श्रीनगर : जम्मू-कश्मीर से कश्मीरी हिरण से जुड़ी एक अच्छी खबर आ रही है. वन्यजीव विभाग ने कहा कि दो साल बाद इसकी आबादी में कुछ वृद्धि देखी जा रही है. इस खबर ने वन्यजीव प्रेमियों को खुश कर दिया है. वन्यजीव विभाग और कई गैर सरकारी संगठनों के एक हालिया सर्वेक्षण में यह निष्कर्ष निकाला है. हालांकि, अपने सर्वे के रिपोर्ट में उन्होंने कहा है कि हंगुल की बढ़ती आबादी को देखते हुए तत्काल उनकी सुरक्षा और संरक्षण के उपायों को बढ़ाये जाने की आवश्यकता है. हंगुल भारत की 'रेड लिस्ट' में शामिल वन्य प्राणी है. जिसका अर्थ है कि इस जीव की प्रजाति गंभीर रूप से खतरे में है.
भारतीय वन्यजीव संस्थान (डब्ल्यूआई), स्थानीय अनुसंधान संगठन और वन्यजीव संरक्षण विभाग, जम्मू और कश्मीर (डीडब्ल्यूएलपी) ढाचीगाम पारिस्थितिकी तंत्र में हंगुल की आबादी की गतिविधियों की निगरानी कर रहे हैं. शोधकर्ता, क्षेत्र कर्मी और स्वयंसेवक ट्रांसेक्ट सर्वेक्षण, कैमरा ट्रैपिंग और आनुवंशिक विश्लेषण जैसी वैज्ञानिक तकनीकों का उपयोग करके जनसंख्या की गतिशीलता, प्रवासन पैटर्न और प्रजातियों के आनुवंशिक स्वास्थ्य का अध्ययन कर रहे हैं.
हाल की जनसंख्या निगरानी अभियानों के अनुसार, वर्तमान में ढाचीगाम राष्ट्रीय उद्यान में 289 हंगुल हैं. इसके अलावा शिकार गाह, त्राल क्षेत्र में 14 हैं. लेकिन कई समस्याएं अभी भी प्रजातियों के भविष्य को खतरे में डाल रही हैं. हंगुल की आबादी में गिरावट के कई कारण बताए गए हैं. इनमें खास तौर से उनके लिए संरक्षित क्षेत्र का ना होना, उनके इलाके में मानवीय हस्तक्षेप का बढ़ना प्रमुख कारण है. मानवीय हस्तक्षेप बढ़ने के कारण वन क्षेत्र में चारे की किल्लत हो जाती है. इसके अलावा ईंधन के लिए लकड़ी का संग्रह करने जाने वाले लोगों से भी उन्हें खतरा होता है.
सेंट्रल डिवीजन के वन्यजीव वार्डन अल्ताफ हुसैन ने ईटीवी भारत से फोन पर बात करते हुए कहा कि दो साल बाद हंगुल की आबादी में वृद्धि देखना एक सकारात्मक विकास है. 2021 की जनगणना में, 261 हंगल पंजीकृत किए गए थे. इस लुप्तप्राय प्रजाति के लिए मुख्य चिंता यह है कि इसके आवास पर कोई दबाव न पड़े. हंगल की आबादी को और बढ़ाने के लिए, खोन मोह और त्राल क्षेत्रों में पास के दर्रों को बेहतर ढंग से संरक्षित किया जाना चाहिए.