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Romeo Juliet Law in India : भारत में भी 'रोमियो-जूलियट' का इंतजार, सुप्रीम कोर्ट तक पहुंचा मामला - SC on Romeo Juliet Law

18 साल से कम उम्र के किशोर और किशोरी आपसी सहमति से संबंध बनाते हैं, तो उनके खिलाफ कोई मामला नहीं चलना चाहिए. इसी संबंध में सुप्रीम कोर्ट में एक याचिका दाखिल की गई है. कोर्ट ने केंद्र सरकार से उनकी राय मांगी है.

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Published : Aug 21, 2023, 2:19 PM IST

नई दिल्ली : सुप्रीम कोर्ट में रोमिया जूलियट कानून को लागू करने की मांग को लेकर एक याचिका दाखिल की गई है. कोर्ट ने केंद्र सरकार से इस पर जवाब मांगा है. केंद्र सरकार अगर इस पर अपनी राय स्पष्ट करती है, तो इस कानून को लागू करने पर विचार किया जा सकता है. इस कानून के तहत 18 साल से कम उम्र के किशोर और किशोरी अगर आपसी सहमति से संबंध बनाते हैं, तो उनके खिलाफ कोई मामला नहीं चलेगा. वर्तमान कानून में इस तरह के मामलों में आरोपी को रेप के आरोप का सामना करना पड़ता है.

याचिकाकर्ता की दलील है कि हमारा समाज प्रौढ़ है, और आधुनिकता के साथ-साथ बदलते परिप्रेक्ष्य के हिसाब से कानून बनने चाहिए. उन्होंने कोर्ट में अपना पक्ष रखते हुए कहा कि हमारे समाज में 18 साल से कम उम्र के लड़के और लड़कियों के बीच संबंध आपसी सहमति से बन रहे हैं. उन्होंने कहा कि इन संबंधों पर दोनों पक्षों को कोई आपत्ति नहीं है. यहां तक कि उनके माता-पिता या अभिभावक भी इसे अस्वाभाविक नहीं मानते हैं. ऐसे में इस तरह के मामलों में गिरफ्तारी क्यों हो. याचिकाकर्ता ने कहा कि 18 साल के युवा और युवती शारीरिक और मानसिक रूप से इतने परिपक्व होते हैं कि वे इस तरह के फैसले ले सकें. उनको अपने शरीर के बारे में फैसले लेने का पूरा हक है. उन्होंने कहा कि आखिरकार वे मतदान भी तो इसी उम्र में करते हैं. फिर आपसी सहमति से संबंध बनाते हैं, तो इस पर किसी को क्या आपत्ति हो सकती है.

उन्होंने अपनी याचिका में बताया है कि अभी के कानून के मुताबिक यदि 18 साल से कम उम्र में संबंध बनाने के खिलाफ शिकायत की जाती है, और लड़की प्रेगनेंट हो जाए, तो लड़के को रेप का आरोपी माना जाता है. उसका पूरा करियार खत्म हो जाता है, जबकि उसने सबकुछ रजामंदी से किया है.

वर्तमान कानून के मुताबिक अगर सहमति है भी तो उसे अस्वीकार कर दिया जाता है. याचिकाकर्ता ने कहा कि इस तरह के मामलों में पोक्सो एक्ट लगाया जाता है. द प्रोटेक्शन ऑफ चिल्ड्रेन फ्रॉम सेक्सुअल ऑफेंसेस एक्ट को 2012 में लाया गया था. इस कानून में प्रावधान है कि अगर 18 साल से कम उम्र के किशोर संबंध बनाते हैं, तो उनकी सहमति के कोई मायने नहीं हैं, और उसे यौन उत्पीड़न का दोषी ठहराया जाएगा.

इसके अलावा अपने यहां एक और कानून है. यह है आईपीसी की धारा 375. इसके अनुसार 16 साल से कम उम्र की लड़की के साथ संबंध बनाना रेप की कैटेगरी में आता है, भले ही उनकी सहमति हो. इसलिए इस तरह के मामलों में दो कानून हैं, और उसको लेकर भ्रम की स्थिति बनी रहती है.

याचिकाकर्ता ने कहा कि कानून में समरूपता हो और प्रौढ़ समाज के अनुरूप कानून बने, इसके लिए रोमियो जूलियट कानून की अवधारणा पूरी दुनिया में स्वीकार की जा रही है. इसके मुताबिक अगर किशोर और किशोरी के बीच आपसी सहमति से संबंध बनते हैं, तो उसे अपराध की कैटेगरी में नहीं लाया जाएगा. इसमें सिर्फ एक ही शर्त रखी गई है कि दोनों के बीच उम्र का फासला बहुत अधिक न हो.

