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BJP के एजेंडे में कब शामिल हुआ राम मंदिर ? 35 साल पहले इस छोटे से शहर में रखी गई राम मंदिर की नींव - बीजेपी और राम मंदिर

Ram Mandir and BJP National Executive Meeting Palampur: राम मंदिर बनकर तैयार है, प्राण प्रतिष्ठा की तैयारी लगभग पूरी हो चुकी है. लेकिन राम मंदिर और बीजेपी की सियासत के सफर में सबसे अहम पड़ाव एक छोटा सा शहर था. हिमाचल के छोटे से शहर में 35 बरस पहले कुछ ऐसा हुआ जिसने बीजेपी की तकदीर और तस्वीर बदल दी. शून्य पर खड़ा एक सियासी दल शिखर पर पहुंच गया. ये पूरा सफर एक दिलचस्प कहानी है, जानने के लिए पढ़ें

अयोध्या में राम मंदिर
अयोध्या में राम मंदिर
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By ETV Bharat Hindi Team

Published : Jan 9, 2024, 7:11 PM IST

शिमला: 22 जनवरी 2024 को अयोध्या में भव्य राम मंदिर में राम लला की प्राण प्रतिष्ठा होने जा रही है. सियासी गलियारों से लेकर कानून की दहलीज तक राम मंदिर के लिए लंबी लड़ाई लड़ी गई. भले देश के करोड़ों लोगों के लिए ये विश्वास, धर्म, आस्था या भावना से जुड़ा पहलू हो लेकिन ये भी सच है कि इस पर दशकों से राजनीति हावी रही है. राम मंदिर का जिक्र आस्था के साथ सियासत के साथ होता रहा है. सियासत के अखाड़े में ये वो दांव रहा है, जिसपर मानो भारतीय जनता का एकाधिकार रहा. दूसरे दल भले इसे आस्था का मुद्दा बताएं या खुद को भी राम नाम का हिस्सेदार बताएं लेकिन इस बात से इनकार नहीं किया जा सकता कि बीजेपी ने राम मंदिर मुद्दे का दामन एक बार पकड़ा तो फिर कभी नहीं छोड़ा. सियासी रण में इसका फायदा भी बीजेपी को मिला है लेकिन सवाल है कि राम या राम मंदिर भाजपा के एजेंडे में कब शामिल हुए ? कब अयोध्या में राम मंदिर बनाने की बात हुई ?

पालमपुर में रखी गई थी राम मंदिर की नींव- पालमपुर कहां है, इस सवाल के जवाब के लिए ज्यादातर लोगों को गूगल का सहारा लेना पड़ेगा. ये छोटा सा शहर हिमाचल प्रदेश के कांगड़ा जिले में है. जहां पहली बार राम मंदिर बीजेपी के सिलेबस में जुड़ा और फिर इस मुद्दे ने भारतीय जनता पार्टी को देश की सियासत का टॉपर बना दिया.

बीजेपी ने 1989 में पास किया था राम मंदिर निर्माण का प्रस्ताव
बीजेपी ने 1989 में पास किया था राम मंदिर निर्माण का प्रस्ताव

साल 1989 में 9, 10 और 11 जून को बीजेपी का अधिवेशन पालमपुर में हुआ था. जहां बीजेपी की राष्ट्रीय कार्यकारिणी की बैठक तत्कालीन पार्टी अध्यक्ष लाल कृष्ण आडवाणी की अगुवाई में हुई. जिसमें अटल बिहारी वाजपेयी से लेकर विजयाराजे सिंधिया और शांता कुमार समेत पार्टी के तमाम बड़े नेता मौजूद थे. इस बैठक में पहली बार अयोध्या में राम मंदिर बनाने का प्रस्ताव पास हुआ. जिसे पालमपुर प्रस्ताव के नाम से भी जानते हैं. बैठक के बाद 11 जून 1989 को पालमपुर में एक जनसभा हुई जिसका मंच संचालन बीजेपी के पूर्व विधायक राधा रमण शास्त्री कर रहे थे. जो उस दिन को कुछ इस तरह याद करते हैं.

