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क्रोनोलॉजी समझिये सम्मेद शिखर की, क्या है इस स्थान का महत्व और क्या है विवाद

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Published : Jan 4, 2023, 4:02 PM IST

Updated : Jan 4, 2023, 4:13 PM IST

जैन समाज के लोगों के द्वारा सम्मेद शिखर को लेकर जैन समाज का विरोध जारी है, जैन समाज के लोगों का कहना है कि इस क्षेत्र को इको सेंसिटिव जोन घोषित किए जाने से पर्यटकों की गतिविधि बढ़ जाएगी जिससे धार्मिक भावना आहत होगी. पूरे देश में चल रहे विरोध में एक जैन मुनि ने प्राण त्यागे और दूसरे शहरों में भी विरोध जारी है. jain community protest to declare shikharji pavitratirth . jain community protest .

jain community protest to declare shikharji pavitratirth . #jaincommunityprotest .
सम्मेद शिखर

रांची : झारखंड के गिरिडीह जिले में स्थित जैनियों के सर्वोच्च तीर्थस्थल पारसनाथ पहाड़ी सम्मेद शिखर को पर्यटन स्थल के रूप में नोटिफाई किए जाने पर देश-विदेश में विरोध प्रदर्शनों का सिलसिला जारी है. सरकार के इस फैसले के विरोध में राजस्थान के सांगानेर में अनशन करते हुए जैन मुनि सुज्ञेय सागर जी ( Jain Muni Sugyeya Sagar ) ने मंगलवार को देह त्याग दिया. इसके बाज जैन धर्मावलंबियों का आक्रोश और उबल पड़ा है. jain community protest to declare shikharji pavitratirth . jain community protest .

  • सम्मेद शिखर और शेत्रुंजय पर्वत के मुद्दे पर आज सूरत में जैन समुदाय की अब तक की सबसे बड़ी रैली निकली.. इसमें करीब 2 लाख लोग शामिल हुए ... देखिये जैनो के इस जन सैलाब
    के कुछ एरियल शॉट्स @indiatvnews #sammedshikharji #giriraj pic.twitter.com/F6uunvEo7Q

    — Nirnay Kapoor (@nirnaykapoor) January 3, 2023 " class="align-text-top noRightClick twitterSection" data=" ">

दूसरी तरफ इस विवाद पर सियासत भी तेज हो गई है. झारखंड में सरकार का नेतृत्व करने वाली पार्टी जेएमएम ने इस विवाद को भाजपा का 'पाप' करार दिया है तो दूसरी तरफ भाजपा का आरोप है कि झारखंड की मौजूदा सरकार की हठधर्मिता से लाखों-करोड़ों जैन धर्मावलंबियों की आस्था आहत हो रही है. आइए, समझते हैं सम्मेद शिखर की महत्ता क्या है, इस स्थान को लेकर उपजे विवाद की वजह और क्रोनोलॉजी क्या है और इस विवाद का हल किन तरीकों के निकल सकता है?

