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Khandwa Fauziya मूक बधिरों की आवाज बनी 13 साल की फौजिया, कोर्ट कचहरी से लेकर पुलिस थाने तक लड़ती है न्याय दिलाने की लड़ाई

एमपी के खंडवा की रहने वाली आठवीं क्लास की छात्रा मूक बधिरों की आवाज बनकर सामने आई है. 13 साल की छात्रा फौजिया मूक बधिरों की मदद के लिए दिन रात तैयार रहती है. राशन दिलाने से लेकर पुलिस थाना, कोर्ट कचहरी मूक बधिरों को किसी भी चीज की जरूरत हो फौजिया वहां उनकी आवाज बनकर खड़ी होती है. फौजिया न सिर्फ उनके हक की आवाज उठाती है बल्कि उनके लिए हर तरह का संघर्ष करने को भी तैयार रहती है. Khandwa Fauziya, Khandwa Minor Girl Helps Deaf And Dumb, Fauziya Giving Justice Deaf And Dumb.

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खंडवा 8वीं कक्षा की लड़की मूक बधिरों की मददगार
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Published : Aug 13, 2022, 11:07 PM IST

खंडवा। समाज को मूक बधिरों की मदद को लेकर जागरुक करने के प्रयास का एक अनूठा मामला सामने आया है. यहां 8 वीं कक्षा की एक छात्रा मूक-बधिरों की आवाज बनकर सामने आई है. वह मूक बधिर लोगों और समाज से विभिन्न तबकों के बीच सेतु बनने का काम कर रही है. 13 साल की फौजिया अपने दम पर पुलिस थाना, कोर्ट कचहरी जैसे सरकारी कामों में भी मूक बधिर लोगों की आवाज बनकर उनको इंसाफ दिलाने का काम कर रही है. खंडवा, इंदौर, बुरहानपुर, इटारसी के साथ एमपी के कई जिलों में वह कलेक्टर, एसपी के सामने वकीलों की तरह बेबाकी से पीड़ितों का पक्ष रख चुकी है. इतना ही नहीं फौजिया के इस जुनून को देखकर कई पुलिसवाले भी इसे मदद के लिए बुलाते हैं. Khandwa Fauziya

खंडवा 8वीं कक्षा की लड़की मूक बधिरों की मददगार

मदद से मिली खुशी: बुरहानपुर से अपने इस काम की शुरूआत करने वाली फौजिया न सिर्फ पीड़ितों के हक की लड़ाई लड़ती है बल्कि उनको न्याय मिलने तक उनके साथ रहती है. फौजिया के मुताबिक इस लड़ाई की शुरुआत बुरहानपुर से की गई थी. यहां एक मूक-बधिर अपनी परेशानी को लेकर प्रशासनिक कार्यालयों का चक्कर काट रहा था. जिसे देख फौजिया ने बुरहानपुर प्रशासन से मदद दिलाने में उसे मदद की. इससे उसे खुशी मिली थी. तब से मूक-बधिरों को उनका हक दिलाना उनकी आवाज उठाना और उन्हें न्याय दिलाना फौजिया का जुनून बन गया है.

दिन रात मदद को रहती है तैयार: खास बात यह है कि फौजिया ने इसके लिए कोई विशेष पढ़ाई नहीं की है ना ही अलग से कोई ट्रेनिंग ली है. फौजिया ने अपने मूक बधिर माता पिता को देखकर उनसे मूक-बधिरों की भाषा सीखी. इनके पिता फारुख और मां फेमिदा मूक-बधिर हैं. माता पिता को इशारों में बात करते देख कर वह भी इस भाषा को सीख गई. इसी के दम पर वह मूक-बधिरों की मदद करती है. मूक बधिरों की समस्या अधिकारियों और प्रशासन के सामने स्पष्ट रूप से रख पाती है. जिससे प्रशासन आसानी से इनकी परेशानी समझ उन्हें मदद कर पाता है. अपनी मां से प्रेरणा लेकर फौजिया ने मूक बधिर लोगों की मदद करना शुरू कर दी. फौजिया कानूनी काम से लेकर सरकारी दस्तावेज बनाने में भी मूक-बधिरों की मदद के लिए दिन रात तैयार रहती है. (Khandwa Fauziya) (khandwa Minor Girl helps deaf and Dumb) (Fauziya Giving Justice Deaf And Dumb)

घरेलू विवाद में समझौता: फौजिया ने खंडवा में एक मूक-बधिर परिवार को टूटने से बचाया था. यहां एक परिवार के युवक-युवती एक दूसरे से प्यार करते थे. दोनों एक दूसरे से शादी करना चाहते थे, लेकिन घर के लोग इस बात से नाराज थे. मामला पुलिस थाने पहुंच गया. घरेलू विवाद में समझौता कराने पुलिस घर आई, लेकिन पुलिस को इनकी लैंग्वेज समझने में दिक्कत आ रही थी. इसके बाद फौजिया यहां बुलाया गया. उसने पुलिस को युवक-युवती का पक्ष समझाया. युवक-युवती को भी पुलिस की बात बताई. जिसके बाद दोनों पक्षों में समझौता हो गया.

