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Explainer: सुप्रीम कोर्ट के आर्डर से कैसे सीएम की जगह फिर LG बन गए दिल्ली के बॉस, जानिए हर सवाल का जवाब

दिल्ली सरकार में सर्विसेज को लेकर सुप्रीम कोर्ट के आदेश के बाद काफी उठा-पटक हुई है. वहीं, शुक्रवार रात केंद्र सरकार द्वारा लाए गए अध्यादेश ने अब अधिकारियों की नियुक्ति और तबादले की पूरी कहानी ही बदल दी है, जिससे लोगों के मन में कई तरह के सवाल पैदा हो रहे हैं. तो आइए जानते हैं इस मामले से जुड़े सभी प्रमुख सवालों के जवाब.

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केंद्र बनाम दिल्ली सरकार
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Published : May 20, 2023, 5:12 PM IST

Updated : May 20, 2023, 7:09 PM IST

नई दिल्ली: राजधानी दिल्ली सहित पूरे देश में बीते 9 दिनों से सुप्रीम कोर्ट के आदेश और शुक्रवार देर रात केंद्र सरकार द्वारा लाए गए अध्यादेश की खूब चर्चा हो रही है. इसके बाद से दिल्ली की सत्ता में काबिज आम आदमी पार्टी की सरकार और केंद्र की बीजेपी सरकार के बीच आरोप-प्रत्यारोप का दौर शुरू हो गया है. सुप्रीम कोर्ट ने 11 मई को दिल्ली सरकार के सर्विसेज से जुड़े मामले में आदेश जारी किया था कि इसपर नियंत्रण दिल्ली सरकार का होगा. दिल्ली सरकार में कार्यरत अधिकारियों के तबादले व नियुक्ति को लेकर राज्य सरकार फैसले लेने के लिए स्वतंत्र है. मगर शुक्रवार रात सुप्रीम कोर्ट के उस आदेश को बदलने के लिए केंद्र सरकार की तरफ से अध्यादेश लाया गया, जिससे पूरी स्थिति ही बदल गई.

इस अध्यादेश के जारी होने के बाद दिल्ली सरकार के अलग-अलग विभागों में नेतृत्व करने वाले अधिकारियों के तबादले और उनकी नियुक्ति दिल्ली सरकार नहीं कर सकेगी. जो अध्यादेश लाया गया है, उसमें मुख्यमंत्री को प्रमुख तो बनाया गया है लेकिन उनके ऊपर यानी बॉस पहले की तरह उपराज्यपाल ही होंगे. सुप्रीम कोर्ट के फैसले को पलटने के लिए अध्यादेश के बारे में आमजन के मन में जो भी सवाल हैं, आइए जानते हैं उनके जवाब.

सवाल 1. दिल्ली सरकार में सर्विसेज से जुड़े मामले पर सुप्रीम कोर्ट के फैसले के बाद अध्यादेश क्यों?

जवाब - शुक्रवार देर रात जब दिल्ली के लोग सोने की तैयारी कर रहे थे तब केंद्र सरकार द्वारा एक अध्यादेश लाया गया, जिससे फौरी तौर पर दिल्ली की जनता को नफा-नुकसान हो या न हो, लेकिन दिल्ली सरकार को सुप्रीम कोर्ट से मिली खुशी छिन गई. केंद्र सरकार ने अध्यादेश लाकर सुप्रीम कोर्ट के 9 दिन पहले जारी उस आदेश को पलट दिया, जिसमें दिल्ली सरकार को अधिकारियों के तबादले नियुक्ति का अधिकार मिल गया था. बीते 11 मई को सुप्रीम कोर्ट के मुख्य न्यायाधीश डीवाई चंद्रचूड़ के नेतृत्व वाली संवैधानिक बेंच ने एक अहम फैसला सुनाते हुए कहा था कि पब्लिक ऑर्डर, पुलिस और जमीन को छोड़कर अन्य मामलों में प्रशासन पर नियंत्रण चुनी हुई सरकार का होगा. इस फैसले के बाद दिल्ली सरकार तुरंत एक्शन में आ गई थी. इसके बाद कई अधिकारियों को कारण बताओ नोटिस के अलावा तबादले का ऑर्डर भी थमाया गया था, जिसपर विपक्ष ने कहा था कि दिल्ली सरकार अराजक हो गई है.

