बेंगलुरु : कर्नाटक हाईकोर्ट (karnataka high court ) ने बुधवार को कहा कि शिशु को स्तनपान कराना मां का अधिकार है. संविधान का अनुच्छेद-21 मां को यह अधिकार देता है और इसे छीना नहीं जा सकता. कोर्ट ने कहा कि इसी तरह नवजात को पूरा हक है कि उसे उसकी मां का दूध मिले. ये दोनों आपस में जुड़े समवर्ती अधिकार हैं. कोर्ट एक मां की याचिका पर सुनवाई कर रही थी, जिसके नवजात को जन्म के तुरंत बाद अस्पताल से चुरा लिया गया था. साथ ही महिला ने अपने बच्चे को उसकी पालक मां से वापस दिलाने की अपील की थी.
जस्टिस कृष्णा एस दीक्षित (Justice Krishna S Dixit) ने अपने आदेश में कहा, पैदा करने वाली और पालन पोषण करने वाली मां में पहली प्राथमिकता पैदा करने वाली मां को दी जानी चाहिए. उन्होंने कहा कि खासतौर से स्तनपान के मामले में पालन करने वाली मां की दलील किसी सूरत में पैदा करने वाली मां के सामने खड़ी नहीं होती. स्तनपान कराने का अधिकार एक मां को संविधान के अनुच्छेद 21 में मिला है. इस तरह पैदा करने वाली मां का पक्ष कानूनी रूप से भी मजबूत है.
इससे पहले याचिकाकर्ता ने कोर्ट में बंदी प्रत्यक्षीकरण याचिका दायर की थी, जिसके बाद बच्चे का पता लगाया गया. कोर्ट ने याचिका को अनुमति देते हुए कहा, नाबालिग बच्चे की हिरासत उसको पैदा करने वाली मां को सौंपी जाए.
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जस्टिस ने कहा कि संविधान के साथ-साथ अंतरराष्ट्रीय कानूनों में भी इसका प्रावधान है. मानवाधिकारों के वैश्विक घोषणापत्र में दर्ज बाल अधिकार के अंतरराष्ट्रीय कन्वेंशन 1989 के अनुच्छेद 25(2) के तहत नवजात को मां के दूध का अधिकार दिया गया है. मां को भी अपने बच्चे को स्तनपान कराने का अधिकार दिया गया है. जस्टिस ने कहा कि यह दुर्भाग्यपूर्ण है कि एक नवजात को उसकी मां का दूध ही नहीं मिला. इसमें उसका कोई कसूर नहीं, उसे उसकी मां से पैदा होते ही छीन लिया गया. ऐसी नौबत आना एक सभ्य समाज के लिए दुर्भाग्यपूर्ण है.
सुनवाई के दौरान पालन पोषण करने वाली मां के वकील ने भागवत का उदाहरण देते हुए अपने पक्ष में भगवान कृष्ण की माताएं देवकी और यशोदा की दलील दी. इस पर कोर्ट ने फटकार लगाते हुए कहा, आप जो उल्लेख बता रहे हैं उसमें कहीं भी उन दोनों माताओं के बीच इन महिलाओं की तरह किसी तरह के विवाद का जिक्र नहीं है. इसलिए आप इस तरह की उदाहरण न दें.