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गुजरात : 'कीर्ति मंदिर' जहां राष्ट्रपिता महात्मा गांधी का जन्म हुआ

पोरबंदर (Porbandar) भगवान कृष्ण (Lord Krishna) के मित्र सुदामा (Sudama) की कर्मभूमि है और महात्मा गांधी (Mahatma Gandhi) यानी भारत के राष्ट्रपिता (Father of the Nation) मोहनदास करमचंद गांधी (Mohandas Karamchand Gandhi) की जन्मस्थली है. साबरमती के वह संत जिन्होंने सत्य और अहिंसा के अस्त्र से विश्व को वश में कर लिया. जिस स्थान पर उनका जन्म हुआ. वह आज कीर्ति मंदिर (Kirti Mandir) के नाम से जाना जाता है.

कीर्ति मंदिर
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Published : Oct 1, 2021, 9:51 PM IST

Updated : Oct 2, 2021, 10:02 AM IST

अहमदाबाद : पोरबंदर (Porbandar) भगवान कृष्ण (Lord Krishna) के मित्र सुदामा (Sudama) की कर्मभूमि है और महात्मा गांधी (Mahatma Gandhi) यानी भारत के राष्ट्रपिता (Father of the Nation) मोहनदास करमचंद गांधी (Mohandas Karamchand Gandhi) की जन्मस्थली है. साबरमती के वह संत जिन्होंने सत्य और अहिंसा के अस्त्र से विश्व को वश में कर लिया. जिस स्थान पर उनका जन्म हुआ. वह आज कीर्ति मंदिर (Kirti Mandir) के नाम से जाना जाता है.

यह स्थान दो खंडों में विभाजित है, एक वह स्थान है जहां महात्मा गांधी का जन्म हुआ था और दूसरा कीर्ति मंदिर है, जो बापू को श्रद्धांजलि देने के लिए बनाया गया स्थान है. गांधीजी का जन्म 2 अक्टूबर 1869 को पोरबंदर में इसी स्थान पर हुआ था. पुराने घर को महात्मा गांधी के परदादा हरजीवन गांधी (great-grandfather Harjivan Gandhi) ने 1777 में पोरबंदर की एक ब्राह्मण महिला से खरीदा था.

'कीर्ति मंदिर' जहां राष्ट्रपिता महात्मा गांधी का जन्म हुआ

गांधीजी के दादा उत्तमचंद गांधी (Uttamchand Gandhi), जिन्हें ओटा गांधी (Ota Gandhi) के नाम से जाना जाता था. उन्होंने इमारत का विस्तार तीन मंजिलों तक किया. ओटा गांधी पोरबंदर राज्य के दीवान थे. गांधी जी 7 साल तक पोरबंदर में रहे, फिर वे पढ़ाई के लिए राजकोट गए और 1882 में मोहनदास गांधी जी का विवाह 13 साल की उम्र में पोरबंदर के नागरशेत गोकुलदास माकनजी (Nagarshet Gokuldas Makanji) की बेटी कस्तूरबा से हो गया.

गलियारे में एक बड़ा टैंक है, जिसमें बारिश का पानी जमा होता है, साथ ही दरवाजे में नक्काशी और कास्ट आर्ट (carvings and cast art) भी है. जिस स्थान पर बापू का जन्म हुआ था, उस स्थान पर एक स्वास्तिक बनाया गया है और ऊपर रैंटियो (चरखा) के साथ उनका एक ऑयल पिरक्चर (oil picture) रखा गया है.

साथ ही विपरीत दिशा में पिता करमचंद और माता पुतली बाई की 3डी तस्वीर (D picture of father Karamchand and mother Putli Bai) भी लगाई गई है. मां पुतली बाई वैष्णववाद की सख्त अनुयायी थीं और वह अपने अलग रसोई में खाना बनाती थीं जबकि ऊपर एक और रसोई थी. कमरों को सजाया और रंगा हुए हैं.

1944-45 में जब बापू को आगा खान पैलेस (Aga Khan Palace) की कैद से रिहा किया गया, तो पोरबंदर के राजारत्न सेठ नानजी कालिदास मेहता (Rajaratna Seth Nanji Kalidas Mehta) ने उनसे पंचगिनी में रहने का अनुरोध किया.