सवाल 2. क्या है केंद्र सरकार द्वारा लाया गया अध्यादेश?

जवाब - सुप्रीम कोर्ट ने दिल्ली सरकार में सर्विसेज से जुड़े मामलों को पूर्ण अधिकार, चुनी हुई सरकार को देने का आदेश दिया था, लेकिन इस अध्यादेश के जरिए उसे पलट दिया गया है. केंद्र के अध्यादेश में कहा गया है कि राष्ट्रीय राजधानी क्षेत्र दिल्ली (संशोधित ऑर्डिनेंस) 2023 के जरिए केंद्र सरकार ने एक नेशनल कैपिटल सिविल सर्विस अथॉरिटी का गठन किया है. दिल्ली में अधिकारियों के ट्रांसफर-पोस्टिंग और सेवा से जुड़े फैसले अब ऑथोरिटी के जरिए होंगे. इसमें दिल्ली के मुख्यमंत्री को प्रमुख बनाने की बात कही गई है, लेकिन फैसला बहुमत से होगा. नेशनल कैपिटल सिविल सर्विस अथॉरिटी में दिल्ली के मुख्यमंत्री के अलावा मुख्य सचिव और प्रमुख सचिव गृह विभाग के सदस्य होंगे. वहीं किसी भी विवाद की स्थिति में उपराज्यपाल का फैसला अंतिम होगा. केंद्र के अधीन आने वाले विषयों को छोड़कर अन्य सभी मामलों में यह अथॉरिटी ग्रुप ए और दिल्ली में सेवा दे रहे दानिक्स अधिकारियों के तबादले नियुक्ति की सिफारिश करेगी, जिस पर अंतिम मुहर उपराज्यपाल लगाएंगे. इस अध्यादेश को 6 महीने में संसद से पास करना होगा, जिसके बाद यह कानून का रूप ले लेगा.

सवाल 3. केंद्र सरकार द्वारा अध्यादेश लाने में जल्दबाजी क्यों?

जवाब - केंद्र द्वारा अध्यादेश लाए जाने का बीजेपी स्वागत कर रही है, वहीं आम आदमी पार्टी इसपर हमलावर हो गई है. कहा जा रहा है कि केंद्र का यह निर्णय सुप्रीम कोर्ट के आदेश के बाद दिल्ली सरकार को मिले अधिकारों में कटौती की तरह है. अभी तक मुख्य सचिव और गृह सचिव केंद्र सरकार के जरिए नियुक्त किए जाते थे, लेकिन अब दिल्ली सरकार में अधिकारियों के तबादले और नियुक्ति का अधिकार पहले की तरह केंद्र सरकार के पास ही होगा. चर्चा यह भी है कि सर्विसेज को लेकर सुप्रीम कोर्ट के आदेश आने के तुरंत बाद, दिल्ली सरकार के मंत्री ने अधिकारियों को कारण बताओ नोटिस जारी करने और उनके तबादले करने शुरू किए. साथ ही अपने दफ्तर में बुलाकर अधिकारियों से जबरन दस्तावेज पर साइन करने आदि की भी बात कही, जिसकी शिकायत अधिकारियों ने मुख्य सचिव से की है. अधिकारियों में असंतोष तथा सरकार के इस रवैया से कोई अराजक स्थिति उत्पन्न न हो जाए, इसलिए जल्दीबाजी में यह अध्यादेश लाया गया.

सवाल 4. केंद्र सरकार द्वारा अध्यादेश लाने की क्या दलीलें दी गईं हैं?

