नई दिल्ली : 16वें वित्त आयोग का गठन इसी सप्ताह हो सकता है. 15वें वित्त आयोग का कार्यकाल 2025-26 तक है. इसके आगे यानी वित्तीय वर्ष 2026-27 से लेकर अगले पांच सालों तक टैक्स का बंटवारा किस फॉर्मूले के तहत होगा, यह 16वां वित्त आयोग तय करेगा. 15वें वित्त आयोग ने 42 फीसदी का टैक्स डिवॉवल्यूशन तय किया है.
वित्त आयोग एक संवैधानिक निकाय है. अनुच्छेद 280 के तहत राष्ट्रपति इस आयोग का गठन करते हैं. टैक्स से होने वाली आमदनी का बंटवारा केंद्र और राज्यों के बीच किस तरह से हो सकता है, आयोग इसके लिए अनुशंसा करता है. केंद्र और राज्यों के बीच किस अनुपात में टैक्स को वितरित किया जाएगा, और फिर राज्यों के बीच किस तरह से धन का बंटवारा होगा, इसका निर्णय किया जाता है.
इसके अलावा अनुच्छेद 270 और अनुच्छेद 275 में वित्त आयोग को लेकर कुछ अन्य बातें भी कही गईं हैं. आयोग अन्य राजकोषीय संघवाद (फिस्कल फेडरेलिज्म) के मुद्दों पर भी अपनी अनुशंसा प्रदान कर सकता है. आयोग का सिद्धान्त समानीकरण या बराबरी का है. यानी प्रति व्यक्ति उपलब्धता और उन तक जनसेवा की पहुंच, आयोग इसका ख्याल रखता है. आयोग करयोग्य क्षमता और सामाजिक तथा आर्थिक सेवाओं पर प्रति व्यक्ति सार्वजनिक खर्च को डिलिंक करके देखता है.
आयोग के लिए टर्म्स ऑफ रेफरेंस राष्ट्रपति तय करते हैं. अलग-अलग आयोग के लिए राष्ट्रपति अलग-अलग रेफरेंस तय करते हैं. जैसे 13वें वित्त आयोग को संघ और राज्यों के वित्त की स्थिति का विश्लेषण और समीक्षा करने की अतिरिक्त जिम्मेदारी तय की गई थी. ताकि उनका ऋण समेकन एवं राहत सुविधा का संचालन (2005-10) पर कितना काम हुआ, इस पर विचार कर सकें. उसके बाद उन्हें 2010-15 के लिए उन्हें रोडमैप प्रस्तावित करने को कहा गया था, ताकि राजकोषीय़ समायोजन हो सके.
15वें वित्त आयोग का कुछ रेफरेंस विवाद में भी आया था. जैसे 1971 की जगह पर 2011 की जनगणना का क्यों उपयोग किया गया. क्या रेवेन्यू डेफिसिट के बदले क्षतिपूर्ति दिया जाए या नहीं. क्या रक्षा और आंतरिक सुरक्षा को दिए जाने वाले नॉन लैपसेबल फंड के लिए अलग से कोई व्यवस्था हो या नहीं.
1969 में एडमिनिस्ट्रेटिव रिफॉर्म्स कमीशन (एआरसी) ने योजना आयोग और वित्त आयोग के क्रियाकलापों में अंतरविरोध को लकर टिप्पणी की थी. एआरसी ने कहा था कि वित्त आयोग को सिर्फ केंद्रीय कर को साझा और वितरण को लेकर अनुशंसा करनी चाहिए, जबकि योजना आयोग को योजना और गैर योजना दोनों ही ग्रांटों पर विचार करने का अधिकार है. बेहतर समन्वय के लिए योजना आयोग के एक सदस्य को वित्त आयोग में मौजूद होना चाहिए. छठे वित्त आयोग में योजना आयोग के एक सदस्य की नियुक्ति भी कर दी गई थी.
हाल ही में इंटर गवर्मेंटल फिस्कल ट्रांसफर सिस्टम (आईजीटी) इन इंडिया में कुछ परिवर्तन किया गया. वित्त आयोग मंत्रालय द्वारा दी गई राशि को ट्रांसफर और ग्रांट करता है. इसके पहले आईजीटी का कुछ हिस्सा योजना आयोग के जरिए ट्रांसफर किया जाता था. 2015-16 से इस प्रक्रिया को बंद कर दिया गया. सेंट्रल सेक्टर और सेंट्रली स्पॉंसर स्कीम को अनुच्छेद 282 के तहत प्रदान किया जाता है.