"1989 में 9, 10, 11 जून को बीजेपी की राष्ट्रीय कार्यकारिणी का अधिवेशन पालमपुर में हुआ था. कार्यकारिणी की बैठक में प्रस्ताव पास हुआ कि अयोध्या में राम मंदिर का निर्माण होना चाहिए. 11 जून की रात को पालमपुर के गांधी मैदान में एक जनसभा आयोजित हुई, जिसमें पार्टी के कार्यकर्ता ही नहीं हजारों लोग भी अपनी नींद छोड़कर वहां पहुंचे थे. मैं उस मंच का संचालन कर रहा था, जहां अटल बिहारी वाजपेयी ने राम मंदिर बनाने को लेकर पास हुए प्रस्ताव की जानकारी दी. जिसे सुनकर लोग खुशी से झूम उठे और नाचने-गाने लगे. उस दृश्य को शब्दों में बयां नहीं कर सकता"- राधा रमण शास्त्री, पूर्व शिक्षा मंत्री व पूर्व विधानसभा स्पीकर, हिमाचल प्रदेश

पालपुर में हुई कार्यकारिणी में अटल, आडवाणी, शांता कुमार समेत कई नेता मौजूद थे
पालपुर में हुई कार्यकारिणी में अटल, आडवाणी, शांता कुमार समेत कई नेता मौजूद थे

2 सीट से 85 सीटों पर पहुंची बीजेपी- 1989 का ये वो वक्त था जब देश में एक बार फिर आम चुनाव होने वाले थे. पालमपुर अधिवेशन से पहले राम मंदिर का झंडा विश्व हिंदू परिषद ने उठा रखा था. जिसे 1989 में बीजेपी ने ऐसा अपनाया कि भारतीय जनता पार्टी और राम मंदिर मानो एक दूसरे के पूरक लगने लगे. पालमपुर अधिवेशन के करीब 5 महीने बाद देश में लोकसभा चुनाव होने थे. बीजेपी ने राम मंदिर को पहली बार अपने घोषणा पत्र में जगह दी और इस मुद्दे को देशभर में पहुंचाया. राम मंदिर को लेकर अटल-आडवाणी की लिखी पटकथा आगे चलकर सुपरहिट होने वाली थी. 1989 लोकसभा चुनाव के नतीजे आए तो भारतीय जनता पार्टी के खाते में 85 सीटें आई. 1984 के आम चुनाव में बीजेपी सिर्फ 2 सीटों पर जीत हासिल कर पाई थी. देश की सियासत में बीजेपी के बढ़ते कदमों का ये ट्रेलर भर था. पूरी पिक्चर अभी बाकी थी.

राम मंदिर के लिए रथ यात्रा- 1990 आते-आते बीजेपी ने पालमपुर में पास हुए राम मंदिर प्रस्ताव को पार्टी का लक्ष्य बना लिया था. जिसका फायदा उसे 1989 के चुनावों में भी मिल चुका था. इस बीच 25 सितंबर 1990 को बीजेपी के तत्कालीन राष्ट्रीय अध्यक्ष लाल कृष्ण आडवाणी ने गुजरात के सोमनाथ से लेकर अयोध्या तक की अपनी 10,000 किलोमीटर की रथ यात्रा शुरू कर दी. इस यात्रा को गुजरात, महाराष्ट्र, आंध्र प्रदेश, मध्य प्रदेश, बिहार से होते हुए उत्तर प्रदेश के अयोध्या पहुंचना था. लेकिन उससे पहले ही बिहार की तत्कालीन लालू प्रसाद यादव सरकार ने आडवाणी को हिरासत में लेकर रथ यात्रा पर ब्रेक लगा दिया था. इसके बाद इतिहास के पन्नों में 5 दिसंबर 1992 का वो दिन भी जुड़ा जब अयोध्या में विवादित ढांचा गिरा दिया गया.

