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राष्ट्रध्वज डिजाइनर पिंगली वेंकैया को मिले भारत रत्न, सीएम जगन ने की पीएम से अपील

मुख्यमंत्री और वाईएसआर कांग्रेस के अध्यक्ष वाईएस जगन मोहन रेड्डी ने शुक्रवार को आंध्र प्रदेश के एक प्रमुख स्वतंत्रता सेनानी पिंगली वेंकैया को देश के सर्वोच्च नागरिक पुरस्कार भारत रत्न से सम्मानित करने की अपील की. पिंगली वेंकैया ने भारतीय ध्वज को डिजाइन किया था.

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Published : Mar 13, 2021, 11:17 AM IST

पिंगली वेंकैया
पिंगली वेंकैया

अमरावती : आंध्र प्रदेश के मुख्यमंत्री जगन मोहन रेड्डी ने भारतीय ध्वज के डिजाइनर पिंगली वेंकैया को देश का सर्वोच्च नागरिक पुरस्कार भारत रत्न से सम्मानित करने की अपील की है. मुख्यमंत्री जगन ने इसके लिए प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी को पत्र भी लिखा है.

पीएम मोदी को लिखे पत्र में मुख्यमंत्री जगन ने कहा कि वेंकैया को भारत रत्न से सम्मानित करना 75वें भारतीय स्वतंत्रता दिवस समारोह के मौके पर हर भारतीय के लिए गर्व की बात होगी.

रेड्डी ने कहा कि गांधीवादी विचार और विचारधारा से गहरे प्रभावित वेंकैया ने अपना जीवन राष्ट्र की सेवा में लगाने व स्वतंत्रता आंदोलन में भाग लेने का फैसला किया था और पूरा जीवन राष्ट्र के लिए समर्पित कर दिया.

पढ़ें- दांडी यात्रा आत्मसम्मान और आत्मनिर्भरता का प्रतीक: प्रह्लाद सिंह पटेल

पिंगली वेंकैया का जन्म दो अगस्त 1876 को वर्तमान आंध्र प्रदेश के मछलीपट्टनम के निकट भटलापेनुमारु नामक स्थान पर हुआ था. इनके पिता का नाम पाण्डुरंग और माता का नाम काल्पवती था और यह ब्राह्मण कुल नियोगी से संबद्ध थे.

मद्रास से हाई स्कूल उत्तीर्ण करने के बाद वह अपने वरिष्ठ स्नातक को पूरा करने के लिए कैम्ब्रिज यूनिवर्सिटी चले गए. वहां से लौटने पर उन्होंने एक रेलवे गार्ड के रूप में और फिर लखनऊ में एक सरकारी कर्मचारी के रूप में काम किया. इसके बाद में वह एंग्लो वैदिक महाविद्यालय में उर्दू और जापानी भाषा का अध्ययन करने लाहौर चले गए.

काकीनाड़ा में आयोजित भारतीय राष्ट्रीय कांग्रेस के राष्ट्रीय अधिवेशन के दौरान वेंकैया ने भारत का खुद का राष्ट्रीय ध्वज होने की आवश्यकता पर बल दिया और उनका यह विचार गांधीजी को बहुत पसंद आया. गांधीजी ने उन्हें राष्ट्रीय ध्वज का प्रारूप तैयार करने का सुझाव दिया.

पढ़ें- आज वाराणसी पहुंचेंगे राष्ट्रपति, पहली बार गंगा आरती में होंगे शामिल

पिंगली वेंकैया ने पांच सालों तक तीस विभिन्न देशों के राष्ट्रीय ध्वजों पर शोध किया और अंत में तिरंगे के लिए सोचा. 1921 में विजयवाड़ा में आयोजित भारतीय राष्ट्रीय कांग्रेस के अधिवेशन में वेंकैया पिंगली महात्मा गांधी से मिले थे और उन्हें अपने द्वारा डिज़ाइन लाल व हरे रंग से बनाया हुआ झंडा दिखाया. इसके बाद ही देश में कांग्रेस पार्टी के सारे अधिवेशनों में दो रंगों वाले झंडे का प्रयोग किया जाने लगा, लेकिन उस समय इस झंडे को कांग्रेस की ओर से अधिकारिक तौर पर स्वीकृति नहीं मिली थी.

इस बीच जालंधर के हंसराज ने झंडे में चक्र चिन्ह बनाने का सुझाव दिया. इस चक्र को प्रगति और आम आदमी के प्रतीक के रूप में माना गया. बाद में गांधीजी के सुझाव पर पिंगली वेंकैया ने शांति के प्रतीक सफेद रंग को भी राष्ट्रीय ध्वज में शामिल किया गया. 1931 में कांग्रेस ने कराची के अखिल भारतीय सम्मेलन में केसरिया, सफ़ेद और हरे तीन रंगों से बने इस ध्वज को सर्वसम्मति से स्वीकार किया. बाद में राष्ट्रीय ध्वज में इस तिरंगे के बीच चरखे की जगह अशोक चक्र ने ले ली.

पढ़ें- केरल चुनाव : विधायक पीवी अनवर भी ठोक रहे ताल, अफ्रीका में करोड़ों के कारोबार से संबंध

पिंगली वेंकैया कई विषयों के ज्ञाता थे, उन्हें भूविज्ञान और कृषि क्षेत्र से विशेष लगाव था. वह हीरे की खदानों के विशेषज्ञ थे. पिंगली ने ब्रिटिश भारतीय सेना में भी सेवा की थी और दक्षिण अफ्रीका के एंग्लो-बोअर युद्ध में भाग लिया था. यहीं यह गांधीजी के संपर्क में आये और उनकी विचारधारा से बहुत प्रभावित हुए.

