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जानें, क्यों जयराम रमेश ने वन संरक्षण संशोधन विधेयक को बताया 'खतरनाक' - sansad session 2023

'वन संरक्षण (संशोधन) विधेयक, 2023' का उद्देश्य वनों के संरक्षण के साथ विकास और पर्यावरण के बीच संतुलन स्थापित करना है, जिससे लोगों के जीवनस्तर में सुधार भी आए. इस विधेयक को राज्यसभा ने बुधवार को चर्चा के बाद पारित कर दिया है. वहीं, लोकसभा ने इसे पहले ही पारित कर दी थी. इस विधेयक को लेकर मंत्री जयराम रमेश ने ट्वीट कर इसे खतरनाक बताया और कहा कि इसे पारित करने वाली पार्टियों व सरकार से सवाल किया जाना चाहिए.

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Published : Aug 3, 2023, 6:08 PM IST

नई दिल्ली : कांग्रेस महासचिव जयराम रमेश ने 'वन संरक्षण (संशोधन) विधेयक, 2023' को संसद की मंजूरी मिलने की पृष्ठभूमि में गुरुवार को कहा कि इस 'खतरनाक' विधेयक को पारित कराने वाली पार्टियों और सरकार से सवाल किया जाना चाहिए. उन्होंने यह भी कहा कि विपक्षी गठबंधन 'इंडिया' के घटक दलों ने बुधवार को इस विधेयक को पारित कराए जाने के समय राज्यसभा की कार्यवाही से दूरी बनाई क्योंकि मणिपुर के मुद्दे पर प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी के बयान और इसके बाद चर्चा कराने की 'जायज' मांग को रोजाना अस्वीकार किया जा रहा है और विपक्ष के नेता मल्लिकार्जुन खरगे को बोलने की अनुमति नहीं दी जा रही है.

गौरतलब है कि संसद ने बुधवार को 'वन संरक्षण (संशोधन) विधेयक, 2023' को मंजूरी दे दी जिसका मकसद वनों के संरक्षण के साथ ही विकास और पर्यावरण के बीच संतुलन स्थापित करना और लोगों के जीवनस्तर में सुधार लाना है. राज्यसभा ने बुधवार को विधेयक को संक्षिप्त चर्चा के बाद पारित कर दिया. लोकसभा इसे पहले ही पारित कर चुकी है. पूर्व पर्यावरण मंत्री रमेश ने ट्वीट किया, "कई पर्यावरणविदों, जो किसी भी तरह से भक्त नहीं हैं, ने कल राज्यसभा में वन संरक्षण विधेयक,1980 में संशोधन पर चर्चा के दौरान राज्यसभा की कार्यवाही का बहिष्कार करने के लिए विपक्ष की आलोचना की है."

उनका कहना है, "मैं स्पष्ट कर दूं कि बहिष्कार का निर्णय 'इंडिया' गठबंधन के 26 सामूहिक दलों का सामूहिक निर्णय था क्योंकि मणिपुर के मामले पर प्रधानमंत्री के बयान और इस पर चर्चा कराने की हमारी जायज मांग को रोजाना अस्वीकार किया जा रहा है और विपक्ष के नेता को बोलने की अनुमति नहीं दी जा रही है. रमेश ने दावा किया, "मैं जिस स्थायी समिति की अध्यक्षता कर रहा था, उसके पास यह विधेयक नहीं भेजा गया था. इसे एक विशेष संयुक्त समिति के पास भेजा गया जिसने विधेयक पर बस मुहर लगाने का काम किया. यह सब पूरी तरह से विधायी प्रक्रिया का मखौल उड़ाना था."

पढ़ें : Watch : हंगामे के बीच राज्यसभा में चला हंसी-मजाक, धनखड़ ने कहा, मेरी शादी को हो चुके 45 साल...

उन्होंने कहा, "मैं संशोधनों के खिलाफ बार-बार बोला हूं और ऐसा करना जारी रखूंगा. लेकिन यह नहीं भूलना चाहिए कि हम जो लड़ाई लड़ रहे हैं वह बहुत व्यापक राजनीतिक स्तर की है. कभी-कभी, किसी बड़े मुद्दे पर वैध और सैद्धांतिक रूख का किसी विशिष्ट मुद्दे पर असर पड़ सकता है." कांग्रेस नेता ने कहा, "इस सरकार और यहां तक ​​कि अन्य पार्टियों से भी सवाल पूछे जाने चाहिए जिन्होंने इस खतरनाक विधेयक पर मुहर लगाई. यह पर्यावरण और आदिवासियों तथा वनवासियों के अधिकारों को सुरक्षित करने के लिए एक लंबा संघर्ष होगा और इसमें कोई संदेह नहीं होना चाहिए कि विपक्ष इस मुद्दे पर कहां खड़ा है."

