नई दिल्ली : कांग्रेस के वरिष्ठ नेता और पूर्व कानून मंत्री सलमान खुर्शीद ने कहा है कि अयोध्या मामले में उच्चतम न्यायालय का फैसला 'हिंदू राष्ट्र के विचार' को खारिज करता है और धर्मनिरपेक्ष व्यवस्था में संवेदनशील धार्मिक मसलों का व्यवहारिक रूप से निवारण करने पर जोर देता है.
उन्होंने अपनी पुस्तक सनराइज ओवर अयोध्या : 'नेशनहूड इन ऑवर टाइम्स’ में यह लिखा है. उनकी यह पुस्तक सोमवार से बाजार में पाठकों के लिए उपलब्ध है. खुर्शीद की इस पुस्तक में 2019 में रामजन्मभूमि-बाबरी मस्जिद विवाद में आए फैसले पर प्रकाश डाला गया है.
इसमें वह कहते हैं, 'सर्वोच्च अदालत ने कानूनी सिद्धांतों को स्वीकारते हुए और सभ्यता से संबंधित पुराने घाव पर मरहम लगाते हुए संतुलन बनाने का बेहतरीन प्रयास किया.'
उन्होंने कहा, 'यह हो सकता है कि उच्चतम न्यायालय ने इस मामले में हिंदू के पक्ष के अभिप्राय को मुस्लिम पक्ष के अभिप्राय से थोड़ा ज्यादा ठोस माना हो, लेकिन उसने मुसलमानों को इस बात के लिए प्रेरित करने के लिए बेहतरीन काम किया कि वे इसे एक पराजय की बजाय सुलह के लम्हे के तौर पर देखें.'
पूर्व केंद्रीय मंत्री इस पुस्तक में यह भी कहते हैं, 'मुस्लिम जो इस अदालती फैसले को स्वीकार करने में कटिबद्ध रहे हैं, अब उनके लिए विन्रमता और उदारता दिखाने का मौका है तथा उनके पास सच्ची राष्ट्रीय एकजुटता में भीगदारी के तौर पर अपना दावा पेश करने का भी अवसर है.'
उच्चतम न्यायालय की पांच सदस्यीय संविधान पीठ ने नौ नवंबर, 2019 को अयोध्या में उस स्थान पर राम मंदिर का निर्माण करने का फैसला सुनाया था जहां एक समय बाबरी मस्जिद थी. इसके साथ ही शीर्ष अदालत ने केंद्र सरकार को निर्देश दिया था कि वह नई मस्जिद के निर्माण के लिए सुन्नी वक्फ बोर्ड को पांच एकड़ जमीन दे. इस पीठ की अध्यक्षता तत्कालीन प्रधान न्यायाधीश रंजन गोगोई ने की थी.
इसके संदर्भ में खुर्शीद ने अपनी पुस्तक में लिखा है, 'इस फैसले में भारत के धर्मनिरपेक्ष स्वभाव पर जोर दिए जाने को सिर्फ इसके परिणाम तक सीमित नहीं करना चाहिए. यह एक ऐसा सत्य है जो सुलह को आगे ले जाने वाला है. सुन्नी वक्फ बोर्ड को पांच एकड़ भूमि आवंटित करने करने का आदेश इस बात का द्योतक है कि अदालत और राष्ट्र सभी नागरिकों के साथ समान व्यवहार करते हैं.'
इस 354 पृष्ठों वाली पुस्तक में खुर्शीद ने अयोध्या मामले से जुड़े न्यायिक इतिहास और इसके प्रभावों का विश्लेषण किया है.
उन्होंने कहा, 'यह एक ऐसा फैसला है जो हिंदू राष्ट्र के विचार को खारिज करता है और धर्मनिरपेक्ष व्यवस्था में संवेदनशील धार्मिक मसलों का व्यवहारिक रूप से निवारण करने पर जोर देता है.'
(पीटीआई-भाषा)