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आपातकाल : कब, क्यों, कैसे, कितनी बार...जानिए सबकुछ

'भाइयों और बहनों, राष्ट्रपति ने आपातकाल की घोषणा की है, इससे आतंकित होने का कोई कारण नहीं है'. 46 साल पहले 26 जून, 1975 की सुबह तत्कालीन प्रधानमंत्री इंदिरा गांधी की आवाज़ जैसे ही रेडियो पर गूंजी तो पता चला कि देश में बीती रात यानि 25 जून 1975 से आपातकाल लागू हो गया है.

emergency imposed in 1975
25 जून 1975 से आपातकाल लागू
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Published : Jun 25, 2021, 5:01 AM IST

Updated : Jun 25, 2021, 12:36 PM IST

हैदराबाद : भाइयों और बहनों, राष्ट्रपति जी ने आपातकाल की घोषणा की है, इससे आतंकित होने का कोई कारण नहीं है' 46 साल पहले 26 जून, 1975 की सुबह तत्कालीन प्रधानमंत्री इंदिरा गांधी की आवाज़ जैसे ही रेडियो पर गूंजी तो पता चला कि देश में बीती रात यानि 25 जून 1975 से आपातकाल लागू हो गया है. 25 जून, 1975 की वो रात, जो भारतीय इतिहास पर एक स्याह दाग छोड़ गई. 1975 में आज ही के दिन तत्कालीन राष्ट्रपति फखरुद्दीन अली अहमद ने तत्कालीन प्रधानमंत्री इंदिरा गांधी की सिफारिश पर आपातकाल की घोषणा की थी. जिसके बाद लोगों के लोकतांत्रिक अधिकार छीन लिए गए.

क्या होता है आपातकाल ?

आपातकाल यानि विपत्ति या संकट का काल. भारतीय संविधान में आपातकाल एक ऐसा प्रावधान है. जिसका इस्तेमाल तब होता है जब देश पर किसी आंतरिक, बाहरी या आर्थिक रूप से किसी तरह के खतरे की आशंका होती है. आपातकाल वो अवधि है जिसमें सत्ता की पूरी कमान प्रधानमंत्री के हाथ में आ जाती है. अगर राष्ट्रपति को लगता है कि देश को आंतरिक, बाहरी या आर्थिक खतरा हो सकता है तो वह आपातकाल लागू कर सकता है.

भारत के संविधान निर्माताओं ने आपातकाल मसलन देश की एकता, अखंडता और सुरक्षा खतरे में होने जैसी स्थिति को ध्यान में रखते हुए ये प्रावधान किया. जिसके तहत देश की सरकार बिना बेरोकटोक गंभीर फैसले ले सके. मान लीजिए कि हमारे देश पर कोई पड़ोसी देश हमला कर दे तो ऐसी आपात स्थिति में संविधान भारत सरकार को अधिक शक्तियां देता है, जिनके जरिये वो अपने हिसाब से फैसला ले सकती है. जबकि आपातकाल ना होने या सामान्य परिस्थिति में संसद में बिल पास कराना पड़ेगा और लोकतंत्र की परंपराओं के मुताबिक चलना होगा लेकिन आपातकाल लगने पर सरकार अपनी तरफ से कोई भी फैसला ले सकती है.

संविधान में तीन तरह के आपातकाल का जिक्र

1. राष्ट्रीय आपातकाल (अनुच्छेद 352) (National Emergency)

25 जून 1975 की रात को लगा आपातकाल इसी अनुच्छेद 352 के तहत लगाया गया. देश में राष्ट्रीय आपातकाल या नेशनल इमरजेंसी का ऐलान देश की सुरक्षा को ध्यान में रखते हुए किया जाता है जैसे युद्ध या बाहरी आक्रमण की स्थिति में. देश में आपातकाल केंद्रीय कैबिनेट की सिफारिश पर राष्ट्रपति द्वारा लागू किया जाता है. अनुच्छेद 352 के तहत आपातकाल के दौरान सरकार को असीमित अधिकार मिलते हैं लेकिन देश के नागरिकों के वो मौलिक अधिकार छीन लिए जाते हैं, जो उन्हें देश का संविधान ही देता है.