सम्मेद शिखर का इतिहास-भूगोल और महत्व
यह स्थान झारखंड के गिरिडीह जिले में है. भौगोलिक दृष्टि से देखें तो यह झारखंड की सबसे ऊंची पहाड़ी है, जिसे सामान्यत: पारसनाथ पहाड़ी के नाम से जाना जाता है. इसकी ऊंचाई एक हजार 350 मीटर है. इसे झारखंड के हिमालय के रूप में जाना जाता है. दुनिया भर के जैन धर्मावलंबी इस पहाड़ी को श्री शिखर जी और सम्मेद शिखर के रूप में जानते हैं. यह उनका सर्वोच्च तीर्थ स्थल है. इस पहाड़ी की तराई में स्थित कस्बे को मधुवन के नाम से जाना जाता है. जैन धर्म में कुल 24 तीथर्ंकर (सर्वोच्च जैन गुरु) हुए. इनमें से 20 तीथर्ंकरों ने यहीं तपस्या करते हुए देह त्याग किया यानी निर्वाण या मोक्ष प्राप्त किया. इनमें 23वें तीथर्ंकर भगवान पाश्र्वनाथ भी थे. भगवान पाश्र्वनाथ की टोंक इस शिखर पर स्थित है. पाश्र्वनाथ का प्रतीक चिन्ह सर्प है. उन्हीं के नाम पर इस स्थान का नाम पारसनाथ भी है. यह 'सिद्ध क्षेत्र' कहलाता है और जैन धर्म में इसे तीर्थराज अर्थात 'तीर्थों का राजा' कहा जाता है. यहां हर साल लाखों जैन धर्मावलंबी आते हैं. वे मधुवन में स्थित मंदिरों में पूजा-अर्चना के साथ पहाड़ी की चोटी यानी शिखर पर वंदना करने पहुंचते हैं. मधुवन से शिखर यानी पहाड़ी की चोटी की यात्रा लगभग नौ किलोमीटर की है. जंगलों से घिरे पवित्र पर्वत के शिखर तक श्रद्धालु पैदल या डोली से जाते हैं.

तीर्थ स्थल बनाम पर्यटन स्थल का विवाद क्या है
केंद्र सरकार के वन एवं पर्यावरण मंत्रालय ने पारसनाथ पहाड़ी के एक भाग को वन्य जीव अभयारण्य और इको सेंसेटिव जोन घोषित किया है, जबकि झारखंड सरकार ने अपनी पर्यटन नीति में इसे धार्मिक पर्यटन स्थल के रूप में चिन्हित किया है. जैन धर्मावलंबियों का कहना है कि पर्यटन स्थल घोषित होने से इस पूज्य स्थान की पवित्रता भंग होगी. यहां लोग पर्यटन की दृष्टि से आएंगे तो मांस भक्षण और मदिरा पान जैसी अनैतिक गतिविधियां बढ़ेंगी और इससे अहिंसक जैन समाज की भावना आहत होगी. इसलिए इसे तीर्थस्थल रहने दिया जाए. केंद्र और राज्य की सरकारों ने इसे पर्यटन स्थल घोषित करने का जो नोटिफिकेशन जारी किया है, उसे वापस लिया जाए. देश-विदेश में पिछले एक महीने के दौरान इस मांग को लेकर जैन धर्मावलंबियों के मौन प्रदर्शन का सिलसिला जारी है.

क्या है विवाद की क्रोनोलॉजी
22 अक्टूबर, 2018 को रघुवर दास के मुख्यमंत्रित्व काल में झारखंड सरकार के पर्यटन, कला संस्कृति और खेलकूद विभाग ने एक कार्यालय आदेश जारी किया, जिसमें कहा गया है कि पारसनाथ सम्मेद शिखर जी सदियों से जैन धर्मावलंबियों का पवित्र और पूजनीय स्थल है और इसकी पवित्रता को अक्षुण्ण बनाए रखने के लिए राज्य सरकार प्रतिबद्ध है. 26 फरवरी, 2019 को इसी सरकार ने एक गजट नोटिफिकेशन जारी किया, जिसमें गिरिडीह के पारसनाथ मधुवन का उल्लेख पर्यटन स्थल के तौर पर किया गया है. यह गजट अधिसूचना अकेले पारसनाथ मधुवन के बारे में नहीं, बल्कि इसमें राज्य के सभी 24 जिलों के पर्यटन स्थलों का उल्लेख किया गया है. 2 अगस्त, 2019 को भारत सरकार के वन एवं पर्यावरण मंत्रालय ने एक गजट जारी किया, जिसमें इसे वन्य जीव अभयारण्य, इको सेंसेटिव जोन पर्यटन स्थल के रूप में चिन्हित किया गया है.

