बेंगलुरु: कर्नाटक हाईकोर्ट ने मिलिट्री नर्सिंग सर्विसेज में महिलाओं को 100 फीसदी आरक्षण देने वाले अध्यादेश को रद्द कर दिया है. हाईकोर्ट धारवाड़ पीठ ने भारतीय सैन्य नर्सिंग सेवा अध्यादेश 1943 की धारा 6 में 'अगर एक महिला' शब्द को असंवैधानिक घोषित कर दिया. इसकी राय थी कि इस तरह का आरक्षण देने से संविधान के अनुच्छेद 14 (समानता), 16(2) (लिंग भेदभाव), और 21 (जीवन और व्यक्तिगत स्वतंत्रता का अधिकार) का उल्लंघन होगा और इसने 18 साल पुराने कानून को निरस्त करने का आदेश दिया.
न्यायमूर्ति अनंत रामनाथ हेगड़े की अध्यक्षता वाली उच्च न्यायालय की धारवाड़ पीठ ने कर्नाटक नर्सेज एसोसिएशन और केएलई नर्सिंग इंस्टीट्यूट, हुबली के प्रिंसिपल और लेक्चरर के रूप में कार्यरत संजय एम पीरापुर और अन्य द्वारा दायर याचिका पर सुनवाई के बाद यह आदेश दिया. बेंच ने कहा कि साथ ही यह कहना भी उचित है कि महिलाएं संविधान के तहत एक अलग वर्ग हैं.
हालाँकि, अतार्किक तरीके से महिलाओं को 100 प्रतिशत आरक्षण नहीं दिया जाना चाहिए. इस इच्छा को पूरा करने का तरीका और अनुच्छेद 15 (3) (महिलाओं और बच्चों को विशेष सुविधाओं का भत्ता) के तहत संरक्षित नहीं किया जा सकता है. आजादी से पहले अंग्रेजों ने 1943 में अध्यादेश लागू किया था. राष्ट्रपति ने इसे संविधान के तहत अपनाकर मंजूरी दे दी है. हालांकि, इस कानून को संविधान के अनुच्छेद 33 के अनुसार संसद द्वारा अधिनियमित कानून नहीं माना जा सकता है.
पीठ ने कहा,'हालांकि, आरक्षण की अवधारणा वंचितों को सुविधाएं प्रदान करना है न कि उन्हें सुविधाओं से वंचित करना. यदि बिना कारण के 100 प्रतिशत महिलाओं को आरक्षण की अनुमति दी जाएगी, तो आरक्षण का विचार रद्द हो जाएगा. साथ ही पुरुषों को इस आरक्षण की सुविधा से बाहर कर दिया जाएगा.'
साथ ही पीठ ने याचिकाकर्ता की याचिका यह कहते हुए खारिज कर दी है कि आवेदन जमा करने से संबंधित भर्ती प्रक्रिया पूरी हो चुकी है और यह निर्देश देना संभव नहीं है कि याचिकाकर्ता को सेना नर्स के रूप में नियुक्त किया जाना चाहिए. सुनवाई के दौरान केंद्र सरकार के वकील ने दलील दी कि अधिसूचना के संबंध में भर्ती प्रक्रिया पूरी हो चुकी है और दो याचिकाकर्ता पहले ही आयु सीमा पार कर चुके हैं.