जवाब - सुप्रीम कोर्ट के आदेश को पलटने के लिए केंद्र सरकार जो अध्यादेश लाई है, उसमें अहम दलीलें दी गई हैं कि दिल्ली देश की राजधानी है. यहां कई महत्वपूर्ण राष्ट्रीय और अंतरराष्ट्रीय संस्थान, राष्ट्रपति भवन, संसद, सुप्रीम कोर्ट जैसे प्राधिकरण और विभिन्न संवैधानिक पदाधिकारी तथा विदेशी राजनयिक रहते हैं. और तो और यहां अंतरराष्ट्रीय एजेंसियां भी हैं. यह एक ऐसा स्थान है, जहां राष्ट्रहित में सबसे अधिक कुशल प्रशासन और शासन की जरूरत है. संभावित मानकों को बनाए रखने के लिए यह जरूरी है कि कामकाज का नियंत्रण केंद्र के अधीन हो. दिल्ली से संबंधित कोई भी फैसला या कोई कार्यक्रम न केवल राष्ट्रीय राजधानी के लोगों को प्रभावित करता है, बल्कि देश के बाकी हिस्सों को भी प्रभावित करता है. दिल्ली पूरे देश की राजधानी है और देश के लोगों की भी प्रशासन में भूमिका है.

सवाल 5. अध्यादेश लाने के बाद आगे क्या कार्रवाई होगी?

जवाब - केंद्र सरकार ने अध्यादेश लाने के साथ सुप्रीम कोर्ट में एक नई याचिका डाली है. सर्विसेज से जुड़े मसले पर केंद्र सरकार ने 11 मई के सुप्रीम कोर्ट के फैसले के मद्देनजर एक रिव्यू पिटिशन दाखिल किया है.

सवाल 6. क्या दिल्ली सरकार इस अध्यादेश के खिलाफ सुप्रीम कोर्ट जा सकती है?

जवाब - अध्यादेश लाए जाने के बाद दिल्ली सरकार ने भी फैसला किया है कि वह इसे सुप्रीम कोर्ट में चुनौती देगी. शुक्रवार देर रात केंद्र द्वारा लाए गए अध्यादेश के तुरंत बाद से ही आम आदमी पार्टी के तमाम नेता इसके खिलाफ कोर्ट जाने की बात कह रहे हैं. संविधान विशेषज्ञ सुभाष कश्यप ने बताया कि सुप्रीम कोर्ट ने आरसी कपूर बनाम भारत संघ 1970 के एक मामले में कहा था कि राष्ट्रपति के निर्णय को भी चुनौती दी जा सकती है. इस आधार पर की तत्काल कार्रवाई की जरूरत नहीं थी. इसलिए केंद्र द्वारा लाए गए अध्यादेश को चुनौती दी जा सकती है. अब सुप्रीम कोर्ट के मुख्य न्यायाधीश को तय करना होगा कि मामले पर संविधान बेंच बनाएं या नहीं.

सवाल 7. क्या होता है अध्यादेश और विधेयक?

जवाब - अगर कोई ऐसा विषय है, जिस पर तत्काल कानून बनाने की जरूरत हो और उस समय संसद का सत्र नहीं चल रहा हो तो अध्यादेश लाया जा सकता है. संविधान के अनुच्छेद संख्या 123 में राष्ट्रपति के अध्यादेश जारी करने की शक्तियों का विस्तृत से वर्णन है. अध्यादेश का प्रभाव उतना ही रहता है जितना संसद से पारित कानून का होता है. इसे कभी भी वापस लिया जा सकता है. हालांकि अध्यादेश के जरिए आम लोगों से उनके मौलिक अधिकार नहीं छीने जा सकते. अध्यादेश केंद्रीय मंत्रिमंडल की सलाह पर राष्ट्रपति जारी करते हैं. वहीं कानून बनने का अधिकार संसद के पास है. ऐसे में अध्यादेश को संसद की मंजूरी लेनी होती है.

अध्यादेश जारी करने के 6 महीने के भीतर संसद सत्र बुलाना और उसे पास कराना अनिवार्य है. जबकि विधेयक संसद के दोनों सदनों से पारित होने के बाद राष्ट्रपति के हस्ताक्षर होने के बाद ही लागू किया जा सकता है. अध्यादेश अस्थाई होता है जबकि विधेयक स्थाई होता है. वहीं अध्यादेश पारित करने के लिए संसद की मंजूरी जरूरी नहीं है, जबकि विधेयक को पारित करने के लिए संसद की सहमति अनिवार्य है. अध्यादेश तत्कालीन परिस्थितियों को नियंत्रण करने के लिए जारी किए जाते हैं, लेकिन विधेयक स्थाई कानून बनाने के लिए पेश किया जाता है. अध्यादेश की अवधि कम से कम 6 सप्ताह और अधिकतम छह महीने होती है. जबकि विधेयक की अवधि निर्धारित नहीं है. विधेयक कानून बनाने का एक प्रस्ताव होता है.

