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Karnataka Election 2023: वीरशैव लिंगायत समुदाय ने बीजेपी का छोड़ा साथ, कांग्रेस पर दिखाया विश्वास

कर्नाटक विधानसभा चुनाव में बीजेपी की हार और कांग्रेस पार्टी की प्रचंड जीत के कई कारण रहे. इसमें सबसे बड़े कारणों में से एक वीरशैव लिंगायत समुदाय माना जा रहा है, क्योंकि बीजेपी इस विधानसभा चुनाव में लिंगायत समुदाय को साध नहीं पाई, जो उसका सबसे बड़ा वोट बैंक हुआ करता था.

Congress victory in Karnataka
कर्नाटक में कांग्रेस की जीत
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Published : May 14, 2023, 7:02 PM IST

बेंगलुरु: इस बार कर्नाटक विधानसभा चुनाव में सत्ताधारी पार्टी बीजेपी का वोट बैंक बिखर गया है. वीरशैव लिंगायत समुदाय जो अब तक विधानसभा और लोकसभा चुनावों में बीजेपी का समर्थन कर रहा था, इस चुनाव में कांग्रेस पार्टी की ओर स्थानांतरित हो गया है, जिसने भगवा पार्टी को तगड़ा झटका दिया. वीरशैव लिंगायत समुदाय के कुल 34 विधायक इस बार कांग्रेस पार्टी से जीते हैं. वीरशैव लिंगायत विधायकों की संख्या पिछले 2018 के विधानसभा चुनाव परिणामों की तुलना में अब दोगुनी हो गई है.

पिछली बार कांग्रेस से सिर्फ 16 वीरशैव लिंगायत विधायक जीते थे. वीरशैव लिंगायत समुदाय (जो बीजेपी का मुख्य वोट बैंक था) के वोटों पर कब्जा करने के लिए कांग्रेस पार्टी ने बड़ी संख्या में वीरशैव लिंगायतों को प्रतिनिधित्व दिया, क्योंकि शमनूर शिवशंकरप्पा पार्टी के एक वरिष्ठ नेता और अखिल भारतीय वीरशैव लिंगायत महासभा के अध्यक्ष हैं. टिकट पाने वाले कुल 46 उम्मीदवारों में से 34 निर्वाचित हुए हैं.

खुद को वीरशैव लिंगायत समुदाय की पार्टी कहने वाली बीजेपी ने इस चुनाव में कुल 69 वीरशैव लिंगायतों को टिकट दिया है, जिनमें से केवल 18 ही निर्वाचित हुए हैं. पिछले विधानसभा चुनाव में 38 विधायक निर्वाचित हुए थे. लेकिन इस बार बीजेपी से वीरशैव समुदाय के आधे उम्मीदवार ही चुने गए हैं. कांग्रेस और बीजेपी में चुने गए वीरशैव लिंगायत समुदाय के विधायकों की संख्या को देखते हुए यह स्पष्ट दिख रहा है कि लिंगायत समुदाय ने बीजेपी को छोड़ दिया है और कांग्रेस पार्टी का समर्थन किया है.

कांग्रेस विधायकों के चुनाव के अलावा अन्य जातियों के उम्मीदवारों के चयन में भी वीरशैव लिंगायत समुदाय का योगदान रहा है. वीरशैव लिंगायत समुदाय से संबंध रखने वाले मंत्री वी सोमन्ना ने सिद्धारमैया के खिलाफ वरुण निर्वाचन क्षेत्र से भाजपा उम्मीदवार के रूप में चुनाव लड़ा था. कांग्रेस के उम्मीदवार और पिछड़े वर्ग से ताल्लुक रखने वाले पूर्व मुख्यमंत्री सिद्धारमैया को वीरशैव लिंगायत समुदाय का समर्थन प्राप्त है.

वीरशैव लिंगायत समुदाय ने पूर्व मंत्री सीटी रवि का समर्थन नहीं किया, जो चिक्कमगलुरु निर्वाचन क्षेत्र से भाजपा के वरिष्ठ नेता हैं. वहां के लिंगायत समुदाय ने तमैया को समर्थन देकर साफ संदेश दे दिया है कि वे कांग्रेस के पक्ष में हैं, जो कांग्रेस पार्टी के उम्मीदवार हैं और जो लिगायत समुदाय से भी हैं. यह घटनाक्रम साफ तौर पर दिखा रहा है कि लिंगायत समुदाय बीजेपी से दूर होता जा रहा है. वीरशैव लिंगायत समुदाय बीजेपी से अलग हो गया लेकिन उसने जेडीएस का भी समर्थन नहीं किया.

पढ़ें: कांग्रेस के लिए भाग्यशाली अध्यक्ष साबित हुए खड़गे, हिमाचल के बाद कर्नाटक में दिलाई जीत

पिछले चुनाव में जेडीएस से 4 विधायक चुने गए थे, लेकिन इस बार सिर्फ 2 जीते हैं. जेडीएस ने वीरशैव लिंगायत समुदाय के 50 से अधिक उम्मीदवारों को टिकट दिया था. मुरुगेश निरानी, बीसी पाटिल, गोविंदा करजोला, हलप्पा अचार, शंकर पाटिल मुनेनकोप्पा जैसे मंत्री अपनी सीटों से हार गए हैं, जो दिखा रहा है कि इस बार कौम उचित दूरी बनाकर भाजपा का समर्थन नहीं कर रही है.

