नई दिल्ली : गुजरात विधानसभा चुनाव में प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने जिस तरह से प्रचार की जिम्मेदारी उठा रखी है, उससे यह संदेश जा रहा है कि भाजपा की स्थिति 'कमजोर' हुई है. पार्टी की कोशिश है कि वह लगातार सातवीं बार जीत हासिल करे. लेकिन मंत्रियों और विधायकों (एंटी इंकंबेंसी फैक्टर) के साथ-साथ कई ऐसे कारक हैं, जिनकी वजह से पार्टी को कठिनाइयों का सामना करना पड़ रहा है. कई जगहों पर टिकट वितरण की वजह से पार्टी में असंतोष भी उपजे हैं. इसके बावजूद जमीनी हालात संकेत दे रहे हैं कि भाजपा या फिर पीएम मोदी, पार्टी के फिर से सत्ता में आने को लेकर चिंतित नहीं हैं, बल्कि वो इस बात को लेकर प्रयासरत हैं कि पार्टी कैसे इस बार नया रिकॉर्ड स्थापित करे. उनकी कोशिश है कि पार्टी कांग्रेस के 1985 के रिकॉर्ड को तोड़े. तब कांग्रेस ने 182 में से 149 सीटें हासिल की थीं.
ऐसा माना जाता है कि पीएम मोदी ने भाजपा कार्यकर्ताओं को 150 सीटें जीतने का संकल्प लेने को कहा है. वैसे, सूत्र बताते हैं कि खुद अमित शाह भी मानते हैं कि 130 सीटें पार्टी जीत सकती है. अब सवाल ये है कि आखिर रिकॉर्ड बनाने का जुनून क्यों सवार है. आखिर पीएम मोदी क्या संदेश देना चाहते हैं. रणनीतिकारों का कहना है कि पीएम मोदी यह संदेश देना चाहते हैं कि अभी भी भाजपा की पकड़ उतनी ही मजबूत है, जितनी पहले थी, भले ही आम आदमी पार्टी ने इसे त्रिकोणीय बनाने की कोशिश की हो. भले ही आप ने फ्री वादों की झड़ी लगा दी हो, इसके बाद भी भाजपा ही यहां पर नंबर वन पार्टी है.
भाजपा के रणनीतिकार दो फैक्टर्स पर यकीन कर रहे हैं. पहला है आम आदमी पार्टी. भाजपा का दावा है कि आप ने दो महीने पहले जिस तरीके से आक्रामक शैली में प्रचार की शुरुआत की थी, अब उनका उत्साह ठंडा हो चुका है. इसमें बहुत बड़ा योगदान टिकट वितरण का है. भाजपा मानती है कि आप के उम्मीदवार नए हैं. जनता के बीच उनकी पहचान नहीं है. साथ ही आप सौराष्ट्र और द.गुजरात में अधिक केंद्रित है. दूसरा फैक्टर है- कांग्रेस. भाजपा का कहना है कि आप जितनी भी सीटें हासिल करेगी, वह कांग्रेस को नुकसान पहुंचाएगी. कांग्रेस ने जिस तरह से 2017 में भाजपा को 99 सीटों पर ला दिया था, इस बार पार्टी कहीं भी आक्रामक अंदाज में नहीं दिखी. यहां तक कि विरोधी भी मानते हैं कि गुजरात चुनाव में मोदी बहुत बड़ा फैक्टर है. मोदी को लेकर प्रो-इंकबेंसी जैसी स्थिति हो जाती है. भाजपा को जितना नुकसान होने की संभावना है, मोदी फैक्टर की वजह से वह न्यूट्रल हो जाता है.
मोदी 2001-14 तक गुजरात के सीएम रह चुके हैं. मोदी जब केंद्र में आए, तो उसके बाद से जो भी गुजरात में उनका उत्तराधिकारी बना, चाहे वह आनंदी बेन पटेल हों या फिर विजय रुपानी, वे उतने लोकप्रिय नहीं हुए. 2017 में पटेल आंदोलन की वजह से पार्टी की साख को काफी धक्का लगा था. लेकिन, इस तरह की जब भी स्थिति आती है, तो मोदी की व्यक्तिगत अपील किसी 'जादू' से कम नहीं छोड़ती है. वह पार्टी की कमियों की भरपाई कर देता है. इस बार भी मोदी ने अपनी पहली रैली, 6 नवंबर को, में कहा था कि मैंने गुजरात बनाया है. उन्होंने विरोधियों पर खूब निशाना साधा. उन्होंने कहा कि वे लोग (विपक्षी) गुजरात को बदनाम करने की साजिश रचते रहे. उन्होंने घृणा फैलाई. राज्य उन्हें जरूर बाहर का रास्ता दिखाएगा. मोदी ने न तो हिमाचल प्रदेश और न ही गुजरात में किसी भाजपा उम्मीदवार को लेकर चर्चा की. रैली में खुद पीएम मोदी ने कहा कि भाजपा का उम्मीदवार कौन है, इसको याद रखने की जरूरत नहीं है, आपको सिर्फ कमल का फूल याद रखना है. यही भाजपा है, आपका हर वोट मोदी के खाते में आशीर्वाद के रूप में प्राप्त होगा.