यह भी पढ़ें- केंद्र पर हमलावर हुई दिल्ली सरकार, कहा- सुप्रीम कोर्ट के फैसले के खिलाफ अध्यादेश पूरी तरह से कोर्ट की अवमानना

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नई दिल्ली: राजधानी दिल्ली सहित पूरे देश में बीते 9 दिनों से सुप्रीम कोर्ट के आदेश और शुक्रवार देर रात केंद्र सरकार द्वारा लाए गए अध्यादेश की खूब चर्चा हो रही है. इसके बाद से दिल्ली की सत्ता में काबिज आम आदमी पार्टी की सरकार और केंद्र की बीजेपी सरकार के बीच आरोप-प्रत्यारोप का दौर शुरू हो गया है. सुप्रीम कोर्ट ने 11 मई को दिल्ली सरकार के सर्विसेज से जुड़े मामले में आदेश जारी किया था कि इसपर नियंत्रण दिल्ली सरकार का होगा. दिल्ली सरकार में कार्यरत अधिकारियों के तबादले व नियुक्ति को लेकर राज्य सरकार फैसले लेने के लिए स्वतंत्र है. मगर शुक्रवार रात सुप्रीम कोर्ट के उस आदेश को बदलने के लिए केंद्र सरकार की तरफ से अध्यादेश लाया गया, जिससे पूरी स्थिति ही बदल गई.

इस अध्यादेश के जारी होने के बाद दिल्ली सरकार के अलग-अलग विभागों में नेतृत्व करने वाले अधिकारियों के तबादले और उनकी नियुक्ति दिल्ली सरकार नहीं कर सकेगी. जो अध्यादेश लाया गया है, उसमें मुख्यमंत्री को प्रमुख तो बनाया गया है लेकिन उनके ऊपर यानी बॉस पहले की तरह उपराज्यपाल ही होंगे. सुप्रीम कोर्ट के फैसले को पलटने के लिए अध्यादेश के बारे में आमजन के मन में जो भी सवाल हैं, आइए जानते हैं उनके जवाब.

सवाल 1. दिल्ली सरकार में सर्विसेज से जुड़े मामले पर सुप्रीम कोर्ट के फैसले के बाद अध्यादेश क्यों?

जवाब - शुक्रवार देर रात जब दिल्ली के लोग सोने की तैयारी कर रहे थे तब केंद्र सरकार द्वारा एक अध्यादेश लाया गया, जिससे फौरी तौर पर दिल्ली की जनता को नफा-नुकसान हो या न हो, लेकिन दिल्ली सरकार को सुप्रीम कोर्ट से मिली खुशी छिन गई. केंद्र सरकार ने अध्यादेश लाकर सुप्रीम कोर्ट के 9 दिन पहले जारी उस आदेश को पलट दिया, जिसमें दिल्ली सरकार को अधिकारियों के तबादले नियुक्ति का अधिकार मिल गया था. बीते 11 मई को सुप्रीम कोर्ट के मुख्य न्यायाधीश डीवाई चंद्रचूड़ के नेतृत्व वाली संवैधानिक बेंच ने एक अहम फैसला सुनाते हुए कहा था कि पब्लिक ऑर्डर, पुलिस और जमीन को छोड़कर अन्य मामलों में प्रशासन पर नियंत्रण चुनी हुई सरकार का होगा. इस फैसले के बाद दिल्ली सरकार तुरंत एक्शन में आ गई थी. इसके बाद कई अधिकारियों को कारण बताओ नोटिस के अलावा तबादले का ऑर्डर भी थमाया गया था, जिसपर विपक्ष ने कहा था कि दिल्ली सरकार अराजक हो गई है.

सवाल 2. क्या है केंद्र सरकार द्वारा लाया गया अध्यादेश?

