नई दिल्ली: राष्ट्रपति रामनाथ कोविंद(President Ram Nath Kovind) ने शनिवार को यहां कहा कि यह न्यायाधीशों का दायित्व है कि वे अदालत कक्षों में अपनी बात कहने में अत्यधिक विवेक का प्रयोग करें.
सुप्रीम कोर्ट(Supreme Court) द्वारा आयोजित संविधान दिवस कार्यक्रम(Constitution Day program) के समापन समारोह को संबोधित करते हुए कोविंद ने कहा कि भारतीय परंपरा में न्यायाधीशों की कल्पना(Imagination of judges in Indian tradition) स्थितप्रज्ञ (स्थिर ज्ञान का व्यक्ति) के समान शुद्ध और तटस्थ आदर्श के रूप में की जाती है. उन्होंने कहा कि हमारे पास ऐसे न्यायाधीशों की विरासत का एक समृद्ध इतिहास है जो दूरदर्शिता से पूर्ण और निंदा से परे आचरण के लिए जाने जाते हैं और आने वाली पीढ़ियों के लिए विशिष्ट पहचान बन गए हैं.
राष्ट्रपति ने कहा कि उन्हें यह बताने में खुशी हो रही है कि भारतीय न्यायपालिका(Indian Judiciary) इन उच्चतम मानकों का पालन कर रही है. उन्होंने कहा कि इसमें कोई संदेह नहीं है कि आपने अपने लिए एक उच्च स्तर निर्धारित किया है. इसलिए न्यायाधीशों का यह भी दायित्व है कि वे अदालत कक्षों में अपने बयानों में अत्यधिक विवेक का प्रयोग करें. उन्होंने कहा कि अविवेकपूर्ण टिप्पणी भले ही अच्छे इरादे से की गई हो लेकिन इस प्रकार की टिप्पणी न्यायपालिका के महत्व को कम करने वाली संदिग्ध व्याख्याओं को जगह देती है. राष्ट्रपति ने अपने तर्क के समर्थन में डेनिस बनाम अमेरिका मामले में अमेरिकी उच्चतम न्यायालय के न्यायाधीश फ्रैंकफर्टर का उदाहरण दिया जिन्होंने कहा था कि अदालतें प्रतिनिधि निकाय नहीं हैं और ये लोकतांत्रिक समाज का अच्छा प्रतिबिंब बनने के लिए डिजाइन नहीं की गई हैं.
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अमेरिकी न्यायाधीश का उदाहरण देते हुए राष्ट्रपति कोविंद ने कहा कि अदालतों का आवश्यक गुण स्वतंत्रता पर आधारित तटस्थता है और इतिहास सिखाता है कि न्यायपालिका की स्वतंत्रता तब खतरे में पड़ जाती है जब अदालतें भावना संबंधी जुनून में उलझ जाती हैं और प्रतिस्पर्धी राजनीतिक, आर्थिक तथा सामाजिक दबाव के बीच चयन करने में प्राथमिक जिम्मेदारी लेना शुरू कर देती हैं.
(पीटीआई-भाषा)