ETV Bharat / bharat

इलेक्टोरल बॉन्ड पर क्यों छिड़ी बहस, आसान भाषा में समझें -

पांच राज्यों में विधानसभा चुनाव से ठीक पहले एक बार फिर से इलेक्टोरल बॉन्ड की चर्चा तेज हो गई है. कई राजनीतिक पार्टियों ने इस पर रोक लगाए जाने की मांग की है. सुप्रीम कोर्ट 24 मार्च को इससे संबंधित एक याचिका पर सुनवाई करेगी. चुनाव आयोग को बॉन्ड पर आपत्ति नहीं है, लेकिन उसने इसकी पारदर्शिता पर बड़े सवाल उठाए हैं. क्या है सरकार का पक्ष, पूरी खबर समझने के लिए पढ़ें.

Etv Bharat
कॉन्सेप्ट फोटो (इलेक्टोरल बॉन्ड)
author img

By

Published : Mar 20, 2021, 6:01 AM IST

हैदराबाद : विधानसभा चुनाव से पहले चुनावी बॉन्ड पर फिर से बहस छिड़ गई है. मोदी सरकार का दावा है कि बॉन्ड की प्रक्रिया अपनाने से राजनीतिक दलों को सहूलियत होगी. वहीं विपक्षी दलों का दावा है कि इससे ब्लैक मनी को और अधिक बढ़ावा मिलेगा. उनका कहना है कि बॉन्ड की प्रक्रिया इस तरह से बनाई गई है, जिससे भाजपा को फायदा पहुंचे. कौन है चंदा देने वाला, उनके नामों का खुलासा नहीं किया जा सकता है.

चुनावी बॉन्ड के खिलाफ दाखिल हुई याचिका

इलेक्टोरल बॉन्ड पर रोक लगाने के लिए 2017 में एक याचिका लगाई गई है. सुप्रीम कोर्ट 24 मार्च को इस पर सुनवाई करेगी. याचिका सीपीआई (एम), गैर सरकारी संगठन कॉमन कॉज, एसोसिएशन फॉर डेमोक्रेटिक रिफॉर्म्स (एडीआर) की ओर से दाखिल की गई है.

वित्त विधेयक 2017 को मिली चुनौती

याचिका में वित्त विधेयक 2017 को चुनौती दी गई है. इलेक्टोरल बॉन्ड इस विधेयक के साथ ही संलग्न था. इलेक्टोरल बॉन्ड के लिए कंपनी एक्ट, इनकम टैक्स एक्ट, लोकप्रतिनिधि एक्ट, फॉरेन कंट्रीब्यूशन रेगुलेशन एक्ट में संशोधन किया गया था.

याचिकाकर्ता की दलील

कंपनी एक्ट में संशोधन करने से कंपनियों के हितों को प्राथमिकता मिलेगी. आम लोगों की जरूरतें पीछे रह जाएंगी.

अब तक सुनवाई में क्या हुआ

लोकसभा चुनाव 2019 के पहले इस याचिका पर सुनवाई हुई थी. हालांकि, तब तक बॉन्ड खरीदे जाने की प्रक्रिया शुरू हो चुकी थी. तीन जजों की बेंच ने सुनवाई की थी. तत्कालीन मुख्य न्यायाधीश रंजन गोगोई, जस्टिस दीपक गुप्ता और जस्टिस संजीव खन्ना इस बेंच में शामिल थे. बेंच ने राजनीतिक पार्टियों से 30 मई 2019 तक जवाब मांगा था. चुनाव आयोग पहले ही अपना शपथ पत्र दाखिल कर चुका है. आयोग को बॉन्ड पर आपत्ति नहीं है, लेकिन इसकी पारदर्शिता को लेकर महत्वपूर्ण सवाल उठाए हैं.

क्या है केंद्रीय सूचना आयोग का पक्ष

केंद्रीय सूचना आयोग ने माना कि राजनीतिक दलों के नामों का खुलासा, जिनका योगदान चुनावी बॉन्ड और उसके तहत किया जाता है, सार्वजनिक हित में नहीं है.

इलेक्टोरल या चुनावी बॉन्ड क्या है

इलेक्टोरल बॉन्ड या चुनावी बॉन्ड एक वचन पत्र की तरह है. इसे भारतीय स्टेट बैंक की चुनिंदा शाखाओं से खरीदा जा सकता है. कोई भी व्यक्ति या कंपनी इसे खरीद सकती है. वे अपनी पंसद की राजनीतिक पार्टियों को योगदान कर सकते हैं. यह ब्याज मुक्त होता है. इन बॉन्ड को डिजिटल या चेक के माध्यम से खरीदने की अनुमति है.

