हैदराबाद : पिछले साल हुए हिमाचल प्रदेश चुनावों के दौरान भाजपा का जो अनुभव था, वह दक्षिणी राज्य कर्नाटक में खुद को दोहराता दिख रहा है, जहां 10 मई को चुनाव होने जा रहे हैं. भगवा दल इस राज्य को पड़ोसी राज्यों में प्रभाव बढ़ाने के लिए रणनीतिक रूप से महत्वपूर्ण मानता है, क्योंकि ये तमिलनाडु, केरल, आंध्र प्रदेश, तेलंगाना, महाराष्ट्र और गोवा सहित भारत के सभी दक्षिणी और पश्चिमी राज्यों के साथ सीमाएं साझा करता है.
कर्नाटक में, सत्तारूढ़ भाजपा अपना किला बचाए रखने और राज्य पर शासन जारी रखने के लिए हर संभव प्रयास कर रही है. यही कारण है कि पार्टी ने दलबदल को रोकने के लिए उम्मीदवारों की सूची देरी से जारी की. विधानसभा चुनावों के लिए उम्मीदवारों की चयन प्रक्रिया में जमीनी कार्यकर्ताओं को शामिल किया गया. यह उन उपायों में से एक था कि महत्वाकांक्षी नेताओं को यह विश्वास दिलाया जा सके कि उम्मीदवार को जमीनी परीक्षा पास करनी होगी.
224 सीटों के लिए 2000 से अधिक पार्टी नेताओं को प्रत्येक निर्वाचन क्षेत्र से तीन सर्वश्रेष्ठ उम्मीदवारों का प्रस्ताव देने के लिए कहा गया था, जिसमें से एक बेस्ट का नाम फाइनल किया गया.
भाजपा के शीर्ष नेताओं के चार दिनों की मैराथन बैठक में भाग लेने के बाद, उम्मीदवारों की सूची की घोषणा की गई. बीजेपी ने राज्य के आखिरी आदमी तक यह संदेश देने के लिए उम्मीदवारों के चयन का यह तरीका तैयार किया कि सूची दिल्ली के बजाय पार्टी के कार्यकर्ताओं की सिफारिशों पर तैयार की जाती है.
पिछले साल हुए हिमाचल विधानसभा चुनावों से एक व्यापक धारणा उभरी है कि राज्य के नेताओं का भाग्य दिल्ली में कुछ बड़े लोगों द्वारा निर्धारित किया जाता है. हिमाचल की भाजपा नेताओं में से एक वंदना गुलेरिया ने टिकट से वंचित होने के बाद व्यंग्यात्मक रूप से कहा था कि सूची दिल्ली से आ सकती है, लेकिन वोट राज्य में पड़ने हैं.
कर्नाटक में भाजपा ने उम्मीदवारों की जब पहली दो सूची सार्वजनिक कीं, तो लिस्ट में अपना नाम देखने की उम्मीद रखने वाले पार्टी नेता नाराज हो गए. टिकट न मिलने से खफा भाजपा नेता राज्य में पार्टी के लिए आसन्न खतरा पैदा कर रहे हैं.
भाजपा की उम्मीदवारों की लिस्ट को देखते हुए, शायद 20 से 30 सीटें ऐसी हैं, जहां नाखुश नेताओं का महत्वपूर्ण प्रभाव है और वे 'खेल' बिगाड़ने का काम कर सकते हैं. जगदीश शेट्टार और लक्ष्मण सावदी जैसे लिंगायत नेता संभावित रूप से भाजपा के लिए एक बड़ा खतरा हैं, क्योंकि उनका अपने समुदाय पर बहुत बड़ा प्रभाव है. लिंगायत समुदाय का राज्य में कुल वोट शेयर का 17 प्रतिशत वोट है.
