नई दिल्ली : जब भी किसी तरह का चुनाव होता है, तो उसमें कुछ उम्मीदवारों की जीत होती है और कुछ उम्मीदवारों को हार का सामना करना पड़ता है. वहीं कुछ उम्मीदवारों की जमानत भी जब्त होती है. चुनाव में जमानत क्यों ली जाती है और कैसे जब्त होती है. ये लोग कम जानते हैं. जमानत जब्त होने से चुनाव लड़ने वाले उम्मीदवारों को क्या नुकसान होता है. ये जानने की कोशिश करते हैं.
आज हम कर्नाटक विधानसभा के चुनाव की मतगणना चल रही है. इस दौरान इस बात को जानने की कोशिश करते हैं कि आज जिन उम्मीदवारों की जमानत जब्त होगी उनको क्या करना होगा और इससे उनको क्या नुकसान होगा. कर्नाटक विधानसभा के चुनाव की मतगणना के दौरान कई प्रत्याशी एक दूसरे से अपनी बढ़त बनाए हुए हैं और कई प्रत्याशी दूसरे से पिछड़ते हुए दिखाई दे रहे हैं. वही कुछ प्रत्याशी ऐसे भी हैं जिनकी जमानत जब्त होगी. जो उम्मीदवार चुनाव के दौरान पड़े कुल वैध मतों का एक खास हिस्सा नहीं पाते हैं तो ऐसे उम्मीदवारों की निर्वाचन आयोग जमानत राशि जब्त कर लेता है. जिसे नामांकन के दौरान हर उम्मीदवार जमा करता है.
क्यों ली जाती है जमानत
हमारे देश में चुनाव लोकतांत्रिक व्यवस्था को मजबूत करने के लिए सामान्य तौर पर हर 5 साल के अंतर पर कराए जाते हैं. इस चुनाव के दौरान निर्वाचन आयोग चुनाव लड़ने वाले उम्मीदवारों से कुछ जरूरी दस्तावेजों के साथ-साथ जमानत राशि भी जमा करायी जाती है. इस दौरान उम्मीदवार अपनी कुछ व्यक्तिगत व पारिवारिक डिटेल भी देते हैं. साथ ही साथ अपना शपथ पत्र देते हैं कि जो भी जानकारियां उन्होंने अपने नामांकन फॉर्म में भरा है, वह सत्य हैं. जमानत राशि लेने के पीछे निर्वाचन आयोग की यह मंशा होती है कि केवल गंभीर और पात्र लोग लोग ही चुनाव मैदान में उतरने की कोशिश करें. अगर चुनाव में जमानत राशि न ली जाए तो आवश्यकता से अधिक लोग चुनाव मैदान में कूद सकते हैं, जिसके निर्वाचन संपन्न कराने में तमाम तरह की मुश्किलें आती हैं.
हर स्तर के चुनाव में जमानत राशि अलग-अलग होती है. लोकसभा चुनाव लड़ने के लिए सामान्य जाति के उम्मीदवारों को 25 हजार रुपये जमानत राशि के रूप में नामांकन के समय जमा करानी होती है, जबकि अनुसूचित जाति व जनजाति के उम्मीदवारों के लिए यह राशि साढ़े 12 हजार रुपए होती है. वहीं अगर विधानसभा चुनाव के लिए देखा जाय तो सामान्य उम्मीदवारों के लिए जमानत राशि 10 हजार रुपये होती है, जबकि एससी और एसटी वर्ग के उम्मीदार केवल पांच हजार रुपए की जमानत राशि देकर चुनाव मैदान में कूद सकते हैं. हमारे देश के लोक प्रतिनिधित्व अधिनियम, 1951 की धारा 34 1 (a) और धारा 34 1(b) में इस बात का जिक्र है.
कैसे जब्त होती है जमानत (Forfeiture of Security Deposit)
निर्वाचन आयोग के नियमों के अनुसार अगर चुनाव लड़ने वाला कोई उम्मीदवार मतदान के दौरान पड़े कुल वैध मतों का 1/6 हिस्सा प्राप्त करने में असफल रहता है, तो ऐसे लोगों की जमानत जब्त हो जाया करती है. हमारे देश के जनप्रतिनिधित्व कानून 1951 की धारा 158 में चुनाव लड़ने वाले उम्मीदवारों द्वारा जमा की गई राशि के लौटाने के तौर तरीकों के बारे में जिक्र किया गया है. साथ ही यह भी स्पष्ट किया गया है कि जमानत राशि कैसे लौटाई जाएगी और क्यों जब्त कर ली जाएगी.
अर्थात जो प्रत्याशी 1/6 हिस्सा वोट नहीं पाते हैं तो चुनाव लड़ने के पहले जमा की गयी वापस नहीं करता है. यह जमा राशि निर्वाचन आयोग की हो जाती है. इस पूरी प्रक्रिया को ही चुनाव में प्रत्याशी की जमानत जब्त होना कहा जाता है.
उदाहरण के तौर पर समझें..
उदाहरण के तौर पर जैसे किसी विधानसभा सीट पर यदि 1 लाख वैध वोट पड़े हैं तो चुनाव लड़ने वाले उम्मीदवार को अपनी जमानत बचाने के लिए करीब 16 हजार 666 वोटों से अधिक वोट पाना होगा. अगर कोई उम्मीदवार इससे कम वोट पाता है तो उसकी जमानत जब्त हो जाएगी.
ऐसे होती है जमानत राशि वापस (Return of Election Security Deposit)
जो प्रत्याशी 1/6 हिस्सा वोटों ये अधिक पाता है तो उसकी जमानत राशि वापस हो जाती है. इसके साथ-साथ इन परिस्थितियों में भी जमानत राशि वापस हो जाया करती है...
- यदि किसी उम्मीदवार को चुनाव लड़ने वाले उम्मीदवारों की सूची में दर्ज नहीं किया गया है तो उसकी जमानत राशि वापस हो जाती है.
- नामांकन खारिज होने व नामांकन स्वीकार किए जाने के बाद वापस ले लेने या मतदान शुरू होने से पहले उम्मीदवार की मौत हो जाने पर जमानत राशि लौटा दी जाती है.
- इसके साथ ही साथ चुनाव जीतने वाले उम्मीदवार की भी जमानत राशि लौटा दी जाती है. चाहे वह वह कुल वैध मतों के 1/6 मत प्राप्त कर पाये या नहीं . चुनाव जीतने वाले उम्मीदवार के लिए ये बाध्यता नहीं है.
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