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राम मंदिर अयोध्या; करपात्री महाराज का संकल्प हुआ पूरा, पुराना दौर याद कर आज भी हो जाते हैं भावुक - राम मंदिर आंदोलन

अयोध्या में प्राण प्रतिष्ठा समारोह की तिथि करीब आने के साथ राममंदिर आंदोलन से जुड़े तमाम प्रसंग और बलिदान की कहानियां भी सामने आ रही हैं. आंदोलन में अग्रणी भूमिका निभाने वाले जगतगुरु रामानुजाचार्य स्वामी करपात्री महाराज ने सुनाई उस दौर की कहानी.

अयोध्या में स्वामी करपात्री महाराज.
अयोध्या में स्वामी करपात्री महाराज.
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By ETV Bharat Hindi Team

Published : Jan 12, 2024, 4:45 PM IST

अयोध्या में स्वामी करपात्री महाराज.

अयोध्या : रामनगरी में प्रभु के प्राण प्रतिष्ठा कार्यक्रम की गहमागहमी के बीच कई ऐसे संत हैं, जिनके बारे में लोग बेहद कम जानते हैं. राम मंदिर आंदोलन में इन संतों ने अहम भूमिका निभाई थी. लाठियां खाईं, कई बार जेल गए और अपनी आंखों से कारसेवकों पर गोलियां बरसाते हुए भी देखा. इस सबके बावजूद इन संतों-महंतों ने अपने संघर्ष को कभी विराम नहीं दिया. राम मंदिर आंदोलन के लिए हर वह आहुति दी, जिसकी उस वक्त जरूरत थी. अयोध्या में ऐसा ही एक नाम है जगतगुरु रामानुजाचार्य स्वामी करपात्री जी महाराज का. मुख्यमंत्री योगी आदित्यनाथ के सहयोगी रहे करपात्री जी महाराज ने भी मंदिर आंदोलन में बढ़-चढ़कर भूमिका निभाई थी. उन्होंने संकल्प लिया था कि जब तक राम मंदिर का निर्माण नहीं हो जाता, तब तक वह सिर्फ एक समय अठारह कौर ही भोजन करेंगे, सिला हुआ वस्त्र नहीं पहनेंगे और खड़ाऊ पहन कर ही चलेंगे. करपात्री जी की प्रतिज्ञा पूर्ण होने वाली है, पर अतीत की स्मृतियों में जब वह झांकते हैं तो भावुक हुए बिना नहीं रह पाते.

पांच सौ साल पुराना है मंदिर के लिए संघर्ष

स्वामी करपात्री जी महाराज बताते हैं कि आज अयोध्या अपने वैभव के शिखर पर है. इसमें उन लोगों का योगदान है, जिन्होंने 1990-92 में शहादत दी थी. कहते हैं, पांच सौ साल पूर्व जब बाबर के कहने पर मीरबाकी ने राम मंदिर तोड़कर मस्जिद बनाई थी, तब से यहां संघर्ष जारी है. यहां से 22 किलोमीटर दूर एक गांव है सनेथू. उस गांव के देवेंद्र पांडेय कारसेवा में सबसे पहले शहीद होने वालों में शामिल थे. आज भी उनकी तलवार वहां पर रखी गई है. अफसोस है कि उनके यहां तक निमंत्रण नहीं पहुंचा पाए. उसी के निकट एक गांव है सरायमाफी. यहां के सूर्यवंशी ठाकुरों ने कसम ली थी कि जब तक अयोध्या में राम मंदिर का निर्माण नहीं हो जाएगा, तब तक जूते नहीं पहनेंगे, छाता नहीं लगाएंगे और पगड़ी भी नहीं बांधेंगे. आज भी उस गांव के लोग जूते नहीं पहनते हैं और पगड़ी भी नहीं बांधते हैं. फिर कोई किसी भी पद पर क्यों न हो.