संविधान ने टैक्स बंटवारे को लेकर केंद्र और राज्यों के बीच जिस फॉर्मूले को निर्धारित किया था, उसमें एक असमानता थी. इसके लिए रेवेन्यू पावर का बंटवारा और खर्च की जवाबदेही को जिस ढंग से तय किया गया है, उस पर खुले विचार की जरूरत है. हालांकि, 11वें वित्त आयोग ने बहुत हद तक इस दोष को दूर करने का प्रयास किया था. इसने सभी टैक्स को डिविजिबल पूल (विभाज्य पूल) के तहत डाल दिया. हाल के दिनों में गैर साझा करने योग्य केंद्र की राजस्व प्राप्तियों में भी बढ़ोतरी की गई है. लेकिन यह सेस यानी उपकर के रूप में काउंट किया जा रहा है. ऐसा कहा जाता है कि इससे राज्यों को नुकसान हुआ है. उनकी राय में उपकर और अधिभार विभाज्य पूल का हिस्सा नहीं है. यह सीधे तौर पर राजकोषीय संघवाद के खिलाफ है.
12वें वित्त आयोग ने केंद्रीय कर के विभाज्य पूल में राज्यों की हिस्सेदारी 30.5 फीसदी कर दिया था. 11वें वित्त आयोग में यह 29.3 फीसदी था. इसके बाद 14वें वित्त आयोग ने इसकी सीमा बढ़ाकर 42 फीसदी कर दी. 14वें वित्त आयोग ने इंटर गवर्मेंटल ट्रांसफर में जो बदलाव किया था, उसकी क्षतिपूर्ति के कारण इस सीमा को बढ़ाया था. इसलिए 15वें वित्त आयोग ने फिर से इसे घटाकर 41 फीसदी कर दिया. 16वें वित्त आयोग में इस सीमा के बढ़ने के चांस हैं, क्योंकि राज्यों को जीएसटी और सेस के बदले क्षतिपूर्ति दिया जाना है.
इसी तरह से राज्यों के बीच टैक्स का बंटवारा कैसे हो, इसके लिए भी कुछ फैक्टर्स तय किए गए हैं. इसके लिए अलग-अलग इंडिकेटरों को अलग-अलग भार (वेटेज) दिया गया है. वैसे, हरेक वित्त आयोग में आय की असमानता, आबादी और क्षेत्र को प्राथमिकता दिया जाता रहा है. इसके अलावा जंगल क्षेत्र और जनसांख्यिकीय परिवर्तन को भी ध्यान में रखा जाता है. 13वें वित्त आयोग ने गरीब राज्यों के पक्ष में कुछ फैसले लिए थे. इसने 17.5 फीसदी तक वेटेज प्रदान किया था. इसके लिए ऑल वेटेज एवरेज के बजाए टैक्स जुटाने के लिए उसके द्वारा की गई कोशिश को फैक्टर माना गया.
संपन्न राज्य मांग करते आए हैं कि आयकर असामनता को कम वेटेज प्रदान किया जाए. 15वें वित्त आयोग ने अचानक ही 1971 के बजाए 2011 सेंसस डेटा का उपयोग किया, इसलिए अधिक आबादी वाले राज्यों को फायदा मिल गया.
लगभग प्रत्येक वित्त आयोग अलग-अलग सेक्टर के लिए कुछ न कुछ स्पेशल ग्रांट करता है. खासकर शिक्षा और स्वास्थ्य में समानता स्थापित हो, इसके लिए विशेष प्रयास किया जाता है. 14वें वित्त आयोग ने लोकल बॉडीज और डिजास्टर मैनेजमेंट ग्रांट के तौर पर विशेष ग्रांट दिया था. इसलिए 15वें वित्त आयोग ने फिर से पुराने फॉर्मूले को लागू किया. 16वें में भी यही फॉर्मूला रखा जा सकता है.