2. राष्ट्रपति शासन (अनुच्छेद 356) (President's Rule)

राष्ट्रपति शासन के बारे में आपने कई बार सुना होगा और अब तक देश के कई राज्य राष्ट्रपति शासन के गवाह भी बन चुके हैं. किसी राज्य में राजनीतिक व्यवस्था और संवैधानिक व्यवस्था फेल होने पर भारतीय संविधान के अनुच्छेद 356 के तहत राष्ट्रपति आपात स्थिति का ऐलान करते हैं. यानि कोई राज्य सरकार संविधान के मुताबिक काम नहीं कर रही हो तो इस अनुच्छेद के तहत राष्ट्रपति उस राज्य में राष्ट्रपति शासन लगा सकते हैं, इस स्थिति (राष्ट्रपति शासन) में राज्य के सिर्फ न्यायिक कार्यों को छोड़ सभी राज्य प्रशासन से जुड़े अधिकार केंद्र के पास आ जाते हैं.

किसी राज्य का नियंत्रण एक निर्वाचित मुख्यमंत्री की बजाय देश के राष्ट्रपति के अधीन आने के कारण इसे राष्ट्रपति शासन कहते हैं. इस दौरान राज्य के राज्यपाल को कार्यकारी अधिकार मिलते हैं.

3. आर्थिक आपातकाल (अनुच्छेद 360) (Economic Emergency)

देश के संविधान में आर्थिक आपातकाल का भी जिक्र है. अनुच्छेद 360 के तहत राष्ट्रपति आर्थिक आपातकाल की घोषणा देश पर मंडरा रहे आर्थिक संकट के दौरान कर सकते हैं. हालांकि देश में अब तक कभी भी आर्थिक आपातकाल लागू नहीं हुआ है लेकिन संविधान राष्ट्रपति को ये शक्ति देता है कि कि अर्थव्यवस्था चौपट होने की कगार या सरकार दिवालिया होने की कगार पर हो तो अनुच्छेद 360 का इस्तेमाल किया जा सकता है. ऐसी स्थिति में नागिरकों की धन संपत्ति पर देश का अधिकार होता है.

अब तक देश में 3 बार लग चुका है आपातकाल

1. 26 अक्टूबर 1962: भारत में इंदिरा गांधी के लगाए गए आपातकाल को याद किया जाता है लेकिन देश में पहला आपातकाल उससे भी 13 साल पहले तब लगाया गया था जब भारत और चीन के बीच युद्ध हुआ था. यहां पर युद्ध और देश की सुरक्षा को ध्यान में रखते हुए आपातकाल लगाया गया था. इस पहले आपातकाल की समाप्ति 10 जनवरी 1968 को हुई.

2. 3 दिसंबर 1971: भारत-पाकिस्तान युद्ध के समय भी देश में आपातकाल लगा था. युद्ध और देश की सुरक्षा को ध्यान में रखते हुए एक बार फिर देश में इमरजेंसी लगाई गई थी.

3. 25 जून 1975: तत्कालीन प्रधानमंत्री इंदिरा गांधी के राज में लगे इस आपातकाल के लिए देश में आंतरिक अशांति का हवाला दिया जाता है कि लेकिन इतिहास के पन्नों में इस एक निजी स्वार्थ का दर्जा दिया जाता है.

ये भी पढ़ें: 25 जून 1975...जिसके बाद जेल बन गया था हरियाणा!

