एर्नाकुलम : केरल उच्च न्यायालय ने गुरुवार को 30 सप्ताह से अधिक की गर्भवती 10 वर्षीय बच्ची के तिरुवनंतपुरम के एसएटी अस्पताल में चिकित्सीय गर्भपात की इजाजत दे दी है. रिश्तों को शर्मसार करने वाले मामले में पिता पर ही बेटी से दुष्कर्म का आरोप है, जिसके कारण बेटी गर्भवती हुई. कोर्ट ने इस मामले में तल्ख टिप्पणी की. उच्च न्यायालय के न्यायमूर्ति पी वी कुन्हीकृष्णन ने फैसला सुनाते हुए कहा कि 'इस तरह की घटना के लिए पूरे समाज को शर्म से सिर झुकाना चाहिए.'
पीड़िता की जांच के लिए गठित मेडिकल बोर्ड ने राय व्यक्त की थी कि इस प्रक्रिया के दौरान बच्चे के जीवित रहने की 80 प्रतिशत संभावना है. न्यायाधीश ने कहा कि 'मेरे अनुसार यह एक ऐसा मामला है जिसमें पूरे तथ्यों और परिस्थितियों को ध्यान में रखते हुए इस अदालत को अपने अधिकार क्षेत्र का प्रयोग करना चाहिए. इसके साथ ही उन्होंने राज्य सरकार और अस्पताल से कहा कि अगर शिशु जीवित रहता है तो उसे सभी जरूरी चिकित्सा सहायता प्रदान की जाए. कोर्ट ने कहा कि अगर याचिकाकर्ता जिम्मेदारी नहीं ले सकती तो सरकार और महिला एवं बाल विभाग को जिम्मेदारी लेनी चाहिए.
इन निर्देशों के साथ अदालत ने नाबालिग दुष्कर्म पीड़िता की मां की याचिका को विचारार्थ स्वीकार कर लिया जिसमें गर्भपात की अनुमति मांगी गई थी. अदालत ने 10 वर्षीय बालिका की हालत को भी दुर्भाग्यपूर्ण बताया जो इतनी कम उम्र में गर्भवती हो गई. मेडिकल बोर्ड ने अपनी रिपोर्ट में कहा था कि गर्भ गिराने के लिए सर्जरी करनी होगी और बच्चे के जीवित बचने की 80 प्रतिशत संभावना है.
दरअसल गर्भवती बच्ची की मां ने उच्च न्यायालय का दरवाजा खटखटाया था क्योंकि डॉक्टरों ने गर्भपात करने से इनकार कर दिया था. मौजूदा नियमों के अनुसार 24 सप्ताह तक के भ्रूण का कानूनी रूप से गर्भपात किया जा सकता है.
पढ़ें- केरल: हाई कोर्ट ने 26 सप्ताह की नाबालिग गर्भवती को दी गर्भपात की इजाजत