बिंदेश्वरी प्रसाद ने सबसे पहले देखी थी रामलला की मूर्ति

स्वामी करपात्री जी महाराज बताते हैं कि राम मंदिर के लिए पांच सौ वर्षों में साढ़े चार लाख लोग अपने प्राणों की आहुति दे चुके हैं. रामलला की जो मूर्ति है, वह स्व प्राकट्य है यानी अपने आप प्रकट हुई. एक बहुत बुजुर्ग संत हुआ करते थे बिंदेश्वरी प्रसाद शुक्ला. दो माह पूर्व उन्होंने शरीर त्याग दिया है. उन्हें चौदह भाषाओं का ज्ञान था. वह अटल बिहारी वाजपेयी और डॉ. संपूर्णानंद के साथी भी रहे थे. सबसे पहले उन्होंने ही रामलला की मूर्ति को देखा था. जिसके बाद उन्होंने मूर्ति को स्नान कराया और चरणामृत लिया. अब महाराज जी नहीं हैं. उनके चरणों में कोटि-कोटि वंदन. इसके बाद हिंदू महासभा के जिलाध्यक्ष गोपाल सिंह विशारद कोर्ट में याचिका दायर की. जब कमेटी बनी तो कोई उससे जुड़ने को तैयार नहीं था. सभी को शासन-प्रशासन से डर लग रहा था. अवैद्यनाथ जी ने कहा कि मैं इसका अध्यक्ष बनूंगा और कमेटी के कार्यों को आगे बढ़ाऊंगा. अवैद्यनाथ जी ने डॉ. रामविलास वेदांती से कहा कि आप डरो नहीं, हम आपके साथ हैं. वेदांती ट्रस्ट के सदस्य बनाए गए. उत्तर भारत और दक्षिण भारत के लोगों को जोड़ा गया, जिनकी विचारधारा राम मंदिर निर्माण से परिपूर्ण थी.

मोदी के रूप में मिले विश्वामित्र

वह बताते हैं कि जो हम लोगों ने कल्पना की थी, वह अब साकार होने जा रही है. 22 जनवरी को अयोध्या में साक्षात ब्रह्म का निर्माण होगा. 22 हमारे सिद्धांत में भी आता है. अठारह पुराण और चार वेद मिलाकर ब्रह्म का स्वरूप बनाया जाता है. यही 18 और 4 मिलाकर 22 बनता है और इसी के कारण प्राण प्रतिष्ठा की तिथि 22 जनवरी रखी गई है. लोग प्रश्न करते हैं कि 72 साल तक हमारे ठाकुर टेंट में रहे, मंदिर तक क्यों नहीं आ पाए. समर्थ होने के बाद भी. परमात्मा जब भी यात्रा करता है तो किसी संत के साथ यात्रा करता है. भारत में बहुत सी पार्टियां थीं, लेकिन कोई ऐसा साधु नहीं मिला जो प्रभु को गोदी में उठाकर मंदिर तक ले जाए. आज के इस परिवेश में मोदी जी, जिन्हें पूरा विश्व मित्र बना रहा है, विश्वामित्र के रूप में हमें मिल गए हैं.

योगी के साथ लिया राम मंदिर निर्माण का संकल्प

स्वामी करपात्री जी महाराज कहते हैं, उत्तर प्रदेश के मुख्यमंत्री हमारे मित्र हैं. हम एक साथ रहे भी हैं. एक बार रामचंद्र परमहंस जी महाराज के यहां मैं और योगी बैठे हुए थे. अवैद्य महाराज लेटे हुए थे. परमहंस जी की आंखों में आंसू आए और उन्होंने पूछा कि बेटा क्या हमारे समय में अयोध्या में राम मंदिर का निर्माण हो पाएगा. इस पर मैं और योगी आदित्यनाथ जी भी रोने लगे. उस वक्त योगी ने और मैंने संकल्प कर कहा था कि अयोध्या में अपने जीवन में राम मंदिर का निर्माण कर देंगे. उसी समय मैंने संकल्प लिया था कि आज से मात्र 18 कौर भोजन करूंगा. खड़ाऊ पहन कर चलूंगा और सिला हुआ वस्त्र नहीं पहनूंगा. जिस दिन भगवान अपने मंदिर में विराजमान हो जाएंगे, उस दिन मैं भरपेट भोजन करूंगा. हो सकता है ठाकुर जी की कृपा से 22 जनवरी के बाद हमें भरपेट भोजन मिले.

जब रो पड़े थे रामचंद्र परमहंस

स्वामी करपात्री कहते हैं कि साध्वी ऋतंभरा रोती थीं, उमा भारती रोती थीं. रामचंद्र परमहंस को मैंने दहाड़कर रोते देखा था. वह दृश्य बहुत ह्रदय विदारक था, जब कोठारी बंधुओं को गोली मार दी गई थी. पहले बड़े भाई को गोली मारी फिर छोटे भाई को. मुझे वह दिन याद आता है कि रामचंद्र परमहंस मेरा हाथ पकड़ कहने लगे- मैं जा रहा हूं. आज मेरे राम और लक्ष्मण चले गए हैं. अब मैं अयोध्या में जीवित नहीं रह सकता. रामचंद्र परमहंस के आंसुओं, गुरुदेव वेदांती के क्रियाकलाप का फल है कि आज अयोध्या में राम जी को उस मंदिर में देखने वाले हैं. बस एक ही निवेदन है कि हे विश्व के रचयिता भारत में आ जा, हे विश्व के रचयिता भारत में आ जा. आकर बैठ जाओ महलों में स्वागत है आपका.