"11 जून 1989 को पालमपुर में ऐतिहासिक प्रस्ताव पास किया था. इसके बाद राम मंदिर आंदोलन में बीजेपी ने पूरी ताकत झोंकी थी. लाल कृष्ण आडवाणी की ऐतिहासिक रथ यात्रा से लेकर सड़क से संसद और अदालत तक कई तरह के संघर्ष के बाद अंत में देश की सबसे बड़ी अदालत ने भी राम मंदिर पर अपनी मुहर लगाई और अब भव्य राम मंदिर बनकर तैयार है." - शांता कुमार, पूर्व मुख्यमंत्री, हिमाचल प्रदेश

1990 में लाल कृष्ण आडवाणी रथ यात्रा
1990 में लाल कृष्ण आडवाणी रथ यात्रा

केंद्र से लेकर राज्यों में सरकार- इस बीच बीजेपी देश की सियासत में अपने कदम बढ़ाती रही. राम मंदिर को अपने घोषणा पत्र में जगह देने पर बीजेपी को 1989 लोकसभा चुनाव में 85 सीटें मिली तो 1990 आते-आते तीन राज्यों में पार्टी की सरकार बन गई. मार्च 1990 में राजस्थान, मध्य प्रदेश और हिमाचल में बीजेपी ने पहली बार सरकार बनी.

राम मंदिर के मुद्दे को बीजेपी ने ऐसा भुनाया कि उसका ग्राफ हर चुनाव के साथ बढ़ता गया. 1991 के आम चुनाव में 120 सीटें जीतकर बीजेपी केंद्र में पहली बार मुख्य विपक्षी दल के रूप में उभरी और 5 साल बाद 1996 के लोकसभा चुनाव में 161 सीटें जीतकर भाजपा ने पहली बार केंद्र में सरकार बना ली. हालांकि ये सरकार सिर्फ 13 दिन चली. 1998 में 182 सीटें जीतकर भाजपा ने फिर से सरकार बनाई. इस बार सरकार सिर्फ 13 महीने चल पाई. दोनों बार बहुमत से दूर रही भाजपा 1999 में एक बार फिर 182 सीटें जीतकर सबसे बड़े दल के रूप में उभरी और सरकार बनाई. इस बार भी बहुमत का आंकड़ा बीजेपी के पास नहीं था लेकिन तीसरी बार प्रधानमंत्री बने अटल बिहारी वाजपेयी ने पूरे 5 साल सरकार चलाई, वो भी 26 दलों के साथ मिलकर. ऐसी मिसाल देश की सियासत में दूसरी नहीं मिलती.

अटल और आडवाणी की जोड़ी ने बीजेपी को दिखाई नई राह
अटल और आडवाणी की जोड़ी ने बीजेपी को दिखाई नई राह

10 साल का सूखा और फिर मोदी राज- 2004 में अटल बिहारी वाजपेयी का शाइनिंग इंडिया का नारा धराशायी हो गया और पार्टी 138 सीटों पर सिमटकर विपक्ष में पहुंच गई. 145 सीटें जीतकर सबसे बड़े दल के रूप में कांग्रेस ने सहयोगी दलों के साथ मिलकर सरकार बनाई. 2009 में बीजेपी का प्रदर्शन और भी गिर गया. पार्टी 116 सीटों पर जा गिरी और कांग्रेस ने 206 सीटें जीतकर एक बार फिर गठबंधन सरकार बना ली. हालांकि 2014 में बीजेपी ने मोदी के चेहरे पर शानदार वापसी की और 282 सीटों पर बंपर जीत के साथ पूर्ण बहुमत की सरकार बनाई. 2019 तक आते-आते बीजेपी की जीत और बड़ी हो गई. तब 300 से ज्यादा सीटों पर कमल खिलाकर नरेंद्र मोदी लगातार दूसरी बार प्रधानमंत्री बन गए.

राम मंदिर और बीजेपी- बीते करीब 4 दशक के सियासी सफर में बीजेपी ने कई उतार-चढ़ाव देखे हैं लेकिन उसने कभी भी राम मंदिर या हिंदुत्व के मुद्दे से परहेज नहीं किया. उसकी छवि हिंदुत्ववादी पार्टी की होती चली गई लेकिन इससे पार्टी को कभी गुरेज नहीं हुआ. बीजेपी के सियासी सफर में पालमपुर अधिवेशन में राम मंदिर का प्रस्ताव पास करना वो पड़ाव है. जिसने देश और दुनिया में चल रही समाजवादी, मार्क्सवादी, गांधीवादी जैसी तमाम विचारधाराओं के बीच बीजेपी को एक नई हिंदुत्ववादी विचारधारा दी. जिसने 80 के दशक के आखिरी सालों में इस नई नवेली पार्टी के लिए नई राह खोल दी.

