नई दिल्ली: उच्चतम न्यायालय ने कर्नाटक हिजाब प्रतिबंध विवाद (Karnataka Hijab Row) में बुधवार को याचिकाकर्ताओं से कल एक घंटे के भीतर अपनी दलीलें खत्म करने की सलाह देते हुए कहा कि वह अपना धैर्य खो रहा है. नौवें दिन मामले की सुनवाई के दौरान शीर्ष अदालत ने कहा कि वह याचिकाकर्ताओं के वकीलों को बृहस्पतिवार को अपनी दलीलें समाप्त करने के लिए सिर्फ एक घंटे का समय देगी. न्यायमूर्ति हेमंत गुप्ता और न्यायमूर्ति सुधांशु धूलिया की पीठ ने याचिकाकर्ताओं में से एक के लिए पेश वरिष्ठ अधिवक्ता हुजेफा अहमदी से कहा, हम आप सभी को एक घंटे का समय देंगे. आप इसे खत्म कर दें. अब, यह सुनवाई का 'ओवरडोज' है.
पीठ ने कहा कि कई वकील पहले ही उसके सामने अपनी दलीलें रख चुके हैं. इसने कहा, 'हम अपना धैर्य खो रहे हैं.' अहमदी ने पीठ की प्रशंसा करते हुए कहा, मुझे अवश्य कहना चाहिए कि आपने (खंडपीठ ने) हमें बेहद धैर्य के साथ सुना है. पीठ ने हल्के फुल्के अंदाज में कहा, क्या आपको लगता है कि हमारे पास कोई और विकल्प है?
सॉलिसिटर जनरल तुषार मेहता और कर्नाटक के महाधिवक्ता प्रभुलिंग के. नवदगी और अतिरिक्त सॉलिसिटर जनरल के एम नटराज ने राज्य सरकार की ओर से दलील दी, जबकि वरिष्ठ वकीलों दुष्यंत दवे और सलमान खुर्शीद ने मुस्लिम याचिकाकर्ताओं का पक्ष रखा.
'हिजाब पर प्रतिबंध केवल कक्षा तक सीमित'
कर्नाटक सरकार ने उच्चतम न्यायालय को अवगत कराया कि राज्य सरकार ने हिजाब प्रतिबंध विवाद में किसी भी धार्मिक पहलू को नहीं छुआ है और यह प्रतिबंध केवल कक्षा तक सीमित है. राज्य सरकार ने कहा कि यहां तक कि कक्षा के बाहर स्कूल परिसरों में भी हिजाब पर प्रतिबंध नहीं है. राज्य सरकार की ओर से पेश वकील ने जोर देकर कहा कि राज्य ने केवल यह कहा है कि शैक्षणिक संस्थान छात्रों के लिए वर्दी निर्धारित कर सकते हैं, जिसका धर्म से कोई लेना-देना नहीं है.
कर्नाटक के महाधिवक्ता प्रभुलिंग के. नवदगी ने न्यायमूर्ति हेमंत गुप्ता और न्यायमूर्ति सुधांशु धूलिया की पीठ को बताया कि फ्रांस जैसे देशों ने हिजाब पर प्रतिबंध लगा दिया है और वहां की महिलाएं इससे कम इस्लामी नहीं हो गई हैं. नवदगी ने कहा कि जब तक यह नहीं दर्शाया जाता है कि हिजाब पहनना अनिवार्य और धार्मिक प्रथा का अनिवार्य हिस्सा है, तब तक संविधान के अनुच्छेद 25 के तहत संरक्षण नहीं मिल सकता है. महाधिवक्ता ने पीठ से कहा, हम स्कूल के बाहर हिजाब पहनने पर प्रतिबंध नहीं लगाते... स्कूल परिसर में भी कोई प्रतिबंध नहीं है. प्रतिबंध केवल कक्षा के अंदर है.
राज्य सरकार की ओर से ही पेश हुए अतिरिक्त सॉलिसिटर जनरल (एएसजी) केएम नटराज ने कहा कि याचिकाकर्ताओं का पूरा मामला एक अधिकार पर आधारित है और उनका दावा है कि यह एक पूर्ण अधिकार है. उन्होंने जोर देकर कहा कि राज्य ने किसी भी धार्मिक गतिविधि को न तो प्रतिबंधित किया है और न ही बढ़ावा दिया है.
'सरकार का निर्णय किसी धर्म पर आधारित नहीं'
पीठ ने तब एएसजी से पूछा, 'यदि वे हिजाब पहनेंगे तो आप उन्हें अनुमति नहीं देंगे?' एएसजी ने कहा कि राज्य सरकार का निर्णय किसी धर्म पर आधारित नहीं है और सरकार की केवल यह दलील है कि शैक्षणिक संस्थान वर्दी निर्धारित कर सकते हैं. पीठ ने एक बार फिर कहा, क्या आप स्कूल के अंदर हिजाब पहनने वाली लड़की को अनुमति देंगे? हां या नहीं?
नटराज ने प्रत्युत्तर में कहा कि संबंधित स्कूल को उनके द्वारा निर्धारित वर्दी के आधार पर निर्णय लेना होगा. नवदगी ने शीर्ष अदालत के कुछ पुराने फैसलों का जिक्र करते हुए कहा, 'हम कुरान के विशेषज्ञ नहीं हैं, लेकिन न्यायालय ने कम से कम तीन मामलों में कहा है कि कुरान का हर शब्द धार्मिक हो सकता है, लेकिन अनिवार्य रूप से धार्मिक नहीं है.' उन्होंने याचिकाकर्ताओं के वकील की उन दलीलों का खंडन किया कि राज्य ने एक समुदाय के खिलाफ कार्रवाई की है.
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