इंदिरा के आपातकाल की मुख्य वजह

कहते हैं कि 25 जून 1975 को लगाए गए आपातकाल की स्क्रिप्ट 12 जून 1975 को ही लिखी जा चुकी थी और इसकी पृष्ठभूमि 1971 के लोकसभा चुनाव में रायबरेली सीट के नतीजे थे. जिस रायबरेली सीट से कांग्रेस अध्यक्ष सोनिया गांधी सांसद है, उसी सीट से 1971 के आम चुनाव में पूर्व प्रधानमंत्री इंदिरा गांधी संसद पहुंची थी और नतीजों के मुताबिक उन्होंने संयुक्त सोशलिस्ट पार्टी के राजनारायण को भारी अंतर से हराया था.

नतीजों के मुताबिक इंदिरा गांधी को 1.83 लाख और राजनारायण को करीब 71,000 वोट मिले थे. लेकिन राजनारायण फैसले को लेकर अदालत पहुंच गए और इंदिरा गांधी पर सरकारी शक्तियों के दुरुपयोग कर चुनाव जीतने का आरोप लगा दिया. इस मामले में प्रधानमंत्री रहते हुए इंदिरा गांधी को कोर्ट में भी पेश होना पड़ा था. 12 जून 1975 को इलाहबाद हाईकोर्ट ने इंदिरा गांधी को रायबरेली सीट पर चुनाव अभियान में सरकारी मशीनरी के दुरुपयोग का दोषी पाया और चुनाव खारिज कर उन्हें अयोग्य घोषित करने के साथ-साथ 6 साल तक चुनाव लड़ने पर प्रतिबंध लगा दिया. इसके बाद इंदिरा सुप्रीम कोर्ट की शरण में गई जहां उन्हें सिर्फ पीएम की कुर्सी पर बने रहने की राहत मिली.

कुछ और भी वजहें थी इंदिरा के आपातकाल की

- इंदिरा गांधी सरकार के खिलाफ कई नेता सड़कों पर उतर चुके थे, खासकर जयप्रकाश नारायण इंदिरा सरकार के खिलाफ बड़े स्तर पर रैलियां कर रहे थे और उन्हें जनसमर्थन भी मिल रहा था.

-इलाहबाद हाईकोर्ट के फैसले के बाद विरोधी इंदिरा का इस्तीफा मांगने लगे. जेपी ने 25 जून, 1975 को सत्याग्रह और रैली का ऐलान किया था. यही वजह है कि आपातकाल के दौरान सबसे पहले हुई विरोधी नेताओं की गिरफ्तारी में उनका नाम भी शुमार था.

- इंदिरा गांधी को शक था कि उन्हें पद से हटाने के लिए अमेरिकी एजेंसी के कारण देश के अंदर ये माहौल पैदा हुआ है. कहते हैं कि तत्कालीन अमेरिकी राष्ट्रपति रिचर्ड निक्सन से भी इंदिरा गांधी की कुछ खास नहीं बनती थी और उन्हें डर था कि अमेरिका सीआईए की मदद से उनकी सरकार का भी तख्ता ना पलट दे जैसा कि उस वक्त चिली में हुआ था.

-कुछ जानकार मानते हैं कि 1971 में भारत पाकिस्तान के खिलाफ युद्ध तो जीत गया लेकिन फिर देश की विकास की रफ्तार सुस्त हो गई. देश में सूखा, बेरोजगारी समेत तमाम मसलों के कारण अर्थव्यवस्था का भी हाल कुछ ठीक नहीं था. जिसके कारण मजदूरों से लेकर छात्रों और युवाओं समेत हर वर्ग में सरकार के खिलाफ रोष था. देशभर में हड़तालों का दौर था. यही वजह है कि विरोधी नेताओं के सरकार के खिलाफ विरोध को भारी जन समर्थन मिल रहा था जो इंदिरा सरकार के लिए खतरे की घंटी थी.

21 महीने चला आपातकाल

कहते हैं कि कोर्ट के फैसले से लेकर सियासी मोर्चे पर विरोध और अंतरराष्ट्रीय दखल के शक के बावजूद इंदिरा गांधी कुर्सी छोड़ने को तैयार नहीं थी. इंदिरा गांधी के बेटे संजय गांधी को कतई नहीं चाहते थे कि उनकी मां के हाथ से सत्ता चली जाए. जिसके बाद इंदिरा गांधी ने ऐसा रास्ता निकाला जिसने देश को 21 महीने के आपातकाल की तरफ धकेल दिया. 25 जून 1975 को लगाया गया आपातकाल 21 मार्च 1977 तक चला.

