कोच्चि : केरल उच्च न्यायालय ने राज्य सरकार के सामाजिक न्याय विभाग को चेतावनी दी कि अगर इस साल फरवरी में दिये गये दिशानिर्देशों के संबंध में उचित जवाब नहीं मिला तो वह उचित आदेश पारित करने के लिए बाध्य होगा.
उच्च न्यायालय ने फरवरी में अपने अंतरिम निर्देश में कहा था कि डेकेयर सेंटर और क्रेच के पंजीकरण के साथ-साथ सरकारी या गैर सरकारी संगठनों द्वारा संचालित ऐसे संस्थानों को धन आवंटन के लिए कुछ तंत्र होना चाहिए.
अदालत ने यह अंतरिम आदेश राज्य के महिला एवं बाल विकास विभाग द्वारा एक रिपोर्ट पेश करने के बाद दिया था. इस रिपोर्ट में महिला एवं बाल विकास ने कहा था कि डेकेयर सेंटर, प्री-स्कूल, किंडरगार्टन आदि के पंजीकरण या नियमन के लिए कोई कानून नहीं है, इसलिए आंगनबाड़ियों को छोड़कर ऐसे संस्थानों पर इसका कोई नियंत्रण नहीं है.
रिपोर्ट में यह भी कहा गया था कि ऐसे संस्थानों के शिक्षकों और बच्चों की देखभाल करने वालों को उचित प्रशिक्षण नहीं मिला है, जिसके परिणामस्वरूप अक्सर शिकायतें प्राप्त होती हैं.
उच्च न्यायालय ने अक्टूबर के अपने नवीनतम आदेश में कहा है, 'हम यह टिप्पणी करने के लिए विवश हैं कि चूंकि महिला एवं बाल विभाग के निदेशक ने स्पष्ट रूप से कहा है कि डेकेयर सेंटर, प्री-स्कूल, किंडरगार्टन के पंजीकरण/विनियमन आदि के लिए कोई कानून नहीं है… इसलिए आंगनबाड़ियों को छोड़कर ऐसे संस्थानों पर उसका कोई नियंत्रण नहीं है और साथ ही ऐसे संस्थानों के शिक्षकों और बच्चों की देखभाल करने वालों को उचित प्रशिक्षण नहीं मिला है, इस वजह से अक्सर शिकायतें प्राप्त होती हैं, ऐसी स्थिति में केरल सरकार को उपरोक्त मुद्दों पर गंभीरता पूर्वक ध्यान देना होगा.'
न्यायालय राज्य में डेकेयर सेंटर, क्रेच, प्री-स्कूल और किंडरगार्टन के कामकाज से संबंधित एक याचिका की सुनवाई कर रहा था.
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(पीटीआई-भाषा)