झारखंड में हेमंत सोरेन के नेतृत्व वाली गठबंधन सरकार ने वर्ष 2021 में नई पर्यटन नीति घोषित की और इसका गजट नोटिफिकेशन 17 फरवरी 2022 को जारी किया गया. इसमें पारसनाथ को धार्मिक पर्यटन स्थल के रूप में चिन्हित किया गया है. इस नोटिफिकेशन में धर्मस्थल की पवित्रता बरकरार रखते हुए इसके विकास की बात कही गई है. जैन समाज सम्मेद शिखर यानी पारसनाथ को पर्यटन स्थल घोषित करने वाली इन सभी नोटिफिकेशन का विरोध कर रहा है. समाज के धर्मगुरुओं का कहना है कि इसे धार्मिक स्थल रहने दिया जाए, अन्यथा पर्यटन क्षेत्र बनाने से इस स्थान की पवित्रता भंग हो जाएगी. इसी मांग को लेकर दिसंबर और जनवरी में देश-विदेश के कई शहरों में जैन धर्मावलंबियों ने मौन जुलूस निकाला है और प्रदर्शन किया है.

कैसे हो सकता है विवाद का पटाक्षेप
इस विवाद का पटाक्षेप करने के लिए केंद्र और राज्य दोनों सरकारों की ओर से पहल करनी होगी. अगर जैन धर्मावलंबियों की मांग पर सहमति बने तो दोनों सरकारों को अपनी गजट अधिसूचनाएं वापस लेनी होंगी. झारखंड के मुख्यमंत्री हेमंत सोरेन का कहना है कि वे इस विषय के सभी पहलुओं से अवगत हो रहे हैं. उनकी सरकार हर धार्मिक समाज की आस्था का सम्मान करती है और ऐसा कोई भी कदम नहीं उठाया जाएगा जिससे आस्था आहत हो. झारखंड के राज्यपाल रमेश बैस ने केंद्रीय वन एवं पर्यावरण मंत्री को पत्र लिखकर कहा है कि जैन धर्मावलंबियों की भावनाओं और आस्था को ध्यान में रखते हुए इस स्थान को पर्यटन स्थल घोषित करने के निर्णय की पुन: समीक्षा की जानी चाहिए. उन्होंने यह भी लिखा है कि इस स्थान को तीर्थ स्थल ही रखना उचित होगा.

ये भी पढ़ें- जानिए क्या है सम्मेद शिखर से जुड़ा पूरा विवाद, जिसके लिए जैन मुनि सुज्ञेय सागर ने त्यागे प्राण

जयपुर में मुनि ने त्यागे प्राण:- विश्व विख्यात जैन तीर्थ सम्मेद शिखर को पर्यटन स्थल घोषित करने का देशभर में विरोध जारी है. इसी क्रम में उपवास कर रहे 72 वर्षीय जैन मुनि सुज्ञेयसागर ने मंगलवार सुबह संघी जी जैन मंदिर में प्राण त्याग दिए. मुनि सम्मेद शिखर मामले को लेकर 25 दिसम्बर से अन्न जल त्याग कर आमरण अनशन पर थे. जिसके चलते आचार्य के सानिध्य में पंच परमेष्ठी का ध्यान करते हुए उन्होंने अपना देह त्याग दिया. वो मध्यम सिंह निष्क्रिड़ित व्रत में उतरते हुए उपवास कर रहे थे. मुनि सुज्ञेय सागर सांगानेर स्थित संघी जी मंदिर में विराजित पूज्य चतुर्थ पट्टाधीश आचार्य सुनील सागर के शिष्य थे. और 'सम्मेद शिखर' से जुडे हुए थे.