याचिकाकर्ता के अनुसार 2007 के बाद से इस तरह के कानून को कई देशों ने स्वीकार किया है. कई देशों में इसे एज ऑफ कंसेंट रिफॉर्म कहते हैं. जापान में आपसी सहमति की उम्र 16 साल है. इसी संबंध में याचिका सुप्रीम कोर्ट में दाखिल की गई है. सुप्रीम कोर्ट ने केंद्र सरकार से जवाब मांगा है. कानूनी जानकारों का मानना है कि केंद्र का जवाब आने के बाद रेप से जुड़े कानून में बड़ा बदलाव संभव है.

सुप्रीम कोर्ट ने कहा कि पूरे मामले में कानूनी स्थिति उलझी हुई है. कोर्ट ने कहा कि 16 साल से ज्यादा और 18 साल से कम उम्र के बीच वाले मामले में कब रेप का आरोप लगेगा और कम सहमति को स्वीकार किया जा सकता है, इस पर स्पष्टता की जरूरत है.

डेटा एविडेंस फॉर जस्टिस रिफॉर्म ने वर्ल्ड बैंक में एक रिपोर्ट प्रस्तुत की थी. यह रिपोर्ट पब्लिक डोमेन में है. मीडिया रिपोर्ट के मुताबिक इसमें पोक्सो को लेकर कुछ चौंकाने वाले तथ्य रखे गए हैं. मसलन, मात्र 14.03 फीसदी मामलों में ही सजा मिल पाती है. 43.44 प्रतिशत मामलों में आरोपी बरी हो जाते हैं. इसी रिपोर्ट का एक हिस्सा है- बन डिकेड ऑफ पॉक्सो. इसमें भी बताया गया है कि 2012 से लेकर 2021 तक ई-कोर्ट में आने वाले मामलों का अध्ययन किया गया. इसमें पाया गया कि 22.9 फीसदी मामलों में आरोपी और पीड़िता के बीच जान पहचान थी. 3.7 फीसदी मामलों में पाया गया कि दोनों पक्षों के सदस्यों के बीच सहमति होती है. 18 फीसदी ऐसे केस आए, जहां पर दोनों के बीच प्रेम संबंध था. 44 फीसदी मामलों में वे एक दूसरे से अनजान थे. जहां तक उम्र की बात है, तो यहां भी कुछ खुलासे किए गए हैं. इसके अनुसार 10,9 फीसदी मामलों में आरोपी की उम्र 19 से 25 साल के बीच रही है. छह फीसदी ऐसे भी मामले रहे हैं, जहां पर आरोपी की उम्र 35-45 के बीच रही है.

नेशनल फैमिली हेल्थ सर्वे-5 की रिपोर्ट भी कहती है कि 39 फीसदी लड़कियों ने स्वीकार किया कि उन्होंने पहली बार जब संबंध बनाए थे, तब उनकी उम्र 18 साल से कम थी.

ये भी पढ़ें : SC ने रेप पीड़िता के गर्भपात को दी अनुमति, गुजरात हाईकोर्ट की आलोचना की

नई दिल्ली : सुप्रीम कोर्ट में रोमिया जूलियट कानून को लागू करने की मांग को लेकर एक याचिका दाखिल की गई है. कोर्ट ने केंद्र सरकार से इस पर जवाब मांगा है. केंद्र सरकार अगर इस पर अपनी राय स्पष्ट करती है, तो इस कानून को लागू करने पर विचार किया जा सकता है. इस कानून के तहत 18 साल से कम उम्र के किशोर और किशोरी अगर आपसी सहमति से संबंध बनाते हैं, तो उनके खिलाफ कोई मामला नहीं चलेगा. वर्तमान कानून में इस तरह के मामलों में आरोपी को रेप के आरोप का सामना करना पड़ता है.

याचिकाकर्ता की दलील है कि हमारा समाज प्रौढ़ है, और आधुनिकता के साथ-साथ बदलते परिप्रेक्ष्य के हिसाब से कानून बनने चाहिए. उन्होंने कोर्ट में अपना पक्ष रखते हुए कहा कि हमारे समाज में 18 साल से कम उम्र के लड़के और लड़कियों के बीच संबंध आपसी सहमति से बन रहे हैं. उन्होंने कहा कि इन संबंधों पर दोनों पक्षों को कोई आपत्ति नहीं है. यहां तक कि उनके माता-पिता या अभिभावक भी इसे अस्वाभाविक नहीं मानते हैं. ऐसे में इस तरह के मामलों में गिरफ्तारी क्यों हो. याचिकाकर्ता ने कहा कि 18 साल के युवा और युवती शारीरिक और मानसिक रूप से इतने परिपक्व होते हैं कि वे इस तरह के फैसले ले सकें. उनको अपने शरीर के बारे में फैसले लेने का पूरा हक है. उन्होंने कहा कि आखिरकार वे मतदान भी तो इसी उम्र में करते हैं. फिर आपसी सहमति से संबंध बनाते हैं, तो इस पर किसी को क्या आपत्ति हो सकती है.