आपातकाल के दौर में क्या-क्या हुआ

-आपातकाल के दौरान नागरिकों के मौलिक अधिकार छीन लिए गए. सरकार का विरोध करने पर सलाखों के पीछे डाल दिया गया. सरकार के इस कदम के खिलाफ कोर्ट में जाने का अधिकार भी किसी के पास नहीं था.

- आपातकाल का विरोध करने वाले जेपी, जॉर्ज फर्नांडिंस, मोरारजी देसाई, अटल बिहारी वाजपेयी, लाल कृष्ण आडवाणी, शरद यादव, लालू प्रसाद यादव, मुलायम सिंह, जैसे तमाम विरोधी नेताओं को जेल में डाल दिया गया. आंकड़ों के मुताबिक आपातकाल के दौरान 1 लाख 10 हजार लोगों को गिरफ्तार कर जेल में डाला गया.

- तत्कालीन प्रधानमंत्री इंदिरा गांधी के बेटे संजय गांधी ने परिवार नियोजन के नाम पर जबरन नसबंदी अभियान चलाया.

- मीडिया पर सेंसरशिप लगा दी गई जिसके तहत सरकार के खिलाफ खबर छापना जुर्म जैसा था. विदेशी मीडिया से जुड़े संवाददाताओं को भी निर्वासित कर दिया गया. आपातकाल विरोधी सामग्री का प्रसारण करने वाले कई मीडियाकर्मियों की गिरफ्तारी भी हुई.

फिर जनता ने लिया आपातकाल का बदला

21 मार्च 1977 को आपातकाल खत्म हुआ जिसके बाद फिर से आम चुनावों की घोषणा हुई और इंदिरा गांधी की अगुवाई वाली कांग्रेस को बड़ी हार झेलनी पड़ी. 1971 के लोकसभा चुनाव में 352 सीटें जीतकर सत्ता पर काबिज हुई कांग्रेस 1977 के आम चुनावों में 154 सीटों पर सिमट गई. जानकार मानते हैं कि जनता ने इंदिरा से आपातकाल का बदला लिया और यही वजह थी कि प्रधानमंत्री इंदिरा गांधी भी रायबरेली से अपनी सीट नहीं बचा पाई और संजय गांधी भी अमेठी से हार गए.

1977 के लोकसभा चुनावों में जेपी की अगुवाई वाली जनता पार्टी गठबंधन बहुमत में आया. देश में पहली बार गैर कांग्रेसी सरकार बनी और पहले गैर कांग्रेसी प्रधानमंत्री के रूप में अब तक के सबसे उम्रदराज प्रधानमंत्री के रूप में मोरारजी देसाई ने शपथ ली.

पढ़ें: 'इमरजेंसी की वो वजहें आज भी हैं मौजूद'

आपातकाल पर सियासत

आपातकाल का वो दौर गुजरे करीब 5 दशक का वक्त बीत चुका है लेकिन उस दौर पर सियासत लगातार जारी है. विरोधी दल कांग्रेस को हर बार आपातकाल को लेकर घेरते हैं. आपातकाल का मुद्दा चुनावी रैलियों में भी कांग्रेस के विरोधी खूब भुनाते हैं. आपातकाल के दौरान जेल में रहे नेता उस दौर को याद करते हुए उसे भारतीय इतिहास और लोकतंत्र का काला अध्याय बताते हैं.