कब पारित हुआ था विधेयक

चुनावी बॉन्ड को वित्त विधेयक 2017 के साथ पेश किया गया था. 29 जनवरी 2018 को एनडीए सरकार ने इसे अधिसूचित किया था.

चुनावी बॉन्ड का उपयोग करना कितना आसान

इलेक्टोरल बॉन्ड का उपयोग करना काफी सरल है. बॉन्ड हजार रुपये के मल्टीपल्स में उपलब्ध हैं. एक हजार, दस हजार, एक लाख और एक करोड़ का. एसबीआई की चुनिंदा शाखा से कोई भी ग्राहक खरीद सकता है, बशर्ते उसका केवाईसी वेरिफाइड हो चुका हो. खरीदने के बाद वह किसी भी राजनीतिक पार्टी को चंदा दे सकता है. चंदा प्राप्त करने वाली पार्टी चुनाव आयोग द्वारा सत्यापित खाते में जमा कराएगी. बॉन्ड की मान्यता मात्र 15 दिनों की होगी.

कहां से खरीद सकते हैं बॉन्ड

नई दिल्ली, गांधीनगर, चंडीगढ़, बेंगलुरु, भोपाल, मुंबई, जयपुर, लखनऊ, चेन्नई, कोलकाता और गुवाहाटी के चुनिंदा एसबीआई बैंक में बॉन्ड खरीदा जा सकता है.

बॉन्ड खरीदने का समय

जनवरी, अप्रैल, जुलाई और अक्टूबर महीने में पहली तारीख से लेकर10वीं तारीख के बीच.

कौन-कौन सी पार्टियां खरीद सकती हैं बॉन्ड

लोक प्रतिनिधित्व अधिनियम 1951की धारा 29 ए के तहत सभी पंजीकृत पार्टियां जिसने हाल के आम चुनाव या विधानसभा चुनाव में कम से कम एक फीसदी मत हासिल किए हैं, वे सभी इलेक्ट्रोरल बॉन्ड की हकदार हैं. चुनाव आयोग इन पार्टियों को एक अकाउंट नंबर देगा. चुनावी बॉन्ड इसके जरिए ही प्राप्त किए जा सकते हैं.

बॉन्ड पर किसी का नाम लिखा नहीं होगा

इलेक्टोरल बॉन्ड पर प्रदाता का नाम उल्लिखित नहीं होगा. राजनीतिक दल इनकी पहचान के बारे में नहीं जान पाएंगे. धन प्रदाता टैक्स का लाभ उठा सकते हैं, बशर्ते पार्टियों ने अपना रिटर्न दाखिल किया हो.

पारदर्शिता है मुख्य लक्ष्य

विशेषज्ञों की राय है कि बॉन्ड की शुरुआत पारदर्शिता बरतने के लिए की गई है. ऐसे में उसका विवरण सार्वजनिक नहीं किया जाना चाहिए. शेयरहोल्डर्स को भी इसके बारे में पता नहीं होगा. मतदाताओं को भी जानकारी नहीं होगी कि किस पार्टी को किसने पैसा दिया है.

क्यों हो रहा है विरोध

विरोध करने वाले बताते हैं कि नाम सार्वजनिक नहीं किए जाने से ब्लैक मनी की आवक बढ़ जाएगी. स्कीम बड़े कॉरपोरेट को फायदा पहुंचाने के उद्देश्य से लाई गई है. बॉन्ड खरीदने वाली कंपनियां अपना नाम सार्वजनिक करने से बचना चाहती हैं. धन प्रदाता का नाम सामने नहीं लाना प्रजातांत्रिक भावना पर चोट पहुंचाती है.

पहले के कानून में क्या थे प्रावधान

  • कंपनी एक्ट के तहत विदेशी कंपनियां राजनीतिक पार्टी को चंदा नहीं दे सकती थी.
  • कंपनी एक्ट की धारा 182 के तहत कोई भी कंपनी पिछले तीन सालों में औसत लाभ का अधिकतम 7.5 फीसदी ही चंदा दे सकती थी.
  • कंपनी को वार्षिक बयान में इसका खुलासा करना होता था, उसने किस पार्टी को चंदा दिया है.
  • सरकार ने वित्तीय बिल में संशोधन कर इलेक्टोरल बॉन्ड के मामले में इन प्रावधानों को हटा दिया.
  • अब भारतीय, विदेशी और शेल कंपनी भी राजनीतिक पार्टियों को योगदान दे सकती हैं और वह भी बिना बताए.

चुनाव आयोग की राय

10 अप्रैल 2019 को चुनाव आयोग ने सुप्रीम कोर्ट में बताया कि वह इलेक्टोरल बॉन्ड के खिलाफ नहीं है. लेकिन नाम सार्वजनिक नहीं किए जाने पर आयोग ने सहमति नहीं दी थी. आयोग पारदर्शिता के पक्ष में है. आयोग की ओर से पेश हुए वरिष्ठ वकील राकेश द्विवेदी ने इसकी पुष्टि की.