ये भी पढ़ें- जैन मुनि सुज्ञेयसागर महाराज ने त्यागे प्राण, झारखंड के सम्मेद शिखर को टूरिस्ट प्लेस बनाने के खिलाफ थे

मध्यप्रदेश - सम्मेद शिखर को इको सेंसिटिव जोन और पर्यटन स्थल घोषित किए जाने के विरोध में मध्यप्रदेश में भी विरोध प्रदर्शन जारी है. इंदौर के बीजेपी सांसद शंकर लालवानी ने झारखंड सरकार को पत्र भेजकर अपने फैसले पर फिर से विचार करने को निवेदन किया है. साथ ही यह भी कहा है कि अगर सरकार अपना फैसला नहीं बदलती है तो विरोध जारी रहेगा. वही मध्यप्रदेश के दूसरे जैन धार्मिक स्थलों सोनागिरी जैन तीर्थ स्थल ( 108 मंदिर ), दतिया पुष्प गिरी शिक्षा केंद्र , देवास, मंगल गिरी सागर, कुंडलपुर दमोह, मुक्तागिरी ( मंदिर ) बैतूल, पार्श्व नाथ व आदिनाथ मन्दिर खजुराहो, बावनगजा जैन तीर्थ स्थल बड़वानी, पावागिरी खरगोन, मोहनखेड़ा जैन तीर्थ स्थल मोहनखेडा और श्री भोपावर जैन तीर्थ स्थल धार में सरकार के फैसले के विरोध में जुलूस और प्रदर्शन कर रहे हैं


गुजरात में विरोध- जैन तीर्थ सम्मेद शिखर को पर्यटन स्थल घोषित करने को लेकर गुजरात के विभिन्न शहरों में जैन धर्मावलंबियों ने विरोध प्रदर्शन किया है. विगत कई दिनों से गुजरात के कई शहरों में जैन समुदाय को लोग झारखंड सरकार के फैसले के विरोध में जुलूस और प्रदर्शन कर रहे हैं.


झारखंड में विरोध- विश्व विख्यात जैन तीर्थ सम्मेद शिखर को पर्यटन स्थल घोषित किए जाने को लेकर झारखंड में विरोध जारी है. 3 दिसंबर को रांची में जैन धर्म के महिला पुरुष ने मौन जुलूस निकाला. जैन धर्म को लोगों का कहना है कि सरकार सम्मेद शिखर मामले को लेकर बदलाव करें, नहीं तो विरोध और तेज होगा. ईटीवी भारत से बात करते हुए जैन समुदाय को लोगों ने कहा कि सरकार ने जो नोटीफिकेशन किया है उससे सम्मेद शिखर की पवित्रता खत्म हो जाएगी. --- Extra Input आईएएनएस

ये भी पढ़ें- रांची में जैन समाज के लोगों ने निकाला मौन जुलूस, पारसनाथ को पर्यटन स्थल बनाए जाने का कर रहे विरोध

रांची : झारखंड के गिरिडीह जिले में स्थित जैनियों के सर्वोच्च तीर्थस्थल पारसनाथ पहाड़ी सम्मेद शिखर को पर्यटन स्थल के रूप में नोटिफाई किए जाने पर देश-विदेश में विरोध प्रदर्शनों का सिलसिला जारी है. सरकार के इस फैसले के विरोध में राजस्थान के सांगानेर में अनशन करते हुए जैन मुनि सुज्ञेय सागर जी ( Jain Muni Sugyeya Sagar ) ने मंगलवार को देह त्याग दिया. इसके बाज जैन धर्मावलंबियों का आक्रोश और उबल पड़ा है. jain community protest to declare shikharji pavitratirth . jain community protest .