रेवेन्यू डेफिसिट ग्रांट - राजस्व घाटा अनुदान उन राज्यों को दिया जाता है जिनके अपने स्वयं के राजस्व और कर हस्तांतरण को अधिकतम करने के बाद भी राजकोषीय ज़रूरतें पूरी नहीं होती हैं. इसके पीछे मुख्य रूप से संरचनात्मक फैक्टर्स जिम्मेदार होते हैं. 14वें वित्त आयोग ने राजस्व अंतर को ध्यान में रखते हुए 2015-16 से 2019-20 की अवधि के लिए 194821 करोड़ रु. का राजस्व घाटा ग्रांट किया था. आंध्र प्रदेश ने सभी वर्षों के लिए रेवेन्यू डेफिसिट ग्रांट अनुदान प्रदान किया, जबकि तेलंगाना को यह राशि नहीं मिली, क्योंकि क्योंकि तेलंगाना रेवेन्यू डेफिसिट स्टेट नहीं था.
15वें वित्त आयोग ने 17 राज्यों के लिए 294514 करोड़ रु. का रेवेन्यू डेफिसिट ग्रांट किया था. यह 2021-22 से लेकर 2025-26 के लिए है. तेलंगाना को कुछ नहीं मिला, क्योंकि यह डेफिसिट स्टेट नहीं है, आंध्र को 30497 करोड़ रु. मिला.
15वें वित्त आयोग ने महामारी की वजह से राज्य की उधारी सीमा में छूट की अनुशंसा की. नेट उधारी सीमा 2021-22 के लिए जीएसडीपी का चार फीसदी, 2022-23 के लिए 3.5 फीसदी और 2023-24 के लिए तीन फीसदी तक रखा गया. पावर डिस्ट्रीब्यूशन सेक्टर रिफॉर्म्स के लिए अतिरिक्त उधारी सीमा तय की गई. इसे आधा प्रतिशत बढ़ा दिया गया था. यह 2021-22 से लेकर 2024-25 के लिए है. अगर कोई भी राज्य किसी एक वर्ष में इस उधारी सीमा का यूटाइलाइज नहीं कर सका, तो वह इसे अगले साल के लिए ट्रांसफर कर सकता है. उम्मीद की जा रही है कि अगला वित्त आयोग केंद्र सरकार के कर्ज और उसके डेफिसिट टारजेट दोनों पर अपनी नजर बनाए रखेगा.
चुनौतियां - डॉ सी रंगराजन और डीके श्रीवास्तव का कहना है कि लोन काउंसल का गठन किया जा सकता है. 12वें वित्त आयोग ने इसकी अनुसंसा की थी. यह एक स्वतंत्र बॉडी होगी. कितना लोन देना है, यह खुद ही तय करेगा. इससे पक्षपात को लेकर की जाने वाली बातें खत्म हो सकती हैं. साथ ही खर्च और सब्सिडी के बीच संतुलन बनाए रखने की जरूरत है. सभी वित्त आयोग यह निष्कर्ष निकालता रहा है कि खर्च में सबसे बड़ा योगदान पेंशन, सब्सिडी और ब्याज भुगतान का रहता है. राज्यों को इस पर गंभीरता से ध्यान देने की जरूरत है. ओपीएस और एनपीएस (पुरानी पेंशन योजना वर्सेस नई पेंशन योजना) पर भी आयोग को स्टैंड लेना चाहिए.
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फिस्कल काउंसल - यूएस में इस तरह की बॉडी को कांग्रेशनल बजट ऑफिस, ऑस्ट्रेलिया और कनाडा में इसे संसदीय बजट ऑफिस, यूके में ऑफिस फॉर बजट रेस्पॉंसिबिलिटी, पुर्तगाल में पब्लिकल फाइनेंस काउंसल कहते हैं. राज्य अब आक्रामक ऑफ-बजट उधार का सहारा ले रहे हैं, उम्मीद की जा सकती है कि आयोग इस पर प्रतिबंध लगा सकता है.
(लेखक - ए श्री हरि नायडू, पीएचडी, अर्थशास्त्री, नेशनल इंस्टिट्यूट ऑफ पब्लिक फाइनेंस एंड पॉलिसी. ये लेखक के निजी विचार हैं)