बेंगलुरु: इस बार कर्नाटक विधानसभा चुनाव में सत्ताधारी पार्टी बीजेपी का वोट बैंक बिखर गया है. वीरशैव लिंगायत समुदाय जो अब तक विधानसभा और लोकसभा चुनावों में बीजेपी का समर्थन कर रहा था, इस चुनाव में कांग्रेस पार्टी की ओर स्थानांतरित हो गया है, जिसने भगवा पार्टी को तगड़ा झटका दिया. वीरशैव लिंगायत समुदाय के कुल 34 विधायक इस बार कांग्रेस पार्टी से जीते हैं. वीरशैव लिंगायत विधायकों की संख्या पिछले 2018 के विधानसभा चुनाव परिणामों की तुलना में अब दोगुनी हो गई है.

पिछली बार कांग्रेस से सिर्फ 16 वीरशैव लिंगायत विधायक जीते थे. वीरशैव लिंगायत समुदाय (जो बीजेपी का मुख्य वोट बैंक था) के वोटों पर कब्जा करने के लिए कांग्रेस पार्टी ने बड़ी संख्या में वीरशैव लिंगायतों को प्रतिनिधित्व दिया, क्योंकि शमनूर शिवशंकरप्पा पार्टी के एक वरिष्ठ नेता और अखिल भारतीय वीरशैव लिंगायत महासभा के अध्यक्ष हैं. टिकट पाने वाले कुल 46 उम्मीदवारों में से 34 निर्वाचित हुए हैं.

खुद को वीरशैव लिंगायत समुदाय की पार्टी कहने वाली बीजेपी ने इस चुनाव में कुल 69 वीरशैव लिंगायतों को टिकट दिया है, जिनमें से केवल 18 ही निर्वाचित हुए हैं. पिछले विधानसभा चुनाव में 38 विधायक निर्वाचित हुए थे. लेकिन इस बार बीजेपी से वीरशैव समुदाय के आधे उम्मीदवार ही चुने गए हैं. कांग्रेस और बीजेपी में चुने गए वीरशैव लिंगायत समुदाय के विधायकों की संख्या को देखते हुए यह स्पष्ट दिख रहा है कि लिंगायत समुदाय ने बीजेपी को छोड़ दिया है और कांग्रेस पार्टी का समर्थन किया है.

कांग्रेस विधायकों के चुनाव के अलावा अन्य जातियों के उम्मीदवारों के चयन में भी वीरशैव लिंगायत समुदाय का योगदान रहा है. वीरशैव लिंगायत समुदाय से संबंध रखने वाले मंत्री वी सोमन्ना ने सिद्धारमैया के खिलाफ वरुण निर्वाचन क्षेत्र से भाजपा उम्मीदवार के रूप में चुनाव लड़ा था. कांग्रेस के उम्मीदवार और पिछड़े वर्ग से ताल्लुक रखने वाले पूर्व मुख्यमंत्री सिद्धारमैया को वीरशैव लिंगायत समुदाय का समर्थन प्राप्त है.

वीरशैव लिंगायत समुदाय ने पूर्व मंत्री सीटी रवि का समर्थन नहीं किया, जो चिक्कमगलुरु निर्वाचन क्षेत्र से भाजपा के वरिष्ठ नेता हैं. वहां के लिंगायत समुदाय ने तमैया को समर्थन देकर साफ संदेश दे दिया है कि वे कांग्रेस के पक्ष में हैं, जो कांग्रेस पार्टी के उम्मीदवार हैं और जो लिगायत समुदाय से भी हैं. यह घटनाक्रम साफ तौर पर दिखा रहा है कि लिंगायत समुदाय बीजेपी से दूर होता जा रहा है. वीरशैव लिंगायत समुदाय बीजेपी से अलग हो गया लेकिन उसने जेडीएस का भी समर्थन नहीं किया.

पढ़ें: कांग्रेस के लिए भाग्यशाली अध्यक्ष साबित हुए खड़गे, हिमाचल के बाद कर्नाटक में दिलाई जीत

पिछले चुनाव में जेडीएस से 4 विधायक चुने गए थे, लेकिन इस बार सिर्फ 2 जीते हैं. जेडीएस ने वीरशैव लिंगायत समुदाय के 50 से अधिक उम्मीदवारों को टिकट दिया था. मुरुगेश निरानी, बीसी पाटिल, गोविंदा करजोला, हलप्पा अचार, शंकर पाटिल मुनेनकोप्पा जैसे मंत्री अपनी सीटों से हार गए हैं, जो दिखा रहा है कि इस बार कौम उचित दूरी बनाकर भाजपा का समर्थन नहीं कर रही है.

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