आज बीजेपी दुनिया का सबसे बड़ा सियासी दल है
आज बीजेपी दुनिया का सबसे बड़ा सियासी दल है

इस बीच राम मंदिर को लेकर रथ यात्रा, बाबरी विध्वंस, इलाहबाद हाइकोर्ट का फैसला और सर्वोच्च न्यायालय का 'सुप्रीम' फैसला भी आया. जिसने 35 साल पहले पालमपुर अधिवेशन में रखी गई सपने की नींव पर भव्य राम मंदिर निर्माण की ओर बड़ा कदम बढ़ा दिया. अब अयोध्या में राम मंदिर बनकर तैयार है और 22 जनवरी को प्राण प्रतिष्ठा होनी है. लेकिन राम मंदिर और सियासत का ये सफर यूं ही खत्म नहीं होगा. प्राण प्रतिष्ठा के करीब तीन महीने बाद देश फिर से आम चुनावों के बीच होगा और राम मंदिर की गूंज नए नारों के साथ सियासी समर में होगी. इसका फायदा किसे होने वाला है. इस सवाल के जवाब के लिए फिलहाल किसी सियासी पंडित की जरूरत भी नहीं है.

हिमाचल के वरिष्ठ पत्रकार धनंजय शर्मा कहते हैं कि "बीजेपी के सियासी सफर में पालमपुर अधिवेशन बहुत अहम पड़ाव है. पालमपुर अधिवेशन से ही बीजेपी ने अपनी नीति, विजन या एजेंडे में राम मंदिर को शामिल किया. जिसके बाद पार्टी ने राज्यों से लेकर केंद्र तक सत्ता का शिखर देखा है. आज भाजपा दुनिया की सबसे बड़ा सियासी दल है और पिछले एक दशक में पार्टी ने शिखर छुआ है. देश में लगातार दूसरी बार पूर्ण बहुमत की सरकार है, कई राज्यों में कमल खिला है. शहरों और हिंदी हार्टलैंड की पार्टी मानी जाने वाली बीजेपी का कैडर और वोटर गांवों में भी है. पार्टी की पहुंच अब दक्षिण से लेकर उत्तर पूर्वी राज्यों तक है. जिस हिसाब से पार्टी का प्रदर्शन है निकट भविष्य में भी बीजेपी को कोई चुनौती देता नहीं दिख रहा."

ये भी पढ़ें: अयोध्या की तरह हिमाचल में भी राम मंदिर, जहां विराजते हैं भगवान रघुनाथ, जानें इनसे जुड़ी मान्यता

शिमला: 22 जनवरी 2024 को अयोध्या में भव्य राम मंदिर में राम लला की प्राण प्रतिष्ठा होने जा रही है. सियासी गलियारों से लेकर कानून की दहलीज तक राम मंदिर के लिए लंबी लड़ाई लड़ी गई. भले देश के करोड़ों लोगों के लिए ये विश्वास, धर्म, आस्था या भावना से जुड़ा पहलू हो लेकिन ये भी सच है कि इस पर दशकों से राजनीति हावी रही है. राम मंदिर का जिक्र आस्था के साथ सियासत के साथ होता रहा है. सियासत के अखाड़े में ये वो दांव रहा है, जिसपर मानो भारतीय जनता का एकाधिकार रहा. दूसरे दल भले इसे आस्था का मुद्दा बताएं या खुद को भी राम नाम का हिस्सेदार बताएं लेकिन इस बात से इनकार नहीं किया जा सकता कि बीजेपी ने राम मंदिर मुद्दे का दामन एक बार पकड़ा तो फिर कभी नहीं छोड़ा. सियासी रण में इसका फायदा भी बीजेपी को मिला है लेकिन सवाल है कि राम या राम मंदिर भाजपा के एजेंडे में कब शामिल हुए ? कब अयोध्या में राम मंदिर बनाने की बात हुई ?

