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जया एकादशी व्रत करने वाले जरूर सुनें वह कथा, जो श्रीकृष्ण ने युद्धिष्ठिर को सुनाई थी

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Published : Feb 11, 2022, 5:17 PM IST

12 फरवरी यानी शनिवार को जया एकादशी है. माघ महीने के शुक्ल पक्ष में आने वाली एकादशी जया एकादशी होती है. इस व्रत को करने से पितरों को भी प्रेत योनि से मुक्ति मिलती है. अगर आप जया एकादशी का व्रत करते हैं तो वह कथा जरूर सुनें, जो भगवान कृष्ण ने युद्धिष्ठिर को सुनाई थी.

Jaya Ekadashi
Jaya Ekadashi

रांची: हर महीने दो पक्षों में दो एकादशी आती है. वैसे तो हर महीने की एकादशी का व्रत मनुष्य को शुभ फल देता है, मगर जया एकादशी का व्रत मानव को कठिनाई से मुक्ति दिलाता है. इस व्रत को करने से पूर्वजों को भी प्रेत योनि से मुक्ति मिल जाती है. सनातन धर्म में यह भी मान्यता है कि जया एकादशी के दिन भगवान विष्णु और माता लक्ष्मी की पूजा करने से व्रती को अक्षय पुण्य की प्राप्ति तो होती ही है, उसके कुल के वारिसों को भी राजयोग मिलता है.

पंडित जितेंद्र जी महाराज के अनुसार, जया एकादशी को लेकर मान्यता है कि यह व्रत हजार वर्ष तक स्वर्ग में वास करने का फल देता है और बुरी योनि से मुक्ति दिलाती है. इस बार 12 फरवरी को जया एकादशी है, लोग इस दिन भगवान विष्णु और मां लक्ष्मी की आराधना कर व्रत रख सकते हैं. पंडित जितेन्द्र जी महाराज बताते हैं कि जया एकादशी करने की विधि ठीक उसी प्रकार है, जैसे भगवान विष्णु के पूजन की विधि होती है. इस दिन भक्त इन मंत्रों का उच्चारण कर भगवान विष्णु की उपासना कर सकते हैं.

जया एकादशी का विधान बता रहे हैं पंडित जितेंद्र जी महाराज
ओम ह्रींग नमःओम नमः भगवते वासुदेवायै.इन राशि के लोगों के लिए है उत्तम संयोग: पंडित जितेन्द्र जी महाराज बताते हैं कि शनिवार को पड़ने वाले जया एकादशी मिथुन, कन्या, तुला, मीन राशि के लोगों के लिए अति उत्तम संयोग लेकर आ रहा है वहीं अन्य राशि के भी लोग जया एकादशी के दिन भगवान विष्णु की आराधना कर मनवांछित फल पाएंगे.जया एकादशी की पौराणिक कथा: जया एकादशी की कथा भगवान श्रीकृष्ण ने पहली बार युद्धिष्ठिर को सुनाई थी. जया एकादशी को लेकर पौराणिक कथाओं में यह प्रसिद्ध है कि एक समय इंद्रलोक में सभी अप्सरागण और देवता नृत्य गाण कर रहे थे. जिसमें माल्यवान एवं पुष्पवती भी नृत्य कर रहे थे. नृत्य करते करते दोनों एक-दूसरे में इतने खो गए कि उन्होंने इंद्रलोक की मर्यादा को भुला दिया. इससे नाराज देवताओं के राजा इंद्र ने दोनों को पिशाच बन जाने का श्राप दिया. श्राप के प्रभाव से माल्यवान एवं पुष्पवती पिशाच योनि में चले गए. दोनो ही पहाड़ों की खाई और घने जंगल में जीवन गुजारने के लिए मजबूर हो गए. माघ महीने के शुक्ल पक्ष में वह दोनों ठंड में ठिठुरते हुए दिन रात भूखे रह गए. इस कारण भूलवश ही सही, दोनों ने जया एकादशी का व्रत कर लिया. उसके इस व्रत से भगवान विष्णु प्रसन्न हुए तो उन्होंने प्रेत योनि से दोनों को मुक्ति प्रदान कर दी. जया एकादशी व्रत के प्रभाव से दोनों पहले से भी अधिक रूपवान हो गए और फिर से स्वर्ग लोक पहुंच गए. मुक्ति मिलने के बाद दोनों भगवान इंद्र के पास गए जहां भगवान इंद्र ने आशीर्वाद देते हुए कहा कि जो भी भगवान विष्णु का पूजन करेंगे, वह हमारे भी प्रिय होंगे.