  • सम्मेद शिखर और शेत्रुंजय पर्वत के मुद्दे पर आज सूरत में जैन समुदाय की अब तक की सबसे बड़ी रैली निकली.. इसमें करीब 2 लाख लोग शामिल हुए ... देखिये जैनो के इस जन सैलाब
    के कुछ एरियल शॉट्स @indiatvnews #sammedshikharji #giriraj pic.twitter.com/F6uunvEo7Q

    — Nirnay Kapoor (@nirnaykapoor) January 3, 2023 " class="align-text-top noRightClick twitterSection" data=" ">

दूसरी तरफ इस विवाद पर सियासत भी तेज हो गई है. झारखंड में सरकार का नेतृत्व करने वाली पार्टी जेएमएम ने इस विवाद को भाजपा का 'पाप' करार दिया है तो दूसरी तरफ भाजपा का आरोप है कि झारखंड की मौजूदा सरकार की हठधर्मिता से लाखों-करोड़ों जैन धर्मावलंबियों की आस्था आहत हो रही है. आइए, समझते हैं सम्मेद शिखर की महत्ता क्या है, इस स्थान को लेकर उपजे विवाद की वजह और क्रोनोलॉजी क्या है और इस विवाद का हल किन तरीकों के निकल सकता है?

सम्मेद शिखर का इतिहास-भूगोल और महत्व
यह स्थान झारखंड के गिरिडीह जिले में है. भौगोलिक दृष्टि से देखें तो यह झारखंड की सबसे ऊंची पहाड़ी है, जिसे सामान्यत: पारसनाथ पहाड़ी के नाम से जाना जाता है. इसकी ऊंचाई एक हजार 350 मीटर है. इसे झारखंड के हिमालय के रूप में जाना जाता है. दुनिया भर के जैन धर्मावलंबी इस पहाड़ी को श्री शिखर जी और सम्मेद शिखर के रूप में जानते हैं. यह उनका सर्वोच्च तीर्थ स्थल है. इस पहाड़ी की तराई में स्थित कस्बे को मधुवन के नाम से जाना जाता है. जैन धर्म में कुल 24 तीथर्ंकर (सर्वोच्च जैन गुरु) हुए. इनमें से 20 तीथर्ंकरों ने यहीं तपस्या करते हुए देह त्याग किया यानी निर्वाण या मोक्ष प्राप्त किया. इनमें 23वें तीथर्ंकर भगवान पाश्र्वनाथ भी थे. भगवान पाश्र्वनाथ की टोंक इस शिखर पर स्थित है. पाश्र्वनाथ का प्रतीक चिन्ह सर्प है. उन्हीं के नाम पर इस स्थान का नाम पारसनाथ भी है. यह 'सिद्ध क्षेत्र' कहलाता है और जैन धर्म में इसे तीर्थराज अर्थात 'तीर्थों का राजा' कहा जाता है. यहां हर साल लाखों जैन धर्मावलंबी आते हैं. वे मधुवन में स्थित मंदिरों में पूजा-अर्चना के साथ पहाड़ी की चोटी यानी शिखर पर वंदना करने पहुंचते हैं. मधुवन से शिखर यानी पहाड़ी की चोटी की यात्रा लगभग नौ किलोमीटर की है. जंगलों से घिरे पवित्र पर्वत के शिखर तक श्रद्धालु पैदल या डोली से जाते हैं.

तीर्थ स्थल बनाम पर्यटन स्थल का विवाद क्या है
केंद्र सरकार के वन एवं पर्यावरण मंत्रालय ने पारसनाथ पहाड़ी के एक भाग को वन्य जीव अभयारण्य और इको सेंसेटिव जोन घोषित किया है, जबकि झारखंड सरकार ने अपनी पर्यटन नीति में इसे धार्मिक पर्यटन स्थल के रूप में चिन्हित किया है. जैन धर्मावलंबियों का कहना है कि पर्यटन स्थल घोषित होने से इस पूज्य स्थान की पवित्रता भंग होगी. यहां लोग पर्यटन की दृष्टि से आएंगे तो मांस भक्षण और मदिरा पान जैसी अनैतिक गतिविधियां बढ़ेंगी और इससे अहिंसक जैन समाज की भावना आहत होगी. इसलिए इसे तीर्थस्थल रहने दिया जाए. केंद्र और राज्य की सरकारों ने इसे पर्यटन स्थल घोषित करने का जो नोटिफिकेशन जारी किया है, उसे वापस लिया जाए. देश-विदेश में पिछले एक महीने के दौरान इस मांग को लेकर जैन धर्मावलंबियों के मौन प्रदर्शन का सिलसिला जारी है.