क्या कहता है आरबीआई

मीडिया रिपोर्ट के मुताबिक आरबीआई ने यह माना कि इस व्यवस्था से मनी लॉन्ड्रिंग बढ़ेगा. भारतीय नोट पर विश्वास कम हो सकता है.

हैदराबाद : विधानसभा चुनाव से पहले चुनावी बॉन्ड पर फिर से बहस छिड़ गई है. मोदी सरकार का दावा है कि बॉन्ड की प्रक्रिया अपनाने से राजनीतिक दलों को सहूलियत होगी. वहीं विपक्षी दलों का दावा है कि इससे ब्लैक मनी को और अधिक बढ़ावा मिलेगा. उनका कहना है कि बॉन्ड की प्रक्रिया इस तरह से बनाई गई है, जिससे भाजपा को फायदा पहुंचे. कौन है चंदा देने वाला, उनके नामों का खुलासा नहीं किया जा सकता है.

चुनावी बॉन्ड के खिलाफ दाखिल हुई याचिका

इलेक्टोरल बॉन्ड पर रोक लगाने के लिए 2017 में एक याचिका लगाई गई है. सुप्रीम कोर्ट 24 मार्च को इस पर सुनवाई करेगी. याचिका सीपीआई (एम), गैर सरकारी संगठन कॉमन कॉज, एसोसिएशन फॉर डेमोक्रेटिक रिफॉर्म्स (एडीआर) की ओर से दाखिल की गई है.

वित्त विधेयक 2017 को मिली चुनौती

याचिका में वित्त विधेयक 2017 को चुनौती दी गई है. इलेक्टोरल बॉन्ड इस विधेयक के साथ ही संलग्न था. इलेक्टोरल बॉन्ड के लिए कंपनी एक्ट, इनकम टैक्स एक्ट, लोकप्रतिनिधि एक्ट, फॉरेन कंट्रीब्यूशन रेगुलेशन एक्ट में संशोधन किया गया था.

याचिकाकर्ता की दलील

कंपनी एक्ट में संशोधन करने से कंपनियों के हितों को प्राथमिकता मिलेगी. आम लोगों की जरूरतें पीछे रह जाएंगी.

अब तक सुनवाई में क्या हुआ

लोकसभा चुनाव 2019 के पहले इस याचिका पर सुनवाई हुई थी. हालांकि, तब तक बॉन्ड खरीदे जाने की प्रक्रिया शुरू हो चुकी थी. तीन जजों की बेंच ने सुनवाई की थी. तत्कालीन मुख्य न्यायाधीश रंजन गोगोई, जस्टिस दीपक गुप्ता और जस्टिस संजीव खन्ना इस बेंच में शामिल थे. बेंच ने राजनीतिक पार्टियों से 30 मई 2019 तक जवाब मांगा था. चुनाव आयोग पहले ही अपना शपथ पत्र दाखिल कर चुका है. आयोग को बॉन्ड पर आपत्ति नहीं है, लेकिन इसकी पारदर्शिता को लेकर महत्वपूर्ण सवाल उठाए हैं.

क्या है केंद्रीय सूचना आयोग का पक्ष

केंद्रीय सूचना आयोग ने माना कि राजनीतिक दलों के नामों का खुलासा, जिनका योगदान चुनावी बॉन्ड और उसके तहत किया जाता है, सार्वजनिक हित में नहीं है.

इलेक्टोरल या चुनावी बॉन्ड क्या है

इलेक्टोरल बॉन्ड या चुनावी बॉन्ड एक वचन पत्र की तरह है. इसे भारतीय स्टेट बैंक की चुनिंदा शाखाओं से खरीदा जा सकता है. कोई भी व्यक्ति या कंपनी इसे खरीद सकती है. वे अपनी पंसद की राजनीतिक पार्टियों को योगदान कर सकते हैं. यह ब्याज मुक्त होता है. इन बॉन्ड को डिजिटल या चेक के माध्यम से खरीदने की अनुमति है.

कब पारित हुआ था विधेयक

चुनावी बॉन्ड को वित्त विधेयक 2017 के साथ पेश किया गया था. 29 जनवरी 2018 को एनडीए सरकार ने इसे अधिसूचित किया था.

चुनावी बॉन्ड का उपयोग करना कितना आसान

इलेक्टोरल बॉन्ड का उपयोग करना काफी सरल है. बॉन्ड हजार रुपये के मल्टीपल्स में उपलब्ध हैं. एक हजार, दस हजार, एक लाख और एक करोड़ का. एसबीआई की चुनिंदा शाखा से कोई भी ग्राहक खरीद सकता है, बशर्ते उसका केवाईसी वेरिफाइड हो चुका हो. खरीदने के बाद वह किसी भी राजनीतिक पार्टी को चंदा दे सकता है. चंदा प्राप्त करने वाली पार्टी चुनाव आयोग द्वारा सत्यापित खाते में जमा कराएगी. बॉन्ड की मान्यता मात्र 15 दिनों की होगी.

