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बाल अधिकार आयोग में नियुक्तियों पर केरल HC ने उठाया सवाल, सरकार से मांगा जवाब - Kerala HC seeks reply from state govt

केरल हाईकोर्ट ने सवाल किया कि DCPO को अधिकार कैसे मिला, कि किसी महिला को मानसिक उपचार कराने की आवश्यकता है या नहीं. उन्होंने कहा कि यह 'भयावह' था कि आयोग ने DCPO को मानसिक स्थिति रिपोर्ट प्रस्तुत करने का निर्देश देना उचित समझा.

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Published : Dec 30, 2021, 2:27 PM IST

कोच्चि : केरल उच्च न्यायालय (Kerala High Court) ने राज्य सरकार से राज्य बाल अधिकार संरक्षण आयोग (State Commission for Protection of Child Rights) में नियुक्तियों के तरीके और उसके लिए निर्धारित योग्यता पर जवाब मांगा है. हाईकोर्ट ने बाल अधिकार संरक्षण आयोग की नियुक्ति पर सवाल तब उठाया जब आयोग ने वैवाहिक विवाद में पति की शिकायत पर महिला का मानसिक उपचार कराने का निर्देश दिया है.

इस मामले में उच्च न्यायालय ने पाया कि राज्य बाल अधिकार संरक्षण आयोग को मानसिक स्वास्थ्य अधिनियम, 2017 की जानकारी नहीं है, क्योंकि महिला के मानसिक उपचार का निर्देश देना उनके 'अधिकार क्षेत्र' में नहीं आता है, वह भी जिला बाल संरक्षण अधिकारी (District Child Protection Officer-DCPO) की रिपोर्ट के आधार पर.

इसलिए अदालत ने सवाल किया कि DCPO को अधिकार कैसे मिला, कि किसी महिला को मानसिक उपचार कराने की आवश्यकता है या नहीं. उन्होंने कहा कि यह 'भयावह' था कि आयोग ने DCPO को मानसिक स्थिति रिपोर्ट प्रस्तुत करने का निर्देश देना उचित समझा.

पढ़ें : हड़ताल पर होने के बावजूद वेतन लेने वालों से वसूली करे सरकार : हाई कोर्ट

अदालत ने यह भी कहा कि एक जुडिशल मजिस्ट्रेट, जिसके पास मानसिक स्वास्थ्य अधिनियम के तहत अधिकार था, ने महिला के मानसिक उपचार संबंधी पति की याचिका को खारिज कर दिया. पूरी स्थिति का जायजा लेने के बाद अदालत ने पाया कि आयोग ने अपने अधिकार क्षेत्र के बाहर जाकर यह निर्देश दिया, जिससे न केवल बच्चे, बल्कि मां को भी कष्ट पहुंचा है.

अदालत ने राज्य की ओर से पेश वरिष्ठ सरकारी वकील को निर्देश दिया कि आयोग में नियुक्तियां कैसे होती हैं, इस संबंध में जवाब दें.

उच्च न्यायालय ने महिला के पिता द्वारा दायर बंदी प्रत्यक्षीकरण याचिका पर भी यह आदेश दिया. इस याचिका में पुलिस को मानसिक अस्पताल में भर्ती उनकी बेटी और दामाद के पास मौजूद नातियों को अदालत में पेश करने का निर्देश देने का अनुरोध किया गया था. अदालत ने कोडुंगल्लूर के थाना प्रभारी को मामले में की गई जांच की प्रगति को रिकॉर्ड में रखने का निर्देश दिया, जिसे माता की शिकायत पर दर्ज करने का निर्देश दिया गया था.

महिला के पिता ने अपनी याचिका में दावा किया था कि शादी के बाद से ही दंपति के बीच वैवाहिक कलह चल रही थी और बाद में बच्चे पैदा होने के बाद उनकी बेटी को ससुराल से बेदखल कर दिया गया. इसके बाद, उनकी बेटी अपने बच्चों के साथ किराये के मकान में रह रही थी और जब उसके पति ने फिर से उन्हें परेशान करना शुरू किया, तो उसने तलाक के लिए आवेदन दायर किया.

इसने आगे कहा कि तलाक के आवेदन पर प्रतिशोध में आकर व्यक्ति ने अपनी पत्नी को एक मानसिक रोगी के रूप में चित्रित करने का प्रयास किया और उसे एक मनोरोगी अस्पताल में भर्ती कराने के लिए न्यायिक मजिस्ट्रेट से संपर्क किया.

उच्च न्यायालय ने अपने आदेश में उल्लेख किया, हालांकि, जब यह प्रयास असफल रहा तो व्यक्ति ने बाल अधिकार आयोग का रुख किया, जिसने DCPO द्वारा दी गई मानसिक स्थिति रिपोर्ट के आधार पर उसके पक्ष में आदेश पारित किया. अदालत में महिला के दोनों बच्चों ने बताया कि उनकी मां को कोई मानसिक बीमारी नहीं है और वह उनका बहुत ख्याल रखती है तथा वे अपने पिता के साथ नहीं रहना चाहते.

