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जानें 26 मई काे क्याें काला दिवस मनाएगा किसान मोर्चा

26 मई काे किसान आंदाेलन के 6 महीने पूरे हाे रहे हैं. वहीं इसी दिन मोदी सरकार के कार्यकाल के भी 7 साल पूरे हो रहे हैं. ऐसे में संयुक्त किसान मोर्चा ने इस दिन काे काले दिवस के रूप में मनाने का फैसला किया है.

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Published : May 22, 2021, 10:38 PM IST

किसान मोर्चा
किसान मोर्चा

नई दिल्ली : दिल्ली के बॉर्डरों पर तीन कृषि कानून के विरोध और एमएसपी पर खरीद को अनिवार्य करने के लिए कानून बनाने की मांग को लेकर संयुक्त किसान मोर्चा के आंदोलन काे 26 मई को 6 महीने पूरे हाे जाएंगे.

इसी दिन मोदी सरकार के कार्यकाल के भी 7 साल पूरे हो रहे हैं. ऐसे में संयुक्त किसान मोर्चा ने इस दिन को 'काला दिवस' के रूप में मनाए जाने की अपील की है. संयुक्त किसान मोर्चा लगातार किसानों से अपील कर रहा है कि वह दिल्ली के बॉर्डरों पर पहुंचें और वहां मोर्चा संभालें.

हालांकि कोरोना महामारी के बढ़ते प्रभाव के कारण कई राज्यों में लॉकडाउन है और इस कारण लोगों के लिए बाहर निकलना संभव नहीं. इस बात को ध्यान में रखते हुए अखिल भारतीय किसान संघर्ष समन्वय समिति के सह संयोजक अविक साह ने शनिवार को 'प्रोटेस्ट फ्रॉम होम' की अपील की है.

उन्होंने कहा कि संयुक्त किसान मोर्चा ने देशव्यापी विरोध-प्रदर्शन की अपील की है और आम जनता को भी इसमें जुड़ना चाहिए, इसलिए लोग अपने घरों, ऑफिस और दुकानों पर काले झंडे लगा कर 26 मई के विरोध दिवस को अपना समर्थन दे सकते हैं.


शुक्रवार को संयुक्त किसान मोर्चा ने प्रधानमंत्री मोदी को पत्र लिख कर बातचीत दोबारा शुरू करने की अपील की थी साथ ही यह भी कहा था कि किसानों द्वारा बहिष्कृत तीन कृषि सुधार कानूनों को निरस्त करने का निर्णय सरकार को अब जल्द लेना चाहिए और एमएसपी पर खरीद को अनिवार्य करने के लिए कानून बना देना चाहिए.

इससे यह स्पष्ट होता है कि आंदोलनरत किसान मोर्चा सरकार से अपने शर्तों पर ही बातचीत की शुरुआत करना चाहता है. सरकार और किसान मोर्चा के बीच आखिरी वार्ता 22 जनवरी को हुई थी.

12 दौर की वार्ता के बाद भी दोनों पक्ष किसी नतीजे पर नहीं पहुंच सके थे. सरकार ने अधिकतम 1.5 वर्ष तक कृषि कानूनों को स्थगित करने के प्रस्ताव को अपना अंतिम प्रस्ताव बताया था, लेकिन किसानों ने उसे नामंजूर कर दिया था.


किसान नेता और भारतीय कृषक समाज के अध्यक्ष कृष्णबीर चौधरी कहते हैं कि आंदोलनरत मोर्चा की मंशा स्पष्ट नहीं है और ऐसे में मसले का हल निकलना मुश्किल है.

सरकार ने अपनी ओर से आखिरी पेशकश की थी और बिंदुवार तरीके से लिखित में किसान मोर्चा को कानून के प्रावधान भेजे गए थे. उनसे पूछा गया था कि तीन कृषि कानूनों के किन किन प्रावधानों में उन्हें समस्या है इस पर सरकार उनसे चर्चा को तैयार है और जब तक उनकी संतुष्टि नहीं हो जाती, सरकार डेढ़ साल तक इन कानूनों को रोक कर रखेगी. लेकिन बिंदुवार चर्चा की बजाय किसान मोर्चा ने अपनी पुरानी मांगों को ही आगे रखा और बातचीत बंद हो गई.

बलबीर सिंह राजेवाल ने कहा कि आरोप लगाए जा रहे हैं कि किसान आंदोलन देश में कोरोना फैला रहा है और दो मौतें भी हुई हैं, परन्तु यह सब कुछ झूठ है और गलत प्रचार किया जा रहा है.

उन्हाेंने कहा कि मोर्चे की तरफ से 10 बेड का अस्पताल भी बनाया गया है, जिसमें आक्सीजन का भी प्रबंध है. उन्हाेंने कहा कि यह किसान आंदोलन को बदनाम करने की कोशिश है.

संयुक्त किसान मोर्चा द्वारा प्रधानमंत्री मोदी को लिखे पत्र में यह भी कहा गया है कि वह 25 मई तक सरकार के प्रस्ताव का इंतजार करेंगे और बातचीत शुरू न होने की स्थिति में 26 मई से एक बार फिर आंदोलन को तेज करेंगे.

