जोधपुर. राजस्थान में खेजड़ी को संरक्षित करने के लिए राज्य वृक्ष का दर्जा दिया गया है. क्योंकि यह वृक्ष ग्रामीणों की जीविका का सबसे बड़ा साधन है. अब इस वृक्ष का प्रमुख उत्पाद सांगरी (प्रोसोपिस सिनेरिया) जो मारवाड़ की प्रमुख सब्जी है, उसके गुणों की खोज की गई है. जिसमें सामने आया है कि सांगरी में ऐसे तत्व मौजूद हैं जिससे डायबिटीज रोगी को काफी फायदा हो सकता है. खास तौर से ऐसे रोगी जिनकी डायबिटीज से यादाश्त कमजोर हो रही है, उनके लिए यह रामबाण साबित होती नजर आ रही है.
सांगरी को लेकर जयनारायण व्यास विश्वविद्यालय के प्राणिशास्त्र विभाग में एक शोध भी हुई है. जिसमें एनिमल ट्रायल में काफी उत्साहजनक परिणाम सामने आए हैं. इसमें डायबिटीज के साथ-साथ एजिंग इफेक्ट में भी फायदा होता है. प्राणिशास्त्र विभाग के एसोसिएट प्रोफेसर हीराराम के निर्देशन में करीब तीन साल चले शोध में यह परिणाम सामने आए हैं. इसमें आईआईटी जोधपुर का भी सहयोग लिया गया है. प्रोफेसर हीराराम ने बताया कि एनिमल लीवर परीक्षण में सांगरी का प्रयोग काफी सफल रहा. जिसमें एंजाइम के निष्क्रिय होने और कोलेस्ट्रोल कम होना सामने आया. इसके अलावा डायबिटीज से प्रभावित मष्तिक के हिस्सों में सकारात्मक परिवर्तन भी देखा गया. विभाग की रिसर्चर डॉ. नुपुर व अन्य का ये शोध पत्र हाल ही में इंटरनेशनल अल्जाइमर रिसर्च जर्नल में प्रकाशित भी हुआ है. प्रोफेसर हीराराम के अनुसार शोध में सामने आया कि सांगरी का मुख्य घटक प्रोसीजेरिन है, जिससे एंजाइम डीडीपी 4 और कॉलिंसट्रटेज से डायबिटीज में हुई मेमोरी लॉस की परेशानी के सामाधन में कारगर साबित हुआ है. रिसर्च में आईआईटी जोधपुर के डॉ. निर्मल राणा का भी सहयोग रहा है. उन्होने बताया कि इसके आगे के चरणों पर भी काम जारी है.
ब्रेन स्ट्रोक में भी कारगर है सांगरी : प्रोफेसर हीराराम के अनुसार उनके विभाग में सांगरी पर अलग-अलग माध्यम से शोध काम चल रहा है. सांगरी में कोलेस्ट्रॉल कम करने के भी गुण मौजूद हैं. मरीजों को कोलेस्ट्रॉल नियंत्रण करने के लिए हमेशा दवाइयां लेनी पड़ती हैं, इससे साइड इफेक्ट में सिरदर्द, ब्रेन स्ट्रोक, हार्ट से जुड़ी परेशानियां प्रमुख हैं. लेकिन सांगरी के नियमित उपयोग से हाई ब्लड प्रेशर व कॉलेस्ट्रॉल को नियंत्रित किया जा सकता है.
दवाइयां बनाने के लिए आईआईटी का सहयोग : जेएनवीयू की इस रिसर्च में आईआईटी जोधपुर का भी सहयोग लिया गया है. प्रोफेसर हीराराम ने कहा कि हम चाहते हैं कि सांगरी के तत्वों का उपयोग दवाइयां बनाने में हो, इसके पेटेंट को लेकर भी प्रयास किया जा रहा है. मार्केेटिंग कंपनियों के जरिए इसका व्यवसायिक उपयोग हो सके, इसके लिए आईआईटी जोधपुर का सहयोग लिया जा रहा है, हमने आईआईटी जोधपुर के साथ एमओयू भी किया है.
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राजस्थान में बढ़ा सांगरी का उपयोग : पश्चिमी राजस्थान में खेजड़ी पर लगने वाली सांगरी जब ताजा और हरि होती है तो उसका उपयोग शुरू हो जाता है. बाजरे की रोटी के साथ इसकी सब्जी खाई जाती है. सीजन खत्म होने से पहले लोग सांगरी को सुखाकर रख लेते हैं. जिसकी भी बाद में सब्जी बनती है. बीते एक दशक में इसका चलन काफी बढ़ा है. सांगरी के साथ सूखे केर व कुमट बाजार में दो हजार रुपए किलो तक बिकने लगे हैं.
56 के अकाल में खेजड़ी ने रखा जीवित : पश्चिमी राजस्थान में 56 का अकाल बहुत भयावह था. बताया जाता है कि उस समय लोगों के पास खाने को कुछ नहीं बचा था. गांवों में लोग खेजड़ी वृक्ष के छिलके तक खाकर जीवित रहे थे. उस समय राजस्थान में खेजड़ी के वृक्ष अधिक थे. लंबे समय तक बारिश नहीं होने से बाकी वनस्पतियां लगभग खत्म हो गई थी. कई पुराने तथ्यों में कहा गया है कि खेजड़ी ही ऐसा वृक्ष जो पूरी तरह से मनुष्य के लिए सुरक्षित है.