श्रीनगर (जम्मू और कश्मीर): जम्मू और कश्मीर प्रशासन के आश्वासन के बावजूद मटन विक्रेताओं और ग्राहकों के बीच मूल्य निर्धारण को लेकर खींचतान जारी है. मटन ₹650 से ₹700 रुपये किलो तक बिक रहा है, जो कि ₹535 की सरकारी अधिसूचना का उल्लंघन है, जबकि श्रीनगर में 200 से अधिक मांस की दुकानों को प्रशासन ने इस साल नियम तोड़ने के आरोप में सील कर दिया है.
रमजान के पवित्र महीने में मटन मूल्य निर्धारण को नियंत्रित करने में विफल रहने के लिए खाद्य, नागरिक आपूर्ति और उपभोक्ता मामले विभाग (एफसीएससीए) सवालों के घेरे में आ गया है. कुछ लोगों का तर्क है कि मटन विक्रेता भ्रष्ट हैं और कीमतों को बढ़ाते हैं, जबकि कुछ लोगों का आरोप है कि रोगियों को मटन सूप का खर्च उठाना बेहद चुनौतीपूर्ण हो गया है, क्योंकि मटन के दाम आसमान छू रहे हैं.
कश्मीर के खाद्य, नागरिक आपूर्ति और उपभोक्ता मामलों के विभाग के निदेशक डॉ. मुजामिल अब्दुल्ला ने ईटीवी भारत को फोन पर बताया कि मैंने अपनी प्रवर्तन टीमों को ₹600 प्रति किलो से अधिक का मटन बेचने वाली दुकानों को सील करने का आदेश दिया है. ₹535 प्रति किलोग्राम निर्धारित मूल्य के बावजूद भी ऐसा करने वालों के खिलाफ सख्त दिशा-निर्देश दिए गए हैं. लेकिन, जो लोग ₹600 रुपये से अधिक में बेचते हुए पाए जाते हैं, तो उनको बख्शा नहीं जाएगा. उन्होंने कहा, 'अगर कोई दर उल्लंघन है, तो हमें 18001807106 पर फोन करें, जो एक टोल-फ्री नंबर है. कश्मीर में मटन की भरपूर आपूर्ति होती है.
क्या कहते हैं विशेषज्ञ: शेरे कश्मीर यूनिवर्सिटी ऑफ एग्रीकल्चरल साइंसेज एंड टेक्नोलॉजी कश्मीर (SKUAST-K) के माउंटेन रिसर्च सेंटर फॉर शीप एंड गोट (MRCSG) डिवीजन के एक वैज्ञानिक डॉ अब्दुल सलाम मीर ने ईटीवी भारत से बात की. उन्होंने कहा कि सबसे अच्छी भेड़ें जम्मू और कश्मीर से आती हैं. बाजारों में मटन की कीमत अक्सर बहस छिड़ जाती है. ऐसे में बहुत से लोग सवाल करते हैं कि कश्मीर अपने आप में पर्याप्त मांस का उत्पादन क्यों नहीं कर सकता है?
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उन्होंने आगे कहा, 'जो आमतौर पर भेड़ और बकरियां पालते थे, उन्होंने हार मान ली है. हमें उन्हें एक बार फिर भेड़ पालन के लिए प्रेरित करना चाहिए. इन भेड़ों और बकरियों को घर के अंदर रहने के दौरान घास और चारे की आवश्यकता होती है. इस वजह से, वे राजस्थान और अन्य राज्यों की भेड़ों की तुलना में काफी महंगे हो जाते हैं. उन्होंने यह स्पष्ट किया कि हमें अपनी भेड़ों को विदेशी बाजारों में निर्यात क्यों नहीं करना चाहिए, जब हम उन्हें उचित मूल्य पर बेच सकते हैं.