क्या है विवाद की क्रोनोलॉजी
22 अक्टूबर, 2018 को रघुवर दास के मुख्यमंत्रित्व काल में झारखंड सरकार के पर्यटन, कला संस्कृति और खेलकूद विभाग ने एक कार्यालय आदेश जारी किया, जिसमें कहा गया है कि पारसनाथ सम्मेद शिखर जी सदियों से जैन धर्मावलंबियों का पवित्र और पूजनीय स्थल है और इसकी पवित्रता को अक्षुण्ण बनाए रखने के लिए राज्य सरकार प्रतिबद्ध है. 26 फरवरी, 2019 को इसी सरकार ने एक गजट नोटिफिकेशन जारी किया, जिसमें गिरिडीह के पारसनाथ मधुवन का उल्लेख पर्यटन स्थल के तौर पर किया गया है. यह गजट अधिसूचना अकेले पारसनाथ मधुवन के बारे में नहीं, बल्कि इसमें राज्य के सभी 24 जिलों के पर्यटन स्थलों का उल्लेख किया गया है. 2 अगस्त, 2019 को भारत सरकार के वन एवं पर्यावरण मंत्रालय ने एक गजट जारी किया, जिसमें इसे वन्य जीव अभयारण्य, इको सेंसेटिव जोन पर्यटन स्थल के रूप में चिन्हित किया गया है.

झारखंड में हेमंत सोरेन के नेतृत्व वाली गठबंधन सरकार ने वर्ष 2021 में नई पर्यटन नीति घोषित की और इसका गजट नोटिफिकेशन 17 फरवरी 2022 को जारी किया गया. इसमें पारसनाथ को धार्मिक पर्यटन स्थल के रूप में चिन्हित किया गया है. इस नोटिफिकेशन में धर्मस्थल की पवित्रता बरकरार रखते हुए इसके विकास की बात कही गई है. जैन समाज सम्मेद शिखर यानी पारसनाथ को पर्यटन स्थल घोषित करने वाली इन सभी नोटिफिकेशन का विरोध कर रहा है. समाज के धर्मगुरुओं का कहना है कि इसे धार्मिक स्थल रहने दिया जाए, अन्यथा पर्यटन क्षेत्र बनाने से इस स्थान की पवित्रता भंग हो जाएगी. इसी मांग को लेकर दिसंबर और जनवरी में देश-विदेश के कई शहरों में जैन धर्मावलंबियों ने मौन जुलूस निकाला है और प्रदर्शन किया है.

कैसे हो सकता है विवाद का पटाक्षेप
इस विवाद का पटाक्षेप करने के लिए केंद्र और राज्य दोनों सरकारों की ओर से पहल करनी होगी. अगर जैन धर्मावलंबियों की मांग पर सहमति बने तो दोनों सरकारों को अपनी गजट अधिसूचनाएं वापस लेनी होंगी. झारखंड के मुख्यमंत्री हेमंत सोरेन का कहना है कि वे इस विषय के सभी पहलुओं से अवगत हो रहे हैं. उनकी सरकार हर धार्मिक समाज की आस्था का सम्मान करती है और ऐसा कोई भी कदम नहीं उठाया जाएगा जिससे आस्था आहत हो. झारखंड के राज्यपाल रमेश बैस ने केंद्रीय वन एवं पर्यावरण मंत्री को पत्र लिखकर कहा है कि जैन धर्मावलंबियों की भावनाओं और आस्था को ध्यान में रखते हुए इस स्थान को पर्यटन स्थल घोषित करने के निर्णय की पुन: समीक्षा की जानी चाहिए. उन्होंने यह भी लिखा है कि इस स्थान को तीर्थ स्थल ही रखना उचित होगा.