पालमपुर में रखी गई थी राम मंदिर की नींव- पालमपुर कहां है, इस सवाल के जवाब के लिए ज्यादातर लोगों को गूगल का सहारा लेना पड़ेगा. ये छोटा सा शहर हिमाचल प्रदेश के कांगड़ा जिले में है. जहां पहली बार राम मंदिर बीजेपी के सिलेबस में जुड़ा और फिर इस मुद्दे ने भारतीय जनता पार्टी को देश की सियासत का टॉपर बना दिया.

बीजेपी ने 1989 में पास किया था राम मंदिर निर्माण का प्रस्ताव
बीजेपी ने 1989 में पास किया था राम मंदिर निर्माण का प्रस्ताव

साल 1989 में 9, 10 और 11 जून को बीजेपी का अधिवेशन पालमपुर में हुआ था. जहां बीजेपी की राष्ट्रीय कार्यकारिणी की बैठक तत्कालीन पार्टी अध्यक्ष लाल कृष्ण आडवाणी की अगुवाई में हुई. जिसमें अटल बिहारी वाजपेयी से लेकर विजयाराजे सिंधिया और शांता कुमार समेत पार्टी के तमाम बड़े नेता मौजूद थे. इस बैठक में पहली बार अयोध्या में राम मंदिर बनाने का प्रस्ताव पास हुआ. जिसे पालमपुर प्रस्ताव के नाम से भी जानते हैं. बैठक के बाद 11 जून 1989 को पालमपुर में एक जनसभा हुई जिसका मंच संचालन बीजेपी के पूर्व विधायक राधा रमण शास्त्री कर रहे थे. जो उस दिन को कुछ इस तरह याद करते हैं.

"1989 में 9, 10, 11 जून को बीजेपी की राष्ट्रीय कार्यकारिणी का अधिवेशन पालमपुर में हुआ था. कार्यकारिणी की बैठक में प्रस्ताव पास हुआ कि अयोध्या में राम मंदिर का निर्माण होना चाहिए. 11 जून की रात को पालमपुर के गांधी मैदान में एक जनसभा आयोजित हुई, जिसमें पार्टी के कार्यकर्ता ही नहीं हजारों लोग भी अपनी नींद छोड़कर वहां पहुंचे थे. मैं उस मंच का संचालन कर रहा था, जहां अटल बिहारी वाजपेयी ने राम मंदिर बनाने को लेकर पास हुए प्रस्ताव की जानकारी दी. जिसे सुनकर लोग खुशी से झूम उठे और नाचने-गाने लगे. उस दृश्य को शब्दों में बयां नहीं कर सकता"- राधा रमण शास्त्री, पूर्व शिक्षा मंत्री व पूर्व विधानसभा स्पीकर, हिमाचल प्रदेश

पालपुर में हुई कार्यकारिणी में अटल, आडवाणी, शांता कुमार समेत कई नेता मौजूद थे
पालपुर में हुई कार्यकारिणी में अटल, आडवाणी, शांता कुमार समेत कई नेता मौजूद थे

2 सीट से 85 सीटों पर पहुंची बीजेपी- 1989 का ये वो वक्त था जब देश में एक बार फिर आम चुनाव होने वाले थे. पालमपुर अधिवेशन से पहले राम मंदिर का झंडा विश्व हिंदू परिषद ने उठा रखा था. जिसे 1989 में बीजेपी ने ऐसा अपनाया कि भारतीय जनता पार्टी और राम मंदिर मानो एक दूसरे के पूरक लगने लगे. पालमपुर अधिवेशन के करीब 5 महीने बाद देश में लोकसभा चुनाव होने थे. बीजेपी ने राम मंदिर को पहली बार अपने घोषणा पत्र में जगह दी और इस मुद्दे को देशभर में पहुंचाया. राम मंदिर को लेकर अटल-आडवाणी की लिखी पटकथा आगे चलकर सुपरहिट होने वाली थी. 1989 लोकसभा चुनाव के नतीजे आए तो भारतीय जनता पार्टी के खाते में 85 सीटें आई. 1984 के आम चुनाव में बीजेपी सिर्फ 2 सीटों पर जीत हासिल कर पाई थी. देश की सियासत में बीजेपी के बढ़ते कदमों का ये ट्रेलर भर था. पूरी पिक्चर अभी बाकी थी.