कहां से खरीद सकते हैं बॉन्ड

नई दिल्ली, गांधीनगर, चंडीगढ़, बेंगलुरु, भोपाल, मुंबई, जयपुर, लखनऊ, चेन्नई, कोलकाता और गुवाहाटी के चुनिंदा एसबीआई बैंक में बॉन्ड खरीदा जा सकता है.

बॉन्ड खरीदने का समय

जनवरी, अप्रैल, जुलाई और अक्टूबर महीने में पहली तारीख से लेकर10वीं तारीख के बीच.

कौन-कौन सी पार्टियां खरीद सकती हैं बॉन्ड

लोक प्रतिनिधित्व अधिनियम 1951की धारा 29 ए के तहत सभी पंजीकृत पार्टियां जिसने हाल के आम चुनाव या विधानसभा चुनाव में कम से कम एक फीसदी मत हासिल किए हैं, वे सभी इलेक्ट्रोरल बॉन्ड की हकदार हैं. चुनाव आयोग इन पार्टियों को एक अकाउंट नंबर देगा. चुनावी बॉन्ड इसके जरिए ही प्राप्त किए जा सकते हैं.

बॉन्ड पर किसी का नाम लिखा नहीं होगा

इलेक्टोरल बॉन्ड पर प्रदाता का नाम उल्लिखित नहीं होगा. राजनीतिक दल इनकी पहचान के बारे में नहीं जान पाएंगे. धन प्रदाता टैक्स का लाभ उठा सकते हैं, बशर्ते पार्टियों ने अपना रिटर्न दाखिल किया हो.

पारदर्शिता है मुख्य लक्ष्य

विशेषज्ञों की राय है कि बॉन्ड की शुरुआत पारदर्शिता बरतने के लिए की गई है. ऐसे में उसका विवरण सार्वजनिक नहीं किया जाना चाहिए. शेयरहोल्डर्स को भी इसके बारे में पता नहीं होगा. मतदाताओं को भी जानकारी नहीं होगी कि किस पार्टी को किसने पैसा दिया है.

क्यों हो रहा है विरोध

विरोध करने वाले बताते हैं कि नाम सार्वजनिक नहीं किए जाने से ब्लैक मनी की आवक बढ़ जाएगी. स्कीम बड़े कॉरपोरेट को फायदा पहुंचाने के उद्देश्य से लाई गई है. बॉन्ड खरीदने वाली कंपनियां अपना नाम सार्वजनिक करने से बचना चाहती हैं. धन प्रदाता का नाम सामने नहीं लाना प्रजातांत्रिक भावना पर चोट पहुंचाती है.

पहले के कानून में क्या थे प्रावधान

  • कंपनी एक्ट के तहत विदेशी कंपनियां राजनीतिक पार्टी को चंदा नहीं दे सकती थी.
  • कंपनी एक्ट की धारा 182 के तहत कोई भी कंपनी पिछले तीन सालों में औसत लाभ का अधिकतम 7.5 फीसदी ही चंदा दे सकती थी.
  • कंपनी को वार्षिक बयान में इसका खुलासा करना होता था, उसने किस पार्टी को चंदा दिया है.
  • सरकार ने वित्तीय बिल में संशोधन कर इलेक्टोरल बॉन्ड के मामले में इन प्रावधानों को हटा दिया.
  • अब भारतीय, विदेशी और शेल कंपनी भी राजनीतिक पार्टियों को योगदान दे सकती हैं और वह भी बिना बताए.

चुनाव आयोग की राय

10 अप्रैल 2019 को चुनाव आयोग ने सुप्रीम कोर्ट में बताया कि वह इलेक्टोरल बॉन्ड के खिलाफ नहीं है. लेकिन नाम सार्वजनिक नहीं किए जाने पर आयोग ने सहमति नहीं दी थी. आयोग पारदर्शिता के पक्ष में है. आयोग की ओर से पेश हुए वरिष्ठ वकील राकेश द्विवेदी ने इसकी पुष्टि की.

क्या कहता है आरबीआई

मीडिया रिपोर्ट के मुताबिक आरबीआई ने यह माना कि इस व्यवस्था से मनी लॉन्ड्रिंग बढ़ेगा. भारतीय नोट पर विश्वास कम हो सकता है.

ETV Bharat Logo

Copyright © 2024 Ushodaya Enterprises Pvt. Ltd., All Rights Reserved.