मूक बधिरों की आवाज बनीं ग्वालियर की मेघा, साइन लैंग्वेज से बताए कोरोना से बचाव के उपाय

माता-पिता ने दी प्रेरणा: आठवीं कक्षा में पढ़ाई करने वाली 13 साल की फौजिया अब-तक कई मूक-बधिरों की मदद कर चुकी है. जब कोई उसे मदद के लिए बुलाता है तो वह फौरन पहुंच जाती है. फौजिया की मानें तो माता-पिता मूक बधिर हैं जब उन्हें कोई जरूरत पड़ती थी तो वह अपने काम को लेकर इधर से उधर भटकते रहते थे. कोई साथ नहीं देता था. इसलिए माता-पिता ने मूक-बधिर लोगों की मदद करने के लिए प्रेरित किया.

खंडवा। समाज को मूक बधिरों की मदद को लेकर जागरुक करने के प्रयास का एक अनूठा मामला सामने आया है. यहां 8 वीं कक्षा की एक छात्रा मूक-बधिरों की आवाज बनकर सामने आई है. वह मूक बधिर लोगों और समाज से विभिन्न तबकों के बीच सेतु बनने का काम कर रही है. 13 साल की फौजिया अपने दम पर पुलिस थाना, कोर्ट कचहरी जैसे सरकारी कामों में भी मूक बधिर लोगों की आवाज बनकर उनको इंसाफ दिलाने का काम कर रही है. खंडवा, इंदौर, बुरहानपुर, इटारसी के साथ एमपी के कई जिलों में वह कलेक्टर, एसपी के सामने वकीलों की तरह बेबाकी से पीड़ितों का पक्ष रख चुकी है. इतना ही नहीं फौजिया के इस जुनून को देखकर कई पुलिसवाले भी इसे मदद के लिए बुलाते हैं. Khandwa Fauziya

खंडवा 8वीं कक्षा की लड़की मूक बधिरों की मददगार

मदद से मिली खुशी: बुरहानपुर से अपने इस काम की शुरूआत करने वाली फौजिया न सिर्फ पीड़ितों के हक की लड़ाई लड़ती है बल्कि उनको न्याय मिलने तक उनके साथ रहती है. फौजिया के मुताबिक इस लड़ाई की शुरुआत बुरहानपुर से की गई थी. यहां एक मूक-बधिर अपनी परेशानी को लेकर प्रशासनिक कार्यालयों का चक्कर काट रहा था. जिसे देख फौजिया ने बुरहानपुर प्रशासन से मदद दिलाने में उसे मदद की. इससे उसे खुशी मिली थी. तब से मूक-बधिरों को उनका हक दिलाना उनकी आवाज उठाना और उन्हें न्याय दिलाना फौजिया का जुनून बन गया है.

दिन रात मदद को रहती है तैयार: खास बात यह है कि फौजिया ने इसके लिए कोई विशेष पढ़ाई नहीं की है ना ही अलग से कोई ट्रेनिंग ली है. फौजिया ने अपने मूक बधिर माता पिता को देखकर उनसे मूक-बधिरों की भाषा सीखी. इनके पिता फारुख और मां फेमिदा मूक-बधिर हैं. माता पिता को इशारों में बात करते देख कर वह भी इस भाषा को सीख गई. इसी के दम पर वह मूक-बधिरों की मदद करती है. मूक बधिरों की समस्या अधिकारियों और प्रशासन के सामने स्पष्ट रूप से रख पाती है. जिससे प्रशासन आसानी से इनकी परेशानी समझ उन्हें मदद कर पाता है. अपनी मां से प्रेरणा लेकर फौजिया ने मूक बधिर लोगों की मदद करना शुरू कर दी. फौजिया कानूनी काम से लेकर सरकारी दस्तावेज बनाने में भी मूक-बधिरों की मदद के लिए दिन रात तैयार रहती है. (Khandwa Fauziya) (khandwa Minor Girl helps deaf and Dumb) (Fauziya Giving Justice Deaf And Dumb)

घरेलू विवाद में समझौता: फौजिया ने खंडवा में एक मूक-बधिर परिवार को टूटने से बचाया था. यहां एक परिवार के युवक-युवती एक दूसरे से प्यार करते थे. दोनों एक दूसरे से शादी करना चाहते थे, लेकिन घर के लोग इस बात से नाराज थे. मामला पुलिस थाने पहुंच गया. घरेलू विवाद में समझौता कराने पुलिस घर आई, लेकिन पुलिस को इनकी लैंग्वेज समझने में दिक्कत आ रही थी. इसके बाद फौजिया यहां बुलाया गया. उसने पुलिस को युवक-युवती का पक्ष समझाया. युवक-युवती को भी पुलिस की बात बताई. जिसके बाद दोनों पक्षों में समझौता हो गया.

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माता-पिता ने दी प्रेरणा: आठवीं कक्षा में पढ़ाई करने वाली 13 साल की फौजिया अब-तक कई मूक-बधिरों की मदद कर चुकी है. जब कोई उसे मदद के लिए बुलाता है तो वह फौरन पहुंच जाती है. फौजिया की मानें तो माता-पिता मूक बधिर हैं जब उन्हें कोई जरूरत पड़ती थी तो वह अपने काम को लेकर इधर से उधर भटकते रहते थे. कोई साथ नहीं देता था. इसलिए माता-पिता ने मूक-बधिर लोगों की मदद करने के लिए प्रेरित किया.

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