई. कर्नाटक का कहना था कि उनके जलाशय सूखे हुए हैं, लिहाजा वह अधिकतम 10 हजार क्यूसेक पानी छोड़ सकता है. कर्नाटक को 284.75 टीएमसी, तमिलनाडु को 404.25 टीएमस, केरल को 30 टीएमसी और पुदुचेरी को 7 टीएमसी पानी फिक्स किया गया.

ये भी पढ़ें : Cauvery Water Dispute: पूर्व पीएम देवगौड़ा ने बताया राज्य सरकार की नाकामी, पीएम मोदी को लिखा पत्र

Last Updated : Sep 26, 2023, 10:52 PM IST
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