रांची: हर महीने दो पक्षों में दो एकादशी आती है. वैसे तो हर महीने की एकादशी का व्रत मनुष्य को शुभ फल देता है, मगर जया एकादशी का व्रत मानव को कठिनाई से मुक्ति दिलाता है. इस व्रत को करने से पूर्वजों को भी प्रेत योनि से मुक्ति मिल जाती है. सनातन धर्म में यह भी मान्यता है कि जया एकादशी के दिन भगवान विष्णु और माता लक्ष्मी की पूजा करने से व्रती को अक्षय पुण्य की प्राप्ति तो होती ही है, उसके कुल के वारिसों को भी राजयोग मिलता है.

पंडित जितेंद्र जी महाराज के अनुसार, जया एकादशी को लेकर मान्यता है कि यह व्रत हजार वर्ष तक स्वर्ग में वास करने का फल देता है और बुरी योनि से मुक्ति दिलाती है. इस बार 12 फरवरी को जया एकादशी है, लोग इस दिन भगवान विष्णु और मां लक्ष्मी की आराधना कर व्रत रख सकते हैं. पंडित जितेन्द्र जी महाराज बताते हैं कि जया एकादशी करने की विधि ठीक उसी प्रकार है, जैसे भगवान विष्णु के पूजन की विधि होती है. इस दिन भक्त इन मंत्रों का उच्चारण कर भगवान विष्णु की उपासना कर सकते हैं.

जया एकादशी का विधान बता रहे हैं पंडित जितेंद्र जी महाराज
ओम ह्रींग नमःओम नमः भगवते वासुदेवायै.इन राशि के लोगों के लिए है उत्तम संयोग: पंडित जितेन्द्र जी महाराज बताते हैं कि शनिवार को पड़ने वाले जया एकादशी मिथुन, कन्या, तुला, मीन राशि के लोगों के लिए अति उत्तम संयोग लेकर आ रहा है वहीं अन्य राशि के भी लोग जया एकादशी के दिन भगवान विष्णु की आराधना कर मनवांछित फल पाएंगे.जया एकादशी की पौराणिक कथा: जया एकादशी की कथा भगवान श्रीकृष्ण ने पहली बार युद्धिष्ठिर को सुनाई थी. जया एकादशी को लेकर पौराणिक कथाओं में यह प्रसिद्ध है कि एक समय इंद्रलोक में सभी अप्सरागण और देवता नृत्य गाण कर रहे थे. जिसमें माल्यवान एवं पुष्पवती भी नृत्य कर रहे थे. नृत्य करते करते दोनों एक-दूसरे में इतने खो गए कि उन्होंने इंद्रलोक की मर्यादा को भुला दिया. इससे नाराज देवताओं के राजा इंद्र ने दोनों को पिशाच बन जाने का श्राप दिया. श्राप के प्रभाव से माल्यवान एवं पुष्पवती पिशाच योनि में चले गए. दोनो ही पहाड़ों की खाई और घने जंगल में जीवन गुजारने के लिए मजबूर हो गए. माघ महीने के शुक्ल पक्ष में वह दोनों ठंड में ठिठुरते हुए दिन रात भूखे रह गए. इस कारण भूलवश ही सही, दोनों ने जया एकादशी का व्रत कर लिया. उसके इस व्रत से भगवान विष्णु प्रसन्न हुए तो उन्होंने प्रेत योनि से दोनों को मुक्ति प्रदान कर दी. जया एकादशी व्रत के प्रभाव से दोनों पहले से भी अधिक रूपवान हो गए और फिर से स्वर्ग लोक पहुंच गए. मुक्ति मिलने के बाद दोनों भगवान इंद्र के पास गए जहां भगवान इंद्र ने आशीर्वाद देते हुए कहा कि जो भी भगवान विष्णु का पूजन करेंगे, वह हमारे भी प्रिय होंगे.
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