इतना ही नहीं, मोदी अपनी हर रैली में लोगों को ज्यादा से ज्यादा संख्या में आकर वोट करने की अपील कर रहे हैं. वह यह भी कह रहे हैं कि मत प्रतिशत का भी नया रिकॉर्ड बनना चाहिए. मोदी ने कहा, 'इस चुनाव में मैं चाहता हूं कि लोग मतदान के दिन बड़े पैमाने पर आएं, अपने-अपने मतदान केंद्रों पर आकर पिछले सभी रिकॉर्ड तोड़ दें. मैं आपको नहीं कह रहा हूं, वोट बीजेपी को ही देना चाहिए, बस सुनिश्चित करें कि प्रत्येक नागरिक लोकतंत्र के इस पर्व में शामिल हों. यह मेरी हर व्यक्ति से अपील है.' इसके बाद पीएम ने हर बूथ पर भाजपा को जिताने की भी अपील की है. उन्होंने रैली में लोगों से पूछा, कि क्या आप इसे हमारे लिए सुनिश्चित करेंगे, क्योंकि इस बार हमारा ध्यान हर पोलिंग बूथ जीतने की ओर है. अगर आप हमें इस लक्ष्य तक पाने में मदद करेंगे, तो भाजपा के हर उम्मीदवार विधानसभा पहुंच जाएंगे.
मोदी ने यह भी कहा कि इसका क्रेडिट सीएम भूपेंद्र पटेल को भी जाता है, तो जानें दें. उन्होंने कहा कि मैं चाहता हूं कि भूपेंद्र, नरेंद्र के सारे रिकॉर्ड तोड़ दें. इसका अर्थ होगा कि मैं दिल्ली जाकर फिर अपने काम में लग जाऊंगा. उन्होंने कहा कि हम सबको गुजरात और देश को विकास के पथ पर आगे ले जाना है. इसके लिए जीत जरूरी है.
हो सकता है कई मतदाता विकल्प की तलाश में हों. लेकिन जब तक विपक्ष ऐसे मतदाताओं का विश्वास प्राप्त ना करे, तब तक स्थिति में बदलाव संभव नहीं है. गुजरात में केजरीवाल कितने प्रभावी होंगे, अभी कहना मुश्किल है. कांग्रेस के पास प्रमुख रणनीतिकार अहमद पटेल भी नहीं हैं.
2021 सितंबर में मोदी ने गुजरात में एक बड़ा बदलाव किया. उन्होंने विजय रुपानी की जगह भूपेंद्र पटेल को सीएम बनाया. रुपानी की लोकप्रियता कम हो रही थी. रुपानी को अमित शाह का आदमी माना जाता था. मंत्रिमंडल से कई पुराने चेहरों को हटा दिया गया. टिकट वितरण में भी पुराने चेहरों को बहुत अधिक प्राथमिकता नहीं दी गई. इस सारी कोशिशों को नाराज पटेल मतदाताओं को लुभाने की कोशिश के रूप में भी देखा गया. 2017 में आरक्षण आंदोलन की वजह से पटेल समुदाय भाजपा से नाराज हो गया था. अब भाजपा को उम्मीद है कि पटेल और पाटीदार फिर से भाजपा के साथ हो गया है. पटेल आंदोलन के सबसे बड़े चेहरे हार्दिक पटेल खुद भाजपा ज्वाइन कर चुके हैं. कुछ दिनों के लिए वह कांग्रेस में रहे, लेकिन बाद में उन्होंने पार्टी छोड़ दी.
मोदी ने आदिवासी इलाकों में भी भाजपा नेताओं को काम करने के लिए लगाया. सौराष्ट्र और द. गुजरात में हुए नुकसान की भरपाई करने के लिए उन्हें लगाया गया है. मोदी को भरोसा है कि गुजरात के लोग उनका साथ देंगे. रैली में पीएम मोदी अपने कामों को भी याद करते हैं, वे जिक्र करते हैं कि किस तरह से उन्होंने नर्मदा बांध परियोजना को पूरा करवाया. किस तरह से उन्होंने सूखे इलाके में हरियाली लाई. अलग-अलग सेक्टर में नई योजनाओं को लाया.
निश्चित तौर पर अगर भाजपा जीतती है, तो यह एक इतिहास होगा. अभी तक पार्टी छह चुनाव लगातार जीत चुकी है. 1995,1998, 2002, 2007, 2012, 2017 में पार्टी जीत चुकी है. 2002 में भाजपा ने 127 सीटें जीती थीं. 2017 में पार्टी को 99 सीटें मिलीं, जबकि इसी साल कांग्रेस को 77 सीटें मिली थीं. इस बार कांग्रेस ने जिस तरीके से प्रचार की योजना बनाई, इससे उनके समर्थक भी नाराज हैं. एक विश्लेषक ने बताया, जमीनी स्तर पर कांग्रेस को समर्थन है, लेकिन कांग्रेस नेता उन्हें निराश कर रहे हैं, वे उनकी उम्मीदों के अऩुरूप न उनसे संपर्क कर पा रहे हैं और न ही कोई नया कदम उठा रहे हैं.
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