कोच्चि: त्रिशूर की विय्यूर जेल में 2016 से हत्या के एक मामले में आजीवन कारावास की सजा काट रहे एक कैदी को केरल उच्च न्यायालय ने बड़ी राहत दी है. कोर्ट ने कैदी की पत्नी की याचिका पर कैदी को आईवीएफ उपचार के लिए पैरोल पर रिहा करने की इजाजत दे दी है. कैदी के पत्नी जो पेशे से एक शिक्षिका भी है ने इन-विट्रो फर्टिलाइजेशन/इंट्रासाइटोप्लाज्मिक स्पर्म इंजेक्शन (आईवीएफ/आईसीएसआई) से गुजरने के लिए उनकी पैरोल के लिए याचिका दाखिल की थी.
मामले की सुनवाई केरल उच्च न्यायालय में हुई. एक दुर्लभ आदेश में अदालत ने कैदी को आईवीएफ ट्रीटमेंट के लिए कम से कम 15 दिनों का पैरोल दिया है. फैसला सुनाते हुए कहा कि कैदी के पत्नी के इस अनुरोध को तकनीकी आधार पर अनदेखा नहीं किया जा सकता है.
याचिकाकर्ता महिला ने कोर्ट में कहा कि उनकी शादी 2012 में हुई थी. उसके बाद से दंपत्ती के तौर पर संतान हासिल के करने के लिए उनके पति को विभिन्न उपचारों से गुजरना पड़ा है. याचिकाकर्ता ने कहा कि प्रभावी उपचार के लिए उसकी तीन महीने की उपस्थिति की आवश्यकता होगी. उन्होंने बताया कि पैरोल देने के लिए केरल जेल और सुधार सेवा (प्रबंधन) अधिनियम, 2010 की धारा 73 को लागू करने का अनुरोध किया गया था, लेकिन अधिकारियों ने कोई कार्रवाई नहीं की.
याचिकाकर्ता की ओर से कहा गया कि संतानोत्पत्ति का अधिकार दंपति का मौलिक अधिकार है. अदालत ने कहा कि एक दोषी संविधान के तहत उपलब्ध सभी मौलिक अधिकारों का हकदार नहीं है. लेकिन 31 वर्षीय याचिकाकर्ता ने अदालत का दरवाजा खटखटाया है और कहा कि वह अपने पति के साथ खुद का बच्चा चाहती है.
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कोर्ट ने कहा कि जब एक पत्नी अदालत के सामने यह अनुरोध लेकर आती है कि वह अपने पति, जो कारावास की सजा काट रहा है, के साथ रिश्ते में एक बच्चा चाहती है, तो अदालत तकनीकी पहलुओं पर इसे नजरअंदाज नहीं कर सकती है. आपराधिक मामलों में दोषसिद्धि और सजा मुख्य रूप से अपराधियों को सुधारने और पुनर्वास के लिए है.