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सुप्रीम कोर्ट ने महामारी के बीच रिहा किए गए कैदियों की जानकारी मांगी - जानकारी मांगी

सुप्रीम कोर्ट (Supreme Court) ने कोरोना महामारी के बीच जेलोंं में भीड़ कम (jails decongestion) करने के मद्देनजर पिछले महीने जारी किए गए आदेश के क्रम में अंतरिम जमानत या पैरोल पर रिहा किए गए कैदियों का विवरण पेश करने का निर्देश राज्यों व केन्द्र शासित प्रदेशों को दिया है.

सुप्रीम कोर्ट
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Published : Jun 1, 2021, 9:03 PM IST

नई दिल्ली : सुप्रीम कोर्ट (Supreme Court) ने कोविड-19 महामारी के बीच जेलों में भीड़ कम (jails decongestion) करने के उद्देश्य से पिछले महीने जारी किए गए आदेश के अनुपालन में अंतरिम जमानत या पैरोल पर रिहा किए गए कैदियों का विवरण प्रस्तुत करने का राज्यों और केन्द्र शासित प्रदेशों (यूटी) को निर्देश दिया.

न्यायमूर्ति एल नागेश्वर राव और न्यायमूर्ति अनिरुद्ध बोस की अवकाशकालीन पीठ ने राज्यों से कोविड-19 संक्रमण के कारण जेलों में हुई मौतों की संख्या के संबंध में जानकारी देने का भी निर्देश दिया है. प्रधान न्यायाधीश एन वी रमण की अध्यक्षता वाली पीठ ने सात मई को कोविड-19 मामलों में वृद्धि पर संज्ञान लिया था और जेलों में भीड़ कम करने के लिए महामारी के बीच पिछले साल जमानत या पैरोल दिए गए कैदियों को तत्काल रिहा करने का आदेश दिया था.

शीर्ष अदालत उच्चाधिकार प्राप्त समिति (एचपीसी) और राज्य सरकारों को जेलों में भीड़ कम करने के लिए पात्र कैदियों की छूट या समय से पहले रिहाई के मामलों पर विचार करने के लिए निर्देश देने के अनुरोध वाली एक याचिका पर सुनवाई कर रही थी.

पढ़ें - नारदा मामला : केस स्थानांतरित करने के लिए हुई सुनवाई

सुप्रीम कोर्ट ने मार्च 2020 में सभी राज्यों और केन्द्र शासित प्रदेशों को निर्देश दिया था कि महामारी के बीच जेलों में भीड़ करने के लिए वे पैरोल या अंतरिम जमानत पर कैदियों को रिहा करने पर विचार करने के लिए एचपीसी का गठन करें. आवेदक सचिन यादव की ओर से पेश अधिवक्ता शोएब आलम ने दलील दी कि शीर्ष अदालत द्वारा पारित पूर्व के आदेश अंतरिम जमानत और पैरोल पर कैदियों की रिहाई से संबंधित हैं.

वीडियो-कॉन्फ्रेंस के माध्यम से हुई सुनवाई के दौरान, वरिष्ठ अधिवक्ता दुष्यंत दवे, जो मामले में न्याय मित्र के रूप में अदालत की सहायता कर रहे हैं, ने कहा कि राज्यों और केंद्र शासित प्रदेशों को शीर्ष अदालत द्वारा पारित पहले के आदेश के अनुपालन का संकेत देते हुए हलफनामा दाखिल करने का निर्देश दिया जाना चाहिए.

दवे ने कहा कि अधिकारियों को कोविड-19 संक्रमण के कारण जेलों में हुई मौत के संबंध में भी ब्योरा देना चाहिए. पीठ ने मामले को जुलाई में अगली सुनवाई के लिए सूचीबद्ध कर दिया.

नई दिल्ली : सुप्रीम कोर्ट (Supreme Court) ने कोविड-19 महामारी के बीच जेलों में भीड़ कम (jails decongestion) करने के उद्देश्य से पिछले महीने जारी किए गए आदेश के अनुपालन में अंतरिम जमानत या पैरोल पर रिहा किए गए कैदियों का विवरण प्रस्तुत करने का राज्यों और केन्द्र शासित प्रदेशों (यूटी) को निर्देश दिया.

न्यायमूर्ति एल नागेश्वर राव और न्यायमूर्ति अनिरुद्ध बोस की अवकाशकालीन पीठ ने राज्यों से कोविड-19 संक्रमण के कारण जेलों में हुई मौतों की संख्या के संबंध में जानकारी देने का भी निर्देश दिया है. प्रधान न्यायाधीश एन वी रमण की अध्यक्षता वाली पीठ ने सात मई को कोविड-19 मामलों में वृद्धि पर संज्ञान लिया था और जेलों में भीड़ कम करने के लिए महामारी के बीच पिछले साल जमानत या पैरोल दिए गए कैदियों को तत्काल रिहा करने का आदेश दिया था.

शीर्ष अदालत उच्चाधिकार प्राप्त समिति (एचपीसी) और राज्य सरकारों को जेलों में भीड़ कम करने के लिए पात्र कैदियों की छूट या समय से पहले रिहाई के मामलों पर विचार करने के लिए निर्देश देने के अनुरोध वाली एक याचिका पर सुनवाई कर रही थी.

पढ़ें - नारदा मामला : केस स्थानांतरित करने के लिए हुई सुनवाई

सुप्रीम कोर्ट ने मार्च 2020 में सभी राज्यों और केन्द्र शासित प्रदेशों को निर्देश दिया था कि महामारी के बीच जेलों में भीड़ करने के लिए वे पैरोल या अंतरिम जमानत पर कैदियों को रिहा करने पर विचार करने के लिए एचपीसी का गठन करें. आवेदक सचिन यादव की ओर से पेश अधिवक्ता शोएब आलम ने दलील दी कि शीर्ष अदालत द्वारा पारित पूर्व के आदेश अंतरिम जमानत और पैरोल पर कैदियों की रिहाई से संबंधित हैं.

वीडियो-कॉन्फ्रेंस के माध्यम से हुई सुनवाई के दौरान, वरिष्ठ अधिवक्ता दुष्यंत दवे, जो मामले में न्याय मित्र के रूप में अदालत की सहायता कर रहे हैं, ने कहा कि राज्यों और केंद्र शासित प्रदेशों को शीर्ष अदालत द्वारा पारित पहले के आदेश के अनुपालन का संकेत देते हुए हलफनामा दाखिल करने का निर्देश दिया जाना चाहिए.

दवे ने कहा कि अधिकारियों को कोविड-19 संक्रमण के कारण जेलों में हुई मौत के संबंध में भी ब्योरा देना चाहिए. पीठ ने मामले को जुलाई में अगली सुनवाई के लिए सूचीबद्ध कर दिया.

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