नई दिल्ली : आयकर विभाग ने बुधवार को दिल्ली स्थित शोध संस्थान सेंटर फॉर पॉलिसी रिसर्च (सीपीआर) के खिलाफ तलाशी अभियान चलाया. आधिकारिक सूत्रों ने यह जानकारी दी.सूत्रों ने बताया कि मध्य दिल्ली में मालचा मार्ग के पास स्थित शोध संस्थान के परिसर को ढका गया है. तलाशी और जांच अभियान के सही कारण का फिलहाल पता नहीं चल पाया है.
सेंटर ऑफ पॉलिसी रिसर्च के प्रमुख भाजपा सरकार के एक प्रमुख आलोचक और शिक्षाविद प्रतापभानु मेहता भी रहे हैं. इसकी गवर्निंग बोर्ड में बतौर चेयरपर्सन मीनाक्षी गोपीनाथ हैं. राजनीतिक वैज्ञानिक गोपीनाथ जवाहर लाल नेहरू यूनिवर्सिटी में पढ़ाती थीं. वह लेडी श्रीराम कॉलेज की प्रिंसिपल रही हैं. सीपीआर की प्रेसिडेंट और चीफ एग्जीक्यूटिव यामिनी अय्यर हैं. पूर्व विदेश सचिव श्याम सरण और आईआईएम प्रोफेसर रामा बिजापुरकर इसके सदस्य हैं. इसी तरह से दूसरे थिंक टैंक ऑक्सफैम में भी छापेमारी की खबरें आ रहीं हैं.
दरअसल, आयकर विभाग ने बुधवार को कुछ पंजीकृत गैर-मान्यता प्राप्त राजनीतिक दलों (आरयूपीपी) और उनके कथित संदिग्ध वित्तीय लेन-देन के खिलाफ कई राज्यों में छापेमारी की. सूत्रों के अनुसार गुजरात, दिल्ली, उत्तर प्रदेश, महाराष्ट्र, मध्य प्रदेश, छत्तीसगढ़, हरियाणा और कुछ अन्य राज्यों में कम से कम 110 स्थानों पर छापेमारी की गई. कुछ जगहों पर छापेमारी अभी भी चल रही है. पुलिस आयकर विभाग के दलों की मदद कर रही है. आयकर विभाग के एक दल को मयूर विहार इलाके में एक वकील के कार्यालय में भी देखा गया.
सूत्रों ने बताया कि आयकर विभाग ने आरयूपीपी, उनसे जुड़ी संस्थाओं, संचालकों और अन्य के खिलाफ उनके आय-व्यय को लेकर समन्वित कार्रवाई शुरू की है. उन्होंने बताया कि कथित तौर पर अवैध तरीकों से अर्जित राजनीतिक चंदे के कुछ अन्य मामलों की भी जांच की जा रही है. ऐसा माना जाता है कि निर्वाचन आयोग (ईसी) की सिफारिश पर विभाग द्वारा अचानक यह कार्रवाई की गई. आयोग ने हाल ही में भौतिक सत्यापन के बाद कम से कम 198 संगठनों को आरयूपीपी की सूची से हटा दिया था.
निर्वाचन आयोग ने घोषणा की थी कि वह 2,100 से अधिक पंजीकृत गैर-मान्यता प्राप्त राजनीतिक दलों के खिलाफ कार्रवाई कर रहा है, जो नियमों और चुनाव संबंधी कानूनों का उल्लंघन कर रहे हैं. इनमें कोष संबंधी जानकारी ना देना, चंदा देने वालों के पते और पदाधिकारियों के नामों को जारी ना करना शामिल हैं. आयोग के अनुसार कुछ दल गंभीर वित्तीय गड़बड़ी में भी संलिप्त पाए गए हैं.
आयोग के अनुसार राज्यों के मुख्य निर्वाचन अधिकारियों (सीईओ) से रिपोर्ट मिली थी कि सत्यापन के दौरान ये पंजीकृत गैर-मान्यता प्राप्त राजनीतिक दल, अस्तित्वहीन पाए गए. इसके बाद आयोग ने यह कार्रवाई की और चुनाव चिह्न आदेश (1968) के तहत इन दलों को दिए गए विभिन्न लाभों को वापस लेने का फैसला किया. निर्वाचन आयोग ने बताया था कि गंभीर वित्तीय अनियमितताओं में शामिल ऐसे तीन दलों के खिलाफ आवश्यक कानूनी और आपराधिक कार्रवाई के लिए राजस्व विभाग को जानकारी दी गई है. आधिकारिक आंकड़ों के अनुसार, भारत में करीब 2,800 पंजीकृत गैर-मान्यता प्राप्त राजनीतिक दल हैं.