यह भी पढ़ें : राम मंदिर प्राण प्रतिष्ठा पर काशी के इस्कॉन मंदिर में जगमाएंगे 51 हजार दीप, 1008 भोग अर्पित होंगे

यह भी पढ़ें : अयोध्या पहुंचा 500 किलो का 'सोने' का नगाड़ा, नेपाल के 1100 उपहार, 44 फीट की धर्म ध्वजा, कन्नौज का गुलाबी इत्र

अयोध्या में स्वामी करपात्री महाराज.

अयोध्या : रामनगरी में प्रभु के प्राण प्रतिष्ठा कार्यक्रम की गहमागहमी के बीच कई ऐसे संत हैं, जिनके बारे में लोग बेहद कम जानते हैं. राम मंदिर आंदोलन में इन संतों ने अहम भूमिका निभाई थी. लाठियां खाईं, कई बार जेल गए और अपनी आंखों से कारसेवकों पर गोलियां बरसाते हुए भी देखा. इस सबके बावजूद इन संतों-महंतों ने अपने संघर्ष को कभी विराम नहीं दिया. राम मंदिर आंदोलन के लिए हर वह आहुति दी, जिसकी उस वक्त जरूरत थी. अयोध्या में ऐसा ही एक नाम है जगतगुरु रामानुजाचार्य स्वामी करपात्री जी महाराज का. मुख्यमंत्री योगी आदित्यनाथ के सहयोगी रहे करपात्री जी महाराज ने भी मंदिर आंदोलन में बढ़-चढ़कर भूमिका निभाई थी. उन्होंने संकल्प लिया था कि जब तक राम मंदिर का निर्माण नहीं हो जाता, तब तक वह सिर्फ एक समय अठारह कौर ही भोजन करेंगे, सिला हुआ वस्त्र नहीं पहनेंगे और खड़ाऊ पहन कर ही चलेंगे. करपात्री जी की प्रतिज्ञा पूर्ण होने वाली है, पर अतीत की स्मृतियों में जब वह झांकते हैं तो भावुक हुए बिना नहीं रह पाते.

पांच सौ साल पुराना है मंदिर के लिए संघर्ष

स्वामी करपात्री जी महाराज बताते हैं कि आज अयोध्या अपने वैभव के शिखर पर है. इसमें उन लोगों का योगदान है, जिन्होंने 1990-92 में शहादत दी थी. कहते हैं, पांच सौ साल पूर्व जब बाबर के कहने पर मीरबाकी ने राम मंदिर तोड़कर मस्जिद बनाई थी, तब से यहां संघर्ष जारी है. यहां से 22 किलोमीटर दूर एक गांव है सनेथू. उस गांव के देवेंद्र पांडेय कारसेवा में सबसे पहले शहीद होने वालों में शामिल थे. आज भी उनकी तलवार वहां पर रखी गई है. अफसोस है कि उनके यहां तक निमंत्रण नहीं पहुंचा पाए. उसी के निकट एक गांव है सरायमाफी. यहां के सूर्यवंशी ठाकुरों ने कसम ली थी कि जब तक अयोध्या में राम मंदिर का निर्माण नहीं हो जाएगा, तब तक जूते नहीं पहनेंगे, छाता नहीं लगाएंगे और पगड़ी भी नहीं बांधेंगे. आज भी उस गांव के लोग जूते नहीं पहनते हैं और पगड़ी भी नहीं बांधते हैं. फिर कोई किसी भी पद पर क्यों न हो.