(पीटीआई-भाषा)

कोच्चि : केरल उच्च न्यायालय (Kerala High Court) ने राज्य सरकार से राज्य बाल अधिकार संरक्षण आयोग (State Commission for Protection of Child Rights) में नियुक्तियों के तरीके और उसके लिए निर्धारित योग्यता पर जवाब मांगा है. हाईकोर्ट ने बाल अधिकार संरक्षण आयोग की नियुक्ति पर सवाल तब उठाया जब आयोग ने वैवाहिक विवाद में पति की शिकायत पर महिला का मानसिक उपचार कराने का निर्देश दिया है.

इस मामले में उच्च न्यायालय ने पाया कि राज्य बाल अधिकार संरक्षण आयोग को मानसिक स्वास्थ्य अधिनियम, 2017 की जानकारी नहीं है, क्योंकि महिला के मानसिक उपचार का निर्देश देना उनके 'अधिकार क्षेत्र' में नहीं आता है, वह भी जिला बाल संरक्षण अधिकारी (District Child Protection Officer-DCPO) की रिपोर्ट के आधार पर.

इसलिए अदालत ने सवाल किया कि DCPO को अधिकार कैसे मिला, कि किसी महिला को मानसिक उपचार कराने की आवश्यकता है या नहीं. उन्होंने कहा कि यह 'भयावह' था कि आयोग ने DCPO को मानसिक स्थिति रिपोर्ट प्रस्तुत करने का निर्देश देना उचित समझा.

पढ़ें : हड़ताल पर होने के बावजूद वेतन लेने वालों से वसूली करे सरकार : हाई कोर्ट

अदालत ने यह भी कहा कि एक जुडिशल मजिस्ट्रेट, जिसके पास मानसिक स्वास्थ्य अधिनियम के तहत अधिकार था, ने महिला के मानसिक उपचार संबंधी पति की याचिका को खारिज कर दिया. पूरी स्थिति का जायजा लेने के बाद अदालत ने पाया कि आयोग ने अपने अधिकार क्षेत्र के बाहर जाकर यह निर्देश दिया, जिससे न केवल बच्चे, बल्कि मां को भी कष्ट पहुंचा है.

अदालत ने राज्य की ओर से पेश वरिष्ठ सरकारी वकील को निर्देश दिया कि आयोग में नियुक्तियां कैसे होती हैं, इस संबंध में जवाब दें.

उच्च न्यायालय ने महिला के पिता द्वारा दायर बंदी प्रत्यक्षीकरण याचिका पर भी यह आदेश दिया. इस याचिका में पुलिस को मानसिक अस्पताल में भर्ती उनकी बेटी और दामाद के पास मौजूद नातियों को अदालत में पेश करने का निर्देश देने का अनुरोध किया गया था. अदालत ने कोडुंगल्लूर के थाना प्रभारी को मामले में की गई जांच की प्रगति को रिकॉर्ड में रखने का निर्देश दिया, जिसे माता की शिकायत पर दर्ज करने का निर्देश दिया गया था.

महिला के पिता ने अपनी याचिका में दावा किया था कि शादी के बाद से ही दंपति के बीच वैवाहिक कलह चल रही थी और बाद में बच्चे पैदा होने के बाद उनकी बेटी को ससुराल से बेदखल कर दिया गया. इसके बाद, उनकी बेटी अपने बच्चों के साथ किराये के मकान में रह रही थी और जब उसके पति ने फिर से उन्हें परेशान करना शुरू किया, तो उसने तलाक के लिए आवेदन दायर किया.

इसने आगे कहा कि तलाक के आवेदन पर प्रतिशोध में आकर व्यक्ति ने अपनी पत्नी को एक मानसिक रोगी के रूप में चित्रित करने का प्रयास किया और उसे एक मनोरोगी अस्पताल में भर्ती कराने के लिए न्यायिक मजिस्ट्रेट से संपर्क किया.

उच्च न्यायालय ने अपने आदेश में उल्लेख किया, हालांकि, जब यह प्रयास असफल रहा तो व्यक्ति ने बाल अधिकार आयोग का रुख किया, जिसने DCPO द्वारा दी गई मानसिक स्थिति रिपोर्ट के आधार पर उसके पक्ष में आदेश पारित किया. अदालत में महिला के दोनों बच्चों ने बताया कि उनकी मां को कोई मानसिक बीमारी नहीं है और वह उनका बहुत ख्याल रखती है तथा वे अपने पिता के साथ नहीं रहना चाहते.

(पीटीआई-भाषा)

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