नई दिल्ली : सूत्रों के मुताबिक पार्टी के वरिष्ठ नेता और सरकार दोनों ही अजय मिश्रा टेनी की तरफ से दी गई सफाई से फिलहाल संतुष्ट हैं और पार्टी बगैर साक्ष्य के एक ब्राह्मण चेहरे के खिलाफ कोई भी बड़ा कदम नहीं उठाना चाहती. बीजेपी इस पूरे मामले को जातिगत समीकरण में मोड़ने की कोशिश कर रही है, क्योंकि विपक्षी पार्टियों की तरफ से बार-बार भारतीय जनता पार्टी पर ब्राह्मणों को नजरअंदाज करने और ब्राह्मणों का बीजेपी से नाराज होने का आरोप लगाया जाता रहा है.
ऐसे में भारतीय जनता पार्टी एक और खतरा मोल नहीं लेना चाहती, यही वजह है कि आनन-फानन में बगैर साक्ष्य जुटाए और जांच की रिपोर्ट आने से पहले ही अजय मिश्रा का इस्तीफा सरकार ने नहीं मांगा है. सरकार के विश्वस्त सूत्रों का कहना है कि यदि जांच रिपोर्ट में अजय मिश्रा टेनी या उनके बेटे के घटनास्थल पर मौजूद होने का कोई भी साक्ष्य मिलता है तो पार्टी तुरंत कार्रवाई कर सकती है.
ईटीवी भारत ने इस मामले पर जानकारों की राय ली कि यह मामला उत्तर प्रदेश की राजनीति और 2022 के चुनाव पर कितना प्रभाव डालेगा? उत्तर प्रदेश के वरिष्ठ पत्रकार और चुनाव विश्लेषक योगेश मिश्रा ने ईटीवी भारत से कहा कि जिस तरह से विपक्षी पार्टियां इस मुद्दे को तूल दे रहीं हैं, उसे देखते हुए लगता है कि यह 2022 के उत्तर प्रदेश चुनाव का एक बड़ा मुद्दा होगा.
उन्होंने कहा कि इसकी कई वजह हैं. दिल्ली के बॉर्डर पर पिछले 9 महीने से किसान बैठे हुए हैं और तमाम राज्यों के गैर भाजपा शासित मुख्यमंत्री कह रहे हैं कि वह फॉर्म बिल को लागू नहीं करेंगे और इस कानून को लेकर या तो किसानो में भ्रांति है या नाराजगी है.सभी राज्यों में अलग-अलग बातें सामने आ रही है इसलिए मुझे ऐसा लगता है कि कांग्रेस पार्टी इस पूरे मुद्दे को आगामी चुनाव तक जिंदा रखेगी.
योगेश मिश्रा का कहना है कि इस मुद्दे पर अगर वह चुनाव लड़ती है, तो इससे भाजपा और कांग्रेस दोनों को फायदा होगा. भाजपा को यह फायदा है कि जो एंटी इनकंबेंसी का फोकस प्वाइंट था, वह इससे विपक्षी पार्टियों का ध्यान बटाने में सफल हो सकती है और कांग्रेस का फायदा यह है कि इस मुद्दे पर कांग्रेस कुछ हद तक रिवाइव कर सकती है, लेकिन वह इस हद तक रिवाइव नहीं करेगी कि वह बीजेपी की जगह ले ले और वह सरकार बनाने की स्थिति में आ जाए.
ऐसे में कहीं ना कहीं बीजेपी को इस मुद्दे से बहुत ज्यादा नुकसान नहीं दिख रहा. चुनाव विश्लेषक का कहना है कि यहां यह भी देखने लायक बात होगी कि यदि कांग्रेस उत्तर प्रदेश में 20- 25 सीटों तक भी रिवाइव करती है, तो यह आगे 2024 के लिए भाजपा के लिए लोकसभा चुनाव में नुकसानदय होगा और भाजपा के लिए यह एक अच्छा संकेत नहीं होगा.
उन्होंने कहा कि इस घटना को लेकर कई चीजें ऐसी हो रही है जिन्हें भाजपा सरकार नहीं मान रही है और यह चीजें मिलकर चुनाव तक इतना बड़ा मुद्दा बन सकतीं है कि इसका फायदा कांग्रेस को हो सकता है.
मिश्रा ने अजय मिश्रा टेनी का इस्तीफा नहीं मांगने पर टिप्पणी करते हुए कहा कि इसमें इस्तीफा नहीं मांगने की वजह ब्राह्मण वोट बैंक नहीं है, क्योंकि उत्तर प्रदेश में कोई भी ब्राह्मण नेता बाहुबली नेता के रूप में नहीं जाना जाता है.
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उन्होंने कहा कि यूपी में कोई ऐसा नेता नहीं है जिसकी बाहुबली के रूप में पहचान हो. उन्होंने कहा कि जितने भी यूपी में ब्रहामण नेता रहे हैं, चाहे वह कमलापति त्रिपाठी हों या नारायण दत्त तिवारी, कोई बाहुबली इमेज के नेता नहीं रहा है.