इस बीच पोरबंदर के महाराज नटवरसिंहजी (Maharaj Natwarsinhji of Porbandar ) ने लोगों की भावनाओं को व्यक्त किया और बापू के जन्म स्थान के पास एक सुंदर स्मारक बनाने की बात कही.

बापू मान गए और 1947 में दरबार साहब गोपाल दास देसाई (Darbar Saheb Gopal Das Desai) ने स्मारक की आधारशिला रखी. कीर्ति मंदिर दो साल में ₹5 लाख की लागत से बनाया गया था.

जब गांधीजी की मृत्यु हुई, तो वे 79 वर्ष के थे, गरीबी और अंधकार को मिटाने के लिए उनके आजीवन संघर्ष के प्रतीक के रूप में 79 दीयों के आकार के ऊपर मिट्टी के बर्तन बनाए गए थे.

यहां छह प्रमुख धर्मों के चिन्ह भी रखे गए थे. इसके अलावा, जैसा कि बापू ने कहा, मेरा जीवन एक खुली किताब है, खुली किताब की तरह, पोरबंदर के एक प्रसिद्ध चित्रकार नारायण खेर द्वारा बनाई गई कस्तूरबा और गांधीजी की तस्वीरें हैं.

यह कहते हुए कि 'मैं भगवान नहीं बनना चाहता', गांधीजी ने यह शर्त रखी कि उनकी स्मृति में कोई भी अगरबत्ती या दीपक नहीं जलाया जाना चाहिए, जिसका पालन किया जाता है. उनके चित्रों के नीचे सत्य और अहिंसा (truth and non-violence) लिखा है. उनकी स्मृति में केवल पुष्पांजलि की अनुमति है. इस प्रकार 27-05-1950 को सरदार वल्लभबाई पटेल (Sardar Vallabhbai Patel) द्वारा इस स्मारक को राष्ट्र को समर्पित किया गया.

कीर्ति मंदिर के दर्शन के लिए दुनिया भर से कई पर्यटक आते हैं. राजस्थान के एक पर्यटक मनोज कुमार ने ईटीवी भारत को बताया, 'हम 70 लोग हैं और यहां पहुंचे हैं और यहां हमें बहुत शांति मिली है. गांधीजी का विचार उस भारत का था, जिसमें हम आज रह रहे हैं. हम सभी को बापू के सपनों को पूरा करने की कोशिश की जानी चाहिए.

गांधीजी के बचपन के दिनों के बारे में गांधीवादी डॉ सुरेखाबेन शाह (Dr. Surekhaben Shah) ने कहा कि महात्मा गांधी के जन्म के बाद उनके माता-पिता समेत कई लोगों ने उनके व्यक्तित्व के विकास में योगदान दिया है.

करमचंद की यह विशेषता थी कि वह अपनी बात पूरी ईमानदारी से रखते थे. गांधीजी में ये गुण थे. उनकी मां धर्मपरायण थीं और बच्चे को अपने साथ प्रणमी मंदिर ले गईं. इस प्रकार उनमें भगवान राम में विश्वास और उनकी मां से आया.

पढ़ें - जानें कैसे देश का पहला नशा मुक्त जिला बना दमोह

जब गांधी जी को अंधेरे से डर लगता था तो उनकी देखभाल करने वाली रंभा नाम की एक महिला उनसे कहती थी कि भगवान राम ( Lord Ram ) का नाम लेने से किसी भी तरह के भय से मुक्ति मिल जाती है. इसे गांधी जी कभी नहीं भूल सके थे. गांधीजी ने अपनी प्राथमिक शिक्षा पोरबंदर के अध्वर्यु पाठशाला में की और फिर 7 साल की उम्र में आगे की पढ़ाई के लिए राजकोट चले गए.

पोरबंदर के जिला कलेक्टर (Porbandar District Collector) अशोक शर्मा (Ashok Sharma ) ने इस वर्ष गांधीजी के जन्म दिवस पर कीर्ति मंदिर में आयोजित कार्यक्रम के बारे में कहा कि इस वर्ष कीर्ति मंदिर की वेबसाइट का शुभारंभ किया जाएगा. इसके अलावा सेल्फी प्वाइंट, स्वदेशी प्वाइंट और मोहन से मोहन तक हिंदी पुस्तक का विमोचन किया जाएगा.