इसे भी पढ़ें :पीएम को संयुक्त किसान मोर्चा का पत्र, कहा- सरकार जबरन कानून लागू न करे, मांगें मानें

मोर्चा का कहना है कि आंदोलन की शुरुआत से अब तक आंदोलन में शामिल कुल 470 किसान अलग-अलग कारणों से अपनी जान गंवा चुके हैं और इसके लिये केंद्र सरकार जिम्मेदार है.

नई दिल्ली : दिल्ली के बॉर्डरों पर तीन कृषि कानून के विरोध और एमएसपी पर खरीद को अनिवार्य करने के लिए कानून बनाने की मांग को लेकर संयुक्त किसान मोर्चा के आंदोलन काे 26 मई को 6 महीने पूरे हाे जाएंगे.

इसी दिन मोदी सरकार के कार्यकाल के भी 7 साल पूरे हो रहे हैं. ऐसे में संयुक्त किसान मोर्चा ने इस दिन को 'काला दिवस' के रूप में मनाए जाने की अपील की है. संयुक्त किसान मोर्चा लगातार किसानों से अपील कर रहा है कि वह दिल्ली के बॉर्डरों पर पहुंचें और वहां मोर्चा संभालें.

हालांकि कोरोना महामारी के बढ़ते प्रभाव के कारण कई राज्यों में लॉकडाउन है और इस कारण लोगों के लिए बाहर निकलना संभव नहीं. इस बात को ध्यान में रखते हुए अखिल भारतीय किसान संघर्ष समन्वय समिति के सह संयोजक अविक साह ने शनिवार को 'प्रोटेस्ट फ्रॉम होम' की अपील की है.

उन्होंने कहा कि संयुक्त किसान मोर्चा ने देशव्यापी विरोध-प्रदर्शन की अपील की है और आम जनता को भी इसमें जुड़ना चाहिए, इसलिए लोग अपने घरों, ऑफिस और दुकानों पर काले झंडे लगा कर 26 मई के विरोध दिवस को अपना समर्थन दे सकते हैं.


शुक्रवार को संयुक्त किसान मोर्चा ने प्रधानमंत्री मोदी को पत्र लिख कर बातचीत दोबारा शुरू करने की अपील की थी साथ ही यह भी कहा था कि किसानों द्वारा बहिष्कृत तीन कृषि सुधार कानूनों को निरस्त करने का निर्णय सरकार को अब जल्द लेना चाहिए और एमएसपी पर खरीद को अनिवार्य करने के लिए कानून बना देना चाहिए.

इससे यह स्पष्ट होता है कि आंदोलनरत किसान मोर्चा सरकार से अपने शर्तों पर ही बातचीत की शुरुआत करना चाहता है. सरकार और किसान मोर्चा के बीच आखिरी वार्ता 22 जनवरी को हुई थी.

12 दौर की वार्ता के बाद भी दोनों पक्ष किसी नतीजे पर नहीं पहुंच सके थे. सरकार ने अधिकतम 1.5 वर्ष तक कृषि कानूनों को स्थगित करने के प्रस्ताव को अपना अंतिम प्रस्ताव बताया था, लेकिन किसानों ने उसे नामंजूर कर दिया था.


किसान नेता और भारतीय कृषक समाज के अध्यक्ष कृष्णबीर चौधरी कहते हैं कि आंदोलनरत मोर्चा की मंशा स्पष्ट नहीं है और ऐसे में मसले का हल निकलना मुश्किल है.

सरकार ने अपनी ओर से आखिरी पेशकश की थी और बिंदुवार तरीके से लिखित में किसान मोर्चा को कानून के प्रावधान भेजे गए थे. उनसे पूछा गया था कि तीन कृषि कानूनों के किन किन प्रावधानों में उन्हें समस्या है इस पर सरकार उनसे चर्चा को तैयार है और जब तक उनकी संतुष्टि नहीं हो जाती, सरकार डेढ़ साल तक इन कानूनों को रोक कर रखेगी. लेकिन बिंदुवार चर्चा की बजाय किसान मोर्चा ने अपनी पुरानी मांगों को ही आगे रखा और बातचीत बंद हो गई.

बलबीर सिंह राजेवाल ने कहा कि आरोप लगाए जा रहे हैं कि किसान आंदोलन देश में कोरोना फैला रहा है और दो मौतें भी हुई हैं, परन्तु यह सब कुछ झूठ है और गलत प्रचार किया जा रहा है.

उन्हाेंने कहा कि मोर्चे की तरफ से 10 बेड का अस्पताल भी बनाया गया है, जिसमें आक्सीजन का भी प्रबंध है. उन्हाेंने कहा कि यह किसान आंदोलन को बदनाम करने की कोशिश है.

संयुक्त किसान मोर्चा द्वारा प्रधानमंत्री मोदी को लिखे पत्र में यह भी कहा गया है कि वह 25 मई तक सरकार के प्रस्ताव का इंतजार करेंगे और बातचीत शुरू न होने की स्थिति में 26 मई से एक बार फिर आंदोलन को तेज करेंगे.

इसे भी पढ़ें :पीएम को संयुक्त किसान मोर्चा का पत्र, कहा- सरकार जबरन कानून लागू न करे, मांगें मानें

मोर्चा का कहना है कि आंदोलन की शुरुआत से अब तक आंदोलन में शामिल कुल 470 किसान अलग-अलग कारणों से अपनी जान गंवा चुके हैं और इसके लिये केंद्र सरकार जिम्मेदार है.

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