नई दिल्ली : हथियारों, सैन्य साजो सामान, रणनीति और युद्ध के तरीके की सबसे अच्छी टेस्टिंग खुद युद्ध का मैदान है. यहां पर पुरानी सीख नए रास्ते को जगह देती है. यूक्रेन संघर्ष के दौरान ध्वस्त टैंकों की तस्वीरें आने वाले समय में कई कहानियां बयां करती रहेंगी. लेकिन सैन्य और युद्ध की रणनीति के जानकार टैंकों और बख्तरबंद लड़ाकू वाहनों की तबाही देखकर हैरान हैं. उन्हें भी इस पर यकीन नहीं हो रहा है.
24 फरवरी से लेकर 12 मई, 2022 तक, दोनों देशों के बीच संघर्ष में टैंकों और अन्य बख्तरबंद लड़ाकू वाहनों के नष्ट होने की संख्या 7,106 थी. जाहिर है, युद्ध के दौरान दोनों ही पक्षों की ओर से आंकड़े बढा़-चढ़ाकर पेश किए जाते हैं, लेकिन यह हकीकत है कि दोनों ही ओर से टैंकों की भारी तबाही हुई है.
आप इस संख्या का अंदाजा लगाइए. भारत में टी-90, टी-72 और अर्जुन टैंकों की कुल संख्या 5000 के आसपास है. और रूस ने दावा किया है कि यूक्रेन संघर्ष में उसने 2998 टैंकों और बख्तरबंद वाहनों को तबाह कर दिया है. दूसरी ओर कीव ने भी दावा किया है कि उसने 2904 बख्तरबंद वाहनों और 1204 टैंकों को नष्ट कर दिया.
आज के समय में जबकि तकनीक केंद्रित युद्ध होता जा रहा है, धीरे-धीरे बढ़ने वाले टैंक रॉकेट लॉंचर के निशाने पर आ रहे हैं. एंटी टैंक गाइडेड मिसाइल उन्हें आसानी से तबाह कर देते हैं. ड्रोन और सैटेलाइट से मिलने वाली रीयल टाइम जानकारी टैंक की हर गतिविधि पर नजर रखते हैं.
रूसी टैंकों के खिलाफ अमेरिका की जैवलिन एटीजीएम सबसे ज्यादा घातक साबित हो रही है. यह एक तरीके से यूक्रेन के 'फाइट बैक' का सिंबल बन गया है. इस 'फायर एंड फॉरगेट' को कोई भी व्यक्ति ऑपरेट कर सकता है. इसे एक जगह से दूसरी जगह पर ले जाना बिल्कुल ही मुश्किल नहीं होता है. आप इसे आसानी से कहीं पर भी छिपा सकते हैं. तुरंत फायर कर सकते हैं.
आप सीधे ही लक्ष्य पर इससे निशाना साध सकते हैं. या नहीं तो यह करीब-करीब 160 मीटर की ऊंचाई पर जाकर वर्टिकल ट्रैजेक्ट्री बनाकर उल्टी दिशा में लक्ष्य को भेद सकता है. 2.5 किमी की ऑपरेटिंग रेंज के साथ, 'जेवलिन' में दो पेलोड हैं - एक इंपेक्ट होने पर फट जाता है, जबकि दूसरा टैंक के कवच को छेद देता है. 'जेवलिन' के अलावा, यूक्रेन को जर्मन, ब्रिटिश, स्वीडिश और स्पेनिश टैंक-विरोधी हथियार भी मिले हैं.
यूक्रेन संघर्ष से पहले अजरबैजान और आर्मेनिया के बीच दो सप्ताह तक युद्ध हुआ. अक्टूबर 2020 में नागोर्नो और काराबेक क्षेत्र में युद्ध हुआ. इस दौरान भी टैंकों की भारी क्षति हुई थी. तुर्की के हथियार युक्त ड्रोन ने यहां कहर बरपा दिया था. अजरबैजान ने दावा किया कि उसने आर्मेनिया के 252 अमेरिकन टैंकों और 50 इंफैंट्री कंबेट व्हीकल को नष्ट कर दिया. आर्मेनिया ने दावा किया कि उसने अजरबैजान के 784 बख्तरबंद वाहनों को तबाह कर दिया.
भारत के परिप्रेक्ष्य में देखें तो पहाड़ी और उबड़-खाबड़ परिदृश्य के कारण पूर्वी लद्दाख में चीनी पीएलए के साथ चल रहे गतिरोध के दौरान टैंकों का ज्यादा उपयोग नहीं हुआ है. चुशुल या डेमचोक जैसे कुछ प्लेन क्षेत्रों में भारतीय सेना के टैंकों का कुछ उपयोग हो रहा है.
प्रथम विश्व युद्ध से पहले एक जगह से दूसरी जगह तीव्रता से जाने के लिए घोड़े का प्रयोग होता था. घोड़े पर सवार होने वाले सैनिकों को पैदल सैनिकों के मुकाबले अधिक ऊंचाई और गतिशीलता मिलती थी. लेकिन दूसरे विश्व युद्ध आते-आते घोड़े की उपयोगिता बिल्कुल ही खत्म हो गई. इसी दौरान युद्ध मैदान में टैंकों ने अपनी जगह बनाई. हर देश ने अपनी सेना में टैंक वाले रेजिमेंट बनाने शुरू कर दिए.
टैंक पैदल सैनिकों को ढाल प्रदान करते रहे हैं. टैंक सैनिक अपने आपको सुरक्षित रखकर बुलडोज करने का भी करते रहे हैं. लेकिन यूक्रेन युद्ध ने आधुनिक सैनिकों के सामने इसकी प्रासंगिकता पर ही सवाल खड़े कर दिए हैं.
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