जवाब - सुप्रीम कोर्ट ने दिल्ली सरकार में सर्विसेज से जुड़े मामलों को पूर्ण अधिकार, चुनी हुई सरकार को देने का आदेश दिया था, लेकिन इस अध्यादेश के जरिए उसे पलट दिया गया है. केंद्र के अध्यादेश में कहा गया है कि राष्ट्रीय राजधानी क्षेत्र दिल्ली (संशोधित ऑर्डिनेंस) 2023 के जरिए केंद्र सरकार ने एक नेशनल कैपिटल सिविल सर्विस अथॉरिटी का गठन किया है. दिल्ली में अधिकारियों के ट्रांसफर-पोस्टिंग और सेवा से जुड़े फैसले अब ऑथोरिटी के जरिए होंगे. इसमें दिल्ली के मुख्यमंत्री को प्रमुख बनाने की बात कही गई है, लेकिन फैसला बहुमत से होगा. नेशनल कैपिटल सिविल सर्विस अथॉरिटी में दिल्ली के मुख्यमंत्री के अलावा मुख्य सचिव और प्रमुख सचिव गृह विभाग के सदस्य होंगे. वहीं किसी भी विवाद की स्थिति में उपराज्यपाल का फैसला अंतिम होगा. केंद्र के अधीन आने वाले विषयों को छोड़कर अन्य सभी मामलों में यह अथॉरिटी ग्रुप ए और दिल्ली में सेवा दे रहे दानिक्स अधिकारियों के तबादले नियुक्ति की सिफारिश करेगी, जिस पर अंतिम मुहर उपराज्यपाल लगाएंगे. इस अध्यादेश को 6 महीने में संसद से पास करना होगा, जिसके बाद यह कानून का रूप ले लेगा.

सवाल 3. केंद्र सरकार द्वारा अध्यादेश लाने में जल्दबाजी क्यों?

जवाब - केंद्र द्वारा अध्यादेश लाए जाने का बीजेपी स्वागत कर रही है, वहीं आम आदमी पार्टी इसपर हमलावर हो गई है. कहा जा रहा है कि केंद्र का यह निर्णय सुप्रीम कोर्ट के आदेश के बाद दिल्ली सरकार को मिले अधिकारों में कटौती की तरह है. अभी तक मुख्य सचिव और गृह सचिव केंद्र सरकार के जरिए नियुक्त किए जाते थे, लेकिन अब दिल्ली सरकार में अधिकारियों के तबादले और नियुक्ति का अधिकार पहले की तरह केंद्र सरकार के पास ही होगा. चर्चा यह भी है कि सर्विसेज को लेकर सुप्रीम कोर्ट के आदेश आने के तुरंत बाद, दिल्ली सरकार के मंत्री ने अधिकारियों को कारण बताओ नोटिस जारी करने और उनके तबादले करने शुरू किए. साथ ही अपने दफ्तर में बुलाकर अधिकारियों से जबरन दस्तावेज पर साइन करने आदि की भी बात कही, जिसकी शिकायत अधिकारियों ने मुख्य सचिव से की है. अधिकारियों में असंतोष तथा सरकार के इस रवैया से कोई अराजक स्थिति उत्पन्न न हो जाए, इसलिए जल्दीबाजी में यह अध्यादेश लाया गया.

सवाल 4. केंद्र सरकार द्वारा अध्यादेश लाने की क्या दलीलें दी गईं हैं?

जवाब - सुप्रीम कोर्ट के आदेश को पलटने के लिए केंद्र सरकार जो अध्यादेश लाई है, उसमें अहम दलीलें दी गई हैं कि दिल्ली देश की राजधानी है. यहां कई महत्वपूर्ण राष्ट्रीय और अंतरराष्ट्रीय संस्थान, राष्ट्रपति भवन, संसद, सुप्रीम कोर्ट जैसे प्राधिकरण और विभिन्न संवैधानिक पदाधिकारी तथा विदेशी राजनयिक रहते हैं. और तो और यहां अंतरराष्ट्रीय एजेंसियां भी हैं. यह एक ऐसा स्थान है, जहां राष्ट्रहित में सबसे अधिक कुशल प्रशासन और शासन की जरूरत है. संभावित मानकों को बनाए रखने के लिए यह जरूरी है कि कामकाज का नियंत्रण केंद्र के अधीन हो. दिल्ली से संबंधित कोई भी फैसला या कोई कार्यक्रम न केवल राष्ट्रीय राजधानी के लोगों को प्रभावित करता है, बल्कि देश के बाकी हिस्सों को भी प्रभावित करता है. दिल्ली पूरे देश की राजधानी है और देश के लोगों की भी प्रशासन में भूमिका है.

