जयपुर. किसी आलिशान होटल की खाने की टेबल हो या घरों में चाय पीने के लिए इस्तेमाल होने वाले कप से लेकर खाने की टेबल पर सजने वाले डिनर सेट चीनी मिट्टी से बने क्रॉकरी आइटम आज हर आम और खास घर तक अपनी पहुंच बना चुके हैं. गुलाबी नगरी जयपुर में सफेद मिट्टी (चीनी मिट्टी) से बने क्रॉकरी आइटम न केवल देशभर में पसंद किए जा रहे हैं. बल्कि विदेशों में भी इन्हें काफी अच्छा रेस्पॉन्स मिल रहा है. खास बात यह है कि पार्लियामेंट हाउस, सेना की सभी कैंटोनमेंट मेस-कैंटीन और प्रेसिडेंट बॉडी गार्ड्स ऑफ इंडिया की यूनिट में भी जयपुर में बने टेबल वेयर (क्रॉकरी आइटम्स) ही पसंद किए जा रहे हैं.
जयपुर की क्ले क्राफ्ट कंपनी के डायरेक्टर दीपक अग्रवाल बताते हैं कि उनके पिता पदम नारायण अग्रवाल और चाचा राजेश नारायण अग्रवाल ने घर में काम आने वाले कांच के आइटम और क्रॉकरी की ट्रेडिंग से इस काम की शुरुवात की थी. उस समय ऐसे आइटम्स में सीमित वैरायटी होती थी. लेकिन अलग-अलग इलाकों के लोगों की पसंद और जरूरत के हिसाब से काफी वैरायटी की संभावना महसूस हुई तो उन्होंने अपनी मैन्यूफैक्चरिंग यूनिट लगाने की ठानी.
मानकों पर खरा उतरना चुनौती: भारतीय सेना की कैंटोनमेंट मेस, अस्पताल, पुलिस कैंटीन, और आर्मी कैंटीन में जयपुर में बनी चीनी मिट्टी की क्रॉकरी सप्लाई की जा रही है. सेना में स्टील या प्लास्टिक के बर्तन का उपयोग नहीं किया जाता है. चीनी मिट्टी के क्रॉकरी आइटम ही उपयोग होते हैं. इनके लिए कड़े मानक पर खरा उतरना होता है और हर रेजिमेंट की मेस में पहुंचने वाले क्रॉकरी आइटम पर उस रेजिमेंट का लोगो भी उकेरा जाता है.
2500 रुपए से की थी शुरुआत: दीपक अग्रवाल ने बताया कि कि उनके पिता और चाचा ने महज 2500 रुपए से चीनी मिट्टी के आइटम बनाने का काम शुरू किया. जो आज न केवल देशभर में बल्कि विदेशों तक अपनी जगह बना चुका है. उनका कहना है कि शुरुआत में काफी चुनौतियां भी आई लेकिन समय के साथ सब बदलता गया और आज उनकी कंपनी न केवल देश बल्कि विदेशों में भी एक स्थापित ब्रांड बन चुकी है और 22 देशों में वे जयपुर में बने क्रॉकरी आइटम सप्लाई कर रहे हैं. देश के कई प्रतिष्ठित संस्थानों में भी उनके टेबल वेयर सप्लाई किए जा रहे हैं.
दस से शुरुआत, आज 1200 लोगों को सीधा रोजगार: दीपक का कहना है कि जब उनके पिता और चाचा ने चीनी मिट्टी के आइटम्स की मैन्यूफैक्चरिंग शुरू की तो दस श्रमिक काम करते थे. आज उनके जयपुर और मंडा में दो प्लांट हैं. जहां 1200 से ज्यादा लोग काम करते हैं. उन्होंन े बताया कि प्लांट में करीब 30 फीसदी महिला वर्कर हैं. पूरे देश में 12 हजार से ज्यादा रिटेल काउंटर और 110 से ज्यादा डिस्ट्रीब्यूटर हैं जिनमें सैकड़ों लोगों को रोजगार मिल रहा है.
गड्ढे में मथते हैं मिट्टी, मशीन से गुथाई: चीनी मिट्टी से क्रॉकरी आइटम बनाने की प्रक्रिया लंबी है, जो कई चरणों में पूरी होती है. इसमें मशीन और कुशल श्रमिकों की मदद ली जाती है. सबसे पहले एक गड्ढे में मिट्टी और पानी को तय अनुपात में मिलाया जाता है. फिर मिट्टी को मशीन की मदद से अच्छी तरह से गुथा जाता है. अच्छी तरह से गुथी हुई मिट्टी को मशीन से रोल में बदला जाता है. इसके बाद प्लेट (सांचों) की मदद से इस मिट्टी को आकार दिया जाता है.
भट्टी में तेज आंच पर पकाई, फिर फिनिशिंग: सांचों की मदद से ढाली गई मिट्टी को इलेक्ट्रिक भट्टी में उच्च ताप पर पकाया जाता है. इससे यह मिट्टी ठोस हो जाती है और क्रॉकरी आइटम का बेस तैयार हो जाता है. खास बात यह है कि इलेक्ट्रिक भट्टी 24 घंटे जलती रहती है. अगर एक बार यह भट्टी बंद हो जाए तो इसे गर्म करने में दो से तीन दिन लग जाते हैं. पकाई के बाद इन आइटम्स की फिनिशिंग और पेंटिंग का काम मजदूरों द्वारा किया जाता है.
एक लाख पीस हर दिन हो रहे तैयार: दीपक अग्रवाल का कहना है कि उनके जयपुर के वीकेआई इंडस्ट्रियल एरिया और मंडा इंडस्ट्रियल एरिया में दो प्लांट हैं. जहां पर वर्तमान में हर दिन एक लाख से ज्यादा पीस तैयार किए जा रहे हैं. आने वाले समय में क्रॉकरी आइटम की डिमांड बढ़ने की संभावना है और उसके हिसाब से उन्होंने प्रोडक्शन बढ़ाने की पूरी तैयारी कर रखी है.