राम मंदिर के लिए रथ यात्रा- 1990 आते-आते बीजेपी ने पालमपुर में पास हुए राम मंदिर प्रस्ताव को पार्टी का लक्ष्य बना लिया था. जिसका फायदा उसे 1989 के चुनावों में भी मिल चुका था. इस बीच 25 सितंबर 1990 को बीजेपी के तत्कालीन राष्ट्रीय अध्यक्ष लाल कृष्ण आडवाणी ने गुजरात के सोमनाथ से लेकर अयोध्या तक की अपनी 10,000 किलोमीटर की रथ यात्रा शुरू कर दी. इस यात्रा को गुजरात, महाराष्ट्र, आंध्र प्रदेश, मध्य प्रदेश, बिहार से होते हुए उत्तर प्रदेश के अयोध्या पहुंचना था. लेकिन उससे पहले ही बिहार की तत्कालीन लालू प्रसाद यादव सरकार ने आडवाणी को हिरासत में लेकर रथ यात्रा पर ब्रेक लगा दिया था. इसके बाद इतिहास के पन्नों में 5 दिसंबर 1992 का वो दिन भी जुड़ा जब अयोध्या में विवादित ढांचा गिरा दिया गया.

"11 जून 1989 को पालमपुर में ऐतिहासिक प्रस्ताव पास किया था. इसके बाद राम मंदिर आंदोलन में बीजेपी ने पूरी ताकत झोंकी थी. लाल कृष्ण आडवाणी की ऐतिहासिक रथ यात्रा से लेकर सड़क से संसद और अदालत तक कई तरह के संघर्ष के बाद अंत में देश की सबसे बड़ी अदालत ने भी राम मंदिर पर अपनी मुहर लगाई और अब भव्य राम मंदिर बनकर तैयार है." - शांता कुमार, पूर्व मुख्यमंत्री, हिमाचल प्रदेश

1990 में लाल कृष्ण आडवाणी रथ यात्रा
1990 में लाल कृष्ण आडवाणी रथ यात्रा

केंद्र से लेकर राज्यों में सरकार- इस बीच बीजेपी देश की सियासत में अपने कदम बढ़ाती रही. राम मंदिर को अपने घोषणा पत्र में जगह देने पर बीजेपी को 1989 लोकसभा चुनाव में 85 सीटें मिली तो 1990 आते-आते तीन राज्यों में पार्टी की सरकार बन गई. मार्च 1990 में राजस्थान, मध्य प्रदेश और हिमाचल में बीजेपी ने पहली बार सरकार बनी.

राम मंदिर के मुद्दे को बीजेपी ने ऐसा भुनाया कि उसका ग्राफ हर चुनाव के साथ बढ़ता गया. 1991 के आम चुनाव में 120 सीटें जीतकर बीजेपी केंद्र में पहली बार मुख्य विपक्षी दल के रूप में उभरी और 5 साल बाद 1996 के लोकसभा चुनाव में 161 सीटें जीतकर भाजपा ने पहली बार केंद्र में सरकार बना ली. हालांकि ये सरकार सिर्फ 13 दिन चली. 1998 में 182 सीटें जीतकर भाजपा ने फिर से सरकार बनाई. इस बार सरकार सिर्फ 13 महीने चल पाई. दोनों बार बहुमत से दूर रही भाजपा 1999 में एक बार फिर 182 सीटें जीतकर सबसे बड़े दल के रूप में उभरी और सरकार बनाई. इस बार भी बहुमत का आंकड़ा बीजेपी के पास नहीं था लेकिन तीसरी बार प्रधानमंत्री बने अटल बिहारी वाजपेयी ने पूरे 5 साल सरकार चलाई, वो भी 26 दलों के साथ मिलकर. ऐसी मिसाल देश की सियासत में दूसरी नहीं मिलती.