केंद्र के साथ कई राज्यों में आज बीजेपी की सरकार है. आपातकाल के दौरान जेल में रहने वाले लोगों को सरकार की तरफ से पेंशन तक का प्रावधान किया गया है. कुल मिलाकर सियासत उस आपातकाल को अपने फायदे लिए इस्तेमाल करती रही है और आगे भी करती रहेगी. लेकिन आपातकाल एक सबक है कि अपने स्वार्थ के लिए शक्तियों का दुरुपयोग करने वालों को जनता सबक सिखाती है. भारत ही नहीं बल्कि दुनियाभर में इसकी कई मिसालें हैं.

ये भी पढ़ें: आज ही के दिन 46 साल पहले लगाया गया था आपातकाल

हैदराबाद : भाइयों और बहनों, राष्ट्रपति जी ने आपातकाल की घोषणा की है, इससे आतंकित होने का कोई कारण नहीं है' 46 साल पहले 26 जून, 1975 की सुबह तत्कालीन प्रधानमंत्री इंदिरा गांधी की आवाज़ जैसे ही रेडियो पर गूंजी तो पता चला कि देश में बीती रात यानि 25 जून 1975 से आपातकाल लागू हो गया है. 25 जून, 1975 की वो रात, जो भारतीय इतिहास पर एक स्याह दाग छोड़ गई. 1975 में आज ही के दिन तत्कालीन राष्ट्रपति फखरुद्दीन अली अहमद ने तत्कालीन प्रधानमंत्री इंदिरा गांधी की सिफारिश पर आपातकाल की घोषणा की थी. जिसके बाद लोगों के लोकतांत्रिक अधिकार छीन लिए गए.

क्या होता है आपातकाल ?

आपातकाल यानि विपत्ति या संकट का काल. भारतीय संविधान में आपातकाल एक ऐसा प्रावधान है. जिसका इस्तेमाल तब होता है जब देश पर किसी आंतरिक, बाहरी या आर्थिक रूप से किसी तरह के खतरे की आशंका होती है. आपातकाल वो अवधि है जिसमें सत्ता की पूरी कमान प्रधानमंत्री के हाथ में आ जाती है. अगर राष्ट्रपति को लगता है कि देश को आंतरिक, बाहरी या आर्थिक खतरा हो सकता है तो वह आपातकाल लागू कर सकता है.

भारत के संविधान निर्माताओं ने आपातकाल मसलन देश की एकता, अखंडता और सुरक्षा खतरे में होने जैसी स्थिति को ध्यान में रखते हुए ये प्रावधान किया. जिसके तहत देश की सरकार बिना बेरोकटोक गंभीर फैसले ले सके. मान लीजिए कि हमारे देश पर कोई पड़ोसी देश हमला कर दे तो ऐसी आपात स्थिति में संविधान भारत सरकार को अधिक शक्तियां देता है, जिनके जरिये वो अपने हिसाब से फैसला ले सकती है. जबकि आपातकाल ना होने या सामान्य परिस्थिति में संसद में बिल पास कराना पड़ेगा और लोकतंत्र की परंपराओं के मुताबिक चलना होगा लेकिन आपातकाल लगने पर सरकार अपनी तरफ से कोई भी फैसला ले सकती है.

संविधान में तीन तरह के आपातकाल का जिक्र

1. राष्ट्रीय आपातकाल (अनुच्छेद 352) (National Emergency)

25 जून 1975 की रात को लगा आपातकाल इसी अनुच्छेद 352 के तहत लगाया गया. देश में राष्ट्रीय आपातकाल या नेशनल इमरजेंसी का ऐलान देश की सुरक्षा को ध्यान में रखते हुए किया जाता है जैसे युद्ध या बाहरी आक्रमण की स्थिति में. देश में आपातकाल केंद्रीय कैबिनेट की सिफारिश पर राष्ट्रपति द्वारा लागू किया जाता है. अनुच्छेद 352 के तहत आपातकाल के दौरान सरकार को असीमित अधिकार मिलते हैं लेकिन देश के नागरिकों के वो मौलिक अधिकार छीन लिए जाते हैं, जो उन्हें देश का संविधान ही देता है.