बिंदेश्वरी प्रसाद ने सबसे पहले देखी थी रामलला की मूर्ति

स्वामी करपात्री जी महाराज बताते हैं कि राम मंदिर के लिए पांच सौ वर्षों में साढ़े चार लाख लोग अपने प्राणों की आहुति दे चुके हैं. रामलला की जो मूर्ति है, वह स्व प्राकट्य है यानी अपने आप प्रकट हुई. एक बहुत बुजुर्ग संत हुआ करते थे बिंदेश्वरी प्रसाद शुक्ला. दो माह पूर्व उन्होंने शरीर त्याग दिया है. उन्हें चौदह भाषाओं का ज्ञान था. वह अटल बिहारी वाजपेयी और डॉ. संपूर्णानंद के साथी भी रहे थे. सबसे पहले उन्होंने ही रामलला की मूर्ति को देखा था. जिसके बाद उन्होंने मूर्ति को स्नान कराया और चरणामृत लिया. अब महाराज जी नहीं हैं. उनके चरणों में कोटि-कोटि वंदन. इसके बाद हिंदू महासभा के जिलाध्यक्ष गोपाल सिंह विशारद कोर्ट में याचिका दायर की. जब कमेटी बनी तो कोई उससे जुड़ने को तैयार नहीं था. सभी को शासन-प्रशासन से डर लग रहा था. अवैद्यनाथ जी ने कहा कि मैं इसका अध्यक्ष बनूंगा और कमेटी के कार्यों को आगे बढ़ाऊंगा. अवैद्यनाथ जी ने डॉ. रामविलास वेदांती से कहा कि आप डरो नहीं, हम आपके साथ हैं. वेदांती ट्रस्ट के सदस्य बनाए गए. उत्तर भारत और दक्षिण भारत के लोगों को जोड़ा गया, जिनकी विचारधारा राम मंदिर निर्माण से परिपूर्ण थी.

मोदी के रूप में मिले विश्वामित्र

वह बताते हैं कि जो हम लोगों ने कल्पना की थी, वह अब साकार होने जा रही है. 22 जनवरी को अयोध्या में साक्षात ब्रह्म का निर्माण होगा. 22 हमारे सिद्धांत में भी आता है. अठारह पुराण और चार वेद मिलाकर ब्रह्म का स्वरूप बनाया जाता है. यही 18 और 4 मिलाकर 22 बनता है और इसी के कारण प्राण प्रतिष्ठा की तिथि 22 जनवरी रखी गई है. लोग प्रश्न करते हैं कि 72 साल तक हमारे ठाकुर टेंट में रहे, मंदिर तक क्यों नहीं आ पाए. समर्थ होने के बाद भी. परमात्मा जब भी यात्रा करता है तो किसी संत के साथ यात्रा करता है. भारत में बहुत सी पार्टियां थीं, लेकिन कोई ऐसा साधु नहीं मिला जो प्रभु को गोदी में उठाकर मंदिर तक ले जाए. आज के इस परिवेश में मोदी जी, जिन्हें पूरा विश्व मित्र बना रहा है, विश्वामित्र के रूप में हमें मिल गए हैं.

योगी के साथ लिया राम मंदिर निर्माण का संकल्प

स्वामी करपात्री जी महाराज कहते हैं, उत्तर प्रदेश के मुख्यमंत्री हमारे मित्र हैं. हम एक साथ रहे भी हैं. एक बार रामचंद्र परमहंस जी महाराज के यहां मैं और योगी बैठे हुए थे. अवैद्य महाराज लेटे हुए थे. परमहंस जी की आंखों में आंसू आए और उन्होंने पूछा कि बेटा क्या हमारे समय में अयोध्या में राम मंदिर का निर्माण हो पाएगा. इस पर मैं और योगी आदित्यनाथ जी भी रोने लगे. उस वक्त योगी ने और मैंने संकल्प कर कहा था कि अयोध्या में अपने जीवन में राम मंदिर का निर्माण कर देंगे. उसी समय मैंने संकल्प लिया था कि आज से मात्र 18 कौर भोजन करूंगा. खड़ाऊ पहन कर चलूंगा और सिला हुआ वस्त्र नहीं पहनूंगा. जिस दिन भगवान अपने मंदिर में विराजमान हो जाएंगे, उस दिन मैं भरपेट भोजन करूंगा. हो सकता है ठाकुर जी की कृपा से 22 जनवरी के बाद हमें भरपेट भोजन मिले.

जब रो पड़े थे रामचंद्र परमहंस

स्वामी करपात्री कहते हैं कि साध्वी ऋतंभरा रोती थीं, उमा भारती रोती थीं. रामचंद्र परमहंस को मैंने दहाड़कर रोते देखा था. वह दृश्य बहुत ह्रदय विदारक था, जब कोठारी बंधुओं को गोली मार दी गई थी. पहले बड़े भाई को गोली मारी फिर छोटे भाई को. मुझे वह दिन याद आता है कि रामचंद्र परमहंस मेरा हाथ पकड़ कहने लगे- मैं जा रहा हूं. आज मेरे राम और लक्ष्मण चले गए हैं. अब मैं अयोध्या में जीवित नहीं रह सकता. रामचंद्र परमहंस के आंसुओं, गुरुदेव वेदांती के क्रियाकलाप का फल है कि आज अयोध्या में राम जी को उस मंदिर में देखने वाले हैं. बस एक ही निवेदन है कि हे विश्व के रचयिता भारत में आ जा, हे विश्व के रचयिता भारत में आ जा. आकर बैठ जाओ महलों में स्वागत है आपका.

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