सवाल 5. अध्यादेश लाने के बाद आगे क्या कार्रवाई होगी?

जवाब - केंद्र सरकार ने अध्यादेश लाने के साथ सुप्रीम कोर्ट में एक नई याचिका डाली है. सर्विसेज से जुड़े मसले पर केंद्र सरकार ने 11 मई के सुप्रीम कोर्ट के फैसले के मद्देनजर एक रिव्यू पिटिशन दाखिल किया है.

सवाल 6. क्या दिल्ली सरकार इस अध्यादेश के खिलाफ सुप्रीम कोर्ट जा सकती है?

जवाब - अध्यादेश लाए जाने के बाद दिल्ली सरकार ने भी फैसला किया है कि वह इसे सुप्रीम कोर्ट में चुनौती देगी. शुक्रवार देर रात केंद्र द्वारा लाए गए अध्यादेश के तुरंत बाद से ही आम आदमी पार्टी के तमाम नेता इसके खिलाफ कोर्ट जाने की बात कह रहे हैं. संविधान विशेषज्ञ सुभाष कश्यप ने बताया कि सुप्रीम कोर्ट ने आरसी कपूर बनाम भारत संघ 1970 के एक मामले में कहा था कि राष्ट्रपति के निर्णय को भी चुनौती दी जा सकती है. इस आधार पर की तत्काल कार्रवाई की जरूरत नहीं थी. इसलिए केंद्र द्वारा लाए गए अध्यादेश को चुनौती दी जा सकती है. अब सुप्रीम कोर्ट के मुख्य न्यायाधीश को तय करना होगा कि मामले पर संविधान बेंच बनाएं या नहीं.

सवाल 7. क्या होता है अध्यादेश और विधेयक?

जवाब - अगर कोई ऐसा विषय है, जिस पर तत्काल कानून बनाने की जरूरत हो और उस समय संसद का सत्र नहीं चल रहा हो तो अध्यादेश लाया जा सकता है. संविधान के अनुच्छेद संख्या 123 में राष्ट्रपति के अध्यादेश जारी करने की शक्तियों का विस्तृत से वर्णन है. अध्यादेश का प्रभाव उतना ही रहता है जितना संसद से पारित कानून का होता है. इसे कभी भी वापस लिया जा सकता है. हालांकि अध्यादेश के जरिए आम लोगों से उनके मौलिक अधिकार नहीं छीने जा सकते. अध्यादेश केंद्रीय मंत्रिमंडल की सलाह पर राष्ट्रपति जारी करते हैं. वहीं कानून बनने का अधिकार संसद के पास है. ऐसे में अध्यादेश को संसद की मंजूरी लेनी होती है.

अध्यादेश जारी करने के 6 महीने के भीतर संसद सत्र बुलाना और उसे पास कराना अनिवार्य है. जबकि विधेयक संसद के दोनों सदनों से पारित होने के बाद राष्ट्रपति के हस्ताक्षर होने के बाद ही लागू किया जा सकता है. अध्यादेश अस्थाई होता है जबकि विधेयक स्थाई होता है. वहीं अध्यादेश पारित करने के लिए संसद की मंजूरी जरूरी नहीं है, जबकि विधेयक को पारित करने के लिए संसद की सहमति अनिवार्य है. अध्यादेश तत्कालीन परिस्थितियों को नियंत्रण करने के लिए जारी किए जाते हैं, लेकिन विधेयक स्थाई कानून बनाने के लिए पेश किया जाता है. अध्यादेश की अवधि कम से कम 6 सप्ताह और अधिकतम छह महीने होती है. जबकि विधेयक की अवधि निर्धारित नहीं है. विधेयक कानून बनाने का एक प्रस्ताव होता है.

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Last Updated : May 20, 2023, 7:09 PM IST
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