2. राष्ट्रपति शासन (अनुच्छेद 356) (President's Rule)

राष्ट्रपति शासन के बारे में आपने कई बार सुना होगा और अब तक देश के कई राज्य राष्ट्रपति शासन के गवाह भी बन चुके हैं. किसी राज्य में राजनीतिक व्यवस्था और संवैधानिक व्यवस्था फेल होने पर भारतीय संविधान के अनुच्छेद 356 के तहत राष्ट्रपति आपात स्थिति का ऐलान करते हैं. यानि कोई राज्य सरकार संविधान के मुताबिक काम नहीं कर रही हो तो इस अनुच्छेद के तहत राष्ट्रपति उस राज्य में राष्ट्रपति शासन लगा सकते हैं, इस स्थिति (राष्ट्रपति शासन) में राज्य के सिर्फ न्यायिक कार्यों को छोड़ सभी राज्य प्रशासन से जुड़े अधिकार केंद्र के पास आ जाते हैं.

किसी राज्य का नियंत्रण एक निर्वाचित मुख्यमंत्री की बजाय देश के राष्ट्रपति के अधीन आने के कारण इसे राष्ट्रपति शासन कहते हैं. इस दौरान राज्य के राज्यपाल को कार्यकारी अधिकार मिलते हैं.

3. आर्थिक आपातकाल (अनुच्छेद 360) (Economic Emergency)

देश के संविधान में आर्थिक आपातकाल का भी जिक्र है. अनुच्छेद 360 के तहत राष्ट्रपति आर्थिक आपातकाल की घोषणा देश पर मंडरा रहे आर्थिक संकट के दौरान कर सकते हैं. हालांकि देश में अब तक कभी भी आर्थिक आपातकाल लागू नहीं हुआ है लेकिन संविधान राष्ट्रपति को ये शक्ति देता है कि कि अर्थव्यवस्था चौपट होने की कगार या सरकार दिवालिया होने की कगार पर हो तो अनुच्छेद 360 का इस्तेमाल किया जा सकता है. ऐसी स्थिति में नागिरकों की धन संपत्ति पर देश का अधिकार होता है.

अब तक देश में 3 बार लग चुका है आपातकाल

1. 26 अक्टूबर 1962: भारत में इंदिरा गांधी के लगाए गए आपातकाल को याद किया जाता है लेकिन देश में पहला आपातकाल उससे भी 13 साल पहले तब लगाया गया था जब भारत और चीन के बीच युद्ध हुआ था. यहां पर युद्ध और देश की सुरक्षा को ध्यान में रखते हुए आपातकाल लगाया गया था. इस पहले आपातकाल की समाप्ति 10 जनवरी 1968 को हुई.

2. 3 दिसंबर 1971: भारत-पाकिस्तान युद्ध के समय भी देश में आपातकाल लगा था. युद्ध और देश की सुरक्षा को ध्यान में रखते हुए एक बार फिर देश में इमरजेंसी लगाई गई थी.

3. 25 जून 1975: तत्कालीन प्रधानमंत्री इंदिरा गांधी के राज में लगे इस आपातकाल के लिए देश में आंतरिक अशांति का हवाला दिया जाता है कि लेकिन इतिहास के पन्नों में इस एक निजी स्वार्थ का दर्जा दिया जाता है.

ये भी पढ़ें: 25 जून 1975...जिसके बाद जेल बन गया था हरियाणा!

इंदिरा के आपातकाल की मुख्य वजह

कहते हैं कि 25 जून 1975 को लगाए गए आपातकाल की स्क्रिप्ट 12 जून 1975 को ही लिखी जा चुकी थी और इसकी पृष्ठभूमि 1971 के लोकसभा चुनाव में रायबरेली सीट के नतीजे थे. जिस रायबरेली सीट से कांग्रेस अध्यक्ष सोनिया गांधी सांसद है, उसी सीट से 1971 के आम चुनाव में पूर्व प्रधानमंत्री इंदिरा गांधी संसद पहुंची थी और नतीजों के मुताबिक उन्होंने संयुक्त सोशलिस्ट पार्टी के राजनारायण को भारी अंतर से हराया था.