गांधीजी का 153वां जन्मदिन है और 153 बच्चे सफाई अभियान में हिस्सा लेंगे. इस मौके पर गुजरात के मुख्यमंत्री भूपेंद्र पटेल भी मौजूद रहेंगे.

अहमदाबाद : पोरबंदर (Porbandar) भगवान कृष्ण (Lord Krishna) के मित्र सुदामा (Sudama) की कर्मभूमि है और महात्मा गांधी (Mahatma Gandhi) यानी भारत के राष्ट्रपिता (Father of the Nation) मोहनदास करमचंद गांधी (Mohandas Karamchand Gandhi) की जन्मस्थली है. साबरमती के वह संत जिन्होंने सत्य और अहिंसा के अस्त्र से विश्व को वश में कर लिया. जिस स्थान पर उनका जन्म हुआ. वह आज कीर्ति मंदिर (Kirti Mandir) के नाम से जाना जाता है.

यह स्थान दो खंडों में विभाजित है, एक वह स्थान है जहां महात्मा गांधी का जन्म हुआ था और दूसरा कीर्ति मंदिर है, जो बापू को श्रद्धांजलि देने के लिए बनाया गया स्थान है. गांधीजी का जन्म 2 अक्टूबर 1869 को पोरबंदर में इसी स्थान पर हुआ था. पुराने घर को महात्मा गांधी के परदादा हरजीवन गांधी (great-grandfather Harjivan Gandhi) ने 1777 में पोरबंदर की एक ब्राह्मण महिला से खरीदा था.

'कीर्ति मंदिर' जहां राष्ट्रपिता महात्मा गांधी का जन्म हुआ

गांधीजी के दादा उत्तमचंद गांधी (Uttamchand Gandhi), जिन्हें ओटा गांधी (Ota Gandhi) के नाम से जाना जाता था. उन्होंने इमारत का विस्तार तीन मंजिलों तक किया. ओटा गांधी पोरबंदर राज्य के दीवान थे. गांधी जी 7 साल तक पोरबंदर में रहे, फिर वे पढ़ाई के लिए राजकोट गए और 1882 में मोहनदास गांधी जी का विवाह 13 साल की उम्र में पोरबंदर के नागरशेत गोकुलदास माकनजी (Nagarshet Gokuldas Makanji) की बेटी कस्तूरबा से हो गया.

गलियारे में एक बड़ा टैंक है, जिसमें बारिश का पानी जमा होता है, साथ ही दरवाजे में नक्काशी और कास्ट आर्ट (carvings and cast art) भी है. जिस स्थान पर बापू का जन्म हुआ था, उस स्थान पर एक स्वास्तिक बनाया गया है और ऊपर रैंटियो (चरखा) के साथ उनका एक ऑयल पिरक्चर (oil picture) रखा गया है.

साथ ही विपरीत दिशा में पिता करमचंद और माता पुतली बाई की 3डी तस्वीर (D picture of father Karamchand and mother Putli Bai) भी लगाई गई है. मां पुतली बाई वैष्णववाद की सख्त अनुयायी थीं और वह अपने अलग रसोई में खाना बनाती थीं जबकि ऊपर एक और रसोई थी. कमरों को सजाया और रंगा हुए हैं.

1944-45 में जब बापू को आगा खान पैलेस (Aga Khan Palace) की कैद से रिहा किया गया, तो पोरबंदर के राजारत्न सेठ नानजी कालिदास मेहता (Rajaratna Seth Nanji Kalidas Mehta) ने उनसे पंचगिनी में रहने का अनुरोध किया.

इस बीच पोरबंदर के महाराज नटवरसिंहजी (Maharaj Natwarsinhji of Porbandar ) ने लोगों की भावनाओं को व्यक्त किया और बापू के जन्म स्थान के पास एक सुंदर स्मारक बनाने की बात कही.

बापू मान गए और 1947 में दरबार साहब गोपाल दास देसाई (Darbar Saheb Gopal Das Desai) ने स्मारक की आधारशिला रखी. कीर्ति मंदिर दो साल में ₹5 लाख की लागत से बनाया गया था.