वरुण गांधी और मेनका गांधी को बीजेपी कार्यकारिणी से हटाए जाने के मुद्दे पर योगेश मिश्रा का कहना है कि बहुत दिनों से यह दोनों ही नेता बीजेपी में और असहज महसूस कर रहे थे, क्योंकि इन दोनों को ही यह लगता है कि यह फर्स्ट फैमिली के सदस्य हैं और जो फर्स्ट फैमिली को सम्मान मिलना चाहिए. वह उन्हें बीजेपी में नहीं मिल रहा था और यहां पर वह एक मिडिल फैमिली के लोग बन कर रह गए थे और रह रह कर वह पार्टी लाइन से अलग हटकर अपने विचार भी रख रहे थे. इसलिए मुझे ऐसा लगता है कि इन दोनों ही मां बेटों का रास्ता कांग्रेस की तरफ जा रहा है, क्योंकि कांग्रेस को अभी जरूरत है एक फायर ब्रांड नेता की और राहुल गांधी फायर ब्रांड लीडर नहीं है और वरुण गांधी एक फायर ब्रांड लीडर है उससे उन्हें कांग्रेस में स्पेस मिल सकती है.
भाजपा के 330 सौ सीटों के दावे पर उनका कहना है कि मेरी समझ में आने वाले दिनों में उत्तर प्रदेश में किसी भी पार्टी की बहुमत की सरकार नहीं बनती दिखाई पड़ रही. वहीं वरुण गांधी और मेनका गांधी के भारतीय जनता पार्टी की कार्यकारिणी के सदस्य से पार्टी द्वारा हटाए जाने के मुद्दे पर राजनीतिक विश्लेषक व वरिष्ठ अधिवक्ता देश रतन निगम का कहना है कि जहां तक पार्टी में यह निर्णय लिए जाते हैं वो त्वरित किसी घटना को देखकर नहीं लिए जाते. इसलिए मैं इसे लखीमपुर खीरी की घटना को जोड़ कर नहीं देखता.
लखीमपुर खीरी घटना पर उन्होंने कहा कि जब तक जांच में यह नहीं पता लगेगा उस समय की स्थिति क्या थी, क्योंकि जो वीडियो सामने आ रहे हैं. उसमें विंडस्क्रीन गाड़ी की टूटी हुई है क्या वह जान बचा कर भाग रहा था ?या उसने डर की वजह से अपना होश खो दिया? क्योंकि कोई भी व्यक्ति इस तरह गाड़ी चलाते हुए किसी को रौंद दे यह कल्पना भी बहुत भयावह है, इसलिए अभी किसी भी निष्कर्ष पर जांच के बाद ही पहुंचा जा सकता है.
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इस सवाल पर कि यह मुद्दा कब तक प्रभाव डाल सकता है उनका कहना है कि देखिए जिस तरह से यूपी सरकार ने त्वरित कार्रवाई की और किसान नेता राकेश टिकैत को ही बीच में रखकर उन्हें मुआवजा दिलवाया गया और किसान और प्रशासन के बीच समझौता हुआ. हालांकि कानूनी कार्रवाई तो होगी ही, लेकिन प्रशासन के समझाने से वहां पर किसान नेताओं ने प्रदर्शन वापस ले लिया, इसीलिए यह तमाम बातें सरकार ने बड़ी ही परिपक्वता से हैंडल की हैं.
निगम ने कहा कि यह चुनाव की वजह से पूर्व नियोजित और सुनियोजित घटना है, क्योंकि प्रदर्शनकारियों को पता था कि वहां पर डिप्टी सीएम भी आ रहे हैं और केंद्र सरकार के गृह राज्य मंत्री भी आ रहे हैं और यह सारी चीजें प्रदर्शनकारियों को भी पता थी. इसलिए आने वाले दिनों में भारतीय जनता पार्टी को भी काफी संभलकर रहने की जरूरत है, क्योंकि ऐसी बड़ी घटनाओं को साजिशन अंजाम दिया जा सकता है, लेकिन जिस तरह से विपक्षी पार्टियां किसी की मौत पर राजनीति कर रही वह कहीं ना कहीं काफी ओछी राजनीति के स्तर पर चली गई है ,तो मुझे नहीं लगता कि इसका बहुत ज्यादा फायदा विपक्षी पार्टियां उठा पाएंगे.
उन्होंने कहा कि मुझे नहीं लगता कि अजय मिश्रा टेनी के इस्तीफे लेने की जरूरत है, क्योंकि जो वीडियो सामने आ रहे हैं उनमें ना तो उनके बेटे और ना ही खुद वहां पर मौजूद थे. उन्होंने कहा कि सारी चीजों की जांच होनी चाहिए और जो निष्कर्ष निकलता है उसके आधार पर ही पार्टी को कार्रवाई करनी चाहिए. इसमें कोई दो राय नहीं है.
मेनका और वरुण के भारतीय जनता पार्टी की कार्यकारिणी से हटाए जाने के सवाल पर श्री देश रतन निगम का कहना है कि उसे इस घटना से जोड़कर नहीं देखा जाना चाहिए, क्योंकि पार्टी कोई घटना से जोड़कर कोई कार्यवाही या इस तरह के निर्णय नहीं लेती बल्कि सोच समझ कर भी कोई निर्णय लेती है और उस पर काफी दिनों बाद तक विचार के बाद ही कोई निर्णय लिया जाता है.