नतीजों के मुताबिक इंदिरा गांधी को 1.83 लाख और राजनारायण को करीब 71,000 वोट मिले थे. लेकिन राजनारायण फैसले को लेकर अदालत पहुंच गए और इंदिरा गांधी पर सरकारी शक्तियों के दुरुपयोग कर चुनाव जीतने का आरोप लगा दिया. इस मामले में प्रधानमंत्री रहते हुए इंदिरा गांधी को कोर्ट में भी पेश होना पड़ा था. 12 जून 1975 को इलाहबाद हाईकोर्ट ने इंदिरा गांधी को रायबरेली सीट पर चुनाव अभियान में सरकारी मशीनरी के दुरुपयोग का दोषी पाया और चुनाव खारिज कर उन्हें अयोग्य घोषित करने के साथ-साथ 6 साल तक चुनाव लड़ने पर प्रतिबंध लगा दिया. इसके बाद इंदिरा सुप्रीम कोर्ट की शरण में गई जहां उन्हें सिर्फ पीएम की कुर्सी पर बने रहने की राहत मिली.

कुछ और भी वजहें थी इंदिरा के आपातकाल की

- इंदिरा गांधी सरकार के खिलाफ कई नेता सड़कों पर उतर चुके थे, खासकर जयप्रकाश नारायण इंदिरा सरकार के खिलाफ बड़े स्तर पर रैलियां कर रहे थे और उन्हें जनसमर्थन भी मिल रहा था.

-इलाहबाद हाईकोर्ट के फैसले के बाद विरोधी इंदिरा का इस्तीफा मांगने लगे. जेपी ने 25 जून, 1975 को सत्याग्रह और रैली का ऐलान किया था. यही वजह है कि आपातकाल के दौरान सबसे पहले हुई विरोधी नेताओं की गिरफ्तारी में उनका नाम भी शुमार था.

- इंदिरा गांधी को शक था कि उन्हें पद से हटाने के लिए अमेरिकी एजेंसी के कारण देश के अंदर ये माहौल पैदा हुआ है. कहते हैं कि तत्कालीन अमेरिकी राष्ट्रपति रिचर्ड निक्सन से भी इंदिरा गांधी की कुछ खास नहीं बनती थी और उन्हें डर था कि अमेरिका सीआईए की मदद से उनकी सरकार का भी तख्ता ना पलट दे जैसा कि उस वक्त चिली में हुआ था.

-कुछ जानकार मानते हैं कि 1971 में भारत पाकिस्तान के खिलाफ युद्ध तो जीत गया लेकिन फिर देश की विकास की रफ्तार सुस्त हो गई. देश में सूखा, बेरोजगारी समेत तमाम मसलों के कारण अर्थव्यवस्था का भी हाल कुछ ठीक नहीं था. जिसके कारण मजदूरों से लेकर छात्रों और युवाओं समेत हर वर्ग में सरकार के खिलाफ रोष था. देशभर में हड़तालों का दौर था. यही वजह है कि विरोधी नेताओं के सरकार के खिलाफ विरोध को भारी जन समर्थन मिल रहा था जो इंदिरा सरकार के लिए खतरे की घंटी थी.

21 महीने चला आपातकाल

कहते हैं कि कोर्ट के फैसले से लेकर सियासी मोर्चे पर विरोध और अंतरराष्ट्रीय दखल के शक के बावजूद इंदिरा गांधी कुर्सी छोड़ने को तैयार नहीं थी. इंदिरा गांधी के बेटे संजय गांधी को कतई नहीं चाहते थे कि उनकी मां के हाथ से सत्ता चली जाए. जिसके बाद इंदिरा गांधी ने ऐसा रास्ता निकाला जिसने देश को 21 महीने के आपातकाल की तरफ धकेल दिया. 25 जून 1975 को लगाया गया आपातकाल 21 मार्च 1977 तक चला.