जब गांधीजी की मृत्यु हुई, तो वे 79 वर्ष के थे, गरीबी और अंधकार को मिटाने के लिए उनके आजीवन संघर्ष के प्रतीक के रूप में 79 दीयों के आकार के ऊपर मिट्टी के बर्तन बनाए गए थे.

यहां छह प्रमुख धर्मों के चिन्ह भी रखे गए थे. इसके अलावा, जैसा कि बापू ने कहा, मेरा जीवन एक खुली किताब है, खुली किताब की तरह, पोरबंदर के एक प्रसिद्ध चित्रकार नारायण खेर द्वारा बनाई गई कस्तूरबा और गांधीजी की तस्वीरें हैं.

यह कहते हुए कि 'मैं भगवान नहीं बनना चाहता', गांधीजी ने यह शर्त रखी कि उनकी स्मृति में कोई भी अगरबत्ती या दीपक नहीं जलाया जाना चाहिए, जिसका पालन किया जाता है. उनके चित्रों के नीचे सत्य और अहिंसा (truth and non-violence) लिखा है. उनकी स्मृति में केवल पुष्पांजलि की अनुमति है. इस प्रकार 27-05-1950 को सरदार वल्लभबाई पटेल (Sardar Vallabhbai Patel) द्वारा इस स्मारक को राष्ट्र को समर्पित किया गया.

कीर्ति मंदिर के दर्शन के लिए दुनिया भर से कई पर्यटक आते हैं. राजस्थान के एक पर्यटक मनोज कुमार ने ईटीवी भारत को बताया, 'हम 70 लोग हैं और यहां पहुंचे हैं और यहां हमें बहुत शांति मिली है. गांधीजी का विचार उस भारत का था, जिसमें हम आज रह रहे हैं. हम सभी को बापू के सपनों को पूरा करने की कोशिश की जानी चाहिए.

गांधीजी के बचपन के दिनों के बारे में गांधीवादी डॉ सुरेखाबेन शाह (Dr. Surekhaben Shah) ने कहा कि महात्मा गांधी के जन्म के बाद उनके माता-पिता समेत कई लोगों ने उनके व्यक्तित्व के विकास में योगदान दिया है.

करमचंद की यह विशेषता थी कि वह अपनी बात पूरी ईमानदारी से रखते थे. गांधीजी में ये गुण थे. उनकी मां धर्मपरायण थीं और बच्चे को अपने साथ प्रणमी मंदिर ले गईं. इस प्रकार उनमें भगवान राम में विश्वास और उनकी मां से आया.

पढ़ें - जानें कैसे देश का पहला नशा मुक्त जिला बना दमोह

जब गांधी जी को अंधेरे से डर लगता था तो उनकी देखभाल करने वाली रंभा नाम की एक महिला उनसे कहती थी कि भगवान राम ( Lord Ram ) का नाम लेने से किसी भी तरह के भय से मुक्ति मिल जाती है. इसे गांधी जी कभी नहीं भूल सके थे. गांधीजी ने अपनी प्राथमिक शिक्षा पोरबंदर के अध्वर्यु पाठशाला में की और फिर 7 साल की उम्र में आगे की पढ़ाई के लिए राजकोट चले गए.

पोरबंदर के जिला कलेक्टर (Porbandar District Collector) अशोक शर्मा (Ashok Sharma ) ने इस वर्ष गांधीजी के जन्म दिवस पर कीर्ति मंदिर में आयोजित कार्यक्रम के बारे में कहा कि इस वर्ष कीर्ति मंदिर की वेबसाइट का शुभारंभ किया जाएगा. इसके अलावा सेल्फी प्वाइंट, स्वदेशी प्वाइंट और मोहन से मोहन तक हिंदी पुस्तक का विमोचन किया जाएगा.

गांधीजी का 153वां जन्मदिन है और 153 बच्चे सफाई अभियान में हिस्सा लेंगे. इस मौके पर गुजरात के मुख्यमंत्री भूपेंद्र पटेल भी मौजूद रहेंगे.

Last Updated : Oct 2, 2021, 10:02 AM IST
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