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जयपुर में मुनि ने त्यागे प्राण:- विश्व विख्यात जैन तीर्थ सम्मेद शिखर को पर्यटन स्थल घोषित करने का देशभर में विरोध जारी है. इसी क्रम में उपवास कर रहे 72 वर्षीय जैन मुनि सुज्ञेयसागर ने मंगलवार सुबह संघी जी जैन मंदिर में प्राण त्याग दिए. मुनि सम्मेद शिखर मामले को लेकर 25 दिसम्बर से अन्न जल त्याग कर आमरण अनशन पर थे. जिसके चलते आचार्य के सानिध्य में पंच परमेष्ठी का ध्यान करते हुए उन्होंने अपना देह त्याग दिया. वो मध्यम सिंह निष्क्रिड़ित व्रत में उतरते हुए उपवास कर रहे थे. मुनि सुज्ञेय सागर सांगानेर स्थित संघी जी मंदिर में विराजित पूज्य चतुर्थ पट्टाधीश आचार्य सुनील सागर के शिष्य थे. और 'सम्मेद शिखर' से जुडे हुए थे.

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मध्यप्रदेश - सम्मेद शिखर को इको सेंसिटिव जोन और पर्यटन स्थल घोषित किए जाने के विरोध में मध्यप्रदेश में भी विरोध प्रदर्शन जारी है. इंदौर के बीजेपी सांसद शंकर लालवानी ने झारखंड सरकार को पत्र भेजकर अपने फैसले पर फिर से विचार करने को निवेदन किया है. साथ ही यह भी कहा है कि अगर सरकार अपना फैसला नहीं बदलती है तो विरोध जारी रहेगा. वही मध्यप्रदेश के दूसरे जैन धार्मिक स्थलों सोनागिरी जैन तीर्थ स्थल ( 108 मंदिर ), दतिया पुष्प गिरी शिक्षा केंद्र , देवास, मंगल गिरी सागर, कुंडलपुर दमोह, मुक्तागिरी ( मंदिर ) बैतूल, पार्श्व नाथ व आदिनाथ मन्दिर खजुराहो, बावनगजा जैन तीर्थ स्थल बड़वानी, पावागिरी खरगोन, मोहनखेड़ा जैन तीर्थ स्थल मोहनखेडा और श्री भोपावर जैन तीर्थ स्थल धार में सरकार के फैसले के विरोध में जुलूस और प्रदर्शन कर रहे हैं


गुजरात में विरोध- जैन तीर्थ सम्मेद शिखर को पर्यटन स्थल घोषित करने को लेकर गुजरात के विभिन्न शहरों में जैन धर्मावलंबियों ने विरोध प्रदर्शन किया है. विगत कई दिनों से गुजरात के कई शहरों में जैन समुदाय को लोग झारखंड सरकार के फैसले के विरोध में जुलूस और प्रदर्शन कर रहे हैं.


झारखंड में विरोध- विश्व विख्यात जैन तीर्थ सम्मेद शिखर को पर्यटन स्थल घोषित किए जाने को लेकर झारखंड में विरोध जारी है. 3 दिसंबर को रांची में जैन धर्म के महिला पुरुष ने मौन जुलूस निकाला. जैन धर्म को लोगों का कहना है कि सरकार सम्मेद शिखर मामले को लेकर बदलाव करें, नहीं तो विरोध और तेज होगा. ईटीवी भारत से बात करते हुए जैन समुदाय को लोगों ने कहा कि सरकार ने जो नोटीफिकेशन किया है उससे सम्मेद शिखर की पवित्रता खत्म हो जाएगी. --- Extra Input आईएएनएस

ये भी पढ़ें- रांची में जैन समाज के लोगों ने निकाला मौन जुलूस, पारसनाथ को पर्यटन स्थल बनाए जाने का कर रहे विरोध

Last Updated : Jan 4, 2023, 4:13 PM IST
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