आपातकाल के दौर में क्या-क्या हुआ

-आपातकाल के दौरान नागरिकों के मौलिक अधिकार छीन लिए गए. सरकार का विरोध करने पर सलाखों के पीछे डाल दिया गया. सरकार के इस कदम के खिलाफ कोर्ट में जाने का अधिकार भी किसी के पास नहीं था.

- आपातकाल का विरोध करने वाले जेपी, जॉर्ज फर्नांडिंस, मोरारजी देसाई, अटल बिहारी वाजपेयी, लाल कृष्ण आडवाणी, शरद यादव, लालू प्रसाद यादव, मुलायम सिंह, जैसे तमाम विरोधी नेताओं को जेल में डाल दिया गया. आंकड़ों के मुताबिक आपातकाल के दौरान 1 लाख 10 हजार लोगों को गिरफ्तार कर जेल में डाला गया.

- तत्कालीन प्रधानमंत्री इंदिरा गांधी के बेटे संजय गांधी ने परिवार नियोजन के नाम पर जबरन नसबंदी अभियान चलाया.

- मीडिया पर सेंसरशिप लगा दी गई जिसके तहत सरकार के खिलाफ खबर छापना जुर्म जैसा था. विदेशी मीडिया से जुड़े संवाददाताओं को भी निर्वासित कर दिया गया. आपातकाल विरोधी सामग्री का प्रसारण करने वाले कई मीडियाकर्मियों की गिरफ्तारी भी हुई.

फिर जनता ने लिया आपातकाल का बदला

21 मार्च 1977 को आपातकाल खत्म हुआ जिसके बाद फिर से आम चुनावों की घोषणा हुई और इंदिरा गांधी की अगुवाई वाली कांग्रेस को बड़ी हार झेलनी पड़ी. 1971 के लोकसभा चुनाव में 352 सीटें जीतकर सत्ता पर काबिज हुई कांग्रेस 1977 के आम चुनावों में 154 सीटों पर सिमट गई. जानकार मानते हैं कि जनता ने इंदिरा से आपातकाल का बदला लिया और यही वजह थी कि प्रधानमंत्री इंदिरा गांधी भी रायबरेली से अपनी सीट नहीं बचा पाई और संजय गांधी भी अमेठी से हार गए.

1977 के लोकसभा चुनावों में जेपी की अगुवाई वाली जनता पार्टी गठबंधन बहुमत में आया. देश में पहली बार गैर कांग्रेसी सरकार बनी और पहले गैर कांग्रेसी प्रधानमंत्री के रूप में अब तक के सबसे उम्रदराज प्रधानमंत्री के रूप में मोरारजी देसाई ने शपथ ली.

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आपातकाल पर सियासत

आपातकाल का वो दौर गुजरे करीब 5 दशक का वक्त बीत चुका है लेकिन उस दौर पर सियासत लगातार जारी है. विरोधी दल कांग्रेस को हर बार आपातकाल को लेकर घेरते हैं. आपातकाल का मुद्दा चुनावी रैलियों में भी कांग्रेस के विरोधी खूब भुनाते हैं. आपातकाल के दौरान जेल में रहे नेता उस दौर को याद करते हुए उसे भारतीय इतिहास और लोकतंत्र का काला अध्याय बताते हैं.

केंद्र के साथ कई राज्यों में आज बीजेपी की सरकार है. आपातकाल के दौरान जेल में रहने वाले लोगों को सरकार की तरफ से पेंशन तक का प्रावधान किया गया है. कुल मिलाकर सियासत उस आपातकाल को अपने फायदे लिए इस्तेमाल करती रही है और आगे भी करती रहेगी. लेकिन आपातकाल एक सबक है कि अपने स्वार्थ के लिए शक्तियों का दुरुपयोग करने वालों को जनता सबक सिखाती है. भारत ही नहीं बल्कि दुनियाभर में इसकी कई मिसालें हैं.

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Last Updated : Jun 25, 2021, 12:36 PM IST
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