बिलासपुर: झीरम घाटी हत्याकांड (Jhiram valley Naxal Attack) में दिवंगत उदय मुदलियार के बेटे जितेंद्र मुदलियार ने दरभा थाने में साल 2020 में हत्या और षडयंत्र का आरोप लगाते हुए केस दर्ज कराया था. इस केस को राष्ट्रीय जांच एजेंसी (National Investigation Agency) ने जगदलपुर की विशेष NIA कोर्ट में चुनौती दी थी. साथ ही इस केस को NIA को सौंपने की मांग भी की गई थी, लेकिन विशेष अदालत ने आवेदन को खारिज कर दिया था. इस फैसले के खिलाफ NIA ने बिलासपुर हाईकोर्ट (Bilaspur High Court) में याचिका दायर की थी. प्रारंभिक सुनवाई के दौरान हाईकोर्ट ने इस प्रकरण की जांच पर रोक लगा दी थी. इसके बाद मामले की सुनवाई लंबित थी. राज्य सरकार जांच शुरू नहीं कर पाई थी. अब बिलासपुर हाईकोर्ट ने फैसला सुनाया है और NIA की अपील को खारिज कर दिया है. इस फैसले के बाद राज्य सरकार की जांच एजेंसी जांच के लिए स्वतंत्र है.
एनआईए की ओर से अतिरिक्त सॉलिसिटर जनरल विक्रमजीत बनर्जी ने की बहस
फरवरी को NIA की तरफ से सुप्रीम कोर्ट के एडिशनल सॉलिसिटर जनरल विक्रमजीत बनर्जी ने बहस की थी. उन्होंने NIA एक्ट का हवाला देकर कहा था कि जिस मामले की NIA जांच कर चुकी है, उस पर राज्य शासन को जांच करने का अधिकार नहीं है. एनआईए ने झीरम घाटी हमले पर दरभा थाना द्वारा की गई दूसरी एफआईआर पर रोक लगाने और उसकी जांच एनआईए को ही दिये जाने का अनुरोध किया. इसके बाद शासन की तरफ से भी पक्ष रखा गया. दोनों पक्षों को सुनने के बाद कोर्ट ने फैसला सुरक्षित रख लिया था, जिस पर आज फैसला आया है.
NIA ने 14 बिंदुओं में याचिका दायर कर बताया था कि पिछले 7 साल से किस तरह वह इस पूरे मामले की जांच कर रही है. याचिका में इस बात की भी जानकारी दी गई कि NIA एक्ट के अनुसार झीरम मामले की जांच जब तक उनके पास है तब तक कोई और इस मामले की जांच नहीं कर सकता. तभी पीड़ित परिजनों ने मामले की जांच राज्य सरकार से गठित SIT के जरिए करने की मांग की थी. पीड़ितों ने NIA पर प्रभावितों के बयान भी नहीं लेने का आरोप लगाया था.
पढ़ें: NIA का दावा, देश के कई राज्यों में युवाओं की भर्ती करा रहे पाकिस्तानी आतंकी संगठन
क्या है झीरम घाटी हत्याकांड
25 मई 2013 को कांग्रेस की परिवर्तन यात्रा के काफिले पर बस्तर की झीरम घाटी में नक्सलियों ने हमला कर दिया था. जिसमें वरिष्ठ कांग्रेसी नेताओं समेत कुल 29 लोगों की मौत हो गई थी. इस विभत्स हत्याकांड में कांग्रेस ने अपनी पहली पंक्ति के नेताओं विद्याचरण शुक्ल, उदय मुदलियार, नंद कुमार पटेल और महेंद्र कर्मा को खोया था. इसमें कांग्रेस के 20 से ज्यादा नेता मारे गए थे. बताया जाता है कि बस्तर में रैली खत्म होने के बाद कांग्रेस नेताओं का काफिल सुकमा से जगदलपुर जा रहा था. काफिले में करीब 25 गाड़ियां थीं. जिनमें लगभग 200 नेता सवार थे.
क्या है NIA और राज्य सरकार का विवाद
तत्कालीन केंद्र की यूपीए की सरकार मामले को एनआईए को सौंप दिया गया था. हालांकि कुछ समय के बाद केंद्र में सरकार बदल गई. घटना के बाद से ही राजनीतिक साजिश के आरोप लग रहे थे. हालांकि, एनआईए ने किसी भी राजनीतिक साजिश से इंकार किया है. 2013 से मामले की जांच कर रही NIA ने मामले में 39 लोगों को आरोपी बनाया है. उनके खिलाफ 2 चार्जशीट दाखिल हो चुकी हैं. लेकिन घटना के 7 साल बीत जाने के बाद भी NIA आरोपियों को सजा दिलाना तो दूर उनकी पतासाजी तक नहीं कर पाई तब 25 मई 2020 को दिवंगत उदय मुदलियार और बस्तर टाइगर महेंद्र कर्मा के परिजनों ने बस्तर पुलिस द्वारा दरभा थाने में FIR दर्ज कराया. इस FIR की जानकारी जैसे ही NIA को लगी, उन्होंने तुरंत बस्तर SP को पत्र लिखकर अपनी आपत्ति दर्ज कराते हुए मामले को NIA को सौंपने को कहा था. जब मामला NIA को नहीं सौंपा गया तो NIA ने जगदलपुर NIA कोर्ट में याचिका दायर कर दी. राज्य में 2018 में सत्ता में आने के बाद सीएम भूपेश बघेल ने इस मामले की जांच के लिए एसआईटी गठित करने की घोषणा की थी. उसके बाद, उन्होंने पहले एनआईए से मामले वापस लेने की कोशिश की, फिर आगे बढ़े और एक नई एफआईआर दर्ज की, लेकिन एनआईए तब से केस को रिजेक्ट करने के अनुरोधों को बार-बार खारिज कर रहा है.