अन्य दलबदलू भाजपा सदस्यों के विपरीत, शेट्टार ऐसे नेता हैं, जो पूर्व में आरएसएस से जुड़े रहे हैं. उनके पिता भी भाजपा में प्रभावशाली व्यक्ति थे. शेट्टार भाजपा के समर्पित लिंगायत वोट बैंक को भ्रमित कर सकते हैं. एक और भाजपा नेता जिन्होंने सुलिया निर्वाचन क्षेत्र की सूची में अपना नाम नहीं मिलने के बाद पार्टी के लिए प्रचार करने से इनकार कर दिया है.
उम्मीदवार चयन के कारण हिमाचल के बाद दूसरे राज्य में भाजपा में इस स्तर का गंभीर दलबदल लगातार सामने आ रहा है. नाखुश लोगों को नहीं मना सकने के कारण ही उन्हें पहाड़ी राज्य में हार का सामना करना पड़ा था.
इसी तरह की स्थिति कर्नाटक में हुई, जहां उसने मौजूदा एंटी-इनकंबेंसी कारक को बढ़ाया. सीटों के लिए नाम देरी से घोषित कर भाजपा ने इस स्थिति से बचने का सबसे अच्छा प्रयास किया, बावजूद इसके वोटों का विभाजन हो सकता है.
पार्टी के उम्मीदवारों की सूची बनाने में विफल रहने के बाद निराश भाजपा नेताओं के निर्दलीय के रूप में चुनाव लड़ने के फैसले से पार्टी की सरकार बनाने की संभावना कम हो सकती है, क्योंकि उसकी सीटें कम हो सकती हैं.
उम्मीदवारों की सूची को अंतिम रूप देने में जो गलती भाजपा ने हिमाचल में की, वह उससे सबक ले सकती थी. जहां, सोलन जिले के नालागढ़ निर्वाचन क्षेत्र से एक असंतुष्ट उम्मीदवार ने किसी अन्य को टिकट दिए जाने के बाद निर्दलीय के रूप में नामांकन दाखिल किया और वह सीट जीत गया. इसी तरह कुल्लू और हरोली की सीटें कांग्रेस के खाते में चली गईं, जहां भाजपा ने दोबारा नाम का एलान किया, जिस फैसले से समर्थक नाराज हो गए.
नीलम नैय्यर के साथ इंदिरा कपूर का जाना भगवा पार्टी के लिए महंगा पड़ा. इस फैसले ने एक बड़ा आंदोलन खड़ा कर दिया क्योंकि उम्मीदवार की दागी पृष्ठभूमि थी, उसे भ्रष्टाचार के मामले में दोषी ठहराया गया था.
कुल मिलाकर यह साफ है कि एक कड़ी रेस में दल-बदल, चुनाव परिणाम को प्रभावित करने वाला है. पार्टी को उम्मीदवार से ऊपर रखने का भाजपा का विचार चुनावों के संदर्भ में अपनी प्रासंगिकता खोता हुआ प्रतीत होता है, जो मुख्य रूप से हिमाचल चुनावों से स्पष्ट है और अब कर्नाटक में दोहराया जा रहा है, जहां यह इस विचार को और मजबूत करता है.
कर्नाटक की तुलना में हिमाचल में हेरफेर करना आसान था. यहां कई फैक्टर हैं जो वोट की राजनीति को प्रभावित कर सकते हैं. प्रमुख जातियों- लिंगायतों और वोक्कालिगाओं को खुश करने की कोशिश करने वाली बीजेपी यहां अन्य जातियों जैसे बंजारों आदि से घिर जाती है.
हैदराबाद और मध्य कर्नाटक इस बार भाजपा के लिए महत्वपूर्ण होने जा रहे हैं क्योंकि पार्टी को इन क्षेत्रों से ज्यादा विधायक मिले हैं. ऐसे में यह देखना दिलचस्प होगा कि भाजपा कर्नाटक में किस तरह से दलबदल के प्रभाव और अन्य कारकों से निपटने के लिए संतुलन बनाती है.
पढ़ें- Karnataka election 2023: कांग्रेस में शामिल होने के बाद शेट्टार बोले- बीजेपी में नहीं मिला सम्मान