अटल और आडवाणी की जोड़ी ने बीजेपी को दिखाई नई राह
अटल और आडवाणी की जोड़ी ने बीजेपी को दिखाई नई राह

10 साल का सूखा और फिर मोदी राज- 2004 में अटल बिहारी वाजपेयी का शाइनिंग इंडिया का नारा धराशायी हो गया और पार्टी 138 सीटों पर सिमटकर विपक्ष में पहुंच गई. 145 सीटें जीतकर सबसे बड़े दल के रूप में कांग्रेस ने सहयोगी दलों के साथ मिलकर सरकार बनाई. 2009 में बीजेपी का प्रदर्शन और भी गिर गया. पार्टी 116 सीटों पर जा गिरी और कांग्रेस ने 206 सीटें जीतकर एक बार फिर गठबंधन सरकार बना ली. हालांकि 2014 में बीजेपी ने मोदी के चेहरे पर शानदार वापसी की और 282 सीटों पर बंपर जीत के साथ पूर्ण बहुमत की सरकार बनाई. 2019 तक आते-आते बीजेपी की जीत और बड़ी हो गई. तब 300 से ज्यादा सीटों पर कमल खिलाकर नरेंद्र मोदी लगातार दूसरी बार प्रधानमंत्री बन गए.

राम मंदिर और बीजेपी- बीते करीब 4 दशक के सियासी सफर में बीजेपी ने कई उतार-चढ़ाव देखे हैं लेकिन उसने कभी भी राम मंदिर या हिंदुत्व के मुद्दे से परहेज नहीं किया. उसकी छवि हिंदुत्ववादी पार्टी की होती चली गई लेकिन इससे पार्टी को कभी गुरेज नहीं हुआ. बीजेपी के सियासी सफर में पालमपुर अधिवेशन में राम मंदिर का प्रस्ताव पास करना वो पड़ाव है. जिसने देश और दुनिया में चल रही समाजवादी, मार्क्सवादी, गांधीवादी जैसी तमाम विचारधाराओं के बीच बीजेपी को एक नई हिंदुत्ववादी विचारधारा दी. जिसने 80 के दशक के आखिरी सालों में इस नई नवेली पार्टी के लिए नई राह खोल दी.

आज बीजेपी दुनिया का सबसे बड़ा सियासी दल है
आज बीजेपी दुनिया का सबसे बड़ा सियासी दल है

इस बीच राम मंदिर को लेकर रथ यात्रा, बाबरी विध्वंस, इलाहबाद हाइकोर्ट का फैसला और सर्वोच्च न्यायालय का 'सुप्रीम' फैसला भी आया. जिसने 35 साल पहले पालमपुर अधिवेशन में रखी गई सपने की नींव पर भव्य राम मंदिर निर्माण की ओर बड़ा कदम बढ़ा दिया. अब अयोध्या में राम मंदिर बनकर तैयार है और 22 जनवरी को प्राण प्रतिष्ठा होनी है. लेकिन राम मंदिर और सियासत का ये सफर यूं ही खत्म नहीं होगा. प्राण प्रतिष्ठा के करीब तीन महीने बाद देश फिर से आम चुनावों के बीच होगा और राम मंदिर की गूंज नए नारों के साथ सियासी समर में होगी. इसका फायदा किसे होने वाला है. इस सवाल के जवाब के लिए फिलहाल किसी सियासी पंडित की जरूरत भी नहीं है.

हिमाचल के वरिष्ठ पत्रकार धनंजय शर्मा कहते हैं कि "बीजेपी के सियासी सफर में पालमपुर अधिवेशन बहुत अहम पड़ाव है. पालमपुर अधिवेशन से ही बीजेपी ने अपनी नीति, विजन या एजेंडे में राम मंदिर को शामिल किया. जिसके बाद पार्टी ने राज्यों से लेकर केंद्र तक सत्ता का शिखर देखा है. आज भाजपा दुनिया की सबसे बड़ा सियासी दल है और पिछले एक दशक में पार्टी ने शिखर छुआ है. देश में लगातार दूसरी बार पूर्ण बहुमत की सरकार है, कई राज्यों में कमल खिला है. शहरों और हिंदी हार्टलैंड की पार्टी मानी जाने वाली बीजेपी का कैडर और वोटर गांवों में भी है. पार्टी की पहुंच अब दक्षिण से लेकर उत्तर पूर्वी राज्यों तक है. जिस हिसाब से पार्टी का प्रदर्शन है निकट भविष्य में भी बीजेपी को कोई चुनौती देता नहीं दिख रहा."

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