1906 से 1911 तक पिंगली मुख्य रूप से कपास की फसल की विभिन्न किस्मों के तुलनात्मक अध्ययन में व्यस्त रहे और उन्होनें बॉम्वोलार्ट कंबोडिया कपास पर अपना एक अध्ययन प्रकाशित किया.

इसके बाद वह वापस किशुनदासपुर लौट आये और 1916 से 1921 तक विभिन्न झंडों के अध्ययन में अपने आप को समर्पित कर दिया और अंत में वर्तमान भारतीय ध्वज विकसित किया. उनका निधन चार जुलाई 1963 को हुआ था.

अमरावती : आंध्र प्रदेश के मुख्यमंत्री जगन मोहन रेड्डी ने भारतीय ध्वज के डिजाइनर पिंगली वेंकैया को देश का सर्वोच्च नागरिक पुरस्कार भारत रत्न से सम्मानित करने की अपील की है. मुख्यमंत्री जगन ने इसके लिए प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी को पत्र भी लिखा है.

पीएम मोदी को लिखे पत्र में मुख्यमंत्री जगन ने कहा कि वेंकैया को भारत रत्न से सम्मानित करना 75वें भारतीय स्वतंत्रता दिवस समारोह के मौके पर हर भारतीय के लिए गर्व की बात होगी.

रेड्डी ने कहा कि गांधीवादी विचार और विचारधारा से गहरे प्रभावित वेंकैया ने अपना जीवन राष्ट्र की सेवा में लगाने व स्वतंत्रता आंदोलन में भाग लेने का फैसला किया था और पूरा जीवन राष्ट्र के लिए समर्पित कर दिया.

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पिंगली वेंकैया का जन्म दो अगस्त 1876 को वर्तमान आंध्र प्रदेश के मछलीपट्टनम के निकट भटलापेनुमारु नामक स्थान पर हुआ था. इनके पिता का नाम पाण्डुरंग और माता का नाम काल्पवती था और यह ब्राह्मण कुल नियोगी से संबद्ध थे.

मद्रास से हाई स्कूल उत्तीर्ण करने के बाद वह अपने वरिष्ठ स्नातक को पूरा करने के लिए कैम्ब्रिज यूनिवर्सिटी चले गए. वहां से लौटने पर उन्होंने एक रेलवे गार्ड के रूप में और फिर लखनऊ में एक सरकारी कर्मचारी के रूप में काम किया. इसके बाद में वह एंग्लो वैदिक महाविद्यालय में उर्दू और जापानी भाषा का अध्ययन करने लाहौर चले गए.

काकीनाड़ा में आयोजित भारतीय राष्ट्रीय कांग्रेस के राष्ट्रीय अधिवेशन के दौरान वेंकैया ने भारत का खुद का राष्ट्रीय ध्वज होने की आवश्यकता पर बल दिया और उनका यह विचार गांधीजी को बहुत पसंद आया. गांधीजी ने उन्हें राष्ट्रीय ध्वज का प्रारूप तैयार करने का सुझाव दिया.

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पिंगली वेंकैया ने पांच सालों तक तीस विभिन्न देशों के राष्ट्रीय ध्वजों पर शोध किया और अंत में तिरंगे के लिए सोचा. 1921 में विजयवाड़ा में आयोजित भारतीय राष्ट्रीय कांग्रेस के अधिवेशन में वेंकैया पिंगली महात्मा गांधी से मिले थे और उन्हें अपने द्वारा डिज़ाइन लाल व हरे रंग से बनाया हुआ झंडा दिखाया. इसके बाद ही देश में कांग्रेस पार्टी के सारे अधिवेशनों में दो रंगों वाले झंडे का प्रयोग किया जाने लगा, लेकिन उस समय इस झंडे को कांग्रेस की ओर से अधिकारिक तौर पर स्वीकृति नहीं मिली थी.

इस बीच जालंधर के हंसराज ने झंडे में चक्र चिन्ह बनाने का सुझाव दिया. इस चक्र को प्रगति और आम आदमी के प्रतीक के रूप में माना गया. बाद में गांधीजी के सुझाव पर पिंगली वेंकैया ने शांति के प्रतीक सफेद रंग को भी राष्ट्रीय ध्वज में शामिल किया गया. 1931 में कांग्रेस ने कराची के अखिल भारतीय सम्मेलन में केसरिया, सफ़ेद और हरे तीन रंगों से बने इस ध्वज को सर्वसम्मति से स्वीकार किया. बाद में राष्ट्रीय ध्वज में इस तिरंगे के बीच चरखे की जगह अशोक चक्र ने ले ली.

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पिंगली वेंकैया कई विषयों के ज्ञाता थे, उन्हें भूविज्ञान और कृषि क्षेत्र से विशेष लगाव था. वह हीरे की खदानों के विशेषज्ञ थे. पिंगली ने ब्रिटिश भारतीय सेना में भी सेवा की थी और दक्षिण अफ्रीका के एंग्लो-बोअर युद्ध में भाग लिया था. यहीं यह गांधीजी के संपर्क में आये और उनकी विचारधारा से बहुत प्रभावित हुए.

1906 से 1911 तक पिंगली मुख्य रूप से कपास की फसल की विभिन्न किस्मों के तुलनात्मक अध्ययन में व्यस्त रहे और उन्होनें बॉम्वोलार्ट कंबोडिया कपास पर अपना एक अध्ययन प्रकाशित किया.

इसके बाद वह वापस किशुनदासपुर लौट आये और 1916 से 1921 तक विभिन्न झंडों के अध्ययन में अपने आप को समर्पित कर दिया और अंत में वर्तमान भारतीय ध्वज विकसित किया. उनका निधन चार जुलाई 1963 को हुआ था.

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