उन्होंने अपनी याचिका में बताया है कि अभी के कानून के मुताबिक यदि 18 साल से कम उम्र में संबंध बनाने के खिलाफ शिकायत की जाती है, और लड़की प्रेगनेंट हो जाए, तो लड़के को रेप का आरोपी माना जाता है. उसका पूरा करियार खत्म हो जाता है, जबकि उसने सबकुछ रजामंदी से किया है.

वर्तमान कानून के मुताबिक अगर सहमति है भी तो उसे अस्वीकार कर दिया जाता है. याचिकाकर्ता ने कहा कि इस तरह के मामलों में पोक्सो एक्ट लगाया जाता है. द प्रोटेक्शन ऑफ चिल्ड्रेन फ्रॉम सेक्सुअल ऑफेंसेस एक्ट को 2012 में लाया गया था. इस कानून में प्रावधान है कि अगर 18 साल से कम उम्र के किशोर संबंध बनाते हैं, तो उनकी सहमति के कोई मायने नहीं हैं, और उसे यौन उत्पीड़न का दोषी ठहराया जाएगा.

इसके अलावा अपने यहां एक और कानून है. यह है आईपीसी की धारा 375. इसके अनुसार 16 साल से कम उम्र की लड़की के साथ संबंध बनाना रेप की कैटेगरी में आता है, भले ही उनकी सहमति हो. इसलिए इस तरह के मामलों में दो कानून हैं, और उसको लेकर भ्रम की स्थिति बनी रहती है.

याचिकाकर्ता ने कहा कि कानून में समरूपता हो और प्रौढ़ समाज के अनुरूप कानून बने, इसके लिए रोमियो जूलियट कानून की अवधारणा पूरी दुनिया में स्वीकार की जा रही है. इसके मुताबिक अगर किशोर और किशोरी के बीच आपसी सहमति से संबंध बनते हैं, तो उसे अपराध की कैटेगरी में नहीं लाया जाएगा. इसमें सिर्फ एक ही शर्त रखी गई है कि दोनों के बीच उम्र का फासला बहुत अधिक न हो.

याचिकाकर्ता के अनुसार 2007 के बाद से इस तरह के कानून को कई देशों ने स्वीकार किया है. कई देशों में इसे एज ऑफ कंसेंट रिफॉर्म कहते हैं. जापान में आपसी सहमति की उम्र 16 साल है. इसी संबंध में याचिका सुप्रीम कोर्ट में दाखिल की गई है. सुप्रीम कोर्ट ने केंद्र सरकार से जवाब मांगा है. कानूनी जानकारों का मानना है कि केंद्र का जवाब आने के बाद रेप से जुड़े कानून में बड़ा बदलाव संभव है.

सुप्रीम कोर्ट ने कहा कि पूरे मामले में कानूनी स्थिति उलझी हुई है. कोर्ट ने कहा कि 16 साल से ज्यादा और 18 साल से कम उम्र के बीच वाले मामले में कब रेप का आरोप लगेगा और कम सहमति को स्वीकार किया जा सकता है, इस पर स्पष्टता की जरूरत है.

डेटा एविडेंस फॉर जस्टिस रिफॉर्म ने वर्ल्ड बैंक में एक रिपोर्ट प्रस्तुत की थी. यह रिपोर्ट पब्लिक डोमेन में है. मीडिया रिपोर्ट के मुताबिक इसमें पोक्सो को लेकर कुछ चौंकाने वाले तथ्य रखे गए हैं. मसलन, मात्र 14.03 फीसदी मामलों में ही सजा मिल पाती है. 43.44 प्रतिशत मामलों में आरोपी बरी हो जाते हैं. इसी रिपोर्ट का एक हिस्सा है- बन डिकेड ऑफ पॉक्सो. इसमें भी बताया गया है कि 2012 से लेकर 2021 तक ई-कोर्ट में आने वाले मामलों का अध्ययन किया गया. इसमें पाया गया कि 22.9 फीसदी मामलों में आरोपी और पीड़िता के बीच जान पहचान थी. 3.7 फीसदी मामलों में पाया गया कि दोनों पक्षों के सदस्यों के बीच सहमति होती है. 18 फीसदी ऐसे केस आए, जहां पर दोनों के बीच प्रेम संबंध था. 44 फीसदी मामलों में वे एक दूसरे से अनजान थे. जहां तक उम्र की बात है, तो यहां भी कुछ खुलासे किए गए हैं. इसके अनुसार 10,9 फीसदी मामलों में आरोपी की उम्र 19 से 25 साल के बीच रही है. छह फीसदी ऐसे भी मामले रहे हैं, जहां पर आरोपी की उम्र 35-45 के बीच रही है.

नेशनल फैमिली हेल्थ सर्वे-5 की रिपोर्ट भी कहती है कि 39 फीसदी लड़कियों ने स्वीकार किया कि उन्होंने पहली बार जब संबंध बनाए थे, तब उनकी उम्र 18 साल से कम थी.

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