(पीटीआई-भाषा)

नई दिल्ली : कांग्रेस महासचिव जयराम रमेश ने 'वन संरक्षण (संशोधन) विधेयक, 2023' को संसद की मंजूरी मिलने की पृष्ठभूमि में गुरुवार को कहा कि इस 'खतरनाक' विधेयक को पारित कराने वाली पार्टियों और सरकार से सवाल किया जाना चाहिए. उन्होंने यह भी कहा कि विपक्षी गठबंधन 'इंडिया' के घटक दलों ने बुधवार को इस विधेयक को पारित कराए जाने के समय राज्यसभा की कार्यवाही से दूरी बनाई क्योंकि मणिपुर के मुद्दे पर प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी के बयान और इसके बाद चर्चा कराने की 'जायज' मांग को रोजाना अस्वीकार किया जा रहा है और विपक्ष के नेता मल्लिकार्जुन खरगे को बोलने की अनुमति नहीं दी जा रही है.

गौरतलब है कि संसद ने बुधवार को 'वन संरक्षण (संशोधन) विधेयक, 2023' को मंजूरी दे दी जिसका मकसद वनों के संरक्षण के साथ ही विकास और पर्यावरण के बीच संतुलन स्थापित करना और लोगों के जीवनस्तर में सुधार लाना है. राज्यसभा ने बुधवार को विधेयक को संक्षिप्त चर्चा के बाद पारित कर दिया. लोकसभा इसे पहले ही पारित कर चुकी है. पूर्व पर्यावरण मंत्री रमेश ने ट्वीट किया, "कई पर्यावरणविदों, जो किसी भी तरह से भक्त नहीं हैं, ने कल राज्यसभा में वन संरक्षण विधेयक,1980 में संशोधन पर चर्चा के दौरान राज्यसभा की कार्यवाही का बहिष्कार करने के लिए विपक्ष की आलोचना की है."

उनका कहना है, "मैं स्पष्ट कर दूं कि बहिष्कार का निर्णय 'इंडिया' गठबंधन के 26 सामूहिक दलों का सामूहिक निर्णय था क्योंकि मणिपुर के मामले पर प्रधानमंत्री के बयान और इस पर चर्चा कराने की हमारी जायज मांग को रोजाना अस्वीकार किया जा रहा है और विपक्ष के नेता को बोलने की अनुमति नहीं दी जा रही है. रमेश ने दावा किया, "मैं जिस स्थायी समिति की अध्यक्षता कर रहा था, उसके पास यह विधेयक नहीं भेजा गया था. इसे एक विशेष संयुक्त समिति के पास भेजा गया जिसने विधेयक पर बस मुहर लगाने का काम किया. यह सब पूरी तरह से विधायी प्रक्रिया का मखौल उड़ाना था."

पढ़ें : Watch : हंगामे के बीच राज्यसभा में चला हंसी-मजाक, धनखड़ ने कहा, मेरी शादी को हो चुके 45 साल...

उन्होंने कहा, "मैं संशोधनों के खिलाफ बार-बार बोला हूं और ऐसा करना जारी रखूंगा. लेकिन यह नहीं भूलना चाहिए कि हम जो लड़ाई लड़ रहे हैं वह बहुत व्यापक राजनीतिक स्तर की है. कभी-कभी, किसी बड़े मुद्दे पर वैध और सैद्धांतिक रूख का किसी विशिष्ट मुद्दे पर असर पड़ सकता है." कांग्रेस नेता ने कहा, "इस सरकार और यहां तक ​​कि अन्य पार्टियों से भी सवाल पूछे जाने चाहिए जिन्होंने इस खतरनाक विधेयक पर मुहर लगाई. यह पर्यावरण और आदिवासियों तथा वनवासियों के अधिकारों को सुरक्षित करने के लिए एक लंबा संघर्ष होगा और इसमें कोई संदेह नहीं होना चाहिए कि विपक्ष इस मुद्दे पर कहां खड़ा है."

(पीटीआई-भाषा)

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